"मां आपने भईया को साइकिल लेकर दी उनके जन्मदिन पर और मुझे नहीं ",बेबी ने तुनक कर खाने की प्लेट नीचे फैंक दी ।
"तुझे इस बार तेरे पापा ने कान की सोने की बाली लेकर दी है न , साईकिल दोनों मिलकर चला लेना ",मां ने बेेेबी को शांत करते हुए कहा ।
"हां ,बेेेबी मैं साईकिल चलाऊंगा,तूू पीछे बैठ जाना ,जहां तू कहेगी वहीं चलेंगे ",राजू ने कहा ।पर बेबी को पीछे बैठना क्यों अच्छा लगता । उसके मन ने तो आगे बढ़ने के सिवाय न कभी कुछ सोचा ,न समझा ।उसके शिवसंकल्प वाले मन ने ऊंचा उड़ने के लिए कभी उसके पैरों की नहीं सुनी । "मुझे नहीं बैैठना भईया के पीछे ," गुस्से में बेेेबी ने स्टैंड पर खड़़ी साइकिल गिरा दी । मां ने बेेेबी को डांटा और गुुुड़िया को लेेेकर कपड़े सुुुखानेे छत पर चली गईं । छठी कक्षा में पढ़़ने वाली गुड़िया मां के हर काम में मदद करती और भईया ,बेबी दीदी से भी उसका झगड़ा कभी नहीं होता था ।उसकी आदत थी कि वो घर की शांति बनााए रखने के लिए कभी गलत का साथ देती, कभी सही का ।
,"तुझे तो बस मां की हां में हां मिलाना आता है ",सही और ग़लत के अन्तर को बखूबी पहचानने वाली बेबी अक्सर गुड़िया को डांटती ।"अगर तू भी मां के खिलाफ थोड़ा बोलना शुरू करें,मेरे साथ उनको समझाए कि अपनी हैसियत से बढ़कर भईया के लिए मत करो,तो शायद उनको समझ में आए ।""पर तुझे मां की कोई बात गलत नहीं लगती और मां को तेरी "।"एक दिन बहुत पछतावा होगा तुमको गुड़िया ",बेबी की आवाज़ में क्रोध और दुख दोनों ही झलक रहा था ।
गुड़िया बिना कोई जवाब दिए ,मुस्कुरा कर अपने काम में लग गई ।गुड़िया समझ गई कि अभी दीदी का साईकिल वाला गुस्सा कम नहीं हुआ है ।
"अभी राजू को घर पर आए कुछ ही समय हुआ है,धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा।बेबी को भी समझ आ जाएगा ।तुम बच्चों के झगड़े से ज्यादा परेशान मत हुआ करो ",शाम को सुरेश ने विमला को समझाया।
"राजू ,तुम्हारा दाखिला शाम वाले कालेज में करा दिया है ,कल से मन लगा कर पढ़ना शुरु करो ।और सुनो अपने अस्पताल वाले सारे कागज कल मुझे दे देना।आज ही डाक्टर से बात हुई है ।कल से इलाज भी शुरू करवाना है ", सुरेश ने हिदायत दी ।
राजू "जी अच्छा" से आगे कुछ नहीं कह पाया ।
"सुनो विमला ,तुम कल स्कूल से छुट्टी लेकर राजू को डाक्टर हर्ष को दिखा आना ।पढ़ाई के साथ साथ इसकी सेहत का भी ध्यान रखना है ।"सुरेश ने राजू के प्रति अपने दायित्व को समझते हुए कहा ।
"ठीक है ,कल बेबी को भी दिखाना है ,उसका बायां हाथ आजकल ज्यादा दर्द कर रहा है ,"विमला ने बेबी को महत्त्व देते हुए कहा ।
जबसे विमला ने राजू को छात्रावास से घर लाने का निर्णय लिया ,तब से वो तालमेल ही बिठा रही है। वो तो सुरेश ही है जो उसके निर्णय का मान रखने के लिए सब कुछ करने को तैयार हैं ।बिना कोई प्रश्न किए,बिना जताए वो राजू के लिए उतनी ही सुविधाएं जुटा रहा है जितनी अपनी बेटियों के लिए ।सुरेश का ये मूक प्रेम ही विमला की शक्ति है जिसके बल पर वह इतना बड़ा निर्णय ले पाई है ।
