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हिमाद्रि - 2

   
                       हिमाद्रि(2)
 
 
कुमुद की बात सुनने के बाद उमेश और अधिक परेशान हो गया था। वह बहकी बहकी बातें कर रही थी। उमेश के मन में आह उठी। हे प्रभु ये क्या हो गया उसे। कितनी खुशमिजाज़ थी। आज उसकी आँखों में खौफ दिख रहा था। वो शैतान जो भी है मैं उसे छोड़ूँगा नहीं। 
उमेश इस बात का अंदाज़ लगाने का प्रयास करने लगा कि वह कौन हो सकता है जो चुपचाप आया और कुमुद के साथ यह कुकर्म कर चला गया। वह भीतर कैसे आया होगा। ज़रूर बुआ के अपने क्वार्टर में जाने के बाद कुमुद मेन डोर बंद करना भूल गई होगी। वह व्यक्ति मेन डोर से अंदर चला गया होगा। उसने कुमुद को अकेला पाकर यह करने का दुस्साहस किया होगा। कुमुद शायद सो रही होगी।वह अचानक ही उस पर टूट पड़ा होगा। यदि उसे मौका मिला होता तो वह बाहर की तरफ भागती। या फिर दुर्गा बुआ को फोन कर मदद के लिए बुलाती। 
क्या वह कोई ऐसा आदमी था जो घर में पहले भी आ चुका हो। उसे पता हो कि बेडरूम कहाँ है। जो यह भी जानता हो कि मैं घर पर नहीं हूँ। अपने इस विचार को उसने तुरंत खारिज कर दिया। उन लोगों को यहाँ आए हुए सिर्फ दो महीने ही हुए थे। उनके घर आने जाने वाला कोई नहीं था। 
उसने सोंचा कि वह अवश्य कोई चोर होगा। दरवाज़ा खुला देख कर चोरी के इरादे से घुसा होगा। या फिर यहाँ आने वाले सैलानियों में से कोई होगा। शायद मदद मांगने के इरादे से आया हो। पर मौके का लाभ उठा कर कुमुद के साथ बलात्कार कर भाग गया। वह अब पछता रहा था। कुमुद ने कई बार उससे सिक्योरिटी सिस्टम लगवाने की बात कही थी। पर उसने नहीं सुना। 
वह यहाँ अपने इस बंगले को ब्रेड एंड ब्रेकफास्ट होटल में बदलने की योजना लेकर आया था। उसी सिलसिले में ज़रूरी प्रक्रियाएं पूरी करने के लिए भागदौड़ कर रहा था।
यह बंगला कोई 60 साल पुराना था। इसे जॉर्ज स्मिथ नाम के एक एंग्लो इंडियन चित्रकार ने बनवाया था। 1984 में वह यह बंगला अपने कज़िन स्टुअर्ट स्मिथ को बेंच कर फ्रांस चले गए। तीस सालों तक स्टुअर्ट का परिवार इसी बंगले में रहा। स्टुअर्ट की मृत्यु के बाद बंगला उनकी बेटी नोरा नोरा को मिल गया।
उमेश के दादा एक माने हुए वकील थे। उसके पिता ने भी वकालत के पेशे को चुना। दिल्ली में उमेश के दादा और पिता की सिन्हा एंड सिन्हा नाम से लॉ फर्म थी। स्टुअर्ट की बेटी नोरा कई सालों से अमेरिका में थी। दिल्ली में स्टुअर्ट की कुछ संपत्ति थी जिस पर कुछ विवाद था। उमेश के पिता की फर्म ने संपत्ति वापस दिलाने में नोरा की सहायता की। नोरा दिल्ली की संपत्ति और बंगले को बेचना चाहती थी। उसने उमेश के पिता से बात की। वह बंगले और अन्य संपत्ति को खरीदने को राज़ी हो गए। 
बंगला खरीदने के पीछे वजह उमेश ही था। उसने जब बंगले की तस्वीरें देखीं तो वह उस पर मोहित हो गया। उसकी मंशा लॉ के पुश्तैनी पेशे में जाने की हरगिज़ नहीं थी। दबाव में उसने  एलएलएम करने के बाद पिता की फर्म में काम भी किया। किंतु कानूनी दांवपेंचों में उसका मन नहीं रमता था। वह कुछ नया करना चाहता था। वह अपने मन में तरह तरह के आइडिया सोंचता रहता था।
