मन्नू की वह एक रात - 10 Pradeep Shrivastava द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

श्रेणी
शेयर करे

मन्नू की वह एक रात - 10

मन्नू की वह एक रात

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग - 10

‘पहली तो यही कि जब कपड़े चेंज करने का वक़्त आया तो कमरे में कोई सेपरेट जगह नहीं देख कर मैं और नंदिता अपने कपड़े लेकर बाथरूम की तरफ जाने लगे। तो काकी ने पूछा,

'‘कहां जा रही हो?'’ हमने कहा

‘कपड़े चेंज करके आ रही हूं।’

'‘तो बाहर जाने की क्या ज़रूरत है?’'

उसकी इस बात से मैं और नंदिता चुप-चाप उसे देखते रहे तो वह बोली,

'‘यहीं क्यों नहीं चेंज करती। हम सब भी यहीं करते हैं। ये कमरा है, कोई चौराहा नहीं कि लोग तुम्हारी देख लेंगे।'’ तभी रुबाना बीच में बोली,

'‘या तुम दोनों के सामान कुछ खास तरह के हैं।'’

यह कह कर दोनों ताली बजा कर लोफड़ लड़कों की तरह हंस पड़ीं। उनकी बातों से मैं और नंदिता शर्म से गड़ गए। सिवाए पैरों के पंजे के पास की जमीन देखने के हम कुछ और नहीं कर पा रहे थे। तभी रुबाना फिर बोली,

‘'सुनो यहां पर्दे की हसीना बनने की ज़रूरत नहीं है। पर्दे में ही रहना था तो घर में ही रहती ज़रूरत क्या थी पढ़ने की। कपड़े सब यहीं चेंज करो।'’

उसकी बात से मैं पसीने-पसीने हो गई, नंदिता का भी हाल मेरे ही जैसा था। हमें बुत जैसा एक जगह खड़े देख बोली,

'‘सुना नहीं ? यहीं चेंज करना है तुम्हें। और ये ध्यान रहे ये गर्ल्स हॉस्टल है, तुम्हारा घर नहीं समझीं।'’

कोई रास्ता न देख हम दोनों कमरे के दूसरे कोने में रखी अलमारी की आड़ में जाकर चेंज करने लगे। नंदिता और हमने रात के लिए भी सलवार सूट ही पहना था। जब दोनों चेंज कर रहे थे तो रुबाना फिर बोली,

'’तुम दोनों अंदर कुछ नहीं पहनती क्या जो तुम्हें आड़ की ज़रूरत पड़ती है।'’

हम दोनों ने कोई जवाब नहीं दिया बस जितनी जल्दी चेंज कर सकते थे चेंज कर लिया। हमें रात के लिए भी सलवार सूट पहने देख कर रुबाना फिर भड़की,

'‘ए तुम्हें यही पहनना था तो चेंज करने की ज़रूरत ही क्या थी। जो पहन रखा था वही पहने रहती।'’

फिर रुबाना ने हम दोनों को खाना निकालने के लिए कहा। हम डरे सहमे आज्ञाकारी बच्चों की तरह अपने काम में जुट गए। अभी हम शुरू ही हुए थे कि एक बार फिर चौंक गए। काकी और रुबाना बिना हिचक सामने ही चेंज करनी लगीं। हमारी तरह अलमारी की आड़ में नहीं गईं। निः संकोच बल्कि यह कहो कि पूरी बेशर्मी के साथ अपनी सलवार और कुर्ता उतार दिया। फिर उतनी ही बेशर्मी के साथ दोनों ने अपनी स्लीपिंग ड्रेस बड़े आराम से उठाई और बड़े इतमिनान से पहनी। ट्राउजर और ढीली-ढाली शर्ट उस जमाने के फैशन के हिसाब से बनी थीं।

जिस तरह की और जिस ढंग से वह पहने थीं उसे देखकर निश्चित ही कहा जा सकता था कि वह दोनों कम से कम अपने घरों में तो उस तरह से नहीं रह सकती थीं। जहां काकी ने अपनी शर्ट के बटन बंद कर लिए थे ऊपर के एक को छोड़ कर वहीं रुबाना काकी से कई क़दम आगे थी। उसने न सिर्फ़ ऊपर के दो बटन बेशर्मी से खोल रखे थे बल्कि अपनी ब्रेजरी भी उतार दी थी। इस वजह से उसकी छाती का एक बड़ा हिस्सा न सिर्फ़ दिख रहा था बल्कि भद्दे ढंग से हिल भी रहा था। उसकी यह बेशर्मी देख कर मैं उसे अंदर ही अंदर गाली दे रही थी। मेरा वश चलता तो उसे चप्पलों से पीटती। लेकिन हमारा हाल तो कटखने मास्टर को देखकर थर-थर कांपते बच्चों की तरह था। डर के मारे काम में जुटी हुई थी। कि तभी रुबाना मुझे कनखियों से अपनी ओर देखते पाकर बोली,

