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पार्क की वो बेंच

अब मैं 70 साल का बूढ़ा हूँ, पर आज भी सुबह या शाम मैं सैर को जाता हूँ तो उस सीमेंट की बेंच पर थोड़ी देर जरूर बैठता हूँ .मैं इस शहर में 35 साल बाद लौटा था. रिटायर होकर मैं वापस अपने घर लौट आया था , उस बेंच से मुझे खास लगाव था ,क्योकि उस बेंच से मेरी जवानी की हंसीन यादें जुड़ी हुई थीं . ऐसा लगता है अभी कल की ही बात है, पर इन बातों को गुजरे 45 साल से ज्यादा हो गए. पर वो पार्क आज भी वैसा ही है . उसके पेड़,नर्म घास का मैदान,फूलों की क्यारियां, कुछ बड़े बरगद और पीपल के पेड़,और वो बेंच ,जो आज भी मेरे इश्क़ की मूक गवाह हैं. रायपुर की मुनिसिपलिटी ने इसे अब तक सलामत रखा था . यह शहर के बीच एक मात्र बड़ा पार्क था .

जब मैं पढ़ कर नॉकरी के लिए इसी शहर में यहां वहां भटक रहा था, तब निराशा और हताशा से लड़ता भिड़ता मैं एकांत में बैठ कर सोचने के लिए इसी बेंच पर आता था, तब एक और थी ,जो वहां अपनी कुछ कापियां लेकर मेरे बाजू में बैठा करती . उसका नाम था आभा. आभा सक्सेना घुंगराले घने बालो वाली एक सुंदर प्यारी सी लड़की,उसके हंसने पर उसके गाल में दो गड्ढे हो जाया करते थे ,जिसे डिम्पल कहा जाता है . हम दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया था. हम 24 घण्टे साथ रहने के सपने देखा करते, पर हमें मिलते थे सिर्फ 2 -3 घण्टे पार्क की उस बेंच पर . कभी मैं वहां न पहुँच पाता तो उसे मेरा इंतजार रहता और कभी वो नही आती तो मेरी बेचेनी बढ़ जाती .
संघर्ष का दौर जब चल रहा होता है, तब उस थके हारे मन का बड़ा विश्राम होती है प्रेमिका . उसके पास बैठने से ही मन को एक अलग तरह का सुकून मिलता था. घण्टो बातों में मशगूल हमारा वक्त बीतता था . मैंने सोच रखा था कि रोजगार मिलते ही मैं उसके परिवार वालो से मिलूंगा. मैं उससे शादी करने को तैयार था . मुझे बस वो चाहिए और कोई नही, वो मेरी महबूबा थी ,उसके लिए मैं सब कुछ कुर्बान करने को तैयार था . पर बेरोजगारी और मुफलिसी में ये मुमकिन नही था. दुनिया दिल नही दौलत देखती है. दौलत से सपने साकार होते हैं, खयालो से नही .पर उसके साथ प्यार के वो लम्हे मैं आज तक नही भुला. कभी हम केवल बातें करते कभी एक दूसरे का हाथ थामे एक दूसरे की आंखों में झांकते,उनकी गहराइयों में डूबते ,कभी शाम के धुंधलके में जब वो जगह वीरान हो जाती, तब देर तक एक दूसरे की बाहों में लिपटे चुम्बनों का अंतहीन दौर चलता ,,मुझे याद है उसके गले में पड़ी ताबीज और वो काला धागा ,जिसे मैं कभी अपनी ओर से पहनाया जाने वाला मंगलसूत्र समझता . कितने हसीन थे वो पल ..
एक दूसरे की यादों में खोए रहना मानो संसार है ही नही बस एक प्रेम है ,जो घट रहा है, देह के माध्यम से,अंगों के जरिये,,, इन रूमानी खयालो के बीच मुझे महसूस होता कि सच तो सच है . एक तरफ प्यार का सच है तो जिंदा रहने के लिए पैर जमाने का संघर्ष भी सच है .

