हिमाद्रि - 5 Ashish Kumar Trivedi द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हिमाद्रि - 5


                    हिमाद्रि(5)


उमेश गंभीर मुद्रा में बैठा था। बुआ उसके पास ही बैठी थीं।
"भैया बहूजी की हालत देख कर बहुत बुरा लग रहा है। बेसमेंट के उस छिपे हुए कमरे में प्रेत है। मेरी मानो किसी तांत्रिक को बुलवा कर तंत्र साधना करवा लो।"
बुआ की बात सुन कर उमेश कुछ उत्तेजित होकर बोला।
"बुआ आप भी....ये सब प्रेत वेत का चक्कर नहीं है।"
"भैया बहूजी ने अपनी कहानी बताई उसके बाद भी ऐसा कह रहे हो।"
"हाँ उसके बाद ही कह रहा हूँ। बुआ जो हुआ उसने कुमुद के दिमाग पर बुरा असर डाला है। इसलिए वह ऐसी बातें कर रही है।"
उमेश ने देखा कि बुआ अभी भी उसकी बात से सहमत नहीं लग रही हैं। उन्हें समझाने के लिए वह आगे बोला।
"देखिए कुमुद को रहस्यमई कहानियां पसंद हैं। उसने बेसमेंट में गुप्त कमरा देखा होगा। उसे लेकर कोई रहस्यमई कहानी उसके दिमाग में उपजी होगी। उसके बाद जब वह कमरे में गई होगी। मेन डोर खुला था। कोई अंदर घुसा होगा। मौका देख कुमुद के साथ गलत कर चुपचाप चला गया। इस हादसे से कुमुद को धक्का लगा। उसके मन में चल रही कहानी को उसने इस हादसे से मिला दिया। वह झूठ नहीं बोल रही है। पर उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है।"
उमेश ने फिर बुआ की तरफ देखा। वह समझने की कोशिश कर रही थीं।
"बुआ कुमुद को तांत्रिक की नहीं साईक्राईटिस्ट की ज़रूरत है।"
बुआ अभी भी असमंजस में थीं। उनके मन में कुछ बातें थीं। वह बोलीं।
"भैया पर बिना सच को जांचे बहूजी की बात को सिरे से नहीं नकारना चाहिए।"
उमेश कुछ क्षणों तक शांत रहा फिर बोला।
"अच्छा बुआ एक बात बताइए। पाँच दिन हो गए उस घटना को। तो वह प्रेत चुपचाप कमरे में ही क्यों बैठा है। कुमुद ने दरवाज़ा खोल कर उसे जगा दिया था। फिर इतने दिनों तक उसने हममें से किसी को परेशान क्यों नहीं किया। अगर वह होता तो आगे भी कुछ करता। पर वह शांत हो गया। ऐसा कैसे हो सकता है।"
यह बात बुआ को समझ आई। लेकिन उनका मन अभी भी पूरी तरह से कुमुद की बात को नकारने को तैयार नहीं था। उमेश भी उनके मन की बात समझ रहा था।
"चलो आओ मेरे साथ। हम खुद बेसमेंट में जाकर उस कमरे को देखते हैं।"
वह उठ कर खड़ा हो गया। लेकिन बुआ अपनी जगह से नहीं हिलीं। 
"क्या हुआ बुआ ? अगर आप डर रही हैं तो ठीक है। मैं अकेले जाकर देखता हूँ। मुझे कोई डर नहीं है।"
उमेश अकेला जाने लगा तो बुआ ने उसे रोक लिया।
"भैया ना मैं जाऊँगी ना ही तुम्हें जाने दूँगी। तुम्हें यकीन नहीं है तो मत करो। बहूजी को जिस डॉक्टर को दिखाना हो दिखाओ। पर यह मामला मुझ पर छोड़ दो। मैं यहाँ पूजा करवाऊँगी।"
उमेश कुछ नहीं बोला। उसने पक्का इरादा कर लिया था कि कुमुद को किसी अच्छे साईक्राइटिस्ट को दिखाएगा। वह कुमुद के पास चला गया।
बुआ ने घर में पूजा और हवन करवाया। बेसमेंट के दरवाज़े पर ताला लगा कर उसके ऊपर रोली से बड़ा सा ॐ बनाया। चौखट के दोनों तरफ स्वास्तिक चिन्ह बनाए। उसके बाद हर सुबह वह नहा कर सुंदरकांड का पाठ करने के बाद ही अन्न जल ग्रहण करती थीं। 

उमेश माने हुए साईक्राइटिस्ट बिमल गांगुली के क्लीनिक में बैठा था। हिमपुरी से कोई पैंतीस किलोमीटर दूर शहर में यह क्लीनिक था। डॉ. गांगुली कुमुद से पूँछताछ कर रहे थे। 
कुमुद ने उन्हें भी वही सब बताया जो उसने उमेश को बताया था। सारी बात सुनने के बाद डॉ. गांगुली बोले।
"उमेश बाबू आपकी पत्नी पर हादसे का गहरा असर हुआ है। वह प्रेत की बात कर रही है। क्या पहले भी वह ऐसी बातें करती रही थी।"
"सर उसने पहले कभी भूत प्रेत की बात नहीं की। हाँ उसे रहस्य रोमांच और भूत प्रेत की कहानियां पढ़ना पसंद है। पर उसने कभी यह नहीं कहा कि वह इन चीज़ों पर यकीन करती है।"
डॉ. गांगुली कुछ देर सोंचने के बाद बोले।
"जिस कमरे के बारे में आपकी पत्नी बता रही है उसे आपने देखा है ?"
