वापसी की प्रतीक्षा Dr pradeep Upadhyay द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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वापसी की प्रतीक्षा

आज उसे अपने जिला प्रमुख होने पर भी किसी तरह के गौरव का अनुभव नहीं हो रहा था बल्कि बहुत ही शर्मसार सा महसूस कर रही थी।वह बहुत ही असमंजस में होकर अन्तर्द्वन्द्व में फँसी हुई थी।उसे कथनी और करनी का अन्तर भी यही लगने लगा कि व्यक्ति बातें भले ही बड़ी-बड़ी कर लें,समाज के रस्मों-रिवाज, रूढियों-परम्पराओं का विरोध कर उनकी कितनी ही आलोचना कर लें परन्तु जब स्वयं उन बन्धनों को तोड़ने की बात आती है तो वह साहस नहीं जुटा पाता है,स्वयं को बहुत ही बेबस और असहाय महसूस करता है और समाज के डर से घुटने टेक देता है।

वह कल ही तो नारी हित चिन्तक समिति की अध्यक्षता करके आई थी, उसके भाषण को बहुत सराहा गया था, नारी चेतना के उद्घोष पर बड़ी देर तक तालियाँ बजती रही थीं।उसने अपने सम्बोधन में कहा भी था कि- नारी असहाय नहीं है… उसे पुरुषों के अत्याचार चुपचाप सहन नहीं करना चाहिए… पुरूष के बिना भी वह अपना अस्तित्व बनाए रख सकती है.पुरूष की नजर में भले ही वह भोग्या हो लेकिन नारी केवल भोग की वस्तु नहीं है… नारी के बिना पुरूष स्वयं अधूरा है,पुरूष नारी पर ही पूर्णतया निर्भर है….आज की नारी को चारदीवारी में कैद नहीं रहना चाहिए बल्कि अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिए आगे आना होगा।

अपने इस सम्बोधन को वह मन ही मन बार-बार दोहरा रही थी और इसे स्मरण करते हुए सोच रही थी कि क्या वास्तव में ऐसा होता है या ऐसा हो सकता है और क्या वह स्वयं भी ऐसा कर रही है!

सोचते-सोचते वह अपने अतीत में खो गई …..उसे हर एक वह बात स्मरण आ रही थी.. परिवार में वह सबसे बड़ी और अकेली लड़की थी ,दो भाई थे परन्तु भाईयों की तुलना में उसे अपने साथ होने वाला भेदभाव हमेशा खलता रहा और इसी का परिणाम यह हुआ कि कॉलेज पहुँचते-पहुँचते एक तरह से उसने बगावत ही कर दी थी...वह पुरुषों से समानता बल्कि यूँ कहें कि आगे रहने की जिद पकड़ बैठी थी।पढ़ाई में टॉपर तो थी ही,उसने अखिल भारतीय सेवाओं में भाग्य आजमाया और मेरिट में अपनी जगह बनाई।इसमें कई युवकों को पीछे छोड़ा था, अतः स्वयं का गौरवान्वित होना स्वाभाविक ही था।परिवार का मान तो बढ़ा ही,जाति-समाज के लोगों ने उसका सार्वजनिक अभिनन्दन किया,मोहल्ले में, नगर में भी कई स्थानों पर उसने सम्मान पाया।वैसे भी वह खेलों के साथ ही छात्र राजनीति में भी आगे रही थी। परिवार के लोगों के विरोध के बावजूद वह अपना वजूद पुरूषों से अधिक बनाए रखने के लिए कृत संकल्प थी और इसी का परिणाम था कि उसने खेल और छात्र जीवन में सफलता के परचम गाड़े तथा आगे चलकर अखिल भारतीय सेवा में स्थान पाया।परीवीक्षा अवधि के उपरांत कुछ समय जबलपुर जैसे बड़े संभागीय मुख्यालय के जिले में अतिरिक्त कलेक्टर रहने के बाद अपनी कार्यकुशलता और क्षमता साबित करने पर उसे शीघ्र ही जिले का कलेक्टर बना दिया गया जबकि अन्य साथी सचिवालय और जिला पंचायतों में पदस्थ किये गए।जिला प्रमुख रहते हुए उसने नारी हित के कई कार्य किये, दहेज के मामलों में कठोर कार्यवाही के निर्देश उसने दे ही रखे थे, परित्यक्ता तथा विधवा महिलाओं को विधिक तथा अन्य आवश्यक सहायता उपलब्ध करवाने में वह हमेशा अग्रणी रही।स्त्री शिक्षा और जनजागृति के केंद्र खोलने में मदद भी कर रही थी।पुरूषों द्वारा नारी पर अत्याचार करने की घटनाओं को वह गंभीरता से लेती और उनके विरुद्ध कठोर कार्यवाही करवाती और यह सब करवाने में उसे सुकून मिलता था।

लेकिन आज की घटना ने उसे सोचने पर विवश कर दिया था।वह सोच रही थी कि उसने अब तक जो भी किया और पाया या नारी चेतना जागृत करने के लिए वह जो भी कर रही है,क्या वह उसका नेतृत्व करने की सही तौर पर हकदार है! आज ही तो उसके पति ने उसकी पिटाई कर दी थी, वह भी उसे ऐसी जगह से डपटते हुए बुलाकर लाया कि वह शर्म से पानी-पानी हो गई थी।क्या सोचा होगा थाने पर बैठे पुलिस अधीक्षक, उप-अधीक्षक, अनुविभागीय दण्डाधिकारी और अन्य मातहतों ने!उन्हीं के सामने ही तो उसके पति ने उसे डपटते हुए बंगले पर चलने को कहा था।उसका पति भी पास ही के जिले में सहायक कलेक्टर के पद पर परीवीक्षाधीन है।इसके पूर्व वह अखिल भारतीय पुलिस सेवा में था परन्तु उसने पुनः प्रयास कर प्रशासनिक सेवा में आना ही बेहतर समझा क्योंकि प्रशासनिक सेवा वालों में पुलिस सेवा से उच्चता का आत्माभिमान जो रहता है। संभवतया उसके पति के मन में यह विचार विवाहोपरांत ही आया हो क्योंकि वह अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा में थी और उसका पति पुलिस सेवा में रहकर किसी तरह की हीन ग्रन्थि से ग्रसित नहीं रहना चाह रहा हो।

