रीति रिवाज को अनुकूल बनाएं r k lal द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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रीति रिवाज को अनुकूल बनाएं

रीति रिवाज को अनुकूल बनाएं

आर 0 के 0 लाल

तुम यहां सोई हुई हो। तुम्हें पता भी नहीं कि मेहमान चले गए हैं। तुम बड़ी हो गई हो इतना भी नहीं होता कि मां के कुछ काम ही करा लो। मेहमान की खातिरदारी से थकी शबनम अपनी बड़ी बेटी पर चिल्लाई। बेटी बोली- “मैं नहीं काम कराने वाली। मेहमान आए थे तो उन्होंने जाते समय छोटे भाई को पैसा दिया था, मुझे तो नहीं दिया। वह तुम लोग को बहुत प्यारा है तो उसी से काम करा लो। फिर बोली क्या जमाना आ गया है! जब दो बच्चे हैं तो दोनों को पैसा देना चाहिए था ना।”

शबनम ने कहा - “ऐसा नहीं है! जब तुम छोटी थी तब तुमको भी मिलता था पैसा। ज्यादातर लोग छोटे बच्चे को पैसा देते हैं। फिर बेटी बोली - मिलता था तो मेरे पैसे कहां गए? मुझे याद है जब मेरे मामा या मौसी आतीं, सभी जाते वक्त खूब पैसे देते। जैसे ही मेहमान जाते तुम पैसा मुझसे मांग लेती थी। अगर मैं उसे गुल्लक में डाल देती तो वह कुछ दिनों तक तो उसमे खनकता पर किसी न किसी समान खरीदने के वास्ते तुम मेरे गुल्लक को तोड़ देती थी। फिर बोली - क्या मां ! तुम तो पैसा लूटने में माहिर हो। पापा की जेब भी साफ करती हो और हम सबका भी। भाई तो मेरा ही दुश्मन हो गया है क्योंकि मेरा सारा हक मार देता है। मैं उससे कोई संबंध नहीं रखना चाहती।”

वह जिद करने लगी कि उसका सारा हिसाब करके पूरा पैसा उसे दे दिया जाए। वह खुद अपने लिए खर्च करेगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह न तो कोई काम करेगी और न कुछ खाएगी।

शबनम तो उसे ताकती ही रह गई। उसने अपनी औलाद की परवरिश के लिए क्या कुछ नहीं किया था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी बेटी इस तरह का व्यवहार क्यों कर रही है। उसे लगा कुछ तो गड़बड़ जरूर है। उसका पता करना चाहिए और ठीक करना चाहिए। शबनम ने अपनी बेटी को अपने गोदी में बैठा लिया और उसे प्यार करते हुए कहा कि बेटा ठीक है मैं आगे से ध्यान रखूंगी । शाम को शबनम ने अपने पति को बताया कि उनकी बेटी के विचार कितने बदल गए हैं। डर है कि कहीं वह आगे चलकर के जिद्दी न हो जाए। दोनो भाई बहन के बीच स्थाई मनमुटाव न हो जाए।

शबनम ने बताया कि उसकी सहेली के भी दो बच्चे हैं। उसने दोनों को अलग-अलग गुल्लक दिला दिया है। जब भी कोई गिफ्ट के रूप में पैसा देता तो उसे दो हिस्सों में बांट दिया जाता है जिसे बच्चे अपने अपने गुल्लक में डाल लेते हैं। मगर उनके बच्चे भी संतुष्ट नहीं हैं। दोनों अपने गुल्लक को ज्यादा पैसे से भरना चाहते हैं। उनके दिल में एक प्रतियोगिता की भावना जरूर आ गई है परंतु मात्र गुल्लक देने के अलावा उन्हें कोई अन्य निर्देश नहीं दिए गए थे परिणाम स्वरूप जब भी कोई मेहमान घर आते तो दोनों गुल्लक लेकर उनके सामने खड़े हो जाते हैं। घर वालों को बड़ी बेइज्जती महसूस होती है। न चाहते हुए भी लोगों को उन बच्चों के गुल्लक में कुछ डालना पड़ता है। बच्चे हमेशा लालच में रहते हैं। शायद यहीं से भाई भाई या भाई बहन में अलगाव की शुरुआत होती है। धीरे धीरे खेलने के सामान, खाने पीने की की चीजें और घर के सामान बटने शुरू हो जाते हैं।

एक बार उसकी दोस्त घर आई और बड़े लड़के को पचास रुपए तथा छोटी लड़की को सौ रुपए दिए। उनके जाने के बाद तो घर में तूफान ही मच गया। बराबर पैसे लेने के लिए दोनों बच्चे एक दूसरे से भिड़ गए और कॉपी किताब तक फाड़ डाली। दोनों भाई बहन में लड़ाई न हो इसलिए उन दोनों का अलग अलग कमरा दिया गया था। वे दोनों अपने सामान अच्छी तरह से रखते मगर अपने सामान को शेयर नहीं करते। देखने में तो सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा था मगर आए दिन दोनों में मारपीट होती। कोई किसी का सामान छू नहीं सकता था। उस दिन तो हद ही हो गई जब मेरी सहेली ने देखा कि दोनों लहूलुहान रो रहे थे। पूछने पर पता चला की लड़ाई इस बात पर शुरू हुई कि मम्मी किसकी है। बेटा कह रहा था कि मम्मी उसकी है और वही उसके साथ रहेगा और उससे ही खाना खाएगा। साथ ही अपनी बहन से कहता - पापा तुम्हारे हैं तो तुम उन्हीं से ही सारा काम कराओ, अपने बाल ठीक कराओ और उनके साथ ही स्कूल जाओ। बात इतनी बढ़ गई कि उनमें मार- पीट हो गई । सहेली अपने नसीब को रोने लगी कि किस तरह के संस्कार बच्चों में पड़ रहे हैं।