यही सब सोचते-सोचते कब विमला को नींद आ गई,पता ही नहीं चला ।सुबह उठकर जल्दी जल्दी सारे काम करके विमला अस्पताल के लिए जैसे ही तैयार हुई,स्कूल से बुलावा आ गया। अत्यन्त तत्परता से स्कूल का कार्य निपटाकर विमला एक घंटे की छुट्टी लेकर अस्पताल पहुंची ।राजू और बेबी पहले ही वहां पहुंच गए थै ।
"मां अस्पताल के बाद हम लोग बाजार जाएंगे ,मुझे अपनी सहेली के जन्मदिन पर पहनने के लिए नए कपड़े खरीदने है ," चुलबुली बेबी ने अपनी फरमाइश रखने मे देर न करी ।
"अच्छा ठीक है , पहले डाक्टर को तो दिखा लो ,"मां ने बेबी को समझाया ।
पहले राजू और फिर बेबी को दिखाकर विमला कुछ भारी मन से अस्पताल से बाहर निकली ।डाक्टर की आवाज़ लगातार उसके कानों में गूंज रही थी ।
"राजू को साधारण बुखार नहीं है ,विमला जी आप तो जानती ही हैं । अतः हमें इसकी जांच किसी बड़े अस्पताल से करानी पड़ेगी ।बेबी के हाथ में भी दर्द यादा हो सकता है ,आपको इसका विशेष ख्याल रखना होगा ।बच्ची अभी बढ़ती उम्र में है ,अगर अभी ध्यान नहीं दिया तो बहुत मुश्किल हो सकती है ।"
"मां ,दुकान आ गई है ,अन्दर चलो न "बेबी ने मां का पल्लू खींचा और विमला बेबी की भोली मुस्कान के आगे सब कुछ भूलकर मुस्कराने लगी ।बेबी और राजू के लिए खरीदारी करके विमला घर आ गई ।
"मां ,बहुत देर कर दी आपने अस्पताल से आने में ,सब कुछ ठीक है न ", गुड़िया ने प्यार से पूछा ।गुड़िया कभी भी अपनी मां से नाराज़ नहीं होती थी ।उसका मां के संग एक मित्र का व्यवहार था ।
"सब ठीक है गुड़िया ,तुम अपना स्कूल का काम कर लो।मैं अभी राजू को दवाई देकर आती हूं "।
"मां,कल स्कूल में कविता पाठ प्रतियोगिता है ।इस बार "वहीं मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे " वाली कविता कर लूं तैयार ।
"हां वही कर लो ,मैं अभी आकर सुनती हूं ।"
विमला को कहानी ,कविता पढ़ने लिखने का बहुत शौक था ।और गुड़िया को यह शौक मां से विरासत में मिला था ।
"विमला मैंने राजू और बेबी दोनों को दिखाने के लिए चंडीगढ़ के एक बड़े अस्पताल में डाक्टर से समय ले लिया है ।कल तुम स्कूल में छुट्टी की अर्जी दे आना ," सुरेश के मन में हमेशा यही ख्याल रहता कि किसी भी तरीके से विमला की हर इच्छा पूरी हो ।
विवाह के बाद से सुरेश के जीवन की धूरी विमला ही हो गई थी ।अपने समकक्ष पढ़ी लिखी , सुशील विमला की कही किसी भी इच्छा को सही या ग़लत के तराजू में तोले बिना सुरेश उसको पूरा करने के लिए जी जान से जुट जाता था । फिर चाहे वो राजू को पुत्रवत रखना हो,उसके इलाज और पढ़ाई के लिए तन मन धन ही नहीं अपितु अपना अनमोल समय भी लगाना हो ,यह सब सुरेश बड़ी आसानी से कर लेता था ।
"गुड़िया जरा भईया के लिए पानी लाना और बेबी से कहना आज पढ़ाई घर पर ही करें ,अपनी सहेली के घर ना जाए । इंजेक्शन लगने के बाद राजू की तबीयत ठीक नहीं है,मुझे उसकी देखभाल करनी होगी ",विमला ने कुछ अनमने और रूखे ढंग से कहा ।दिन भर चंडीगढ़ के बड़े से अस्पताल में राजू को कीमोथेरेपी की पहली डोज़ दिलाना और शाम को घर आकर उसकी देखभाल करना, सुरेश और विमला के लिए उतना आसान नहीं था जितना विमला ने सोचा था ।
पर जब हम निस्वार्थ भाव से कोई शुभ संकल्प लेते हैं तो ईश्वर हमारा हाथ पकड़ कर चलते हैं और हमें थकने और हारने नहीं देते ।
