दस साल की मिथिलेश को मां ने जब काम के लिए जज साहब के घर भेजा तब मां ने कठोर होकर बस इतना ही कहा"मन लगा कर काम करना और जज साहब और जजनी का ध्यान रखना" ।बहुत बड़ी कोठी थी जज साहब की और चारों तरफ खूब बड़ा अहाता ।आम, लीची ,जामुन ,कटहल के पेड़ मिथिलेश को अपने घर की याद दिलाते थे।३० सालकी उम्र में विधवा हो गई उसकी मां पर ४ लड़कियों और एक ६ महीने के लड़के की जिम्मेदारी थी । सड़क के साथ लगती जमीन में एक दुकान थी । पर मां ने कभी लड़कियों को दुकान पर नहीं बिठाया । पड़ोस के एक बुजुर्ग चाचा चाची लड़कियों का ख्याल रखते और जैसे ही वो काम के लायक हुई , उन्हें अपने साथ काम पर ले जाते ।मिथिलेश को सबसे पहले ८ साल की उम्र में जज साहब के फार्म पर चिड़िया उड़ाने के काम पर लगाया था ।
अब दो साल बाद जज साहब मिथिलेश के काम से खुश होकर उसे अपने घर ले आए थे । सुबह आठ बजे नहा धोकर मिशू (जजनी इसी नाम से बुलाती थी मिथिलेश को) रसोईघर में आ जाती थी । सूट के साथ सिर पर दुपट्टा लेना ज़रुरी था ।
"मीशू जज साहब के लिए दलिया और ब्रेड ले आओ। और मैडम के लिए फल ले आओ।" खाने पीने में बहुत नियम से चलने वाली मैडम का एक दूर का रिश्तेदार सुबह से ही मीशू को हिदायत देना शुरू कर देता था । छोटी मीशू दिन भर चिड़िया की तरह फुदक फुदक कर सारे काम करती।जजनी जहां भी जाती,उसे साथ लेकर जाती और उसकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखती ।
अभी मीशू को काम करते हुए ४साल ही हुए थे और जजनी के सख्त अनुशासन में रहकर मीशू में सुघड़ता,सुरुचि,सौम्यता ,सलज्जता, पँँ जैसे अनेक गुणों का समावेश हो गया था जो उसकी सांवली सूरत में एक तेज भरता था। हमेशा साफ ढके हुए सूती सूट और सलीके से सर पर ओढ़े दुपट्टा के अन्दर से झांकती काली लम्बी चोटी सबका ध्यान खींचती थी । आस पास के अच्छे घरों के लोग उसे अपने घर की लक्ष्मी बनाने के लिए आतुर रहते थे ।पर संस्कारों की धनी मीशू को बड़े बड़े प्रलोभन भी डगमगा न सके ।
" मीशू, तुम्हारी मां आई हैं,जज साहब ने बड़े कमरे में तुम्हें बुलाया है ।"
बड़ा कमरा सुनकर मीशू कुछ घबराई ,वो जानती थी कि घर के सभी बड़े घरेलू मुद्दों की अदालत बड़े कमरे में ही लगती है और जज साहब वहीं अपना फैसला सुनाते हैं । जब वो कमरे में पहुंची तो जज साहब के चेहरे पर उसने एक दुख मिश्रित विवशता का भाव पाया ।
" तुम्हारी मां ने तुम्हारा रिश्ता पास के गांव में तय कर दिया है ।अपना सामान बांध लो ।"
जज साहब इस रिश्ते से नाखुश हैं,यह तो मीशू उनकी बातचीत के लहज़े से समझ गई थी पर इसका असली कारण उसे ससुराल पहुंच कर ही समझ आया । एक सुसंस्कृत ,बड़े सभ्य समाज में ढली मीशू को अपने बिगड़े और शराबी पति को छोड़ कर एक दिन तीन छोटे बच्चों को लेकर फिर से जजनी की शरण में आना पड़ा ।