'‘ए कनखियों से क्या देख रही हो। देखना है तो बोल दिखाती हूं सब। मैं कोई गांव की गोरी नहीं हूं कि सात तहों में बंद रखूं अपने को। ज़िंदगी मिली है तो उसे जी भर के जियूंगी। काटूंगी नहीं।'’

ऐसी ही न जाने कितनी नसीहतें देती रही वह और साथ में काकी भी। खा-पी कर सोने का वक़्त आया तो दोनों ने नया तमाशा शुरू कर दिया।’

‘कैसा तमाशा ?’

‘वही जो रैगिंग के नाम पर होता है।’

‘क्या किया उन दोनों ने।’

‘जब मैं और नंदिता सोने के लिए अपने-अपने बेड की तरफ चलीं तो अचानक काकी बोली’

'‘सोने की इतनी भी क्या जल्दी है। ये कोई घर है कि खाया-पिया और कि मम्मी डाटेगी। अब जबकि हम लोगों को एक ही कमरे में एक साथ रहना है तो सबसे पहले यह ज़रूरी हो जाता है कि सब एक दूसरे के बारे में सब कुछ जान लें।'’

इसके बाद सबसे पहले रुबाना ने अपने बारे में बताया। उसके बताने का अंदाज कुछ ऐसा था कि जैसे वह किसी स्टेट की राजकुमारी है और उसके जैसा दुनिया में कोई नहीं। अपनी बहादुरी के कई किस्से सुनाए। जैसे जब वह हाई स्कूल में थी तो किसी लड़के ने उसे कुछ कह दिया तो उसे दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। उसके लंबे-चौड़े शरीर और व्यवहार को देख कर मुझे उसकी बात पर यकीन करने में जरा भी देर न लगी। उसने अपनी बातों से यह अहसास कराने का पूरा प्रयास किया कि यदि सामने वाला उसकी बात नहीं मानता तो वह कुछ भी कर सकती है। वह किसी से नहीं डरती।

सच कहूं तो उसकी बातें सुन कर मैं और भी ज़्यादा डर गई। नंदिता का भी हाल यही था। फिर काकी का नंबर आया। वह अजब ही ख़याल की लड़की थी। उसने अपने परिवार की रईसी और अपने को बहुत तेज-तर्रार, खूबसूरत और बहुत ही विद्वान बताने की भरपूर कोशिश की। बड़े घमंड के साथ यह बात बताई कि वह जूनियर हाई-स्कूल से ही क्लास कट करके घूमती रही है। इसके लिए घर से लेकर स्कूल तक उसे कई बार सजा मिली लेकिन वह नहीं बदली। उसकी नजर में सारे पुरुष कमीने होते हैं, इसलिए औरतों को चाहिए कि उन्हें अपने पैरों की जूती बनाकर रखने की हर संभव कोशिश करती रहें ।''

‘हे भगवान! ये कैसी लड़कियां थीं ।’ बिब्बो ने आश्चर्य से पूछा तो मन्नू गहरी सांस लेकर बोली।

‘दोनों ही पूरी तरह से कंफ्यूज्ड लड़कियां थीं। वह दुनियां भर की क्रांतिकारी बातें करती थीं लेकिन उनके काम, व्यवहार में कहीं से उन बातों का प्रभाव नहीं दिखता था।’

‘फिर क्या हुआ।’

‘फिर मैंने और नंदिता ने अपने-अपने बारे में बताया। उन दोनों ने मेरी और नंदिता की खूब खिल्ली उड़ाई। कहा,

‘'तुम दोनों तो सोलहवीं सदी की कन्याएं नजर आती हो। फिर यहां क्या करने आई हो। अच्छा चलो कोई बात नहीं। हम हैं न। हम तुम्हें मॉडर्न बना देंगे। और तुम वही करोगी जो हम कहेंगे।'’

फिर हम दोनों से गाना गाने को कहा। किसी तरह गाने से फुरसत मिली तो नाचने को कहा। ऐसी ही त़माम ऊट-पटांग बातें कीं, काम करवाए। यह सब करते-करते रात एक बज गए तब सोने का वक़्त आया।

पहला एक हफ़्ता ऐसी ही, ऊट-पटांग बातों और डरते-काँपते बीता। इसके बाद फिर हालात से थोड़ा सा परिचित होते जाने के बाद हमारे जान में जान आनी शुरू हुई। मगर रोज ही कुछ न कुछ नया होता था या सुनने को मिलता जो हमारे लिए एक नया अनुभव होता। कोई दस दिन ही बीते होंगे कि रुबाना और काकी का एक नया सच जो मुझे उस वक़्त बड़ा घिनौना लगा था देखने को मिला।

