हिमाद्रि(8)
कुमुद अस्पताल से घर आ गई थी। सारी रिपोर्ट सामान्य थीं। किसी में भी डरने वाली कोई बात नहीं थी। कल रात के बाद कुमुद को कोई तकलीफ भी नहीं हुई थी। सब बहुत खुश थे। उमेश कल से परेशान था कि कहीं रिपोर्ट में कुछ ऐसी वैसी बात ना निकल आए। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
कुमुद भी सामान्य सी सबके साथ बैठी हुई थी। सब आपस में बातचीत कर रहे थे। सरला जो कल रात कुमुद की हालत देख कर बहुत डर गईं थीं अब उसे सबके साथ हंसते देख कर संतुष्ट थीं।
कुमुद के घर लौटने की खुशी में बुआ ने हलवा बनाया था। भगवान का भोग लगाने के बाद सबको कटोरी में परोस कर दे रही थीं। सरला ने एक कटोरी कुमुद के लिए ली और खुद उसे अपने हाथ से खिलाने के लिए उसके पास गईं। कुमुद शांत बैठी सबको देख रही थी। सरला ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा। चम्मच में हलवा भर कर उसकी तरफ बढ़ाया।
कुमुद ने आँखें उठा कर सरला की ओर देखा। उन्हें महसूस हुआ कि कुमुद कुछ अजीब सी निगाहों से देख रही है। सरला को उसका इस तरह देखना असामान्य सा लगा। पर वह प्यार से बोलीं।
"क्या हुआ बेटा ? हलवा तो तुम्हें बहुत पसंद है।"
"हटाओ इसे....."
कुमुद की आवाज़ में भारीपन था। उसने ज़ोर से झटका दिया। चम्मच कटोरी छिटक कर दूर जा गिरी। सब सकते में आ गए।
"मेरे लिए चिकन बना कर लाओ....."
उसकी इस मांग पर सभी चौंक गए। कुमुद पूर्णतया शाकाहारी थी। उसके कारण ही उमेश ने भी नॉनवेज खाना छोड़ दिया था। कुमुद की बात सुन कर उमेश उसके पास गया। उसके दोनों कंधे पकड़ कर झझकोरने लगा।
"ये क्या कह रही हो कुमुद ? होश में आओ।"
कुमुद ने ज़ोर से उसे धक्का मारा। वह लड़खड़ाता हुआ दूर जा कर गिरा। कुमुद के इस आचरण से वह पूरी तरह सकते में था। यह सब देख कर बुआ चिल्ला उठीं।
"भैया अभी भी कुछ बाकी रह गया है समझने को। बहूजी पर प्रेत का साया है। वो आदमी जिसे तुमने भगा दिया था उसे बुलाओ।"
उमेश को भी अब बुआ की बात सच लग रही थी। उस दिन उसने डॉ. निरंजन को बेइज्ज़त कर निकाल दिया था। कार्ड भी संभाल कर नहीं रखा था।
कुमुद अचानक बहुत उत्तेजित हो गई थी। उसने सोफे को गिरा दिया था। सारी कुर्सियां उलट पलट कर दी थीं। गुलदान पटक कर चकनाचूर कर दिया था। हलवे के कटोरे को उठा कर दीवार पर दे मारा। इसके बाद वह एक झटके से खुद ज़मीन पर गिर गई। कुछ देर बाद जब होश में आई तो सब चीज़ों को ऐसे देख रही थी जैसे उसे कुछ भी पता ना हो।
बुआ और सरला उसे उठा कर कमरे में ले गईं। बुआ ने हनुमान जी की प्रतिमा उसे पकड़ा दी। सरला उसके पास बैठ कर हनुमान चालीसा पढ़ने लगीं।
उमेश अभी भी सदमे की हालत में बैठा था। मुकेश उसके पास ही थे। बुआ उसके पास आकर बोलीं।
"ये कार्ड हमने संभाल कर रख लिया था। अब कुछ ना सोंचो। उस आदमी को फोन करके बुला लो।"
कार्ड देख कर उमेश को तसल्ली हुई। बैठे हुए वह यही सोंच रहा था कि उस दिन उसे कार्ड संभाल कर रख लेना चाहिए था। बुआ से कार्ड लेकर उसने फौरन दिए गए नंबर पर फोन किया। कुछ रिंग्स के बाद उधर से आवाज़ आई।
"हैलो...."
"डॉ. निरंजन प्रकाश..... मैं उमेश सिन्हा..... आप मेरे बंगले पर आए थे पर मैंने....."
"मुझे याद है....बताइए आपको क्या कहना है ?"
