हिमाद्रि - 19 Ashish Kumar Trivedi द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

श्रेणी
शेयर करे

हिमाद्रि - 19



                     हिमाद्रि(19)
 
 
उमेश ध्यानमग्न बैठा था। डॉ निरंजन उसके पास आकर बोले।
"अब आपका यह बंगला प्रेत से मुक्त हो गया है। अब किसी तरह के डर की ज़रूरत नहीं। हिमाद्रि अब प्रेत लोक चला गया है।"
दुर्गा बुआ पास ही खड़ी थीं। वह बोलीं।
"हमारी इच्छा थी कि घर में एक शुद्धि हवन हो जाता। मन को तसल्ली मिल जाती।"
"जैसा आप चाहें। वैसे मेरे हिसाब से अब किसी तरह की चिंता की आवश्यक्ता नहीं है।"
बुआ ने रज़ामंदी के लिए उमेश की ओर देखा। उमेश ने कहा।
"बुआ आप अपनी तसल्ली के लिए जो कराना चाहती हो कराओ।"
बुआ ने डॉ. निरंजन से शुद्धि हवन करवाने के लिए कहा। शुद्धि हवन करवाने के बाद डॉ. निरंजन अपनी फीस लेकर अपने सहायक तेजस के साथ विदा हो गए। 
एक हफ्ता बीत चुका था। कुमुद को उसके माता पिता अपने घर ले गए थे। उमेश कुछ समय हिमपुरी में रह कर अपने निर्णय पर पहुँचना चाहता था कि आगे क्या करे। उसने बुआ से भी दिल्ली चले जाने को कहा। परंतु वह उसे अकेले छोड़ कर जाने को तैयार नहीं हुईं। 
सुबह का समय था। उमेश लॉन में टहल रहा था। बुआ उसके पास आकर बोलीं।
"भैया आजकल चिंतित रहते हो। बात क्या है ?"
उमेश लॉन में पड़ी गार्डन चेयर पर बैठ गया। बुआ भी उसके पास जाकर बैठ गईं। 
"बुआ निर्णय नहीं कर पा रहा हूँ कि आगे क्या करूँ ?"
"भैया...सोंचना क्या है। जो करने आए थे वही करो। डॉ. निरंजन ने कह तो दिया कि अब सब ठीक है।"
"हाँ बुआ....उन्होंने कहा तो है। उनकी बात पर यकीन भी है। पर सच कहूँ तो हिमाद्रि वाले कांड से मन खट्टा हो गया है। कितने अरमान थे कि यहाँ बेड एंड ब्रेकफास्ट होटल खोलूँगा। पर अब मन नहीं करता है।"
"भैया जिस काम को करने में हिचक हो उसे नहीं करना चाहिए। पर अब इस बंगले का करोगे क्या ?"
उमेश कुछ सोंचते हुए बोला।
"बुआ..अब बंगले में शुद्धि हवन भी हो चुका है। इसलिए प्रेत वाली बात नहीं रह गई। सोंचता हूँ कि बंगला बेंच दूँ।"
"ठीक है भैया... जैसा सही समझो।"
"तो बुआ यही करता हूँ। मैं किसी प्रापर्टी डीलर से बात करता हूँ। हम अपना सामान पैक कर दिल्ली चले जाएंगे। जब कोई अच्छी पार्टी मिलेगी तो बंगला बेंच दूँगा।"
नाश्ता करने के बाद उमेश प्रापर्टी डीलर से मिलने चला गया। उमेश ने कहा था कि थोड़ा थोड़ा कर सामान पैक करना शुरू कर दो। इसलिए बुआ उनके बेडरूम में कुमुद के कबर्ड का सामान पैक कर रही थीं। 
कबर्ड में कुमुद के कपड़े और कुछ अन्य सामान था। बुआ बहुत सावधानी से उसके कपड़े निकाल कर एक सूटकेस में रख रही थीं। कपड़े रखते हुए बुआ को कबर्ड में कपड़े से लिपटी एक चीज़ दिखी। उन्होंने उसे उठाया। कपड़ा हटा कर देखा तो यह एक डायरी थी। उन्होंने कई बार कुमुद को यह डायरी लेकर कुछ लिखते देखा था। उनका कौतुहल जागा। लेकिन किसी की डायरी पढ़ना उचित ना समझ कर उन्होंने खुद को रोक लिया। उन्होंने डायरी को कपड़े में लपेट कर अन्य सामान वाले कार्डबोर्ड बॉक्स में रख दिया। कुमुद का सारा सामान पैक करने के बाद बुआ लंच बनाने लगीं।