‘घिनौना सच।’

‘हां! उस वक़्त मुझे उससे घिनौना कुछ और लगा ही न था।’

‘ऐसा क्या किया था उन दोनों ने।’

‘बता रही हूं। उस दिन क्लास अटेंड करने के बाद कुछ किताबों वगैरह के चक्कर में हम लोग अमीनाबाद गए। वहां से आते वक़्त रुबाना-काकी मिल गईं। दोनों के साथ चार और सहेलियां थीं। वहीं रुबाना ने बातों ही बातों में फ़िल्म देखने का प्रोग्राम बना दिया। इवनिंग शो देखना तय हुआ, हमने नंदिता ने मना किया तो काकी लगी आंख दिखाने। अब हमारे सामने हां करने के सिवा कोई चारा न था। मैं जीवन में पहली बार किसी पिक्चर हाल में इवनिंग शो देख रही थी। खैर इवनिंग शो देख कर हॉस्टल लौटे तो देर से आने के लिए वार्डेन की डांट पड़ी। खाए-पीए फिर फ़िल्म के बारे में तमाम बातें होती रहीं। करीब एक बजे सोए।

थकान के कारण बड़ी गहरी नींद आई थी। लेकिन रात करीब तीन बजे होंगे कि पेशाब लगने के कारण मेरी नींद खुल गई। तभी मेरे कानों ने ऐसी आवाज़़ सुनी जो उससे पहले कभी नहीं सुनी थी। मेरे कान खड़े हो गए। कमरे का नाइट लैंप आफ था। मगर बाहर जो स्ट्रीट लाइट लगी थीं उनमें से एक का खंबा हमारे रूम की खिड़कियों के सामने था और रोशनदान से छन कर रोशनी भी आ रही थी। उस रोशनी में चीजों को बहुत साफ तो नहीं हां फिर भी समझने लायक के स्तर तक आसानी से देखा जा सकता था। जब मैंने आह ..... ऊं ... जैसी आवाज़़ किधर से आ रही है यह जानने के लिए नजर डाली उस ओर जिधर से आवाज़़ आ रही थी तो जो देख़ा उससे आश्चर्य से आंखें फटी की फटी रह गईं। रुबाना के बेड के आगे ही काकी का बेड था और रुबाना उसी पर थी।’

‘और काकी कहां थी ?’

‘काकी भी वहीं थी। दोनों के स्लीपिंग ड्रेस की बटन सामने से खुली थीं। ट्राउजर बदन पर नहीं था। और दोनों एक दूसरे से गुथ्थम-गुथ्था थीं। वह अजीब आवाज़़ भी उन्हीं की थीं। यह दृश्य मेरी कल्पना से परे था। मैं सांस थामें पड़ी रही, देखती रही उनका घिनौना खेल। जिस पेशाब के लगने के कारण मेरी नींद खुली थी उसका अहसास न जाने कहां लोप हो गया था। कुछ देर बाद जब उन दोनों का ज्वार उतरा तो रुबाना वहां से उठी और बड़ी सावधानी से अपना ट्राउजर पहना, फिर एक नजर हम दोनों पर डाली और अपने बेड पर आ गई। उधर काकी ने भी अपने कपड़े ठीक किए और सो गई। मगर मेरी न सिर्फ़ नींद उड़ गई बल्कि किस लिए खुली थी यह भी भूल गई। करीब आधे घंटे तक अपने इस नए अनुभव से हतप्रभ हो पड़ी रही। मगर पेशाब ने फिर जोर मारा तो उठी बाथरूम जाने के लिए। अब तक दोनों सो चुकी थीं। नंदिता भी पैर फैलाए सो रही थी। बाथरूम से लौटी तो जान ही निकल गई।’

‘क्यों ? क्या हो गया था।’

‘बाथरूम से जब कमरे में वापस आई तो देखा रुबाना अपने बेड पर बैठी है। मैं डरते हुए, अनजान सी बनी अपने बेड पर आ गई। अभी लेटी ही थी कि रुबाना उठ कर मेरे बेड पर आ गई। मैं हकबका कर उठ बैठी। तो वह बोली,

'’तुम कितनी देर से जाग रही हो?’'

