हिमाद्रि - 14 Ashish Kumar Trivedi द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हिमाद्रि - 14



                      हिमाद्रि(14)


पंडित शिवपूजन जानते थे कि हिमाद्रि ने सदैव छल से काम लिया है। वह छल से ही अपने आप को बचाने का प्रयास करेगा। इसलिए उन्होंने धानुक को उसे बंधन में बांधने के लिए चुना। धानुक बल का प्रयोग तो कर सकता था। लेकिन ज़रूरत पड़ने पर बुद्धि का प्रयोग भी कर सकता था।
हिमाद्रि को जबसे पंडित शिवपूजन के गांव में आने की बात पता चली थी वह सजग हो गया था। अतः वह गांव के बाहरी छोर पर स्थित शमशान में जाकर छिप गया था। धानुक ने अपनी शक्ति से हिमाद्रि के वहाँ छिपे होने की बात पता कर ली थी। 
धानुक को पंडित शिवपूजन से कुछ शक्तियां मिलीं थीं। वह स्वयं को दृश्य बना सकता था। कोई भी रूप रख सकता था। उसने एक सुंदर औरत का रूप धारण कर लिया। हिमाद्रि को लुभाने के लिए शमशान में घूमने लगा। 
प्रेत बनने के बाद से हिमाद्रि को वासना की आग पहले से भी अधिक जलाने लगी थी। वह आसानी से औरतों को अपना शिकार बना लेता था। लेकिन पंडित शिवपूजन के आने के बाद से उसकी मंशा पूरी नहीं हो पाई थी। वह काम के ज्वर से पीड़ित था। उसने जब शमशान में घूमती स्त्री को देखा तो वह काम वासना से पागल हो उठा। उसने यह भी नहीं सोंचा कि कोई स्त्री शमशान में क्यों आएगी। वह भी इस समय। वह तो बस अपनी काम वासना को तुष्ट करने के लिए आतुर था। वह उस औरत को अपना शिकार बनाने के लिए उसके पास पहुँच गया। 
जब हिमाद्रि ने स्त्री बने धानुक को अपने कब्ज़े में करना चाहा तो वह अपने असली रूप में आ गया। उसने हिमाद्रि को ललकारा।
"दुष्ट तू स्त्री को केवल भोग की वस्तु समझता है। आज तक तूने छल द्वारा ना जाने कितनी औरतों के साथ दुष्कर्म किया है। तेरी काम पिपासा ही आज तेरी मुसीबत बन गई। तू मेरे झांसे में आ गया। अब मैं तुझे छोडूंगा नहीं।"
धानुक ने हिमाद्रि की गर्दन अपनी बगल में दबा ली और उसे लेकर पंडित शिवपूजन की तरफ बढ़ने लगा। हिमाद्रि समझ गया कि वह धानुक से जीत नहीं सकेगा। उसने चाल चली। वह उसके सामने गिड़गिड़ाने लगा। 
"मुझे छोड़ दो। मैं मानता हूँ कि मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मैं उसके लिए क्षमा चाहता हूँ।"
"चुप कर दुष्ट। अब डर रहा है। उन औरतों के साथ छल करते हुए डर नहीं लगा। अब तुझे तेरे किए की सजा मेरे स्वामी ही देंगे।"
धानुक उसे खींचते हुए आगे बढ़ने लगा। हिमाद्रि अपना दिमाग चला रहा था। उसने दूसरा दांव खेला।
"ठीक है...मुझे मेरे किए की सजा मिलनी चाहिए। पर एक बार मुझे मेरे घर जाने दो। मेरा घर इसी गांव में है। मेरा बचपन यहीं बीता है। मुझे मेरी माँ की याद आ रही है। उस घर में जाकर मैं कुछ देर उनकी याद करना चाहता हूँ।"
हिमाद्रि का तीर इस बार सही ठिकाने पर लगा। धानुक बलशाली था। बुद्धिमान था। किंतु वह बहुत भावुक भी था। हिमाद्रि ने अपनी माँ की बात कर उसे भावुक कर दिया था। वह राज़ी हो गया। हिमाद्रि अपनी चाल सफल होते देख बहुत खुश था। वह सोंच रहा था कि अब घर पहुँच कर आगे की चाल चलेगा। 