उमेश के लौटने के बाद बुआ और वह लंच कर रहे थे। उमेश ने उन्हें बताया कि उसने प्रापर्टी डीलर से बंगले के लिए कोई ग्राहक ढूंढूंने के लिए कह दिया है। प्रापर्टी डीलर ने उसे आश्वासन दिया है कि वह कोई सही पार्टी की तलाश कर उसे खबर देगा। पर इस काम में कुछ समय लग सकता है। अतः सही रहेगा कि वह दोनों एक दो दिन में ही दिल्ली लौट चलें। बुआ ने उसे बताया कि उन्होंने कुमुद का सामान पैक कर दिया है। वह बाकी का सामान भी पैक कर लेंगी। उमेश ने उनसे कहा कि दोपहर कुछ देर आराम करने के बाद वह उनके साथ मिल कर पैकिंग करवा लेगा। 
खाने के बाद वह आराम करने जा रहा था तभी गगन चौहान का फोन आया। उसने उसे पुलिस स्टेशन आकर मिलने के लिए कहा। उमेश पुलिस स्टेशन के लिए निकल गया। उसने सोंचा था कि गगन शायद वही पुरानी बात करे कि केस बहुत उलझा है। उसकी बात सुनने के बाद वह उन्हें केस बंद करने को कह देगा।
जब उमेश पुलिस स्टेशन पहुँचा तो गगन उसका बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। उमेश को बैठने को कह कर वह भी अपनी कुर्सी पर बैठ गया। उमेश ने पूँछा।
"कहिए आपने क्यों बुलाया था ?"
"मि. सिन्हा आपकी पत्नी के केस में एक अनोखी बात सामने आई है।"
उमेश ने सोंचा था कि गगन वही पुरानी बात करेगा। लेकिन वह तो किसी अनोखे पहलू की बात कर रहा था। उसने आश्चर्य से पूँछा।
"अनोखी बात ?"
"हाँ मि. सिन्हा...हम इस केस में दो बिंदुओं को लेकर चल रहे थे। पहला कि उस रात आपके बंगले में कोई चोर घुसा होगा। लेकिन मौका देख कर उसने आपकी पत्नी के साथ दुष्कर्म किया होगा। पर बाद में घबरा कर बिना कुछ चुराए भाग गया। दूसरा कि कोई सैलानी मदद मांगने आया होगा किंतु मिसेज़ सिन्हा को अकेला पाकर उनके साथ गलत किया और भाग गया।"
उमेश बड़े ध्यान से सब सुन रहा था। उसके मन में कौतुहल था कि आखिरकार पुलिस को कौन सी अनोखी बात पता चली है। 
"मैंने सब इंस्पेक्टर अचला को चोर वाले एंगिल से पड़ताल करने को कहा। अचला की जाँच में एक चोर गोकुल का नाम सामने आया। हादसे वाले दिन वह बंगले के पास वाले इलाके में देखा गया था। हमने गोकुल से पूँछताछ करनी चाही तो पता चला कि वह हिमपुरी से बाहर चला गया है। उसकी पत्नी का कहना था कि वह अक्सर बिना बताए कहीं चला जाता है। पर कुछ दिनों में लौट आता है। हम गोकुल के लौटने की राह देखने लगे। कल दोपहर हमें सूचना मिली कि गोकुल लौट आया है। हमने फौरन उसे गिरफ्तार कर लिया।"
बात करते हुए गगन ने पानी की बोतल से दो चार घूंट भरे। 
"हमने सख्ती के साथ गोकुल से पूँछताछ की। उसने जो कुछ बताया वह बहुत अजीब था।"
उमेश ने उत्सुकता से पूँछा।
"ऐसा क्या बताया उसने ?"
