अपना अंश Amita Joshi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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अपना अंश

"छाया,तुम्हारा पेट कुछ भारी भारी सा लग रहा है,कहीं कोई गुड़ न्यूज़ तो नहीं सुनाने वाली हो"।
"अरे,ऐसा कुछ नहीं है दीदी ,बस पिछले दिनों घूमने नही गए तो वजन बढ़ गया ", छाया ने मुस्कुराते हुए कहा।
"वैैैसे तुम्हारे विवाह को पांच साल हो गए हैं ,अब जल्दी इस दिशा में भी सोच लो",मां ने समझाया ।
"जी मां,मन तो मेरा भी है पर इस उम्र में इतना आसान भी नहीं है । और फिर संजय जी भी ऐसा कोई निर्णय नहीं लेना चाहते जो भविष्य में सबके लिए दुुखदाई हो ।और फिर दीदी का शैतान चिंटू है न हम सबके पा स ",छाया ने पांच साल में आज खुल कर इस विषय में अपनी बात कही ।

छः साल के चिंटू को छाया से अत्यधिक लगाव था ,वह भी अपने और मौसी के बीच किसी को नहीं मानता था ।मौसी की गोद के आगे उसे कुछ भी नहीं भाता था ।छाया भी उसके साथ बच्चों सी बन जाती और दोनों मिलकर खूब खेलते,घर का सारा सामान खूूब फ़ैला कर नई नई चीजें बनाते ।
"छाया , चिंटू को अपना फोन मत देना ,जाने करता देखता रहता है",दीदी दफ्तर जाते समय रोज यह हिदायत देती ।
"दीदी चिंता मत करो ,मैं ध्यान रखूंगी ",छाया के आश्वासन पर दीदी-जीजा निश्चिंत होकर अपने दफ्तर चले जाते ।
"मौसी ,चलो एक डी आई वाई क्राफ्ट यूं ट्यूब पर देखकर कुछ बनाते हैं", चिंटू अक्सर ये ज़िद करता और फिर दोनों मिलकर बहुत कुछ बनाते ।
छाया की ज्यादातर छुट्टियां दीदी के घर में ही बीतती ।मां भी पिताजी के इलाज के लिए अक्सर वहीं रहा करती थी ।संजय भी खुशी खुशी वहां रहते और चिंटू से उनकी खूब पटती।
छाया संजय को चिंटू के आगे पीछे भागते देखती तो उसे लगता काश उनका भी संसार आगे बढ़ता ।पर संजय उम्र के इस मोड़ पर ऐसा कोई भी निर्णय नहीं लेना चाहते थे ।और छाया का शरीर भी मातृत्व का बोझ झेल सकने में सक्षम नहीं था ।
"अब इस ढलती उम्र में क्या बच्चों सी जिद करती हो । हमारे साथ के लोग अपने बच्चों की शादी कर रहे हैं और कहां तुम छोटा बच्चा लाने की सोच रही हो । एक से दो हो गए हैं ,इसे बहुत समझो ",संजय अक्सर छाया को समझाते ।
"इस बार हम जनवरी की छुट्टियों में रामेश्वरम जाएंगे । पिछले पांच सालों में जब से शादी हुई है ,हम कही घूमने भी नहीं गए और मैंने सालों पहले बोला था कि शादी के बाद आऊंगी । ",छाया ने संजय से कहा । छाया जानती थी पूजा पाठ‌ और मन्दिरों में अत्यधिक आस्था रखने वाले संजय कभी इस बात के लिए मना नहीं करेंगे ।
आस्था और रामजी पर विश्वास तो छाया का भी बहुत था , इसीलिए बरसों पहले रामेश्वरम में रामजी से किए अपने वायदे को वो पूरा करने के लिए इतनी उत्सुक थी ।बियालीस की उम्र में ही सही पर उसे जीवन साथी तो मिल ही गया था और अपने जिन मित्रों की जीवन रक्षा के लिए दुआ की थी, वो भी राम जी ने सहर्ष पूरी कर दी थी ।