उर्मिला देवी भटकते हुए गांव छोड़ कर चली गई थीं। कभी कुछ मिल जाता तो खा लेतीं। अन्यथा भूखी प्यासी भटकती रहती थीं। किंतु इस अवस्था में भी वह हिमाद्रि को नहीं भूल पाई थीं। वह हर पल अपनी संतान को याद करती रहती थीं। यही कारण था कि कई दिनों तक भटकने के बाद वह गांव वापस आ गई थीं। वह अपने सूने पड़े घर के आंगन में बैठी हिमाद्रि के बचपन को याद कर रही थीं। उनकी हालत बहुत जर्जर थी। वह हड्डियों का ढांचा मात्र रह गई थीं। 
हिमाद्रि धानुक को अपने घर का रास्ता बता रहा था। धानुक उसे उसके घर की तरफ ले जा रहा था। किंतु अभी भी उसने हिमाद्रि की गर्दन अपनी बगल में दबा रखी थी। 
जब धानुक हिमाद्रि को लेकर उसके घर में घुसा तब उसकी नज़र आंसू बहाती उर्मिला देवी पर पड़ी। वह समझ गया कि यह हिमाद्रि की माँ होगी। उन्हें रोते देख कर वह द्रवित हो गया। हिमाद्रि ने जब अपनी माँ को देखा तो बोला।
"अम्मा....तुम कहाँ चली गई थीं ? मैं भटकते हुए गांव में तुम्हें देख रहा था। तुम कहीं नहीं मिलीं।"
एक अर्से के बाद उर्मिला देवी के कानों में हिमाद्रि की आवाज़ सुनाई पड़ी थी। वह भौंचक सी इधर उधर देख रही थीं। लेकिन हिमाद्रि नज़र नहीं आ रहा था।
"कहाँ हो बच्चा ? सामने क्यों नहीं आते ? हम तरस गए हैं तुम्हें देखने को।"
"अम्मा मैं प्रेत बन गया हूँ। दिखाई नहीं दूँगा। सिर्फ तुम मुझे सुन सकती हो।"
उर्मिला देवी की आँखों से आंसू की धारा बहने लगी।
"तुमने ऐसा क्या किया था कि इन गांव वालों ने तुम्हें पीट पीट कर मार दिया। वह बूढ़ा कह रहा था कि तुमने उसकी विधवा बेटी की आबरू पर हाथ डाला। गांव की और औरतें भी यही कहती हैं। बोल बेटा क्या यह सच है।"
अपनी माँ के सवाल पर हिमाद्रि चुप हो गया। उर्मिला देवी उसकी चुप्पी का कारण भांप गईं। 
"बेटा हमने तो तुम्हें ऐसे संस्कार नहीं दिए थे। पर गलती हमारी ही है। पंडित भैया ने तुम्हारे कर्मों पर नज़र रखने को कहा था। लेकिन मैं अपनी ममता में अंधी हो गई थी। तुम पर ध्यान ही नहीं दिया। तुम्हारी हर मांग पूरी की। पर तुम्हें सही राह नहीं दिखा सकी।"
धानुक सब कुछ चुपचाप सुन रहा था। वह बोला।
"माँ...मेरा नाम धानुक है। मैं भी एक प्रेत हूँ। आपका बेटा प्रेत बनने के बाद भी अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आया। प्रेत बन कर भी औरतों की इज्ज़त से खेलता है। इसलिए मेरे स्वामी पंडित शिवपूजन ने मुझे इसे बंधन में बांधने के लिए भेजा है। मैं इसे उनके पास ही ले जा रहा था। पर इसने अपना घर देखने की इच्छा जताई तो मैं इसे यहाँ ले आया। अब मैं इसे उनके पास ले जा रहा हूँ।"
"ले जाओ...मुझे मेरे किए की सजा मिल रही है। भले घर की स्त्री भिखारिन की तरह भटकती फिर रही है। इसे इसके कर्मों का फल मिलना चाहिए।"
हिमाद्रि इन सबके बीच नई चाल सोंच रहा था। उसे पता था कि यदि वह किसी जीवित व्यक्ति के शरीर में घुस जाए तो धानुक उसे नहीं ले जा पाएगा। उसकी नज़र उर्मिला देवी पर थी। वह रोते हुए बोला।
"अम्मा मुझे क्षमा कर दो। मैंने बहुत पाप किए हैं। तुम्हें इतने कष्ट दिए। मेरे लिए यही सही है कि मैं नर्क की आग में जलूँ। बस एक बार मुझे अपने सीने से लगने दो।"
उर्मिला देवी ने हिमाद्रि को सज़ा दिलाने की बात कही तो थी पर अभी भी उनकी ममता उन पर हावी थी। हिमाद्रि की बात सुन कर वह रोने लगीं। उन्होंने कहा।
