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कचहरी

कचहरी

अपने परिवार के साथ सोहन एक फ्लैट में रह रहा था, छोटा भाई भी साथ में ही रहता था। दो कमरो वाले फ्लैट में एक कमरा तो अपना निजी और दूसरा कमरा आने जाने वालों के लिए रखा हुआ था।

कुछ दिन पूर्व एक हादसे में माँ की मृत्यु हो जाने के बाद सारी ज़िम्मेदारी सोहन की ही थी। भाई बाबू राम जवान हो गया तो उसके रिश्ते भी आने लगे, शादी करने की सोच ही रहा था कि शादी के बाद सोहन की गृहस्थी बसाने की चिंता होने लगी।

पिता के गुजर जाने के बाद माँ ने पुश्तैनी घर किराए पर दे दिया था, सोहन ने उस घर को खाली करवाने का विचार किया।

दुलारी से वैसे तो पारिवारिक रिश्ता बन गया था लेकिन माँ की मृत्यु के बाद उसने किराया देना भी बंद कर दिया था। दुलारी अपने बेटी के साथ उस घर में तब से रह रही थी, जब उसकी बेटी तुतलाकर बोलती थी, चाँदनी नाम था उसका, वह वास्तव में थी भी चाँदनी, गोरा चिट्टा रंग, तीखे नाक नक्श, देखने में परी सी लगती थी।

एक दिन सोहन समय निकालकर दुलारी के पास अपने पुश्तैनी घर में गया और बताया, "चाची, मैंने बाबू राम का रिश्ता तय कर दिया है।"

दुलारी खुश होते हुए बोली, "यह तो बहुत अच्छी खबर है, कब है शादी?"

"चाची शादी तो अभी आठ महीने बाद है बस उससे पहले आपको यह घर खाली करना पड़ेगा, हमारे छोटे से फ्लैट में तो दोनों परिवार रह नहीं पाएंगे इसलिए मैंने सोचा कि बाबू राम का परिवार इस घर में रह लेगा।" सोहन ने कहा।

सोहन कि यह बात सुनकर दुलारी हतप्रभ रह गयी लेकिन कुछ बोली नहीं।

एक महीना गुजर गया लेकिन दुलारी ने घर खाली नहीं लिया, जब सोहन दोबारा पूछने गया तो दुलारी ने साफ कह दिया कि वह घर खाली नहीं करेगी, उसने तो घर खरीद लिया है, इसके पैसे तुम्हारी माँ को दे दिये हैं। दुलारी की बात सुनकर सोहन आश्चर्य चकित रह गया क्योंकि पिता की मृत्यु के बाद माँ सोहन से पूछे बिना कोई काम नहीं करती थी अतः इतना बड़ा निर्णय माँ ने कैसे ले लिया, ऐसा तो कदापि हो नहीं सकता, दुलारी चाची झूठ बोल रही है, शायद माँ की मृत्यु का फायदा उठाना चाहती है।

सोहन ने अपने एक जानकार वकील से बात की और घर खाली करवाने के लिए कचहरी में मुकदमा डाल दिया।

दुलारी को घर खाली करने का नोटिस आया जिसका जवाब उसने यह कह कर दिया कि उसने तो मकान खरीदा है अतः वह खाली नहीं करेगी।

कचहरी की तारीख वाले दिन सोहन सब काम छोड़ कर सुबह ही पहुँच गया, वकील से बात हुई, वकील बार बार यही कहे जा रहा था कि दुलारी ने तो लिखित में दिया है कि उसने घर खरीद लिया है और पैसे सोहन की माँ को दिये थे।

सोहन ने कहा, “वकील साहब, आप जज साहब के सामने उससे कोई कागज तो मांगना, उससे बोलना अगर उसने घर खरीदा है तो माँ के अंगूठा दस्तखत वाला कोई कागज तो दिखाये।”

वकील ने कहा, “हाँ देखता हूँ, तुम जज साहब के कमरे के बाहर खड़े हो जाना, मैं भी तब तक पहुँच जाऊंगा।”

सोहन समय के पहले ही जज साहब के कमरे के बाहर खड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद जज साहब आए और आवाज लगने लगी। आवाज लगाने वाले ने पूछा, “भाई कोई केस है?”