१७ जनवरी अपने पिता के जन्मदिन के दिन उसने प्रात: काल रामेश्वरम में दर्शन किए ।अपने पिता की दीर्घायु और अपने पति के लिए सद्बुद्धि से ज्यादा छाया कुछ न मांग सकी ।पिछली बार तो वो अपनी मित्रता को रामजी के चरणों में रख आई थी और उन्होंने उसे स्वीकार कर उसके मित्र को जीवन जान दे दिया था ,अब इस बार वो क्या रखेगी रामजी के चरणों में जिसको स्वीकार कर रामजी उसकी मनोकामना पूरी कर देंगे ।अब अपना एक अंश जग में लाने की सहज इच्छा को ही रामचरण में रखना उसे उचित लगा ।
"यदि पिताजी की तबीयत ज्यादा खराब हुई तो हम वापसी में हवाई जहाज से आ जाएंगे ", संजय ने लम्बी रेलयात्रा से छुटकारा पाने की अपनी इच्छा को ऐसे जाहिर किया ‌‌‌‌पर पहले ही दिन अपनी मनोकामना रामजी से कहने के बाद छाया निश्चिंत थी कि अब पिताजी को जल्दी कोई तकलीफ़ नहीं होगी । अतः उसने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया ।
"सुनो हम दोनों ने प्रौढ़ावस्था में विवाह किया है ,क्या आपको नहीं लगता बुढ़ापे में हमारा एक सहारा होना चाहिए ", विवाह की पांचवीं वर्षगांठ पर छाया ने अपने मन की बात कही ।
"देखो ,इस अवस्था में हम गोद लेकर भी किसी को अपने साथ रखेंगे ,उसकी भी अपेक्षाएं होंगी ।उनकी पूर्ति के लिए हमें बहुत कुछ छोड़ना होगा ।मेरी ९० साल की मां है , तुम्हारे भी बुजुर्ग मां पिताजी है इन सबके प्रति भी हमारे कर्तव्य हैं।अब इस उम्र में हम बुजुर्ग और बच्चा दोनों के प्रति अपना कर्तव्य नहीं निभा सकते ।और सबसे बड़ा सच यह है कि हमारी आमदनी भी इतनी नहीं है ,"संजय ने छाया को बहुत प्यार से समझाया ।
"हां ,गोद लेने के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूं ,पर रामजी तुम्हारे जैसा एक बेटा दे देते तो कितना अच्छा होता ।और कुछ बल और बुद्धि मेरे पिता सी दे देते उसे, तो रामजी का क्या चला जाता ।तुम्हे पता है अनुवांशिकी के हिसाब से गुण पिता से पुत्री ,और पुत्री से पुत्र में आते हैं ,हमें बारहवी कक्षा में यह पढ़ा दिया था ।",छाया ने हंस कर कहा ।
"चलो अब सो जाओ ,राम जी संसार को तुम्हारे हिसाब से नहीं चलाने वाले ",संजय ने हंसकर छाया को गले लगा लिया ।
रामेश्वरम से लौटकर छाया ने निश्चिंत होकर अपनी नौकरी पर जाना शुरू कर दिया ।संजय भी उसी की सेवा में डटा रहता ।जब कभी किसी कार्य वश संजय को जाना भी पड़ता तो वो पड़ोस की भाभी को बुला लेती । मां पिताजी की बीमारी का इलाज कराने दीदी के पास चंडीगढ़ चली तो गई थी ,पर अपनी लाडली छाया के लिए सब इंतज़ाम कर गई थीं।
"दीदी ,आंटी का फोन आया था ।आप चिंता मत करो ,रात को मैं सोने आ जाऊंगी " ,मीतू भाभी ने बहुत अपनेपन से कहा ।
रात को अपना सारा काम समेटकर भाभी आ गई और फिर कुछ देर अपनी गाय और नई बहू के किस्से सुनाने लगी ।