"जी नहीं.... मैंने बेसमेंट में कोई गुप्त कमरा नहीं देखा। कुमुद ने बताया कि उसने वह गुप्त कमरा ढूंढ़ा था। वहीं पर प्रेत ने उसके साथ दुष्कर्म किया। कुमुद की बात सुन कर हमारे साथ रहने वाली बुआ घबरा गईं। उन्होंने मुझे वहाँ जाने से रोक दिया। पूजा पाठ करवा कर उन्होंने बेसमेंट के दरवाज़े पर ताला डलवा दिया।"
"चलिए कोई बात नहीं। आपकी पत्नी कल्पना और वास्तविकता में अंतर नहीं कर पा रही हैं। इसे सेज़ोफ्रेनिया कहते हैं। वह अपने साथ हुए बलात्कार और गुप्त कमरे को लेकर अपनी कल्पना को आपस में मिला रही हैं। समय लगेगा। आपको समय समय पर सेशन्स के लिए आना होगा। मैं जो दवाएं लिखूँगा समय पर लेनी होंगी। आप लोगों को उनका खास खयाल रखना होगा।"
उमेश कुमुद को लेकर बंगले पर आ गया। कुमुद दवा खाकर आराम कर रही थी। बुआ भी खाना खिला कर आराम कर रही थीं। अब वह अकेले क्वार्टर में ना रह कर बंगले में ही रहती थीं।
उमेश स्टडी में बैठा जो हालात थे उनके बारे में सोंच रहा था। वह तो एक नया जीवन शुरू करने के इरादे से यहाँ आया था। कुमुद भी कितनी खुश थी। लेकिन अचानक जाने किसकी नज़र लग गई। वह बदमाश जो भी था कुमुद को यह घाव देकर चला गया था। एक रात ने सब कुछ बदल कर रख दिया। 
उसने अभी तक अपने पिता को इस हादसे के बारे में नहीं बताया था। वह इन दिनों बीमार रहते थे। उमेश नहीं चाहता था कि वह यह सब जान कर परेशान हों। दूसरी तरफ उनसे यह सब छिपाने का बोझ भी उसके मन पर था। कुमुद के माता पिता को भी कुछ नहीं बताया था। किसी मुंह से उन्हें बताता कि वह उनकी बेटी की हिफाज़त नहीं कर सका। ये बातें उसे और अधिक परेशान कर रही थीं। 
अभी तक पुलिस ने भी कोई सूचना नहीं दी थी। अपनी परेशानी में वह भी पुलिस स्टेशन नहीं जा पाया था। उसने तय किया कि वह कल सुबह ही पुलिस स्टेशन जाकर पता करेगा कि पुलिस को इस केस में कोई सफलता मिली भी की नहीं। तभी बुआ स्टडी में आईं। उन्होंने बताया कि उससे मिलने कोई आया है। वह हॉल में बैठा उसका इंतज़ार कर रहा है। 
उमेश जब हॉल में पहुँचा तो उसने वहाँ एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति को बैठे देखा। नाटे कद का वह व्यक्ति कुछ स्थूलकाय था। उमेश को देखते ही वह उठ खड़ा हुआ। हाथ जोड़ कर बोला।
"नमस्ते मेरा नाम डॉक्टर निरंजन प्रकाश है।"
उमेश ने भी हाथ जोड़ कर नमस्ते किया। डॉ. निरंजन को बैठने को कह कर वह भी सामने बैठ गया।
"कहिए.... कैसे आना हुआ आपका ?"
डॉ. निरंजन ने अपने दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में फंसा लिया। कुछ रुक कर बोले।
"मि. सिन्हा.... मैंने सुना है आपकी पत्नी की तबीयत ठीक नहीं।"
एक अंजान व्यक्ति से अपनी पत्नी के बारे में सुन कर उमेश को आश्चर्य हुआ।
"आपको किसने बताया...."