ज्ञान के दो लड़के सत्यम और शिवम हैं। एक दिन उन्होंने अपने स्टडी रूम से ही आवाज लगाई पापा हमें आपसे बात करनी है इसलिए आप यहीं आ जाइए। ज्ञान उनके कमरे में गया तो उन्होंने कहा कल मम्मी की बर्थडे है। हम चाहते हैं कि उनको एक अच्छी सी ट्रीट दिया जाए। हम यह सब अपने पैसे से करना चाहते हैं। इसमें आपकी मदद की जरूरत है। ज्ञान को याद आया कि जब भी कोई मेहमान घर आता था और इन दोनों बच्चों उपहार स्वरूप पैसे देता था तो वे तुरंत लाकर मुझे दे देते थे। ज्ञान ने उनसे कह रखा है कि इन पैसों को तुम अपनी मर्जी मुताबिक खर्च कर सकते हो, अगर कुछ अतिरिक्त पैसे की जरूरत होगी तो मैं मिला दूंगा। ज्ञान के निर्देशन में बच्चों ने आपने जमा किए पैसे से बहुत अच्छा बर्थडे प्रोग्राम किया और अपनी मम्मी को सरप्राइज गिफ्ट भी दिया। सभी लोग बहुत खुश हुए, पार्टी एंजॉय की और कहा कि ऐसे मौके देखने लायक होते हैं जब बच्चा अपनी मां या पिता के जन्मदिन पर अपनी बचत से गिफ्ट खरीद कर देता है। इस तरह बच्चे अपने को गौरवान्वित समझते हैं तथा पैसे का महत्व भी समझ जाते हैं।

उस पार्टी में मौजूद अलका ने बताया- “मेरे रिश्तेदारों में भी बच्चों को रुपए देने की प्रथा है। जब हम किसी के घर जाते हैं तो वहां जितने बच्चे होते हैं उस हिसाब से पैसे लेकर जाते हैं। अगर पास में पर्याप्त पैसा नहीं होता तो जाने का प्रोग्राम ही स्थगित कर देते हैं।”

वहां उपस्थित एक बच्चा इन लोगों की बात सुन रहा था उसने कहा - “आंटी जानती हैं! हम भाई बहन जब अपने किसी रिश्तेदार के यहां जाते हैं तो वापस चलते समय वे लोग कम से कम सौ - सौ रुपए तो देते ही हैं । मगर मेरी मम्मी उन रुपयों को तुरंत ही हमसे ले कर रिश्तेदार के बच्चों को दे देती हैं। हमसे कहती हैं कि इस प्रकार लेना देना बराबर हो गया। जब हम कहते हैं कि क्या फायदा तुम्हारे साथ ऐसी जगह जाने से? हम सबको बड़ी डांट पड़ती है। इस बात से हम लोग बड़ा दुखी रहते हैं।”

हमारे दोस्त सुरेश ने बताया -”हमारे यहां जब कोई आता है तो हम बड़ी विनम्रता से उन्हें बच्चों को रुपया न देने का निवेदन करते हैं। हम भी किसी के बच्चों को पैसा नहीं देते ताकि उन्हें उसे वापस करने का झंझट ही न हो। इससे बच्चों की आदत खराब नहीं होती है। अगर किसी ने आपके बच्चों को जाते समय उपहार स्वरूप कुछ नगद दिए हैं तो उसे आपको याद रखना पड़ता है और जब भी मौका मिले या उनके यहां जाए तो कम से कम उतनी रकम तो आपको चुकानी ही पड़ेगी वरना लोग आपस में उल्टी सीधी बातें करते हैं । इससे बच्चों में बड़ों के प्रति एक दुर्भावना आने की गुंजाइश बनती है। इसलिए हम लोग नहीं चाहते कि हमारे बीच ऐसा व्यवहार बने।

उमेश ने भी अपने अनुभव बताए- जब भी वह अपनी बेटी के यहां जाते तो उनके बच्चों को कुछ रुपए देकर के ही वापस आते थे। बच्चे भी काफी हिल मिलकर उनके साथ रहते। एक बार किसी कारणवश बिना रुपए दिए वापस चले गए तो शाम को उन बच्चों ने उमेश को बहुत भला बुरा कहा हम लोगों से हमेशा काम करवाते रहे और हम करते रहे। मगर जाते समय ठेंगा दिखा कर चले गए। अगर किसी के घर में बच्चे ज्यादा हैं तो इस तरह के पैसों का आदान-प्रदान बहुत ही कठिन और असंतुलित हो जाता है। अक्सर महिलाएं इन चीजों पर बहुत ध्यान देती हैं । बच्चों को पैसा न देना उनको बहुत नागवार गुजरता है। प्रायः कहती हैं कि इतना भी तमीज नहीं है कि बच्चों के हाथ पर कुछ रख देते। ऐसी जगह क्या रिश्तेदारी बनाए रखना।

सभी ने माना कि बच्चों को गिफ्ट के रूप में पैसे देने के रिवाज की इन घटनाओं को देखते हुए ही निर्णय लेना चाहिए कि आप इन सब को कैसे हैंडल कर सकते हैं ताकि बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

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