बैठे बैठे ,राजू को सहलाते सहलाते कब रात गुजारी ,विमला को पता ही नहीं चला ।सुबह उठकर बेबी , गुड़िया को स्कूल भेजने के बाद उसने राजू को डाक्टर के कहे अनुसार नाश्ता दिया और फिर स्कूल चली गई ।सुरेश भी सुबह से विमला की मदद करते करते थक गया था अतः वह भी अब आराम से एक कप चाय का इंतजार करने लगा ।
"लो चाय ,तुम्हारी पसंद की बनाई है ,एकदम कड़क ", विमला ने मेज पर चाय रखी और राजू को दवा देने चली गई ।
"चाय रख कर हमेशा काम करने चली जाती हो या अखबार पढ़ने लगती हो। एक कप चाय तो आराम से पी लिया करो मेरे साथ बैठकर ",सुरेश ने कुछ प्यार भरी नाराज़गी ज़ाहिर की।
" सुनो आज शाम को राजू की मां गांव से आ रही हैं,दफ्तर से जल्दी आ जाना ", विमला ने स्कूल के लिए निकलते हुए कहा ।
"आज भी जल्दी स्कूल जा रही हो ,फिर से अतिरिक्त कक्षाएं लेने लगी हो ,"सुरेश ने गेट से हाथ हिलाते हुए कहा ।
सुरेश का रोज़ का यही नियम था ,वो विमला के जाने के बाद ही अपने दफ्तर के लिए तैयार होता था ।
"राजू ,आज शाम को तुम्हारे कालेज का पहला दिन है ,समय पर कालेज चले जाना ,और दिन में दवाई खा लेना "सुरेश ने दफ्तर जाते हुए राजू को हिदायत दी ।मात्र १६ साल का राजू बहुत ही भोला और प्यारा लड़का था । अपनी कक्षा में हमेशा पहले स्थान पर आने वाला राजू शुरू से ही स्केल में सभी का चहेता था । बीमारी के बाद कुछ कमजोर जरूर हो गया था और जबसे विमला के घर आया था ,बाकि छात्रों और अध्यापकों की नज़र में कुछ खटकने लगा था ।
"बेबी , गुड़िया आओ राजू की मां से मिलो ", विमला ने आवाज लगाई ।
" अरे आप बहुत सारा गाय का घी और मसूर की दाल ले आई ।हर बार इतना कष्ट नहीं करना चाहिए आपको ।मनोहर,दिनेश सब कैसे हैं ",विमला ने अत्यन्त अपनत्व से कहा।
"सब अच्छे हैं बहनजी ,आपने राजू का इलाज बड़े अस्पताल में शुरू करा दिया है ,हमने तो सब उम्मीद छोड़ दी थी ।अब आपने ही सब करना है ।मेरे पास तो तीन बेटे हैं ,यह अगर बच गया तो यह आपका ही रहेगा ।यदि कुछ अनहोनी हो गई तो इसे मेरा ही दुर्भाग्य समझना "
राजू की मां से इतनी बड़ी बात सुनकर विमला के मन की उथल पुथल कुछ कम हुई ।अपने से उम्र और अनुभव दोनों में बड़ी राजू की मां के वचन उन्हें गुरु मां से लगे ।अनपढ़ होते हुए भी कितनी आसानी से उन्होंने विमला और सुरेश के लिए फैसले को समझा और सहज स्वीकार किया ।
"राजू अभी अपनी आगे की पढ़ाई भी पूरी करेगा और इसका इलाज भी बेहतर तरीके से हो जाएगा ,इसलिए हमने इसकी अभी सरकारी कूल की नौकरी छुड़वा दी है ,"सुरेश ने सारी बात स्पष्ट रूप से राजू की मां को समझा दी
"अब तो राजू आप का ही पुत्र हैं ,इसे आप जैसे चाहें पढ़ाएं ,लिखाएं ।मेरी सेहत तो ज्यादा अच्छी नहीं रहती है,पर मनोहर महीने दो महीने मे मिलने आ जाएगा ।राजू के पापा का भी स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता है ,दिन भर फल सब्जी बेचते हैं तब घर का खर्च चलता है ,"राजू की मां ने अपना दुख बांटा ।