मैंने कहा ‘ बाथरूम जाने के लिए मैं तो अभी उठी हूं ।’

वह दांत पीसती हुई बोली '’झूठ मत बोलो। तुम जैसी चालाक देहातियों को मैं अच्छी तरह जानती हूं। और तुम जैसों से कैसे निपटा जाए यह भी। देहातियों वाली बात पर मुझे भी गुस्सा आया पर मैंने स्वयं पर काबू करते हुए कहा,

‘मैंने ऐसा क्या कर दिया है जो ऐसा कह रही हो।’

'‘ज़्यादा बनने की कोशिश न करो। जब तुम एक झटके से उठी थी मैंने तुम्हें उसी वक़्त देख लिया था। लेकिन मैं अपने मजे का कूड़ा नहीं करना चाहती थी। और तुम्हें यह भी मालूम है कि मैं किसी की परवाह नहीं करती हूँ । इसलिए तुमको देखने के बाद भी मैंने परवाह नहीं की। मैं तो बस तुम्हारी कनिंगनेस को चेक करना चाहती थी। और वो पता चल गई कि तुम कैसी हो, कितनी कनिंग हो।'’

‘ऐसी कोई बात नहीं है आप मेरा विश्वास करें । मैं नहीं चाहती थी कि आपको डिस्टर्ब करूं।’

'‘अच्छा .... तो बताओ कि मैं क्या कर रही थी?’'

‘मैं ..... मैं...... मुझ से गलती हो गई है तो माफ कर दीजिए। यकीन कीजिए कभी किसी से कुछ नहीं कहूंगी।’

‘'इसी में तुम्हारी भलाई है।'’

यह कह कर रुबाना अपने बेड पर गई और ऐसे तान कर सो गई जैसे कुछ हुआ ही नहीं। मगर मेरी नींद उड़ गई। मैं यह सोच-सोच कर परेशान थी कि इस हॉस्टल में जीवन के और क्या-क्या रंग देखने को मिलेंगे। अगले दिन रुबाना के व्यवहार से ऐसा लगा ही नहीं कि रात में कुछ हुआ होगा। दिन में जब क्लास अटेंड कर करीब दो बजे मैं नंदिता के साथ कैंटीन जा रही थी कि तभी काकी अकेली आई। यह किसी आश्चर्य से कम न था। क्योंकि काकी-रुबाना कभी अकेली नहीं रहती थीं। वह गुस्से में दिख रही थी। आते ही वह नंदिता को अलग कर मुझे थोड़ा दूर ले गई। और आँखें दिखाते हुई बोली, ''कल रात वाली बात तुमने किसी को भी भूल कर भी बताई तो सोच लेना गोमती में कहीं सड़ती मिलोगी समझी।'’

मैं समझ गई कि यह रुबाना से सारी बातें करके आ रही है। इन डेढ़-दो हफ्तों में मैं यह भी जान गई थी कि इन दोनों ही के संबंध युनिवर्सिटी के नेता टाइप कई छात्रों से हैं। तो काकी की धमकी से डर कर हाथ जोड़ कर बोली,

‘मैं कसम खा कर कहती हूं कि सपने में भी किसी से कुछ नहीं कहूंगी।’ बड़ी अनुनय-विनय के बाद वह मानी उसके बाद हम कैंटीन गए।

वहां एक और बड़ा झटका लगा। जिस नंदिता को मैं बहुत मासूम अपने से भी ज़्यादा गई गुजरी समझती थी वह कहीं ज़्यादा चालाक निकली। कैंटीन में बैठते ही जब उसने पूछा कि काकी ने क्या कहा तो वादे के मुताबिक मैंने बात छिपाने की कोशिश की लेकिन नंदिता बोली,

'‘ठीक है न बताओ लेकिन मुझे सब मालूम है।'’

‘मैंने पूछा क्या?’

'‘यही कि काकी ने तुमसे क्या कहा।'’

‘अच्छा .... तो बताओ’

‘'उसने यही कहा होगा कि कल रात वाली बात किसी से न कहना।'’ अब मैं समझ गई कि इसे सब पता है तो मैंने उसे सारी घटना बता दी । तो वह बोली,

‘'यह कोई पहला चांस नहीं है। मैंने आने के दूसरे ही दिन दोनों को पकड़ लिया था। मगर दोनों ने जिस तरह से धमकाया उससे मैं डर गई। सोचा जो करना है करो, मुझे क्या करना है, मैं क्यों कहने जाऊं। एक बात और कहूं कि मैंने इतनी कामुक लड़कियां पहले कभी नहीं देखीं, मैं तो कोशिश करूंगी कि जल्दी से जल्दी रूम चेंज करा लूं।'’

मुझे नंदिता की बात सही लगी। मैंने उससे कहा,

‘ठीक है मैं भी कराती हूं। इन दोनों के साथ रहना संभव नहीं। न जाने दोनों क्या कर दें। इनके साथ तो हम भी बदनाम हो जाएंगे।’

‘तुमने तो जीवन में बडे़ अजीब-अजीब अनुभव प्राप्त किए हैं। लेकिन चीनू की हरकत से तुम्हें यह बातें कैसे याद आ गईं ।’

***