सोहन बोला, “हा भाई, सोहन लाल, दुलारी देवी वाला केस मेरा ही है।” तो यह बताओ आवाज कैसी लगवानी है, सोहन बोला, “क्या मतलब?” दरबान ने कहा, “देखो, दस रुपए दोगे तो आवाज तुम्हें सुनाई देगी और नहीं दोगे तो आवाज तो लगेगी पर तुम्हें सुनाई नहीं देगी।”

सोहन ने दस रुपए निकाल कर उसको दरवाजे से हटकर आने को कहा तो दरबान बोला, “लाओ न, डर क्यों रहे हो।” “अरे सामने जज साहब बैठे हैं” सोहन बोला।

दरबान बोला, “लाओ, कुछ नहीं होता।”

सोहन ने पैसे दे दिये और सोचने लगा ‘देने वाला डर रहा है पर लेने वाला निडर है’

सोहन की मनोदशा समझ कर साथ खड़ा आदमी बोला, “भाई, इसी को तो कचहरी कहते हैं, यहाँ की तो ईंट भी पैसा मांगती है। अभी तो वो जो टाइप वाला जज साहब के बराबर में बैठा है वह भी पचास रुपए लेगा।”

तब तक वकील साहब शर्माजी भी आ गए थे और आवाज लगने पर पेश हो गए।

दुलारी का वकील ज़ोर डालकर बार बार कह रहा था, “जज साहब यह घर दुलारी ने इनकी माँ से खरीदा है अतः इस मुकदमे को यहीं खारिज कर दिया जाए।”

सोहन ने अपने वकील शर्माजी को बार बार इशारा किया कि आप कोइ कागज तो मांग लो लेकिन वकील चुप रहा।

जज साहब के पूछने पर भी वकील कुछ नहीं बोला और न ही सोहन को बोलने दिया।

जज साहब ने एक महीने के बाद की तारीख दे दी। सोहन उदास मन से वापस आ रहा था कि उसे याद आया कि उसका टिफिन तो वकील साहब के कमरे में ही रह गया है और वह वापस अपना टिफिन लेने के लिए मुड़ गया।

सोहन जैसे ही वकील के कमरे में घुसा उसने देखा दुलारी और उसकी लड़की चाँदनी वहीं बैठी है, वकील शर्मा से हंस हंस कर बातें कर रही हैं। चाँदनी तो वकील शर्मा से सट कर ही बैठी थी।

जैसे ही अचानक सोहन कमरे में घुसा तो सन्नाटा छा गया लेकिन सोहन सब समझ गया और अपना टिफिन लेकर चुपचाप कमरे से बाहर आ गया।

एक दिन सोहन ने इस बात का जिक्र अपने मित्र रमेश से किया, पूरी बात सुनने के बाद रमेश ने सोहन को जज अशोक कुमार से उनके घर पर मिलने को कहा।

सोहन जब जज साहब के घर गया, “सर........ मुझे रमेश ने भेजा है”

“हाँ तो बोलो किसलिए भेजा है और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे घर पर आने की”

जज धर्मेन्द्र का चेहरा गुस्से से तमतमा गया और सोहन पर बरसने लगे, “चलो निकलो यहाँ से, इस टोकरे को उठाओ नहीं तो मैं पुलिस बुलाकर अभी तुम्हें पुलिस के हवाले कर देता हूँ।”

सोहन हाथ जोड़े खड़ा रहा और गिड़गिड़ा रहा था “सर.... सर.... आप पुलिस मत बुलाओ मैं चला जाता हूँ लेकिन आप ये फल तो रख लें...... बच्चों के लिए लाया था।”

“इतना बड़ा टोकरा? किसने बोला तुम्हें लाने को.... उठाओ इसको यहाँ से, नहीं तो अभी तुम्हें बंद करवा दूंगा.... ” जज साहब ने बड़े ही गुस्से से सोहन को डांटा......

सोहन ने बात बिगड़ती देख चुप चाप फलों का टोकरा उठाया और सीधा रमेश के घर पहुँच गया........