"गोकुल ने बताया कि वह उस रात चोरी के इरादे से बंगले पर गया था। उसे मेन डोर खुला हुआ मिला। उसने सावधानी से अंदर झांका तो कोई नहीं दिखा। हॉल में बत्ती नहीं जल रही थी। उसे लगा कि मेन डोर शायद गलती से खुला रह गया हो। लोग अपने अपने कमरों में आराम कर रहे होंगे। इसलिए वह सावधानी बरतते हुए हॉल में घुस गया। कुछ ही आगे जाने पर उसे एक हिस्से से हल्की रौशनी आती दिखाई पड़ी। वह आगे बढ़ा तो वहाँ एक बड़ी सी डाइनिंग टेबल थी। उसने एक जवान औरत को वहाँ बैठे देखा।"
गगन बोलते हुए रुक गया। उठ कर उमेश की कुर्सी के पास आकर बोला।
"मि. सिन्हा वह जवान औरत कुमुद जी ही हो सकती हैं। पर आश्चर्य की बात यह है कि गोकुल का कहना है कि वह किसी से बात कर रही थीं। लेकिन उसने वहाँ किसी को नहीं देखा। पर कुमुद जी ऐसे पेश आ रही थीं कि जैसे वह शख्स उनके सामने ही बेठा हो। गोकुल यह देख घबरा कर वहाँ से भाग गया।"
यह सुन कर उमेश सचमुच दंग रह गया। 
"गोकुल ने कुमुद को किसी से बात करते देखा। लेकिन वहाँ कोई नहीं था।"
"जी बिल्कुल यही..."
"गोकुल ने कुछ बताया कि उसने कुमुद को क्या बात करते सुना ?"
गगन कुछ सोंच कर बोला।
"हमने उससे यह बात पूँछी थी। उसने बताया कि कुमुद जी बहुत धीमे बोल रही थीं। वह कुछ समझ नहीं पाया। लेकिन एक शब्द फिर भी उसके कानों में पड़ ही गया।"
"कौन सा शब्द ?"
"हिमाद्रि......"
सुनते ही उमेश के होश उड़ गए। उसके माथे पर पसीने की बूंदें उभर आईं। वह बहुत परेशान हो गया। उसकी हालत देख कर गगन घबरा गया। पानी की दूसरी बोतल उसकी तरफ बढ़ा कर बोला।
"मि. सिन्हा आपकी तबीयत तो ठीक है ना ?"
अपने आप को संभालते हुए उमेश ने कहा।
"मैं ठीक हूँ।"
"क्या आप जानते हैं कि यह हिमाद्रि कौन है।"
उमेश ने गगन की तरफ देख कर कहा।
"चौहान साहब माफ कीजिएगा पर अभी मैं आपको कुछ नहीं बता सकता हूँ। लेकिन समय आने पर सब कुछ बताऊँगा। अभी तो आप बस मेरी एक मदद कर दीजिए।"
गगन कुछ समझ नहीं पा रहा था कि उमेश को हो क्या गया है।
"कैसी मदद ?"
"आप मुझे पुलिस की पुरानी फाइलें देख कर बताइए कि क्या 2012 में हिमपुरी के आसपास के जंगलों में औरतों के शव मिलने की रिपोर्ट दर्ज़ है। जिनके शरीर देख कर तो दुष्कर्म की आशंका जताई गई थी। पर मेडिकल रिपोर्ट इसकी पुष्टि नहीं कर रही थी।"
"मतलब जैसा कुमुद जी के साथ हुआ.."
"जी...और यह जानना बहुत आवश्यक है।"
उमेश के कहने के अंदाज़ से गगन को अंदाज़ हो गया कि मामला बेहद गंभीर है।
"मि. सिन्हा... मैं तो बस दो साल पहले ही यहाँ आया हूँ। पर मैं 2012 की फाइलों में इस केस को ढूंढ़ने का प्रयास करूँगा।"
गगन की बात सुन कर उमेश अजीब सी उलझन में पड़ गया था। पुलिस स्टेशन से निकल कर वह सीधा घर की तरफ चल दिया।