हिमाद्रि - 15 Ashish Kumar Trivedi द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हिमाद्रि - 15

    
                    हिमाद्रि(15)


अंग्रेज़ी राज में भी बहुत से अंग्रेज़ ऐसे थे जो भारत को ही अपना वतन समझते थे। जेम्स स्मिथ एक ऐसे ही अंग्रेज़ थे। जेम्स का जन्म भारत में ही हुआ था। उन्हें भारत की मिट्टी और यहाँ के लोगों से बहुत प्यार था। वह अंग्रेज़ी सरकार के राजस्व विभाग के अधिकारी थे। 
जेम्स को भारतीय संस्कृति से भी बहुत लगाव था। उन्होंने अंग्रेज़ी भाषा में उपलब्ध कई हिंदू पुराणों व ग्रंथों, बौद्ध तथा जैन दर्शन आदि का अध्ययन किया था। भारतीय ग्रंथों को सही तरह से समझ पाने की उनकी इच्छा बहुत प्रबल थी। वह किसी विद्वान व्यक्ति के पास बैठ कर उन्हें समझना चाहते थे।
कैलाशचंद जोशी संस्कृत भाषा के बड़े विद्वान थे। उन्होंने कई ग्रंथों को पढ़ कर सरल हिंदी में उनकी टीकाएं लिखी थीं। जेम्स के कानों में भी उनकी कीर्ति पहुँची थी। जेम्स जोशी जी के पास जा पहुँचे। उन्होंने उनके साथ बैठ कर कुछ ग्रंथों को सही तरह से समझने की अपनी इच्छा जताई। जोशी जी को उज्जैन में हो रहे संस्कृत भाषा के एक सेमीनार में जाना था। अतः उन्होंने जेम्स को कुछ समय बाद आने के लिए कहा। जेम्स ने कहा कि उन्हें फिर शीघ्र अवकाश नहीं मिलेगा। किंतु कोई बात नहीं। आप सेमीनार में जाइए। मैं भविष्य में जब अवसर मिलेगा आपसे संपर्क करूँगा। 
जेम्स जोशी जी के साथ अन्य विषयों पर चर्चा करने लगे। दोपहर के भोजन का समय हो गया था। भीतर बैठी जोशी जी की बेटी मृदिनी उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। किंतु उसके पिता और अंग्रेज़ मेहमान दोनों ही को जैसे समय का ध्यान नहीं था। आखिरकार मृदिनी ही बैठक में पहुँच गई।
"पिता जी भोजन का समय हो गया है। चल कर भोजन कर लीजिए।"
"हाँ बिटिया मैं तो भूल ही गया। तू भी भूखी बैठी होगी। कितनी बार कहा है कि मैं अगर काम में व्यस्त हूँ तो तू खा लिया कर। पर तू भी अपनी माँ की तरह है। अच्छा चल मैं आता हूँ।"
जेम्स भी समय का खयाल ना रखने के लिए लज्जित महसूस कर रहे थे। जोशी जी ने उनसे कहा।
"भोजन का समय है। आप भी हमारे साथ भोजन करें।"
"नहीं जोशी जी आप खाना खाइए। मैं रेस्ट हाउस में जाकर खा लूँगा। कुक ने बनाया होगा।"
जेम्स उठ कर जाने लगे तो जोशी जी ने उन्हें रोक कर पूँछा।
"आप कितने समय तक यहाँ हैं।"
"यही कोई पंद्रह दिनों तक।"
जोशी जी कुछ पल सोंचते रहे। फिर किसी निर्णय पर पहुँच कर बोले।
"अभी जो मुझे बुलाने आई थी वह मेरी बेटी मृदिनी है। बहुत कुशाग्र बुद्धि की है। बचपन से मैंने उसे संस्कृत भाषा पढ़ाई है। कई ग्रंथों की टीकाएं लिखते समय उसने मेरी सहायता की है। मैं समझता हूँ कि वह आपकी मदद कर सकती है। यदि आप चाहें तो।"