भाई, आज तो तूने मुझे अंदर करवाने का काम कर दिया था, जज साहब तो बहुत ही कडक हैं, अगर में थोड़ी देर और ठहरता तो उन्होने पुलिस बुला लेनी थी........

“चल कोई नहीं तू जा अब दुकान देख, मैं सोचता हूँ कि क्या करना है,” रमेश ने कहा।

सोहन फलों का टोकरा रमेश के घर पर छोड़ कर चलने लगा तो रमेश ने टोका.... “भाई! ये टोकरा तो लेता जा.......”

सोहन...... “नहीं भाई, मैं तो बढ़िया बढ़िया फल छांट कर जज सहन के लिए टोकरा सजा कर लाया था, उन्होने तो लिया नहीं अब तू इसको रख.... बच्चे खा लेंगे....”

रमेश बोला, “नहीं सोहन समझा करते हैं, इतने फल यहाँ पड़े पड़े खराब हो जाएंगे, दुकान पर ले जा, वहाँ तेरे काम आएंगे........”

सोहन की फलों की दुकान थी, रमेश के ज्यादा जिद्द करने पर फलों का वापस ले आया।

मुख्य बाज़ार में सोहन की फलों की छोटी से दुकान थी..... सुबह चार बजे उठकर आजादपुर मंडी जाता वहाँ से फल लाकर दुकान सजाता, देर रात तक बेचता तब बजकर दो पैसे कमाता और घर चलता।

सोहन परेशान था, दुकान पर काम में भी मन नहीं लगता था एक दिन रमेश फिर आया, दोनों आपस में बात कर रहे थे, उस दिन की सारी घटना पर भी चर्चा हुई।

रमेश बोला.... सोहन भाई इस रविवार को मैंने घर पर एक छोटा सा कार्यक्रम रखा है, जज साहब भी आएंगे, भाई आप जरूर आ जाना।

रविवार को सोहन समय से ही रमेश के घर पहुँच गया, रमेश ने मेहमानों के स्वागत करने की ज़िम्मेदारी सोहन को ही सौंप दी। मेहमान आने शुरू हुए, थोड़ी देर बाद जज साहब भी आ गए, सोहन को वहाँ देख कर जज साहब हैरान रह गए।

जज साहब.... आप यहाँ?

सोहन – जी साहब, रमेश मेरे बड़े भाई हैं

फिर तो सोहन जज साहब की हर तरह से सेवा में लग गया।

जाते समय जज साहब कह गए.... रमेश, कल भेज देना अपने भाई को घर पर, देखूंगा, अगर इनका पक्ष ठीक हुआ तो जो भी ठीक होगा वही करूंगा।

अगले दिन सोहन फिर से जज साहब के घर पर गया, इस बार सोहन से जज साहब ने बड़े आराम से बैठकर बात चीत की........

जज साहब.... वो महिला दावा कर रही है कि आपकी माँ ने मकान उसको बेच दिया था।

सोहन.... साहब उससे कोई भी इस तरह का कागज मांग लीजिये अगर उसके पास सबूत है तो मैं अपना हक छोड़ दूंगा।

जज साहब को सोहन की बात जंच गयी और पूरी जांच व छन बीन के बाद उस महिला को घर खाली करने का आदेश दे दिया।

दुलारी ने अपने पक्ष में जो भी साक्ष्य न्यायालय को दिये वे सभी सोहन द्वारा दिये गए साक्ष्यों से मेल नहीं खाते थे, सभी साक्ष्यों के आधार पर जज साहब ने सोहन के पक्ष में निर्णय दिया और दुलारी को झूठे साक्ष्य प्रस्तुत करके धोखाधड़ी से मकान पर कब्जा करने का दोषी पाया। जज साहब ने निर्णय देते हुए दुलारी को चेतावनी देते हुए कहा, “आप दो दिनों में सोहन का घर खाली कर दें अन्यथा धोखाधड़ी के जुर्म में जेल जाने को तैयार रहे।”

दो दिन में ही दुलारी ने घर खाली करके कब्जा सोहन को सौंप दिया एवं दोनों ने लिखित ब्यान न्यायालय में देकर केस खत्म करवा दिया।