इधर उसके परिवार वाले उसकी शादी के लिए यहां वहाँ रिश्ते तलाश रहे थे . वो रोज मुझे घर का हाल बताती, मैं उसके परिवार वालो से बात करने का साहस नही जुटा पाता, क्योकि मेरी कोई इन्कम नही थी. मैं बरोजगार था, नॉकरी की तलाश में था . केवल दिल चीर कर उसके प्रति प्यार का इज़हार करने से बात बनने वाली नही थी. नॉकरी और प्रेमिका दोनो मुझे चाहिए थी, और वक्त था कि दोनों को मुझसे दूर किये जा रहा था . मुट्ठी में बंद रेत की तरह गुजरते वक्त को कौन रोक सका है .
मैं नॉकरी ढूंढता रहा और उसके घर वाले उसके लिए लड़का. और एक दिन उसकी मर्जी की परवाह किये बिना उसकी शादी कर दी गयी .
उसके एक दिन पहले भी वो आयी हम मिले, पर आज हम दोनों के बीच हारे हुए खिलाड़ी की तरह गहरी निराशा थी. उसने घर छोड़कर भागने की सलाह दी पर मैं किसी फिल्मी हीरो की तरह यह नही कर सकता था,रातो रात किस्मत बदलने का फार्मूला फिल्मो में ही सम्भव है . कितने दिन, महीने ,साल हमने इस बेंच पर अपनी खुशनुमा जिंदगी के सपने देखे थे . आजउससे मेरी वो अंतिम मुलाकात थी .

वो चली गई . ब्याह दी गयी किसी के साथ,,, जहाँ उसकी मर्जी के कोई मायने नही थे ,,उसे अब उसके साथ रहना था, जो उसे कभी पसंद नही था.
इधर मेरा संघर्ष रंग लाया और मेरी नॉकरी लग गयी. मेरी दूसरे शहर में पोस्टिंग हो गयी . मेरी भी शादी हो गयी. मैं अपनी नॉकरी और अपने परिवार में मस्त हो गया. वो अपनी दुनिया मे मशगूल हो गई.
इस दौरान हमारे बीच कोई बातचीत नही हुई.किन्तु
बदलते जमाने को हम सब महसूस कर रहे थे ,समय के साथ साथ नए नए अविष्कारों ने हमारी जिंदगी बदल दी . पहले कोरे कागज पर खत लिखकर कुछ कहने के अलावा कोई दूसरा उपाय नही था. आज सबकी हथेलियों में सेलफोन है ,उंगलियों के इशारे से दुनिया पल भर में पास आ जाती है, पर इसके आने से दुनिया तो हथेली में आ गयी, किन्तु पड़ोस कोसो दूर हो गया . इस आभासी दुनिया मे अंतरंगता तो बहुत बड़ी, पर सब दूर से सुहावने लगते है, पास आने पर फासले ही मिलते हैं.
जब पहला पहला मोबाईल फोन मेरे पास आया ,तो मैंने सबसे पहले उसके नम्बर की तलाश की और आखिरकार मुझे उसका नम्बर मिल ही गया . पहली घण्टी में उसके फोन की रिंगटोन से फ़िल्म अवतार का रोमांटिक गीत, जो राजेश खन्ना और सबाना आज़मी पर फिल्माया गया था,,,दिन महीने साल गुजरते जाएंगे,,,हम प्यार में जीते प्यार में मरते जाएंगे,,, देखेंगे देख लेना,,,बजा. फिर उसकी वही मधुर आवाज आई " हेलो" मैंने कहा "हैलो जी,मेडम आप क्या कर रही हैं,,,,?" उसने मेरी आवाज पहचान ली . ये शायद तीस सालों के बाद मुमकिन हो रहा था . उसके आश्चर्य का ठिकाना नही रहा . और हम अपने उस गुजरे वक्त को याद करते रहे . उसने बताया कि इस बीच उसके पति का इंतकाल हो चुका था, एक बेटी थी, जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी .वो और उसकी बेटी यही उनकी दुनिया थी .

उसे मेरे बारे में ज्यादा दिलचस्पी थी. मैंने उसे बताया कि मेरा एक बेटा है ,जो मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है, ओर मैं अब रिटायर होने ही वाला हूँ .पत्नी मेरी बहुत अच्छी थी. उसके साथ मेरा कभी झगड़ा नही हुआ . कभी कभी मन मुटाव जरूर हुआ,पर मैं अपनी पत्नी की राह में कभी रुकावट नही बना . मैने उसे हमेशा अपने पसंद के काम करने की छूट दी. उसे समाज के दिन हीन की भलाई के काम करना बेहद पसंद है, सो उसका ज्यादातर समय उसी में बीतता है .