"डॉ. निरंजन मैं उस दिन के व्यवहार के लिए माफी चाहूँगा।"
"मि. सिन्हा वो सब छोड़िए। आज आपने फोन किया है तो अवश्य खास बात होगी।"
उमेश ने डॉ. निरंजन को सारी बात बताई। उसे सुन कर वह बोले।
"मि. सिन्हा इस समय तो मैं हिमपुरी से बाहर हूँ। कल दोपहर तक लौटूँगा।"
"डॉ. निरंजन अभी तो कुमुद शांत है किंतु अगर उसे दोबारा कुछ हो गया तो हम उसे कैसे संभालेंगे।"
"उसका उपाय है। मैं जब तक नहीं आता हूँ मेरा सहायक आपकी मदद करेगा। उसका नाम तेजस पुंज है। बहुत काबिल है। आप कहें तो मैं उसे भेज सकता हूँ।"
"हाँ बिल्कुल भेज दीजिए।"
"ठीक है कुछ देर में वह आपके पास पहुँच जाएगा।"
करीब डेढ़ घंटे के बाद कॉलबेल बजी। दरवाज़ा उमेश ने ही खोला। सामने कोई पच्चीस छब्बीस साल का युवक खड़ा था।
"नमस्ते मेरा नाम तेजस पुंज है। डॉ. निरंजन ने मुझे यहाँ भेजा है।"
"आइए अंदर आइए..."
भीतर आकर तेजस चारों तरफ निगाह दौड़ा कर देखने लगा।
"मि. सिन्हा आपके घर में कदम रखते ही मुझे एक नकारात्मक ऊर्जा की उपस्थिति महसूस हो रही है।"
तेजस ने उमेश से कहा। फिर तसल्ली देते हुए बोला।
"पर चिंता की बात नहीं है। डॉ. निरंजन सब ठीक कर देंगे। जब तक वह नहीं आते हैं मैं कुछ उपाय करूँगा जिससे वह प्रेत कुछ गड़बड़ ना कर सके।"
"आपको जो करना है करें। जो मदद कहेंगे मिल जाएगी।"
तेजस सोफे पर बैठ गया। उसने जेब से पेन और पेपर निकाला और एक लिस्ट बना कर उमेश को पकड़ा दी।
"मुझे यह सब सामग्री जितनी जल्दी हो सके मंगवा दीजिए।"
उमेश ने लिस्ट पर नज़र डाली। सभी वस्तुएं आसानी से मिल जाने वाली थी।
"ठीक है....मैं जल्दी ही मंगवा देता हूँ।"
सारी सामग्री आ जाने के पश्चात तेजस ने अपना काम शुरू किया। बुआ उसकी मदद कर रही थीं। तेजस ने पहले बंगले के बाहरी हिस्से के चारों कोनों को अभिमंत्रित किया। उसके बाद बंगले के चारों तरफ आटे से घेरा बनाया। यह सब करते हुए वह कुछ मंत्र पढ़ रहा था।
सारा काम समाप्त कर वह भीतर आया। हाथ पांव धोकर उसने कहा।
"मुझे एक एकांत जगह चाहिए। वहाँ बैठ कर मुझे कुछ तांत्रिक विधियां करनी हैं।"
उमेश ने बंगले के एक कमरे में उसे तांत्रिक विधियां करने की इजाज़त दे दी। तेजस उस कमरे में विधियों की तैयारी करने लगा।
कुमुद अब पहले से ठीक थी। सरला अब उसके पास से हिल भी नहीं रही थीं। वह कभी हनुमान चालीसा पढ़ती, कभी ॐ नमः शिवाय का जाप करने लगतीं। कभी कोई भजन गाने लगती थीं। मुकेश भी अपनी बेटी के पास थे। वह भी मन ही मन जाप कर रहे थे। सबको खाना खिला कर बुआ भी रामचरित मानस पढ़ने बैठ गईं।
उस समय कुमुद की वह हालत देख कर उमेश घबरा गया था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। तभी बुआ ने डॉ. निरंजन को बुलाने को कहा। कोई और राह ना देख कर उसने उन्हें फोन कर दिया। पर अभी भी उसे प्रेत वाली बात पर पूरा यकीन नहीं था। इस समय वह दोराहे पर था। एक पल उसे लगता था कि कुमुद का वह रूप भी उसकी बीमारी के कारण ही था। पर जब वह उस क्षण के बारे में सोंचता था जब कुमुद ने उसे धक्का मारा था तो उसे लगता था कि कुमुद नहीं हो सकती थी। अवश्य कोई और ताकत उस पर हावी थी। कुमुद उसे इतनी ज़ोर से धक्का नहीं मार सकती थी।
सारी तैयारी करने के बाद तेजस उस एकांत कमरे में अपनी विधि कर रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि जो नकारात्मक शक्ति बंगले में है वह सक्रिय होने का प्रयास कर रही है। तेजस ने और अधिक एकाग्रता से मंत्र पढ़ने शुरू कर दिए।
कुमुद ने सरला से कहा कि उसे वॉशरूम जाने की ज़रूरत महसूस हो रही है। सरला ने उसके हाथ की प्रतिमा लेकर पास की टेबल पर रख दी। कुमुद उठ कर वॉशरूम के अंदर चली गई। सरला और मुकेश उसके बाहर निकलने की प्रतीक्षा करने लगे। करीब बीस मिनट बीतने के बाद भी जब वह बाहर नहीं आई तो सरला ने दरवाज़े पर जाकर नॉक किया। कुछ और क्षणों तक वह वहीं खड़ी राह देखती रहीं। उन्होंने आवाज़ लगाई।
"बेटा सब ठीक तो है ना ?"