कचहरी

अपने परिवार के साथ सोहन एक फ्लैट में रह रहा था, छोटा भाई भी साथ में ही रहता था। दो कमरो वाले फ्लैट में एक कमरा तो अपना निजी और दूसरा कमरा आने जाने वालों के लिए रखा हुआ था।

कुछ दिन पूर्व एक हादसे में माँ की मृत्यु हो जाने के बाद सारी ज़िम्मेदारी सोहन की ही थी। भाई बाबू राम जवान हो गया तो उसके रिश्ते भी आने लगे, शादी करने की सोच ही रहा था कि शादी के बाद सोहन की गृहस्थी बसाने की चिंता होने लगी।

पिता के गुजर जाने के बाद माँ ने पुश्तैनी घर किराए पर दे दिया था, सोहन ने उस घर को खाली करवाने का विचार किया।

दुलारी से वैसे तो पारिवारिक रिश्ता बन गया था लेकिन माँ की मृत्यु के बाद उसने किराया देना भी बंद कर दिया था। दुलारी अपने बेटी के साथ उस घर में तब से रह रही थी, जब उसकी बेटी तुतलाकर बोलती थी, चाँदनी नाम था उसका, वह वास्तव में थी भी चाँदनी, गोरा चिट्टा रंग, तीखे नाक नक्श, देखने में परी सी लगती थी।

एक दिन सोहन समय निकालकर दुलारी के पास अपने पुश्तैनी घर में गया और बताया, "चाची, मैंने बाबू राम का रिश्ता तय कर दिया है।"

दुलारी खुश होते हुए बोली, "यह तो बहुत अच्छी खबर है, कब है शादी?"

"चाची शादी तो अभी आठ महीने बाद है बस उससे पहले आपको यह घर खाली करना पड़ेगा, हमारे छोटे से फ्लैट में तो दोनों परिवार रह नहीं पाएंगे इसलिए मैंने सोचा कि बाबू राम का परिवार इस घर में रह लेगा।" सोहन ने कहा।

सोहन कि यह बात सुनकर दुलारी हतप्रभ रह गयी लेकिन कुछ बोली नहीं।

एक महीना गुजर गया लेकिन दुलारी ने घर खाली नहीं लिया, जब सोहन दोबारा पूछने गया तो दुलारी ने साफ कह दिया कि वह घर खाली नहीं करेगी, उसने तो घर खरीद लिया है, इसके पैसे तुम्हारी माँ को दे दिये हैं। दुलारी की बात सुनकर सोहन आश्चर्य चकित रह गया क्योंकि पिता की मृत्यु के बाद माँ सोहन से पूछे बिना कोई काम नहीं करती थी अतः इतना बड़ा निर्णय माँ ने कैसे ले लिया, ऐसा तो कदापि हो नहीं सकता, दुलारी चाची झूठ बोल रही है, शायद माँ की मृत्यु का फायदा उठाना चाहती है।

सोहन ने अपने एक जानकार वकील से बात की और घर खाली करवाने के लिए कचहरी में मुकदमा डाल दिया।

दुलारी को घर खाली करने का नोटिस आया जिसका जवाब उसने यह कह कर दिया कि उसने तो मकान खरीदा है अतः वह खाली नहीं करेगी।

कचहरी की तारीख वाले दिन सोहन सब काम छोड़ कर सुबह ही पहुँच गया, वकील से बात हुई, वकील बार बार यही कहे जा रहा था कि दुलारी ने तो लिखित में दिया है कि उसने घर खरीद लिया है और पैसे सोहन की माँ को दिये थे।

सोहन ने कहा, “वकील साहब, आप जज साहब के सामने उससे कोई कागज तो मांगना, उससे बोलना अगर उसने घर खरीदा है तो माँ के अंगूठा दस्तखत वाला कोई कागज तो दिखाये।”

वकील ने कहा, “हाँ देखता हूँ, तुम जज साहब के कमरे के बाहर खड़े हो जाना, मैं भी तब तक पहुँच जाऊंगा।”

सोहन समय के पहले ही जज साहब के कमरे के बाहर खड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद जज साहब आए और आवाज लगने लगी। आवाज लगाने वाले ने पूछा, “भाई कोई केस है?”

