हिमाद्रि(9)
बड़ी कठिनाई से रात बीत गई। प्रेत की सभी कोशिशों को तेजस ने नाकाम कर दिया। सुबह सूर्योदय होने के बाद तेजस ने कहा कि अब कोई खतरा नहीं है। आप सब अपनी दिनचर्या के हिसाब से रहिए। दोपहर तक डॉ. निरंजन यहाँ आकर सब संभाल लेंगे।
सब रोज़ की तरह नहा कर तैयार हो गए। सरला और बुआ ने कुमुद की तैयार होने मे सहायता की। वह बहुत अधिक कमज़ोर लग रही थी। सरला ने अपने हाथ से उसे नाश्ता कराया। खाने के बाद वह कुछ अच्छा महसूस करने लगी।
तेजस ने डॉ. निरंजन को फोन कर कल रात की सारी घटनाएं बताईं। सब सुन कर उन्होंने कहा कि वह सीधे उमेश के घर ही पहुँचेंगे। उन्होंने तेजस को कुछ और सामग्रियां मंगा कर तैयारी करने को कहा।
दोपहर करीब एक बजे डॉ. निरंजन आ गए। उनके निर्देश के अनुसार सबने खाना खा लिया था। तेजस ने सारी तैयारियां कर ली थीं। कुमुद सहित सभी हॉल में बैठे थे। डॉ. निरंजन ने उमेश से कहा।
"मि. सिन्हा अब आप पहले दिन लेकर कल रात तक की सारी घटनाएं विस्तार से बताइए।"
उमेश ने सारी बात शुरू से अंत तक विस्तार से बता दी। डॉ. निरंजन ने सब कुछ बड़े ध्यान से सुना। सब सुन कर वह कुमुद से बोले।
"आप बिल्कुल भी परेशान ना हों। अब वह प्रेत बचेगा नहीं। आप बस याद करके बताइए उस दिन उस गुप्त कमरे में जब उस प्रेत ने आपको दबोचा था तब क्या समय रहा होगा।"
कुमुद याद करने लगी। करीब साढ़े नौ बजे बुआ ने उसे खाना खिलाया था। उसके बाद खुद खाया। टेबल साफ करने के बाद उसके ज़ोर देने पर वह मजबूरी में अपने क्वार्टर में सोने चली गईं। इस सब में सवा दस बज गए होंगे। बुआ के जाने के बाद वह बेसमेंट में गई। आईना हटा कर दरवाज़े का ताला खोलने में करीब पौन घंटे लगे होंगे। निकलने से पहले कोई पाँच सात मिनट वह कमरे में ठहरी थी। इसका मतलब कोई सवा ग्यारह के आसपास का समय होगा। कुमुद ने डॉ. निरंजन को समय बता दिया।
डॉ. निरंजन ने मन ही मन कुछ चीज़ों का हिसाब लगाया।
"गौर कीजिए यह प्रेत लगभग ग्यारह बजे रात को ही हरकत करता है। पहली बार भी सवा ग्यारह का समय था। जब पेट में दर्द उटा तब भी आपके हिसाब से यही समय था। कल रात भी यही समय था।"
उमेश सारी बात ध्यान से सुन रहा था। अब तक उसे प्रेत वाली बात पर यकीन हो चुका था। लेकिन अभी भी कुछ सवाल थे। उसने डॉ. निरंजन से पूँछा।
"डॉ. आप समय की बात कर रहे थे। बाकी सब दिन तो ठीक है पर कल जब अस्पताल से लौटने के बाद कुमुद ने विचित्र हरकतें कीं तब तो शाम का समय था।"
"हाँ ये गौर करने लायक बात है। लेकिन ऐसा नहीं है कि ऐसी शक्तियां केवल रात में ही सक्रिय होती हैं। यदि इन्हें मौका मिले तो संध्याकाल में भी हावी हो सकती हैं।"
उमेश कुछ सोंच कर बोला।
"चलिए ये बात तो समझ आती है कि शैतानी शक्तियां किसी भी समय सक्रिय हो सकती हैं। किंतु पहली बार जब उस गुप्त कमरे में उस प्रेत ने कुमुद के साथ वह घिनौनी हरकत की तो फिर लगभग एक महीने तक वह शांत क्यों रहा।"
"इस सवाल का जवाब तो मुझे ढूंढ़ना है।"
"कैसे ढूंढ़ेंगे आप इस सवाल का जवाब ?"
डॉ. निरंजन कुछ क्षण चुप रह कर बोले।
"मुझे उससे संपर्क करना होगा। आपकी पत्नी को माध्यम बना कर।"
"ये कैसी बात कर रहे हैं आप ? कुमुद पहले ही इतनी तकलीफ में है। मैं उसे किसी खतरे में नहीं डाल सकता हूँ।"
"उमेश जी खतरा तो उन पर वैसे ही है। मैं तो उन्हें उस खतरे से निकालने का प्रयास कर रहा हूँ। इसके अलावा कोई चारा भी नहीं है। आप मुझ पर यकीन करें। मैं अपने क्षेत्र में माहिर हूँ।"
उमेश कुमुद को लेकर चिंतित था। वह बोला।
"लेकिन क्या कोई और रास्ता नहीं हो सकता है ?"