अबकी बार जज उसके प्रति कुछ अधिक सख्ती से पेश आए ।पर जजनी का मातृत्व उसके तीन बच्चों को देखकर पिघल गया ।उसे बड़े अहाते के कोने में बने आउट हाउस में रहने की जगह दे दी ।अपनी सुगढ़ता और जजनी की सहृदयता के बल पर मीशू ने गृहस्थी को ठीक से जमा लिया था ।दोनों बड़े बच्चों का दाखिला जजनी ने पास के स्कूल में करा दिया था ।सामाजिक रूप से सक्रिय और इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज की पत्नी होने के नाते उस छोटे कस्बे में जजनी का खूब रुतबा था। गरीबों की मदद करना, ज़रूरतमंद बच्चों की पढ़ाई का खर्चा देना और गुरुद्वारे में रोज़ सुबह नियमपूर्वक जाकर लंगर में सेवा देना ,आसपास के गांव में,अस्पतालों में कपड़ा, कम्बल बांटना यही सब समाजसेवी कामों में उनका दिन गुज़र जाता था ।
मीशू को रोज सुबह बच्चों को स्कूल भेजकर ठीक आठ बजे रसोई में आने के सख्त आदेश दे । " मीशू रानो को नीम के पेड़ के नीचे लिटा दो और बूढ़े माली चाचा से कहो कि उसको देखता रहे " ,रोज सुबह जजनी का ये कड़क आदेश मीशू को छह महीने की लाडली रानो को भी समझ आने लगे थे और वह कभी बेवजह रोकर मां के काम में खलल नहीं डालती थी । जजनी अक्सर मीशू के आउट हाउस में जाकर बच्चों को पढ़ने के लिए डांट डपट भी करती और इसी बीच मीशू को अच्छी मां बनने की हिदायत भी ।
"मीशू तुम्हारी दोनों बेटियां बड़ी हो रही हैं और अब रानो को भी स्कूल में डालने का समय आ गया है । अपने पति सुरेश को बुलवा लो ।" जजनी ने जैसे मीशू के मन की बात भांप ली थी । " जी मैडम ,माली चाचा के हाथ कल ही संदेशा भिजवा देती हूं ।"
"और हां,अपनी मां को भी संदेशा भिजवा दो कि एक बार आकर हमसे मिल लें ," जजनी ने कुछ रूखे से स्वर में हिदायत दी ।
"जी मैडम " ,बस इतना सा कहकर मीशू अपने काम में लग गई ।
कल एक ओर जहां मां से मिलकर अपने सुख दुख बांटने का अपार हर्ष था ,वहीं दूसरी ओर अपने पति के व्यवहार के विषय में एक असमंजस और आक्रोश भी था ।उसे अब भी याद था जब सुरेश दिन भर आवारा लड़कों के साथ घूमता और रात को मीशू को अपशब्द कहता ।
मीशू को आज भी याद है जब वो पहली बार शादी के बाद सुरेश के घर गई थी । "मीशू चलो रसोई लीप कर कुछ मीठा बना दो",जिठानी ने आदेश दिया ।"और सुनो सुरेश बाहर दोस्तों के साथ गया है ,उसके लौटने पर ही तुम कुछ खाना " ।आधी रात तक मीशू कमरे के दरवाजे के पास इंतजार करती रही और फिर जैसे ही उसे हल्की सी झपकी आई,बाहर सड़क पर से उसे आवारा शराबी लड़कों की चिल्लाहट सुनाई दी ।वह बहुत घबराई पर जल्दी ही यह घबराहट क्रोध मैं बदल गई जब उस भीड़ में से निकल कर सुरेश ने इसका हाथ पकड़ लिया ।
"क्या कर रही थी कमरे में ?जा रसोई से खाना लेकर आ मेरे लिए । पति हूं तेरा ।पांव धो मेरे ",लड़खड़ाती आवाज़ में अनेक गालियां देकर सुरेश ने मीशू को एक धक्का दिया ।
मीशू ने तुरंत हाथ छुड़ा कर खुद को कमरे में बंद कर लिया और सुबह ही दरवाजा खोला ।