"दीदी अब तो पांच साल हो गए हैं आपकी शादी को ,आपको कुछ सोच लेना चाहिए।समय रहते कर लेंगी तो आंटी अंकल को भी खुशी होगी ।मन लगेगा सबका, अकेलापन नहीं खाएगा ।आपको तो पैसे की भी कोई दिक्कत नहीं है ।आजकल तो कितने तरीके हैं ,कितने लोग तो गोद ले रहे हैं ।"
"हां ,भाभी ,बात तो आपकी सही है,अब जरूर कोई निर्णय ले लूंगी ।मां की उपाधि मिले बिना तो मैं भी यह संसार छोड़ना नहीं चाहती ।"छाया ने कुछ उद्विग्न मन से कहा
छाया जानती थी पड़ोस की भाभी हों या कोई भी स्त्री ,जो भी उसकी सहायक होगी ,यही सलाह देगी ।अपना घर रात में छोड़ कर कौन स्त्री उसकी सहायता के लिए आएगी और कब तक।सच भी है हर स्त्री में इतनी चतुराई तो होनी ही चाहिए कि वो समय रहते अपना एक सुरक्षित कोना बना लें ,जहां रहने वाले हर व्यक्ति पर उसका अधिकार हो और किसी में उसे अपना अंश नजर आए।यही सब सोचते-सोचते उसे कब नींद आ गई ,पता ही नहीं चला ।
संजय को गांव से लौटने में दस दिन लग गए और छाया के लिए वो दस साल जैसे बड़े हो गए ।दिन भर नौकरी करने के बाद ,छाया के लिए शाम काटना मुश्किल हो जाता ।किसी के घर जाकर औपचारिक रूप से बैठना उसे अच्छा न लगता ।
"कब आ रहे हो वापिस "? संजय से ऐसा पूछ कर छाया को एहसास होता कि वो कितनी अकेली है और उसने समय पर अपने नीड़ का निर्माण न करके बहुत भूल की है ।पर फिर संजय के साथ और उसके समझाने से खुश हो जाती ।
"सुनो छाया ,घर के मंदिर में शुद्धता का बहुत ध्यान रखा करो ।रूपा जो काम करने आती है ,उसे भी समझा देना ,ऐसे वैसे दिनों में मंदिर के अंदर ना जाएं",संजय हर बार काम वाली के बदलने पर अपना शुद्धता का भाषण जरूर देते थे ।सुबह शाम एक एक घंटा मंदिर में बैठने वाले संजय व्रत , त्योहार या पूजा के किसी भी काम में बहुत शुद्धता का ध्यान रखते ।कई बार छाया का उस मंदिर वाले कमरे में प्रवेश वर्जित हो जाता।
"रूपा तो मंदिर में जाती कहां है,सारी सफाई मैं ही कर रही हूं ,आजकल ",छाया ने कुछ गुस्से में कहा। वैज्ञानिक सोच वाले माता पिता की सबसे लाडली ,छोटी ,रसायन विज्ञान पढ़ी छाया के लिए शुद्ध अशुद्ध के सोच को आत्मसात करना कठिन था । फिर भी वो साफ मन के ईश्वर के अनन्य भक्त अपने प्रेमी पति का दिल नहीं दुखाना चाहती थी।वो मानती थी कि ईश्वर के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति एक व्यक्तिगत बात है जिसपर बहस नहीं करनी चाहिए।
"अच्छा नाराज़ मत हो,कल से तुम्हारी छुट्टियां है,इस बार कुछ दिन गांव में रहेंगे , फिर तुम चंडीगढ़ चली जाना," संजय ने छाया को मनाने के अंदाज में कहा ।
"यदि सब ठीक रहा तो इस बार गांव के मंदिर में पाठ रखवाना है ,शायद ऐसा करवाने से तुम्हारी मन चाही इच्छा पूरी हो जाए ", संजय की इस बात पर छाया हंस पड़ी।
छुट्टियां शुरु होते ही छाया को मां का फोन आ गया ,"छाया तुम्हारे पिताजी की तबीयत ठीक नहीं है,तुम्हे कुछ समय उनके साथ गुजारना चाहिए "।
"जी मां,मैं और संजय कल ही चंडीगढ़ आ रहे हैं ।"इतना कहकर छाया कपड़े समेटने लगी ।