"मैंने पहले ही कहा कि कोई और रास्ता नहीं है। उमेश जी मैं भी आपकी पत्नी को किसी मुश्किल में नहीं डालूँगा। आप मुझ पर यकीन करें।"
"यदि कोई राह नहीं है तो आप जो ठीक समझें करें। पर यह खयाल रखें कि कुमुद को कोई नुकसान ना हो।"
डॉ. निरंजन बेसमेंट के गुप्त कमरे को देखना चाहते थे। उन्होंने तेजस को निर्देश दिया कि वह कुमुद को उसी कमरे में ले जाए जहाँ कल तंत्र क्रिया की थी। उन्होंने सरला और मुकेश से कुमुद के साथ रहने को कहा। बुआ ने बेसमेंट के दरवाज़े पर लगे ताले की चाबी लाकर दी।
डॉ. निरंजन ने ताला खोला। उमेश और वो बेसमेंट में उतर गए। उमेश ने साथ में टॉर्च ले रखी थी। बेसमेंट में उमेश को वह सब दिखा जिसके बारे में कुमुद ने बताया था।
ईज़ल, आधी बनी पेंटिंग और दीवार से सटा रखा आईना। सामने ही गुप्त कमरे का दरवाज़ा था। दरवाज़े की चौखट पर क्रॉसनुमा पट्टियां लगी थीं। डॉ. निरंजन ने आगे बढ़ कर वह पट्टियां हटाईं और दरवाज़ा खोल दिया।
कुछ देर तक डॉ. निरंजन और उमेश दोनों ही सांस रोके खड़े रहे। डं. निरंजन ने कहा।
"मि. सिन्हा मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस जगह बहुत नकारात्मक ऊर्जा है। वह प्रेत कई सालों से यहाँ कैद रहा होगा।"
उमेश को भी उस स्थान पर किसी तरह की बुरी शक्ति का आभास हो रहा था। वह सोंच रहा था कि कुमुद पर उस दिन क्या जुनून सवार रहा होगा कि उसने अकेले ही इस कमरे का ताला तोड़ा होगा।
"मि. सिन्हा मैं कमरे के भीतर जा रहा हूँ। मेरी सलाह है कि आप बाहर ही रुकें।"
डॉ. निरंजन ने उमेश से टॉर्च ले ली। घुटनों के बल बैठ कर वह भी भीतर सरक गए। उमेश बाहर उनकी प्रतीक्षा करने लगा। वह आधी बनी पेंटिंग को ध्यान से देखने लगा। उसे लगा कि वह तस्वीर जैसे उसे सम्मोहित कर रही हो। उसने तुरंत अपनी नज़रें उससे हटा लीं।
डॉ. निरंजन अंदर पहुँचे तो उन्हें कमरे में और अधिक नकारात्मकता का अनुभव हुआ। ऐसा तभी होता है जब किसी जगह लंबे समय तक नकारात्मक ऊर्जा कैद रही हो। डॉ. निरंजन को पूरा यकीन हो गया कि वह प्रेत कोई मामूली शक्ति नहीं है। उससे छुटकारा पाने के लिए अपने सारे ज्ञान का प्रयोग करना पड़ेगा। जब वह निकलने के लिए उठे तब उन्हें कमरे के दरवाज़े के ऊपर कुछ दिखा। उन्होंने टॉर्च की रौशनी में देखा। वहाँ घोड़े की नाल के साथ उल्लू का नाखून कील से जड़ा हुआ था। उनके मन में सवाल उठा आखिर किसने और कब इस प्रेत को यहाँ बांधा होगा। प्रेत के बारे में जानने की उनकी इच्छा बहुत बढ़ गई।
डॉ. निरंजन और उमेश ऊपर आ गए। डॉ. निरंजन ने बेसमेंट के दरवाज़े पर फिर से ताला लगा दिया। उन्होंने बुआ जी से रोली मंगाई। मंत्र पढ़ते हुए दरवाज़े पर कुछ चिन्ह बनाए।
"अब जब तक प्रेत बाधा समाप्त नहीं होती कोई बेसमेंट में नहीं जाएगा।"
उमेश और वह सोफे पर आकर बैठ गए।
"मि. सिन्हा आपने नीचे कुछ महसूस किया।"
"मुझे उस ताकत की नकारात्मक ऊर्जा महसूस हुई। पर डॉ. एक प्रश्न और मेरे मन में उठा है।"
"कैसा सवाल ?"