यह बंगला हिमपुरी नामक छोटे से हिल स्टेशन पर था। पिछले कुछ सालों से पर्याटकों ने यहाँ का रुख करना शुरू कर दिया था। यह एक बेहद खूबसूरत व शांत सा स्थान था। दूसरा यहाँ से कोई पचास किलोमीटर दूर स्थित जंगल को पर्यटन के लिए वन सफारी के रूप में विकसित किया गया था। वहाँ जाने वाले पर्यटक हिमपुरी में ही ठहरते थे। बंगला खरीदने से पहले उमेश यहाँ आया था। उसके मन में विचार आया कि बंगले को एक होटल में तब्दील किया जा सकता है। उसने अपने पिता से यह बंगला खरीदने के लिए कहा। उसकी इच्छा के कारण वह बंगला खरीदने के लिए तैयार हो गए। 
कुमुद और उमेश एक दूसरे को प्रेम करते थे। कुमुद राजस्थान की रहने वाली थी। उसके पिता बैंक अधिकारी थे। माँ एक गर्ल्स डिग्री कॉलेज की प्रिंसिपल थीं। कुमुद दिल्ली में एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करती थी।  
उमेश के एक दोस्त की बहन का संगीत था। वहाँ कुमुद भी आई हुई थी। अपने गीत से उसने कार्यक्रम में धूम मचा दी थी। उमेश को भी उसका गाना पसंद आया था। वह उससे बात करना चाहता था। पर वह कहीं दिख नहीं रही थी। उसे ढूंढ़ते हुए जब वह बाहर गया तो देखा कि वह किसी से बात कर रही थी। वह बहुत परेशान लग रही थी। उमेश हिम्मत कर उसके पास पहुँचा। 
"आप परेशान लग रही हैं। क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूँ।"
"नो थैंक्यू..... आई विल मैनेज।"
कुमुद ने तो सीधे मना कर दिया। लेकिन वह जिससे बात कर रही थी वह उसके दोस्त की छोटी बहन मीताली थी। वह फौरन बोली।
"कुमुद दी आपकी समस्या हल हो गई। उमेश भैया आपको छोड़ देंगे।"
कुमुद ने फिर से वही कहा कि वह मैनेज कर लेगी। उमेश ने शालीनता से कहा।
"आप जैसा ठीक समझें। हाँ अगर आप कहेंगी तो आपकी मदद कर मुझे खुशी होगी।"
उमेश वहाँ से चला गया। वह अपने दोस्तों के साथ खाना खा रहा था तभी मीताली ने उसे पुकारा। वह अपनी प्लेट लेकर उसके पास गया। कुमुद भी मीताली के साथ थी। उसने कुछ सकुचाते हुए कहा।
"वो मैं पीजी में रहती हूँ। बहुत देर हो गई है। यहाँ से कोई सवारी भी नहीं मिल रही है। क्या आप मुझे छोड़ कर आ सकते हैं।"
"मैं बस प्लेट रख कर आ रहा हूँ।"
"आप खाना खा लीजिए।"
"मैं खा चुका हूँ।"
उमेश कुमुद को पहुँचा कर घर चला गया। अगले ही दिन उसके पास एक फोन आया। उसने फोन उठाया तो कुमुद थी। उसने बताया कि यह नंबर उसे मीताली ने दिया है।
"वो कल मैं आपको मदद के लिए धन्यवाद भी नहीं दे सकी थी। मैंने आपसे कुछ रुखाई से बात भी की थी।"
"धन्यवाद की आवश्यक्ता नहीं। आप वहाँ हमारी मेहमान थीं। वह मेरे दोस्त की बहन का संगीत था। रही बात रुखाई से पेश आने की तो आपने ऐसा कुछ गलत नहीं कहा। आप मुझे जानती नहीं थी इसलिए आपका उस तरह पेश आना गलत नहीं।"
"फिर भी मैं क्षमा चाहती हूँ।"
उमेश कुछ नहीं बोला। कुमुद भी चुप हो गई। हलांकि उमेश चाहता था कि वह आगे कुछ कहे। पर लगभग तीस सेकेंड तक खामोशी छाई रही। अंततः कुमुद बोली।
"आप व्यस्त हैं। मैं फोन रखती हूँ। एक बार फिर धन्यवाद।"
कुमुद की बात सुन कर उमेश बोला।
"आप करती क्या हैं ?"