दस साल पंख लगा कर उड़ गए ।विमला के शुभससंकल्प और सुरेश की मेहनत से राजू का असाध्य रोग भी कट गया और अस्पताल ने उसे एक चमत्कार के रूप में दर्ज किया । बुद्धि मती , विवेकशील बेबी पढ़ने के लिए विदेश चली गई, और राजू ने अध्यापक की नौकरी छोड़कर बैंक की नौकरी कर ली ।विमला का "पारस मणि"बनने काआशीर्वाद इस तरह फलीभूत हुआ कि राजू तरक्की के मार्ग पर जो एक बार आगे बढ़ा तो उसनेे पीछे मुड़ कर नहीं देखा ।
"भईया , कलकत्ता मत जाओ,बहुत दूर है ।आजकल मैं और मां भी यहां अकेले हैं ,पापा का स्थानान्तरण हो गया है ", ग्यारहवीं में पढ़ रही गुड़िया ने बड़े मनुहार से कहा ।
बेबी का तो अक्सर राजू से झगड़ा हो जाता था ,कभी कमरे , कभी टी वी और कभी मां का समय लेने के लिए और कभी कभी मां को मां बुलाने के लिए भी ।लेकिन गुड़िया के संग कभी ऐसा मौका नहीं आया ।अपनी मां को मित्रवत मनने वाली गुड़िया के लिए राजू सहज ही राजू भईया बन गया था ।स्नेह की अटूट डोर सी बंध गई थी दोनों के बीच जिसे विमला ने राखी और भईया दूज के माध्यम से और सुदृढ़ कर दिया था ।
राजू एक बुद्धिमान और दूरदर्शी लड़का था , जिसने अपने कैरियर को ऊंचा उठाने के लिए कलकत्ता जाकर बैंक अधिकारी बनना ज्यादा श्रेयस्कर समझा ।
"राजू के लिए मनोहर ने एक लड़की देखी है ,फोन पर कह रहा था कि उनके गांव के पास की गांव की है और माता जी की जिद है कि मेरे सामने राजू का गृहस्थ बसा दो ।" सुरेश की यह बात सुनकर विमला ने सबसे पहले डाक्टर से सलाह लेना उचित समझा ।
अगले दिन विमला ने अस्पताल जाकर सबसे पहले डाक्टर से पूछा और उनकी हां हो जाने के बाद स्वयं लड़की के घर गई और उनके सामने सारी स्थिति स्पष्ट की ।
"अरे बहनजी ,बीमार सभी होते हैं ,अब तो राजू पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं ।हमें कोई आपत्ति नहीं है ,बाकि हमारी बेटी की किस्मत है ",आप निश्चिंत होकर विवाह की तैयारी करें ,रमा के पिता की इस बात ने विमला के मन को बहुत राहत दी ।
चीड़ के पेड़ों के बीच में गांव के परिवेश में राजू की मां के मन के अनुरूप विवाह संपन्न हुआ ।विमला और सुरेश को माता पिता समान सम्मान दिया गया और बहन की रस्म बेबी ने अदा की ।
राजू और रमा जल्द ही कलकत्ता के लिए रवाना हो गए ।
"खूब रहो,फूलो फलो और आते जाते रहना ।अपनी गुरु मां को और इस गुरु नगरी को जहां तुम्हे गुरु प्रसाद से नवजीवन मिला भूल मत जाना ",विमला यह कहते कहते भाव विह्वल हो गई ।
गुरु मां का आशीष लेकर राजू ने अगले दस वर्षों में दिन दुगनी रात चौगुनी उन्नति की ।उसे एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई और फिर वो ही उसके जीवन की धूरी हो गया ।
गुड़िया भी अब बड़ी हो गई थी और राजू भईया को रोकने की जिद नहीं करती थी ।यदा कदा की मुलाकातों में अंतरंग सुख दुख बांटना नहीं हो पाता था ।बेबी दीदी की बचपन की बातें गुड़िया के कानों में अक्सर गूंजती थी ।
"गुड़िया जल्दी जल्दी घर ठीक कर लो और अपने पापा से कहो बाजार से दूध और दही थोड़ा ज्यादा ले आएं । बेबी के घर का गृहप्रवेश है ,उसके ससुराल वाले और राजू का परिवार सब लोग पहले यही आएंगे ,"विमला ने बड़े उत्साह से कहा ।
"