"धानुक बेटा तुम इसे ले जाना। पर इसे अपनी गलती का एहसास हो गया है। बस एक बार मुझे मेरे बच्चे को गले लगाने दो।"
धानुक दुविधा में पड़ गया। हिमाद्रि उसकी दुविधा को समझ गया।
"अम्मा मेरे कर्म इतने बुरे हैं कि मैं तुम्हें गले भी नहीं लगा सकता। मैंने इतने छल किए हैं कि धानुक मुझ पर इस बात के लिए भी यकीन नहीं करेगा। ठीक है मैं ऐसे ही तड़पता हुआ चला जाऊँगा। तुम बस अपना खयाल रखना। कठिन है पर हो सके तो मुझे माफ कर देना।"
उर्मिला देवी के दिल से एक आह निकली। जो धानुक के कलेजे को चीर गई। उसने कहा।
"ठीक है...मैं कुछ पलों के लिए तुम्हें छोड़ता हूँ। तुम अपनी माँ को गले लगा लो। पर कोई चालाकी ना करना।"
धानुक ने हिमाद्रि को छोड़ दिया। वह फौरन उर्मिला देवी के ऊपर चढ़ गया। धानुक स्तब्ध रह गया। कैसी चालाकी से उसने अपनी माँ का इस्तेमाल कर लिया।
"तू बहुत ही नीच है। अपने लाभ के लिए अपनी माँ से भी छल किया। लेकिन तू यह मत सोंच कि तू बच जाएगा।"
धानुक ने अपनी शक्ति से उर्मिला देवी के चारों ओर एक घेरा बना दिया। ताकि उनके शरीर में चढ़ा हिमाद्रि उनके शरीर के साथ कहीं जा ना सके और ना उनका शरीर छोड़ सके। उसके बाद उसने पंडित शिवपूजन के पास जाकर सारी बात बताई।
"धानुक तुम बुद्धिमान होकर भी उस दुष्ट के छलावे में आ गए। खैर तुमने उसके इर्द गिर्द घेरा बना कर अक्लमंदी की।"
पंडित शिवपूजन धानुक और अन्य लोगों के साथ उर्मिला देवी के घर पहुँचे। वहाँ धानुक के द्वारा खींचे गए दायरे में फंसा हिमाद्रि तड़प रहा था। पंडित शिवपूजन ने तुरंत ही उसे बांधने की अपनी क्रिया आरंभ कर दी। वह मंत्रोच्चार कर उस पर बार बार जल छिड़क रहे थे। लेकिन हिमाद्रि उर्मिला देवी का शरीर छोड़ कर उनके बंधन में बंधने को तैयार नहीं था। 
बहुत देर तक पंडित शिवपूजन व हिमाद्रि के बीच खींचतान चलती रही। इस सबका उर्मिला देवी पर बुरा असर पड़ रहा था। सब जानते हुए पंडित शिवपूजन मजबूर थे। हिमाद्रि को बांधना बहुत आवश्यक था। इसलिए वह बार बार मंत्रों से उस पर वार कर रहे थे। बहुत जद्दोजहद के बाद अंततः उन्हें सफलता मिली। हिमाद्रि ने उर्मिला देवी का शरीर छोड़ दिया। लेकिन वह धानुक द्वारा बनाए घेरे से बाहर नहीं निकल सकता था। 
पंडित शिवपूजन अपने साथ पीतल का एक घड़ा लाए थे। उन्होंने अपने मंत्रों की शक्ति से हिमाद्रि को बांध कर उसे पीतल के घड़े में बंद कर दिया। घड़े पर ढक्कन लगा कर उन्होंने मुंह पर लाल कपड़ा बांध दिया। 
हिमाद्रि के शरीर छोड़ते ही उर्मिला देवी ने भी प्राण त्याग दिए।
पंडित शिवपूजन के साथ गांव वाले पीतल के घड़े को हिमपुरी के जंगलों में ले गए। वहाँ एक स्थान पर गहरा गढ्ढा खोद कर उन लोगों ने घड़ा ज़मीन में गाड़ दिया। 
धानुक ने पंडित शिवपूजन से प्रेत योनि से मुक्त करने की प्रार्थना की। पंडित शिवपूजन ने कहा कि तुम अब पाप से मुक्त हो चुके हो। तुम प्रेत लोक लौट जाओ। कुछ ही समय में तुम्हें नया जीवन प्राप्त होगा।
गांव वालों ने उर्मिला देवी का अंतिम संस्कार कर दिया। अब गांव वाले हिमाद्रि के खौफ से मुक्त थे। 
जिस जगह पीतल का घड़ा गाड़ा गया था वहाँ मौलश्री का एक पौधा उग आया था।