विवाह के बाद से उसके पति के मन में पत्नी के चरित्र को लेकर संशय की स्थिति निर्मित हो गई थी।कामकाजी महिलाओं को तो कई तरह के पुरुषों के सम्पर्क में आना ही पड़ता है और फिर प्रशासनिक सेवा में जो महिला हो,उसे तो हर क्षेत्र से सम्बंधित व्यक्ति से सम्पर्क रखना पड़ता है, क्या राजनेता, क्या पुलिस अधिकारी या अन्य उच्चाधिकारी।इसी को लेकर उसके पति के मन में शक का भूत सवार हो गया था और फिर शक के मर्ज का कोई इलाज भी तो नहीं।उसका पति हमेशा दो-चार दिनों में अपने सन्देह की पुष्टि करने चला आता था और जब भी वह किसी अधिकारी अथवा जनप्रतिनिधि के साथ होती तो उसके पति के सन्देह का कीड़ा बुलबुलाने लगता।नित लड़ाई-झगड़ा आम बात हो गई थी और कभी-कभी वाद-विवाद के बीच वह हाथ भी उठाने लगा था।बंगले पर काम करने वाले बावर्ची, माली,प्यून, ड्राइवर तक यह बात जान गये थे।उसमें आँख मिलाने का साहस तक नहीं रह पाता था।उसे खुद पर आश्चर्य हो रहा था कि जिस पुरूष प्रधान समाज का वह विरोध करती आई,उसी समाज में अपने पति के मामले में उसने क्यूंकर अभी तक समझौतावादी रूख अपना रखा था।

आज की घटना के बाद से तो वह अपने आपे से बाहर हो गई थी।उसका पति तो पिटाई करने के बाद वापस चला गया था… परन्तु वह अभी तक इस सदमें से उबर नहीं पाई थी।हुआ यूँ था कि डाक बंगले पर जिले के प्रभारी मंत्री आये थे, शहर की कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी हुई थी… मंत्री जी को जानकारी देने के उपरांत तथा उन्हें विदा कर वापस पुलिस कन्ट्रोल रूम आईं और पुलिस अधीक्षक के साथ अन्य अधिकारियों की मीटिंग ले रही थी,उसी दरम्यान तो वह अचानक आ गया था, उसने बंगले से ही फोन लगवाया तब उसे पुलिस कन्ट्रोल रूम से बताया गया कि मेडम डाक बंगले पर है, डाक बंगले पर जब फोन लगवाया तब तक वह वहाँ से कन्ट्रोल रूम के लिए निकल चुकी थी, उसे स्टॉफ ने बता तो दिया था और इधर मीटिंग भी प्रारम्भ हो चुकी थी।उसने सोचा मीटिंग जल्दी समाप्त कर बंगले पर पहुँच ही जाएगी और इसीलिए उसने कहलवा भी दिया था कि वह पुलिस अधीक्षक के साथ मीटिंग में व्यस्त है, आधे घंटे में बंगले पर पहुँच जाएगी लेकिन इतने पर ही उसने आपा खो दिया, शायद ज्यादा पीते रहने के कारण वह अपना मानसिक संतुलन खोने लगा था।अतः जो सूचना भेजी,उसी पर नाराज होकर दनदनाते हुए वह पुलिस कन्ट्रोल रूम पर आ धमका।बिना इस बात की परवाह किए कि आखिर वह भी एक आय ए एस अधिकारी है।वहीं उसने अपशब्दों का प्रयोग करते हुए बंगले पर साथ चलने को कहा।स्वयं को बहुत अपमानित महसूस किया, इसके बावजूद वह पुलिस अधीक्षक को मीटिंग पूरी करने का कहकर उसके साथ निकल गई थी।बंगले पर उसे बहुत बुरा-भला कहा और पुलिस अधीक्षक से अवैध सम्बन्ध होने के आक्षेप भी लगाये।स्वाभाविक ही था कि कहासुनी तो होना ही थी और परिणिती मारपीट में बदल गई… मारपीट करने के बाद वह नाराजगी जाहिर करते हुए चला गया लेकिन उसके मन में आक्रोश व्याप्त हो गया था।

पूर्व में भी और आज इतना सब कुछ हो जाने के समय तक तो वह विरोध का साहस नहीं कर पाई थी परन्तु उसे नारी हित चिन्तक समिति के कार्यक्रम में दिया गया अपना भाषण स्मृति पटल पर घूम गया था।वह निश्चयात्मक रूप से दृढ़प्रतिज्ञ हो चुकी थी और उसने निश्चय कर लिया था कि अब वह किसी भी प्रकार से पति के अत्याचार नहीं सहेगी,भले ही सम्बन्ध विच्छेद की नौबत आ जाए या अकेले ही रहना पड़ जाए किन्तु अपने स्वाभिमान को नहीं मरने देगी।यह सब विचार करते हुए उसकी मुठ्ठियाँ कसी हुई थीं और उसे प्रतीक्षा थी तो अपने पति की वापसी की।