"वो आप डॉ. गांगुली की क्लीनिक पर गए थे..."
उमेश बीच में ही बोल पड़ा।
"तो शायद आप भी एक मनोचिकित्सक हैं। लेकिन डॉ. गांगुली मेरी पत्नी का इलाज कर रहे हैं। हमें आपके परामर्श की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।"
डॉ. निरंजन ने अपने दोनों हाथ अलग कर लिए। कुछ देर सोंच कर बोले।
"जी मैं पराविज्ञान विशेषज्ञ हूँ। परा शक्तियों पर मैंने रीसर्च की है। मैं आपकी पत्नी की समस्या अच्छी तरह समझ सकता हूँ।" 
उमेश अचानक उठ कर खड़ा हो गया। कुछ कठोर स्वर में बोला।
"डॉ. निरंजन आप फौरन यहाँ से चले जाइए। मेरी पत्नी एक काबिल मनोचिकित्सक की निगरानी में है। मुझे आपकी सहायता की ज़रूरत नहीं।"
"मि. सिन्हा आपकी पत्नी की मदद मेरे अलावा कोई नहीं कर सकता है।"
"देखिए मैं शराफत से कह रहा हूँ कि आप चले जाइए। मुझे भूत प्रेत पर यकीन नहीं है। मुझे कुछ अनुचित करने पर विवश ना कीजिए।"
डॉ. निरंजन उठ कर खड़े हो गए।
"मि. सिन्हा मैं अपने आप आपके पास आया हूँ क्योंकी मैं ऐसे मामलों पर नज़र रखता हूँ। आप भले ही ना मानते हों किंतु परा शक्तियों का अस्तित्व है। इस विषय को परा विज्ञान कहते हैं। विश्व के कई विश्वविद्यालयों में इस पर रीसर्च चल रही है। मैंने भी इस विषय में पीएचडी की है।"
डॉ. निरंजन ने अपने वॉलेट से एक कार्ड निकाल कर उमेश की तरफ बढ़ाया। 
"हो सकता है कि आने वाले समय में आपको मेरी ज़रूरत महसूस हो। यह मेरा कार्ड है।"
उमेश ने कार्ड पर कोई ध्यान नहीं दिया। डॉ. निरंजन कार्ड को सेंटर टेबल पर रख कर बाहर निकल गए। उनके जाने के बाद बुआ हॉल में आईं।
"भैया उनकी बात सुने बिना ही भगा दिया।"
"बुआ प्लीज़.... मैं पहले से परेशान हूँ। मुझे और परेशान मत कीजिए।"
उमेश वापस अपनी स्टडी में चला गया।

उमेश पुलिस स्टेशन में गगन चौहान के सामने बैठा था। गगन कोई फाइल देख रहा था। उसे निपटा कर बोला।
"मि. सिन्हा हम अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं। पर आप जानते हैं कि केस इतना आसान नहीं है। आपने भी अपनी पत्नी की मेडिकल रिपोर्ट देखी थी। मैं आपकी बात से सहमत हूँ कि हो सकता है कि आपकी पत्नी ने डर की वजह से या बेहोशी के कारण कोई प्रतिरोध ना किया हो। इसलिए प्रतिरोध के कोई निशान नहीं हैं। उनके नाखूनों से भी त्वचा के टुकड़े नहीं मिले। पर आश्चर्य है कि उनके गुप्तांग से वीर्य के नमूने भी नहीं मिले।"
उमेश कुछ देर गगन की बात पर विचार करता रहा। 
"देखिए कई बार ऐसा भी देखा जाता है कि कुछ व्यक्ति चरम पर पहुँच कर स्वयं पर नियंत्रण कर लेते हैं। स्खलित नहीं होते हैं। हो सकता है यहाँ भी यही हो।"
गगन ने उमेश के चेहरे पर एक निगाह डाल कर कहा।
"बुरा ना मानिएगा मि. सिन्हा यह पूरा केस ही ये हो सकता है या वो हो सकता है पर ही आधारित है। कुछ भी पुख्ता नहीं है। आपकी पत्नी जिनके साथ यह हादसा हुआ वह जो कुछ कह रही हैं उस आधार पर तो कोई जांच आगे बढ़ नहीं सकती है। मेडिकल रिपोर्ट भी जांच में कोई सहायता नहीं कर रही है। अब आप समझ सकते हैं कि हमारे लिए यह केस कितना कठिन है। फिर भी हम अपने हिसाब से तफ्तीश कर रहे हैं। जैसे ही कोई जानकारी मिलेगी हम आपको अवश्य बताएंगे।"
पुलिस स्टेशन से भी कोई सही सूचना नहीं मिली। निराश उमेश घर लौट गया।