" कैसी पत्नी है सुरेश की?पूरी रात सुरेश को कमरे के बाहर ही रखा । बड़ी जजनी ने दहेज तो दिया ,पर शायद अच्छी पत्नी बनने के गुर नहीं बताए । मां ने तो न कुछ दिया और न, कुछ सिखाया ।बिना बाप की बेटी है ।मां ने भी बोझ समझ कर रईस जजनी के घर काम पर लगा दी और जजनी ने हमारे सुरेश के पल्ले बांध दी ।" आस पड़ोस , रिश्तेदार बिरादरी जिसके मन में जो आया ,उसने वो बोला ।
मीशू चाहे जो भी हो ,अपनी मां और मां समान जजनी के बारे में कुछ और नहीं सुन सकती थी । अतः उसने उसी दिन प्रण कर लिया कि वो अपने पति को सही राह पर लाएगी और अपनी गृहस्थी को गांव में सबसे अच्छा बनाएगी ।
मीशू ने झटपट सुबह का काम पूरा किया और फिर अपनी जिठानी के साथ चाय बागान चली गई ।
" दीदी ,मैं चाय पत्ती चुन कर आपकी टोकरी में डाल दूंगी । आप दिन में कुछ देर आराम कर लिया करो ,"मीशू ने बहुत आदर से जिठानी से कहा ।
धीरे धीरे अपने शील स्वभाव से मीशू ने ससुराल में सबका दिल जीत लिया।सुरेश भी अब रात को समय पर घर आने लगा ,पर अभी भी मीशू सुरेश का दोस्तों के संग घूमना बंद नहीं करा सकी थी । तीन बच्चों के पालन पोषण का भार देखकर उसकी चिन्ता बढ़ना स्वाभाविक था ।
"बेबी अब बड़ी हो रही है और मैं इसे अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहती हूं ।आप इसकी फीस और किताबों का इंतज़ाम कर दो ",मीशू की इस फरमाइश को सुनकर सुरेश आगबबूला हो गया ।
" लड़कियों को कौन पढ़ाता है ।चुपचाप घर का काम सिखाओ और जल्दी ब्याह देना ।पैसा पढ़ाई पर कौन खर्च कर सकता है । दुबारा यह बात मुंह से मत निकालना ",सुरेश ने लगभग चिल्लाते हुए मीशू को सख्त आदेश दिया ।
मीशु ने देखा कि उस दिन से सुरेश ने बेबी और छोटी रानो को गोद में उठाना भी बंद कर दिया । मीशू को समझ आ गया कि अब उसको यह गांव और परिवेश छोड़ना पड़ेगा ।
"मुझे अपनी लड़कियों बेबी और रानो को अच्छी शिक्षा देनी है,इसलिए मैं जजनी मैडम के घर वापिस जा रही हूं और अब तभी लौटूंगी जब मेरे बच्चे पढ़ लिख कर कुछ बन जाएंगे ।आप को अगर मेरी बात ठीक लगे तो आप मेरे साथ चल सकते हैं ",मीशू ने कठोर स्वर में सुरेश को अपना निर्णय सुनाया और बैग बांध कर चल पड़ी ।
"मीशू ,तुम गलत कर रही हो ,"सुरेश ने इतना ही कहा और फिर बाहर निकल गया ।
उस दिन से आजतक ३सालो में सुरेश बस दो तीन महीने में एक बार सिर्फ संजू से मिलने आता था ।
यही सब सोचते सोचते कब सुबह हो गई,पता ही नहीं चला ।दरवाजे पर हुई दस्तक से मीशू ने हड़बड़ा कर दरवाजा खोला तो वहां सुरेश खड़ा था ।
" कैसी हो मीशू ?बच्चे कैसे हैं ?," सुरेश की आवाज में एक दर्द झलक रहा था ।
"सब ठीक है, "मीशू ने संजू ,बेबी को स्कूल का बैग पकड़ाते हुए कहा ।"आज रानो का स्कूल में दाखिला है ।आपको इसीलिए बुलवाया था जजनी मैडम ने ।मैं कोठी पर जा रही हूं,आप वही आ जाना ।"
"चल रानो ,तू भी पढ़ाई के पहले दिन जजनी मैडम का आशीर्वाद लें ले ", मीशू ने साढ़े तीन साल की छोटी रानो को झट से सुरेश की गोद से अपनी गोद में ले लिया ।
सुरेश हक्का बक्का कभी उस छोटे से कमरे में सुसज्जित मीशू की गृहस्थी को देखता और कभी चुलबुली रानो को ।