दुनियादारी की बहुत से बातों के बाद मैंने उसके प्यार की बातों का याद किया . मुझे लगा कि वो आग आज भी वैसी ही है . उसके भी दिल में और मेरे भी दिल में आज भी आग है ,,फूलों के सीने में ठंडी ठंडी आग,,, .
अपने जीवन साथी के साथ इतने लंबे समय तक रहने के बाद भी उससे प्यार का वो अहसास मेरे भीतर आज भी वैसा ही था .
मेरे बहुत से साथियों ने प्रेम विवाह किया था .आज उनकी गृहस्थी बसी हुई है ,उन्हें कैसा लगता है ये तो नही मालूम, पर जो जीवन मे नही मिलता उसकी चाहत बनी ही रहती है, उसकी तडफ़ ताजिंदगी बनी रहती है ,जैसा कि हमारी बातचीत से हमे महसूस हुआ.

हमारी अक्सर बातचीत हो जाया करती, पर हमारा मिलन सम्भव नही था. हम आज भी चोरी छिपे मिल सकते थे, खुले तौर पर नही,,, क्योकि लोग क्या कहेंगे ओर जमाना क्या कहेगा का डर तो था ही, ये अपने परिवार से की गई नाइंसाफी भी होती .पर प्यार तो प्यार है वो किसकी परवाह करता है भला,,,

मैं जब अपने शहर आ गया तो उसने बताया कि वो भी कुछ दिनों के लिए अपने भाई के यहां आ रही है . मैंने उससे कहा किसी तरह एक दिन उस पार्क में उस जगह पर जरूर आना . उसने हाँ कर दी मेरा दिल उसी तरह धड़क उठा.
मैं एक एक दिन इंतजार करता रहा और आखिरकार वो दिन आ गया जब उससे मेरी मुलाकात होनी थी .

वो अकेली आयी थी उसकी भतीजी ने उसे वहां छोड़ दिया था मैं अपनी छड़ी लेकर पहुँच गया . हम दोनो अब एक दूसरे के सामने थे . वो वैसी ही थी . वक्त ने उसे थोड़ा थुलथुल बना दिया था पर चेहरा वैसा ही,, दो गढ्ढो वाले गाल ,होठ के किनारे एक छोटा सा तिल . मैं उसे देखता रहा फिर हम दोनो उस बेंच पर बैठ गए . बहुत सारी बातें हुईं . मन की भड़ास निकली, उस वक्त के हालात को हमने बहुत कोसा .

उसने बताया कि पति के साथ उसके सम्बंध बहुत अच्छे नही रहे , पर उसे बुरा भी नही कहा जा सकता . उसने अपनी बेटी की तस्वीर दिखाई ,उसकी नाक बहुत कुछ मुझसे मिलती थी ऐसा क्यों? जबकि हमारे बीच कभी उस हद तक शारीरिक सबंध नही रहा . कहते हैं कि लड़की अपनी गर्भवस्था में जिस पुरूष को ख्याल में रखती है उसकी सन्तान में उसका कुछ अंश आ ही जाता है .,

वो अपने पति से हमबिस्तर हो कर भी मेरी चाहत को बरसो भुला नही पाई और मैं भी हर किसी घटना पर एक बार उसे मन ही मन जरूर याद करता रहा.

हम दोनो भावुक हो गए .मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे चूम लिया. उसने भी अपना सिर मेरे कंधे पर रख दिया . हम कुछ देर तक अपनी दुनिया मे खो गए ,तभी एक लड़के की आवाज आई, "" क्या बात है अंकल,,, आंटी के साथ इस पोज में एक सेल्फी तो बनती है ''''
हम दोनों झट से अलग हो गए ,समय बीत गया. हम जुदा हो गए. इस जुदाई के साथ ये दर्द भी लेकर की हमारी जिंदगी नदी के दो किनारो की तरह थी,,पास पास रह कर भी मेल की कोई गुंजाईश नही,,,


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