जेम्स असमंजस में पड़ गए। वह तो जोशी जी की विद्वता का बखान सुन कर आए थे। लेकिन वह अपनी बेटी से सहायता लेने को कह रहे थे। मना कर वह उनकी बेटी की योग्यता का अपमान भी नहीं कर सकते थे। अतः वह बोले।
"जैसा आप ठीक समझें। मुझे तो कुछ बातें समझनी हैं।"

जोशी जी उज्जैन चले गए। जेम्स मृदिनी के पास कुछ ग्रंथों पर चर्चा करने आने लगे। मृदिनी की उम्र मात्र अठ्ठारह साल थी। जबकी जेम्स बत्तीस वर्ष के थे। किंतु वह मृदिनी की संस्कृत भाषा पर पकड़, ग्रंथों के बारे में उसका ज्ञान और सांसारिक बातों की समझ से बहुत प्रभावित थे। अक्सर कई बातों पर उनकी चर्चा होती थी। तब अक्सर ही वह उसके तर्कों के आगे निरुत्तर हो जाते थे। 
मृदिनी ना सिर्फ विदुषी थी बल्कि बेहद खूबसूरत भी थी। जेम्स उसकी बुद्धिमत्ता के साथ साथ उसकी खूबसूरती पर भी आकर्षित थे। धीरे धीरे यह आकर्षण प्रेम में बदलने लगा था। लेकिन वह मृदिनी के मन की बात नहीं समझ पा रहे थे। 
मृदिनी भी दिन पर दिन जेम्स की तरफ खिंचती जा रही थी। हलांकि वह अपने मन को बहुत समझाती थी कि जो वह चाहती है वह समाज को स्वीकार नहीं होगा। जेम्स विदेशी है। दूसरे धर्म का है। पिता जी भी इस बेमेल रिश्ते के लिए कभी राज़ी नहीं होंगे। किंतु अपने मन में उठ रहे विचारों को वह अपने ही तर्कों से काट देती थी। 
वह अपने आप को ही समझाती कि भले ही जेम्स के माता पिता बाहर से यहाँ आए थे किंतु वह तो भारत में ही पैदा हुए हैं। उनकी बातचीत व्यवहार से उसने सदा ही महसूस किया है कि जेम्स का लगाव इस देश और यहाँ की संस्कृति से बहुत अधिक है। वह कई भारतीय परंपराओं से परिचित हैं और बहुत कुछ जानने को भी इच्छुक रहते हैं। रहा दूसरे धर्म का सवाल तो वह ईसाई होते हुए भी हिंदू धर्मग्रंथों के बारे में जितना जानते हैं उतना तो शायद कई हिंदू भी नहीं जानते होंगे। अपने मन को ऐसे ही तर्क देकर वह जेम्स की तरफ खिंचती जा रही थी।
जेम्स के जाने के केवल दो ही दिन शेष थे। अब तक दोनों ने ही एक दूसरे के लिए अपने प्रेम का इज़हार नहीं किया था। किंतु दोनों ही अब एक दूसरे के मन को समझने लगे थे। जेम्स फिर भी अपने मन की बात कहना चाहते थे। लेकिन सीधे तौर पर कह नहीं पा रहे थे। उन्होंने दूसरी तरह से बात आगे बढ़ाई।
"मृदिनी तुमने दुष्यंत और शंकुंतला की प्रेम कहानी पढ़ी है।"
मृदिनी उनका इशारा समझ गई। इतने दिनों तक धर्म व दर्शन पर चर्चा करने वाले जेम्स आज उससे प्रेम कहानी के विषय में पूँछ रहे थे। 
"हाँ बिल्कुल पढ़ी है।"
"दुष्यंत और शंकुंतला ने एक दूसरे से गंधर्व रीति से विवाह किया था। मतलब बिना किसी बड़े की अनुमति के परंपराओं के निर्वहन के बिना एक पुरुष और स्त्री रिश्ते में बंध गए।"