सोहन बोला, “हा भाई, सोहन लाल, दुलारी देवी वाला केस मेरा ही है।” तो यह बताओ आवाज कैसी लगवानी है, सोहन बोला, “क्या मतलब?” दरबान ने कहा, “देखो, दस रुपए दोगे तो आवाज तुम्हें सुनाई देगी और नहीं दोगे तो आवाज तो लगेगी पर तुम्हें सुनाई नहीं देगी।”

सोहन ने दस रुपए निकाल कर उसको दरवाजे से हटकर आने को कहा तो दरबान बोला, “लाओ न, डर क्यों रहे हो।” “अरे सामने जज साहब बैठे हैं” सोहन बोला।

दरबान बोला, “लाओ, कुछ नहीं होता।”

सोहन ने पैसे दे दिये और सोचने लगा ‘देने वाला डर रहा है पर लेने वाला निडर है’

सोहन की मनोदशा समझ कर साथ खड़ा आदमी बोला, “भाई, इसी को तो कचहरी कहते हैं, यहाँ की तो ईंट भी पैसा मांगती है। अभी तो वो जो टाइप वाला जज साहब के बराबर में बैठा है वह भी पचास रुपए लेगा।”

तब तक वकील साहब शर्माजी भी आ गए थे और आवाज लगने पर पेश हो गए।

दुलारी का वकील ज़ोर डालकर बार बार कह रहा था, “जज साहब यह घर दुलारी ने इनकी माँ से खरीदा है अतः इस मुकदमे को यहीं खारिज कर दिया जाए।”

सोहन ने अपने वकील शर्माजी को बार बार इशारा किया कि आप कोइ कागज तो मांग लो लेकिन वकील चुप रहा।

जज साहब के पूछने पर भी वकील कुछ नहीं बोला और न ही सोहन को बोलने दिया।

जज साहब ने एक महीने के बाद की तारीख दे दी। सोहन उदास मन से वापस आ रहा था कि उसे याद आया कि उसका टिफिन तो वकील साहब के कमरे में ही रह गया है और वह वापस अपना टिफिन लेने के लिए मुड़ गया।

सोहन जैसे ही वकील के कमरे में घुसा उसने देखा दुलारी और उसकी लड़की चाँदनी वहीं बैठी है, वकील शर्मा से हंस हंस कर बातें कर रही हैं। चाँदनी तो वकील शर्मा से सट कर ही बैठी थी।

जैसे ही अचानक सोहन कमरे में घुसा तो सन्नाटा छा गया लेकिन सोहन सब समझ गया और अपना टिफिन लेकर चुपचाप कमरे से बाहर आ गया।

एक दिन सोहन ने इस बात का जिक्र अपने मित्र रमेश से किया, पूरी बात सुनने के बाद रमेश ने सोहन को जज अशोक कुमार से उनके घर पर मिलने को कहा।

सोहन जब जज साहब के घर गया, “सर........ मुझे रमेश ने भेजा है”

“हाँ तो बोलो किसलिए भेजा है और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे घर पर आने की”

जज धर्मेन्द्र का चेहरा गुस्से से तमतमा गया और सोहन पर बरसने लगे, “चलो निकलो यहाँ से, इस टोकरे को उठाओ नहीं तो मैं पुलिस बुलाकर अभी तुम्हें पुलिस के हवाले कर देता हूँ।”

सोहन हाथ जोड़े खड़ा रहा और गिड़गिड़ा रहा था “सर.... सर.... आप पुलिस मत बुलाओ मैं चला जाता हूँ लेकिन आप ये फल तो रख लें...... बच्चों के लिए लाया था।”

“इतना बड़ा टोकरा? किसने बोला तुम्हें लाने को.... उठाओ इसको यहाँ से, नहीं तो अभी तुम्हें बंद करवा दूंगा.... ” जज साहब ने बड़े ही गुस्से से सोहन को डांटा......

सोहन ने बात बिगड़ती देख चुप चाप फलों का टोकरा उठाया और सीधा रमेश के घर पहुँच गया........