"मीशू ,रानो और अपनी मां को नीचे के कमरे में बिठाकर ,जल्दी रसोई में आओ ।जज साहब और मैडम का नाश्ता लगा दो ", माली काका ने मीशू को आवाज़ दी ।
"मीशू ,अपनी मां को कुछ खिला देना और फिर सुरेश को कहना जज साहब से मिल ले ,और आज रात सुरेश को यहीं रोक लेना ", जजनी ने आदेशात्मक स्वर में कहा ।
शाम को जज साहब ने बड़े कमरे में सुरेश को बुलाया और कहा,"तुम्हारे तीन बच्चे हैं ,इनकी जिम्मेदारी समझो और आज से ही काम पर लग जाओ । तुम्हें टाइल लगाने का काम आता है,आजकल हमारी कोठी के साथ एक बड़ा होटल बन रहा है ,मैंने तुम्हारे लिए वहां काम की बात कर ली है ।सुबह ७ बजे वहां काम शुरू करना है ।"
उस दिन जज साहब की आवाज़ में कड़क पन के साथ एक अपनापन भी नज़र आया मीशू को ।शायद पिता के साए से महरूम रहे सुरेश ने ऐसा आदेश पहली बार सुना था । अतः उसने भी "ठीक है ,जज साहब " कहा और चुपचाप कमरे की तरफ चला गया ।
"आज रानो का स्कूल का पहला दिन है ।मीशू तुम उसको स्कूल से लेने चली जाना", जजनी की आवाज़ में कुछ ममत्व झलका ।
"दोपहर में जज साहब और मैडम जी के अलावा दो लोगों का खाना और बनेगा ।मीशू अरहर की दाल,कच्चे आम की चटनी बनानी है ।इलाहाबाद से भईया जी आ रहे हैं ,"माली काका ने मीशू को बताया ।"दीदी जी के लिए राजमा चावल भी बनाने हैं ,नहीं तो वो नाराज़ हो जायेंगी ,",माली काका ने मीशू को आगाह किया।
पिछले ४ सालों में बच्चे एक दो बार ही आए थे , अतः मीशू को ज्यादा नहीं पता था ।
अयोध्या और इलाहाबाद मे पढ़ें और बड़े हुए रामानंद भईया जी और रामेश्वरी दीदी के खाने पीने , पहनने ओढ़ने ,बोल चाल हर चीज़ में इलाहाबादी झलक ही देखने को मिलती थी ।कोई यह अंदाज़ा नहीं लगा सकता था कि जज साहब और जजनी मैडम का बचपन अपने अपने पुश्तैनी पंजाब के गांव में बीता होगा ।जजनी मैडम की लम्बी चौड़ी कद काठी ,बुलंद आवाज़ ,सुन्दर तीखे नैन नक्श ये सब दीदी जी में हूबहू नज़र आते थे ।
अब तो पिछले ४ सालों से जजनी मैडम के संग रहकर मीशू के पहनने ,खाने,बोलने सब में इलाहाबादी पुट नज़र आने लगा था ।इस पहाड़ी इलाके के लोगों का (जहां जज साहब ने रिटायर होकर कोठी बनाई थी ) कुछ भी जजनी की जीवन शैली के मुताबिक नहीं था ।जज साहब को बस यहां के शांतजीवन और हेमकुंड साहब से इसकी नज़दीकी ने अपनी ओर आकर्षित कर लिया था ।
"मीशू , सुरेश को यह साईकिल दे देना ,और कहना आज से रोज शामको काम से जल्दी आकर मैडम के साथ गुरुसेवाके लिए जाना है और संजू को भी साथ भेज देना ।" जज साहब ने मीशू को एक नई साइकिल देते हुए कहा ।
"जी साहब ",बस इतना ही कह पाई मीशू ।
शाम को सुरेश को साइकिल देकर मीशू ने जज साहब का आदेश सुना दिया ।उस समय तो सुरेश ने इस विषय में कोई आपत्ति नहीं जताई ,बस इतना ही कहा कि आज उसका मन पहाड़ी खाना खाने का है ।मीशू ने अभी तक अपने कमरे मे ज्यादा खाने का इंतज़ाम नहीं किया था ।बस बच्चों के लायक थोड़ा बहुत बनाती थी ।और अब तो बच्चे भी अरहर की दाल ,चटनी खाना पसंद करनेलगे थे ।