"मैं एक सॉफ्टवेयर कंपनी में एकाउंट्स सेक्शन में हूँ।"
"तो वर्षा की शादी में दोबारा मुलाकात होगी।"
"जी बिल्कुल...."
"क्या उससे पहले नहीं हो सकती है ?"
कुछ क्षणों के लिए कुमुद फिर शांत हो गई।
"मैंने शायद गलत सवाल पूँछ लिया। माफ कीजिएगा।"
"हो सकती है। आप बताएं कहाँ मिल सकते हैं।"
"दरअसल परसों मेरा बर्थडे है। क्या आप पार्टी में आएंगी।"
"वेन्यू और समय बता दीजिए। आ जाऊँगी।"
"मैं इस नंबर पर मैसेज कर दूँगा।"
उमेश की बर्थडे पार्टी से शुरू हुई दोस्ती धीरे धीरे बढ़ते हुए प्यार में बदल गई। दोनों ने अपने घरवालों को इस विषय में बताया। दोनों पक्षों को विवाह से कोई आपत्ति नहीं थी। दोनों का विवाह हो गया।
विवाह के बाद उमेश ने बंगले को होटल में बदलने की इच्छा ज़ाहिर की। उसके पिता ने इजाज़त दे दी। वह कुमुद को लेकर यहाँ आ गया। बंगला देख कर कुमुद बहुत रोमांचित हो गई।
वन सफारी जाने की इच्छा रखने वाले पर्यटक हिमपुरी में रात्रि विश्राम के लिए रुकते थे। अतः ऐसे स्थान की अधिक मांग थी जहाँ लोगों के लिए रात में आराम करने तथा अगली सुबह नाश्ते की व्यवस्था हो सके। इसीलिए उमेश और कुमुद ने तय किया था कि वह बंगले को ब्रेड एंड ब्रेकफास्ट होटल में बदल देंगे। इसके लिए बंगले में कुछ ज़रूरी बदलावों की आवश्यक्ता थी। उमेश इसी सिलसिले में एक आर्किटेक्ट से मिलने गया हुआ था। जब यह हादसा हुआ। 
उमेश ने पास लेटी हुई कुमुद को देखा। वह जाग रही थी। उसने उसे आलिंगन में लेने के लिए हाथ बढया तो वह घबरा कर उठ बैठी। उसकी यह दशा देख कर उसका मन द्रवित हो गया। गुनहगार को सज़ा दिलाने का उसका इरादा और पक्का हो गया। 
अगली सुबह उमेश कुमुद को लेकर उसके साथ हुए दुष्कर्म की रिपोर्ट लिखाने थाने पहुँच गया। उसने सारी बात थाना इंचार्ज गगन चौहान को बताई। उसने बताया कि वह किसी आवश्यक काम से बाहर गया था। उनकी देखभाल करने वाली दुर्गा बुआ अपने क्वार्टर में थीं। उनकी पत्नी कुमुद अकेली थी। वह मेन डोर बंद करना भूल गई थी। कोई घर में घुसा। उसे अकेला पाकर उसके साथ जबरदस्ती की। फिर चुपचाप चला गया। कुमुद के साथ जो हुआ उसका उस पर गहरा प्रभाव पड़ा। वह कुछ भी बता सकने की स्थिति में नहीं है। तब से गुमसुम है।
सब इंस्पेक्टर अचला नागर कुमुद से उसका बयान ले रही थी। पहले तो कुमुद कुछ भी नहीं बोली। किंतु जब अचला ने उस पर अपना बयान दर्ज़ कराने के लिए ज़ोर डाला तो उसने उससे भी प्रेत वाली बात कही। अचला ने गगन चौहान को सारी बात बताई। जब चौहान ने इस बारे में उमेश से पूँछा तो उसने सफाई दी कि हादसे के सदमे से उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। इसलिए वह ऐसा कह रही है। 
"देखिए चौहान साहब मैं एक वकील हूँ। कानून जानता हूँ। आप जो भी कार्यवाही ज़रूरी है कर मेरी रिपोर्ट दर्ज़ कीजिए।"
गगन चौहान ने सब इंस्पेक्टर अचला के साथ कुमुद को मेडिकल जांच के लिए भेज दिया।

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