कोई जवाब ना मिलने पर उन्होंने फिर पुकारा। इस बार अचानक दरवाज़ा खुला। लेकिन कुमुद को देख कर सरला की चीख निकलते रह गई।
कुमुद के बाल बिखरे हुए थे। वह बड़े ही गुस्से से उन्हें घूर रही थी। एक बार फिर उसी भारी आवाज़ में वह बोली।
"क्या लगता है तुम लोगों को कि यह पूजा पाठ करके मुझे रोक लोगे। तुमने जिस तांत्रिक को बुलाया है वह मेरा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता है। मैं उसकी औकात से ज्यादा ताकतवर हूँ।"
कुमुद तेजी से बाहर निकली। सीढ़ियां उतर कर उस कमरे की तरफ बढ़ने लगी जहाँ तेजस तंत्र क्रिया कर रहा था। सरला जड़वत खड़ी थीं। मुकेश ने फौरन जाकर उमेश को सूचना दी।
कुमुद ने कमरे का दरवाज़ा खोला और तेजस को ललकारने लगी।
"तू...तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा। अभी नौसीखिया है तू। मुझसे मत भिड़। भाग जा।"
तेजस ने पास रखे तांबे के कलश से पानी लिया और मंत्र पढ़ते हुए कुमुद पर छिड़क दिया। पानी के छींटे पड़ते ही कुमुद को धक्का लगा। वह लड़खड़ा कर पीछे की तरफ गिरी। उमेश कुछ ही दूरी पर खड़ा था। वह उससे टकरा गई। लेकिन संभल कर फिर तेजस की ओर लपकी। तेजस पूरी तरह से तैयार था। उसने मंत्र पढ़ते हुए बार बार जल उस पर छिड़कना शुरू किया। बार बार कुमुद पीछे की तरफ जाती। फिर संभल कर तेजस की तरफ भागती। यह सिलसिला कुछ देर तक चलता रहा। अंततः कुमुद निढाल होकर गिर पड़ी। तेजस ने जल्दी से काला धागा अभिमंत्रित कर कुमुद के हाथ में बांध दिया। उसने उमेश से कहा।
"इन्हें अब इसी कमरे में रखना पड़ेगा। मेरे अलावा आपमें से कोई एक इनके साथ ठहर सकता है।"
सरला, मुकेश और बुआ भी वहीं थे। उमेश ने खुद कुमुद के साथ रहने की बात की। तेजस ने आगे कहा।
"यह प्रेत बहुत शक्तिशाली है। जो लोग बाहर हैं वो एक साथ रहें और ईश्वर का ध्यान करते रहें। आज की रात मुश्किल हो सकती है।"
उमेश कुमुद के साथ कमरे में रह गया। तेजस ने और ज़ोर से तांत्रिक विधि आरंभ कर दी।
बाहर बुआ, सरला और मुकेश मंदिर में बैठ कर भगवान का ध्यान करने लगे।
रात भर तेजस मंत्र पढ़ता रहा। कुमुद बीच बीच में उग्र हो जाती। तेजस अभिमंत्रित जल छिड़क कर उसे शांत करता था। उमेश के लिए यह सब बिल्कुल भी आसान नहीं था। कुमुद की हालत उसे बहुत अधिक परेशान कर रही थी। लेकिन वह कुछ भी नहीं कर पा रहा था।
तेजस के लिए भी कुछ आसान नहीं था। वह अपनी पूरी विद्या का प्रयोग कर रहा था। फिर भी प्रेत हार नहीं मान रहा था। तेजस सोंच रहा था कि किसी तरह सुबह हो जाए। सुबह ऐसी शक्तियां कमज़ोर हो जाती हैं।
मंदिर में बैठे तीनों लोग ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि कुमुद जल्दी ही इस प्रेत से मुक्त हो जाए।
सभी रात बीतने की राह देख रहे थे।