"कल बाजार से सामान लाओगे,तभी कुछ बना पाउंगी,"मीशु ने बात को वहीं खत्म किया ।
अगले दिन शाम के समय जब सुरेश घर लौटा तो जज साहब का क्रोध सांतवें आसमान पर था ।उन्होंने बड़े कमरे की खिड़की से उसे साइकिल पर सवार होकर अन्दर आते देखा ।उन्होंने तुरन्त उसे अन्दर बुलाया ।
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ,हमारे गेट के अंदर साइकिल पर सवार होनै की । तमीज नही है ज़रा भी ।गेट के अंदर साइकिल के साथ पैदल चला करो ।"जज साहब ने अत्यन्त गुस्साए स्वर में कहा ।
उस शाम मीशू के कमरे में लौटने पर सुरेश ने कुछ अनमने भाव से कहा "मीशू ,क्या यहां रहना ज़रूरी है?यहां की रोक टोक और इनके अनुरूप जीवन जीना बहुत मुश्किल लगता है । अब मुझे और संजू को गुरु सेवा के लिये भी जाना होगा ।"
"मेरी और तुम्हारी तो मजबूरी है ,पर मैं नहीं चाहता कि हमारा संजू भी इनकी बताई राह पर चले । हम गरीब हैं पर अपने बेटे को अभी से इनका बंधुआ नहीं बना सकते ।उसकी आज़ादी छीनने का हमे कोई अधिकार नहीं है "।
इतना कहकर सुरेश कमरे से बाहर चला गया और मीशू उसकी कही बात पर सोचने के लिए मजबूर हो गई ।पिछले कुछ महीनों से मीशू ने भी सुरेश के व्यवहार में काफी परिवर्तन देखा था ।अब वो मेहनत से कमाने का महत्त्व समझने लगा था तथा बच्चों और मीशू के प्रति भी उसका कर्तव्यबोध जाग गया था ।
अगले दिन मीशू को जज साहब ने बुलाया और स्पष्ट शब्दों में कहा ' "देखो मीशू ,तुम्हारे काम से हमें कोई शिकायत नही है ,पर सुरेश से कह देना कि उसे हमारे नियम धर्म से ही चलना होगा ।अन्यथा वो अपने गांव वापिस जा सकता है ।"
मीशू के मन में रात से चल रही उलझन और भी उलझने लगी ।अब जब उसकी गृहस्थी उसके मनोनुकूल कुछ कुछ चलने लगी थी तब ऐसे समय में वह सुरेश को वापिस उस गांव के माहौल में कैसे भेज सकती थी ।जजनी के जिस घर से उसने गृहस्थी के जो गुर सीखे,उसकी लड़कियों में पढ़ने के लिए जो ललक पैदा हुई ,ऐसे घर को छोड़ने का निर्णय लेनाभी कोई सरल नहीं था ।पर अपने पति के स्वाभिमान की रक्षा के लिए मीशू ने जल्दी जल्दी सामान समेटना शुरू कर दिया ।
"माली काका ,आपने जो पिछली गली में रामदुलारी के घर में एक कमरा देखा था ,वहां कुछ सामान रख आओ ",मीशू ने दृढ़निश्चय के साथ कहा ।
"मां ,हम कहां जा रहे हैं? "रानो ने जब पूछा तो मीशू ने देखा दरवाजे पर जजनी खड़ी थी ।
"मैडम जी ,अन्दर आईये"।"बेबी मैडम जी के लिए कुर्सी लाओ"मीनू की आवाज़ में एक आत्मविश्वास और दृढ़ता थी ।
"नहीं,रहने दो। मीशू कल तुम चाहे जहां जाओ पर आज रात का खाना समय पर मेज पर लग जाना चाहिए ",अपनी स्वाभाविक ममता और लगाव को छुपाकर कठोर स्वर में कहा ।
"जी मैडम ",अभी आई ।
"बेबी,संजू ,रानो अपनी अपनी किताबें संभाल लो ।कल हम अपने घर जा रहे हैं,तुम्हारे पापा के साथ ।" मीनू की आवाज़ में एक खनक थी जो दरवाजे पर खड़े सुरेश ने सुन ली थी ।