उमेश मन ही मन सोंचता रहा कि जो उसे जानना है वह कैसे पूँछे। अपने शब्दों को व्यवस्थित कर उसने पूँछा।
"मैंने जैसा सुना है आत्मा तो अशरीरी होती है। हर तरह की इच्छाओं से मुक्त। फिर प्रेत ने कुमुद के साथ दुष्कर्म कैसे किया। जिसका शरीर ना हो उसमें वासना कैसे हो सकती है।"
डॉ . निरंजन ने जवाब दिया।
"क्योंकी प्रेतात्मा जीवात्मा से अलग होती है।"
उमेश को कुछ समझ नहीं आया।
"मि. सिन्हा मैं आपको विस्तार से बताता हूँ।"
डॉ. निरंजन कुछ ठहर कर बोले।
"देखिए हिंदू पुराणों में बहुत सारी बातों का वर्णन किया गया है। ऐसे ही गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है उसका वर्णन किया गया है। आपने भगवत गीता में पढ़ा होगा कि प्रत्येक प्राणी में आत्मा का निवास होता है। इसे जीवात्मा कहते हैं। यह हमारे शरीर में रहती है। व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात यह जीवात्मा शरीर छोड़ कर कर्म के अनुसार नया शरीर धारण करती है।"
उमेश सब बड़े ध्यान से सुन रहा था। डॉ. निरंजन ने आगे कहा।
"जब तक नया शरीर नहीं मिलता जीवात्मा सूक्ष्म शरीर के साथ इस दुनिया में रहती है। इसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं। कई बार कुछ कारणों से यह आत्मा भटक जाती है। तब भूत के रूप में यह दुनिया में रहती है।"
डॉ. निरंजन फिर रुके। कुछ गंभीर आवाज़ में बोले।
"कुछ लोगों की अकाल मृत्यु हो जाती है या वह आत्महत्या कर लेते हैं। कुछ ऐसे होते हैं जो जीवन पर्यंत भोग में लिप्त रहते हैं। ऐसे लोगों की इच्छाएं अतृप्त होती हैं। इनमें से कई प्रेत बन जाते हैं। अतृप्त इच्छाओं के कारण यह कामनामयी शरीर में वास करते हैं। सूक्ष्मात्मा की तरह यह दिखते नहीं हैं। किंतु कामनामयी शरीर के कारण अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए भटकते हैं। मौका मिलने पर उसे पूरा भी कर लेते हैं। जैसे इस प्रेत ने किया।"
उमेश के मन की जिज्ञासा शांत हो गई थी। उसे इन सारी बातों की कोई जानकारी नहीं थी।
"मि. सिन्हा अब बारी है उस प्रेत के बारे में जानने की। तो अब हम तेजस के पास चलते हैं।"
सभी लोग उस कमरे में एकत्रित थे जहाँ तांत्रिक क्रिया होनी थी। डॉ. निरंजन ने सख्त हिदायत दी थी कि तांत्रिक क्रिया में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए। तांत्रिक क्रिया के दौरान कुमुद कई बार बहुत उग्र होगी। उस समय कोई बीच में नहीं आएगा। अतः वही लोग कमरे में रहें जो शांति से संपूर्ण क्रिया को देख सकें। सबने इस बात का आश्वासन दिया था कि कोई विघ्न नहीं डालेंगे।
कमरा बड़ा था। अतः एक तरफ तांत्रिक क्रिया की व्यवस्था थी। जहाँ तेजस बाईं तरफ और डॉ. निरंजन दाईं तरफ बैठे थे। डॉ. निरंजन के ठीक सामने कुमुद बैठी थी। इस समय वह शांत थी। थोड़ी दूर पर बाकी सभी फर्श पर चटाई बिछा कर बैठे थे।
डॉ. निरंजन ने तांत्रिक क्रिया आरंभ की। बीच में हवन कुंड में आग जल रही थी। डॉ. निरंजन मंत्र पढ़ते हुए उसमें अलग अलग तरह की सामग्री डाल रहे थे। तेजस भी उनके बगल में बैठा मंत्र पढ़ रहा था।
कुछ मिनटों के बाद ही कुमुद की भाव भंगिमा बदलने लगी। शांत चेहरे पर तनाव दिखने लगा। सब बहुत ध्यान से कुमुद को देख रहे थे। अचानक ही कुमुद भारी आवाज़ में बोली।
"क्या चाहता है तू मुझसे.....क्यों मुझे बुलाया...."
"तुमने इस मासूम औरत के साथ वह घिनौनी हरकत क्यों की। क्यों इसे परेशान कर रहे हो।"
प्रेत ज़ोर से हंसा।
"मैंने अपनी इच्छा पूरी की थी इसके साथ....आगे भी करूँगा....इसकी कोख से मैं देह धारण कर बाहर आऊँगा।"
"तुम प्रेत क्यों बने....क्या नाम है तुम्हारा.... अपने बारे में बताओ..."
प्रेत कुछ देर शांत रहा। फिर गंभीर आवाज़ में बोला।
"मेरा नाम हिमाद्रि है...."