भाई, आज तो तूने मुझे अंदर करवाने का काम कर दिया था, जज साहब तो बहुत ही कडक हैं, अगर में थोड़ी देर और ठहरता तो उन्होने पुलिस बुला लेनी थी........

“चल कोई नहीं तू जा अब दुकान देख, मैं सोचता हूँ कि क्या करना है,” रमेश ने कहा।

सोहन फलों का टोकरा रमेश के घर पर छोड़ कर चलने लगा तो रमेश ने टोका.... “भाई! ये टोकरा तो लेता जा.......”

सोहन...... “नहीं भाई, मैं तो बढ़िया बढ़िया फल छांट कर जज सहन के लिए टोकरा सजा कर लाया था, उन्होने तो लिया नहीं अब तू इसको रख.... बच्चे खा लेंगे....”

रमेश बोला, “नहीं सोहन समझा करते हैं, इतने फल यहाँ पड़े पड़े खराब हो जाएंगे, दुकान पर ले जा, वहाँ तेरे काम आएंगे........”

सोहन की फलों की दुकान थी, रमेश के ज्यादा जिद्द करने पर फलों का वापस ले आया।

मुख्य बाज़ार में सोहन की फलों की छोटी से दुकान थी..... सुबह चार बजे उठकर आजादपुर मंडी जाता वहाँ से फल लाकर दुकान सजाता, देर रात तक बेचता तब बजकर दो पैसे कमाता और घर चलता।

सोहन परेशान था, दुकान पर काम में भी मन नहीं लगता था एक दिन रमेश फिर आया, दोनों आपस में बात कर रहे थे, उस दिन की सारी घटना पर भी चर्चा हुई।

रमेश बोला.... सोहन भाई इस रविवार को मैंने घर पर एक छोटा सा कार्यक्रम रखा है, जज साहब भी आएंगे, भाई आप जरूर आ जाना।

रविवार को सोहन समय से ही रमेश के घर पहुँच गया, रमेश ने मेहमानों के स्वागत करने की ज़िम्मेदारी सोहन को ही सौंप दी। मेहमान आने शुरू हुए, थोड़ी देर बाद जज साहब भी आ गए, सोहन को वहाँ देख कर जज साहब हैरान रह गए।

जज साहब.... आप यहाँ?

सोहन – जी साहब, रमेश मेरे बड़े भाई हैं

फिर तो सोहन जज साहब की हर तरह से सेवा में लग गया।

जाते समय जज साहब कह गए.... रमेश, कल भेज देना अपने भाई को घर पर, देखूंगा, अगर इनका पक्ष ठीक हुआ तो जो भी ठीक होगा वही करूंगा।

अगले दिन सोहन फिर से जज साहब के घर पर गया, इस बार सोहन से जज साहब ने बड़े आराम से बैठकर बात चीत की........

जज साहब.... वो महिला दावा कर रही है कि आपकी माँ ने मकान उसको बेच दिया था।

सोहन.... साहब उससे कोई भी इस तरह का कागज मांग लीजिये अगर उसके पास सबूत है तो मैं अपना हक छोड़ दूंगा।

जज साहब को सोहन की बात जंच गयी और पूरी जांच व छन बीन के बाद उस महिला को घर खाली करने का आदेश दे दिया।

दुलारी ने अपने पक्ष में जो भी साक्ष्य न्यायालय को दिये वे सभी सोहन द्वारा दिये गए साक्ष्यों से मेल नहीं खाते थे, सभी साक्ष्यों के आधार पर जज साहब ने सोहन के पक्ष में निर्णय दिया और दुलारी को झूठे साक्ष्य प्रस्तुत करके धोखाधड़ी से मकान पर कब्जा करने का दोषी पाया। जज साहब ने निर्णय देते हुए दुलारी को चेतावनी देते हुए कहा, “आप दो दिनों में सोहन का घर खाली कर दें अन्यथा धोखाधड़ी के जुर्म में जेल जाने को तैयार रहे।”

दो दिन में ही दुलारी ने घर खाली करके कब्जा सोहन को सौंप दिया एवं दोनों ने लिखित ब्यान न्यायालय में देकर केस खत्म करवा दिया।

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