"हाँ उस समय गंधर्व रीति भी विवाह की एक पद्धति थी।"
"किंतु क्या आज की परिस्थिति में एक लड़का और लड़की ऐसा कर सकते हैं। समाज या परिवार तो उन्हें मान्यता नहीं देगा।"
मृदिनी कुछ सोंच कर बोली।
"जेम्स परंपराएं समय के अनुसार बनती हैं। वो समय अलग था। आज परिस्थितियां बहुत बदल गई हैं। छल कपट धोखा यह आज की सच्चाई बन गया है। इसलिए समाज ने विवाह की एक तय पद्धति बना दी है। बड़े विवाह तय करते हैं और वैदिक रीति से अग्नि के समक्ष विवाह संपन्न होता है।"
जेम्स एक बार फिर मृदिनी के तर्क से प्रभावित थे। किंतु उन्हें तो अपनी बात आगे बढ़नी थी।
"बात तो तुमने ठीक की मृदिनी। लेकिन इस पद्धति में प्रेम विवाह कैसे संभव है।"
"यदि लड़का और लड़की अपने बड़ों को मना लें तो यह भी संभव है।"
"पर अगर परिस्थिति ऐसी हो कि वह ना मानें तो फिर क्या होगा ?"
मृदिनी इस बात पर कुछ देर चुप हो गई। वह भी सोंच समझ कर ही जवाब देना चाहती थी। 
"यदि ऐसा हो तो पहले दोनों को अपने प्यार की गहराई जांचनी चाहिए। फिर अपना फैसला करना चाहिए।"
जेम्स अब तक बात को घुमा कर कह रहे थे। मृदिनी के जवाब से उन्हें समझ आ रहा था कि वह भी उनकी बातों का मर्म समझ रही है। उन्होंने इस बार सीधे पूँछ लिया।
"मृदिनी तुम समझ रही हो कि मैं क्या कहना चाहता हूँ। तुम्हारे पिता जी अगर हमारे रिश्ते के लिए ना माने तो तुम्हारा फैसला क्या होगा।"
"ऐसा होने पर हम दोनों अपना फैसला लेंगे।"
मृदिनी ने अपना फैसला बता दिया था। जेम्स ने तय कर लिया कि वह उसे साथ लेकर ही लौटेंगे। 
जोशी जी लौट कर आए तो जेम्स ने उन्हें सारी बात बता दी। सब जान कर उन्हें बहुत धक्का लगा। उन्होंने मृदिनी को बुला कर उससे बात की।
"ये क्या कर डाला तूने बिटिया। मैं तो तुझे बहुत समझदार मानता था। सोंचता था कि तुझे दुनियादारी, परंपराओं का ज्ञान होगा। तू एक विधर्मी से प्यार कर बैठी। तूने एक बार भी नहीं सोंचा कि तेरे बाप की समाज में क्या इज्ज़त रह जाएगी।"
मृदिनी ने उन्हें अपने तर्क देकर समझाने का प्रयास किया। किंतु जोशी जी नहीं माने। वह बहुत आहत थे।
"तूने मुझे बहुत तकलीफ दी है। मैं तेरे फैसले के आड़े नहीं आऊँगा। लेकिन मैं तुझे कभी माफ नहीं करूँगा।"
जेम्स ने ईसाई धर्म के अनुसार मृदिनी से विवाह कर लिया। उसके बाद से ही जोशी जी ने उससे सारे संबंध तोड़ लिए।
जेम्स और मृदिनी का वैवाहिक जीवन सुख से बीत रहा था। विवाह के दूसरे साल ही उनकी इकलौती संतान जॉर्ज का जन्म हुआ। बेटे के जन्म पर मृदिनी एक उम्मीद के साथ जोशी जी के पास गई कि शायद नाती को देख कर वह पिघल जाएं। किंतु वहाँ पहुँच कर पता चला कि वह कुछ महीनों पहले ही चल बसे।