"अच्छा मां,अभी करती हूं ", गुड़िया सहर्ष बोली ।बेबी दीदी और राजू भईया के हर काम को गुड़िया बहुत खुशी और मन से करती थी ।
"इस गुरु की धरती पर हमने सबकुछ पाया और तुम्हारे गुरु मां होने के निर्णय ने हमें परदेस में भी अपने गांव,घर ,बिरादरी की याद नहीं आने दी ", सुरेश ने विमला को सराहनीय नजर से देखते हुए कहा ।
विमला जानती थी कि सुरेश को कभी किसी से कुछ लेने की आदत नही ।शुरू से सं तो षी प्रवृत्ति और स्वाभिमानी होने के कारण सुरेश ने कभी राजू और रमा से भी पुत्र और पुत्रवधू के दायित्व का निर्वहन करने के बारे में न सोचा ,न कुछ कहा ।विमला के अपने मन में भी कभी ऐसा कोई विचार नहीं आया ,बस कभी कभी राजू को देखकर अपने बुढ़ापे के लिए उम्मीद की एक किरण सी जरूर नजर आती थी । उसे आज भी याद है वो दिन जब वो अपने पिताजी से मिलाने राजू को अपने मायके लेकर गई थी ।
"विमला ,तुमने राजू के लिए बहुत अच्छा निर्णय लिया ।अब यह तुम्हारे दत्तक पुत्र हैं ।"
अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले पिता के यह शब्द अक्सर विमला के कानों में गूंजते थे और उसका राजू के प्रति मातृत्व का भाव और उसके लिए सबकुछ करने का संकल्प और भी सुदृढ़ हो जाता था ।
यही कारण था कि विमला ने रिटायर होने के बाद राजू के मकान बनवाने के लिए खूब मेहनत की । शनिवार की शाम आकर ,एक चेक देकर ,राजू इतवार को लौट जाता ।अपने एकमात्र सुपुत्र के प्रति मोह और रमा के प्रति कर्तव्य को राजू किसी भी स्थिति में नजर अंदाज़ नहीं कर पाता था । विमला भी उसके फलते फूलते परिवार को देखकर हर्ष और गर्व से फूली नहीं समाती थी ।
गुड़िया को कभी कभी बेबी दीदी की कही बात याद आती ।
"देखना राजू भईया के लिए मां चाहे जो भी करें ,पर वो कभी एक गुरु मां के मन को नहीं समझेंगे ।जैसा मां सोचती है ,वैसे मानसपुत्र वो कभी नहीं बन पाएंगे "।
"मां ,राजू भईया का फोन आया था ,आज दिन में आएंगे ,खाने में क्या बनेगा ? मैं ड्राईवर के हाथ सब्जी भेज दूंगी और ग्यारह बजे की मीटिंग के बाद घर आ जाऊंगी ",गुड़िया ने कालेज जाते हुए मां से कहा ।
"तू आरामसे आना ,मैं खाना बना लूंगी ",विमला ने दबी हुई आवाज में कहा ।वो जानती थी कि सुरेश अब इस उम्र में विमला का ज्यादा काम करना पसंद नहीं करते ।
"राजू तुम्हारा अचानक अकेले आना कैसे हुआ ?" सूरेश ने औपचारिक रूप से पूछा ।
"यहां के मकान का सौदा तय कर दिया है ,रमा की पसंद का एक फ्लैट चंडीगढ़ में बुक किया है ,उसके लिए पैसे कम पड़ रहे थे ,तो इस मकान का सौदा कर दिया ",राजू ने बड़े गर्व और हर्ष से बताया ।
जिस भाई के घर बनने से गुड़िया फूली नहीं समाती थी और मन ही मन बुढ़ापे में रमा भाभी के संग रहने की बात सोचती थी ,उस
गुड़िया के तो जैसे पैरों से जमीन खिसक गई ,पर गुरु
की धरती और गुरु मां दोनो से दूर हो जाने की एक भी शिकन राजू के चेहरे पर नहीं थी ।
गुड़िया का मोहभंग तो किसी पर ज़ाहिर नहीं हुआ ,पर विमला को मोहभंग के रूप में जो गुरु दक्षिणा मिली ,उसे सुरेश ने पहचान लिया था ।
"तुम गुरु भी हो और मां भी ,चलो जल्दी से चाय बना लो " ,सुरेश ने प्यार से विमला को उत्साहित करते हुए कहा ।