"आजकल तुम्हारा वजन कुछ बढ़ गया है घूमने चला करो ,मेरे साथ " संजय ने छाया को आगाह करने के लहज़े में कहा ।
"तुम कभी नही समझ पाओगे स्त्री के दर्द को,उसकी परेशानी को, उम्र के अलग अलग मोड़ पर अलग अलग परेशानी ",छाया ने कुछ खीज कर कहा ।
ईश्वर ने सृजन की शक्ति तो दी पर जो स्त्री इस शक्ति का आनंद नहीं उठा पातीं ,उसका दुख समझना सभी के लिए कठिन है ।फिर वो व्यर्थ ही संजय पर झुंझला रही थी ।
अगले दिन चंडीगढ़ जाने के लिए संजय जल्दी उठ गए ।पूजा करने के बाद ६ बजु उन्होंने छाया को उठाया और ७ बजे वो घर से निकल पड़े ।
"छाया ,आ गई बिटिया ,इस बार गर्मी की छुट्टियों के बाद मुझे भी अपने साथ लेकर जाना ", चंडीगढ़ पहुंचते ही छाया के पिता चहक उठे ।उम्रका प्रभाव ही था कि छाया को अपने पिता में एक बालक नजर आने लगा था और वो भी अपनी स्त्री सुलभ ममता को अपने पिता पर उड़ेलने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी ।
"हां पिताजी इस बार हम साथ ही वापस जाएंगे ,घर पर मैं ही नहीं ,आपके सारे पौधे ,फ़ल ,सब आपको ढूंढते हैं । पीछे वाले नींबू ने फल नहीं दिया ,आंवले बंदरों ने खा लिए।"
"चलो कोई बात नहीं ,अब मैं चलूंगा तुम्हारे साथ तो सब ठीक हो जाएगा ", पिताजी ने बड़ी आस से कहा।
"मां मैं भी इस बार किसी लेडी डाक्टर को दिखाने की सोच रही हूं ,"छाया ने कुछ सकुचाते हुए कहा।
"तेरे पिताजी को कल दिखा देते हैं , आजकल ये कुछ ज्यादा परेशान लग रहें हैं।बार बार घर जाने की जिद करने लगते हैं ।मुझसे अकेले नहीं संभल पाते हैं ।तू तो जानती है ,जो डाक्टर की सुविधा यहां है ,वो वहां कस्बे में नहीं जुट पाएगी ।"
तू भी दिखा लेना।संजय जी को साथ ले जाना ,आजकल तेरे चेहरे पर कुछ झांइयां भी पड़ रही है।कोई खुशखबरी तो नही है।",मां ने मुस्कुराते हुए कहा।

"अरे नहीं मां,अब इस उम्र में कहां ये सब ",मन ही मन एक अपने अंश की कल्पना करती छाया ने बाहर से कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया ।
अगले पांच दिन अस्पताल में पिताजी के संग कैसे गुजर गए पता ही नहीं चला ।कभी छाया उनकी बिटिया बनती और वो उसको समझाते ,कभी पिताजी बच्चों सी जिद करते और छाया की ममता जाग जाती । पिताजी ठीक होकर हर बार की तरह घर आ गए ।अब छाया का ध्यान अपनी समस्या पर गया ।दो महीने से ऊपर हो गए ,कहीं सच में कोई खुशखबरी तो नहीं।
"नहीं,नहीं,इस उम्र में,नहीं हो सकता ",उसने अपने मन को समझाया ।
अभी दो दिन इसी उहापोह में बीते थे कि पिताजी अचानक चले गए ।छाया के सर से वो छत्र ही छिन गया जिसके दम पर वो कुछ भी कर सकती थी ।अन्तिम विदाई हुई , छाया के हाथों से ,सिर्फ पिता की नहीं,उसके बचपन की, उसकी निश्चिंतता की।
अब रह गई एक ही उम्मीद कि पिताजी लौट आएंगे ,उसके माध्यम से,उसका एक अपना अंश बनकर और फिर वो छुट्टियों के बाद उनको अपनी गोद में लेकर ही घर लौटेगी ।