ओ पी डी Ved Prakash Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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ओ पी डी

ओ पी डी

प्रदीप भाई ये लो गरमा गरम कॉफी और पीकर बताओ मैंने भाभी से अच्छी बनाई या नहीं........

हाँ राजेश तूने कॉफी बहुत अच्छी बनाई है लेकिन तेरी भाभी के हाथों में भी जादू है.......

अच्छा प्रदीप आज हम दोनों मित्र अकेले हैं, आज तुम कॉफी की चुसकियों के साथ मुझे वो ओ पी डी वाली घटना बताओ........

छोड़ यार राजेश क्यूँ पुरानी यादें ताज़ा करना चाहता है........

नहीं भाई प्रदीप आज मैं ऐसे नहीं छोडुंगा, आज मैं पूरा किस्सा जान कर ही रहूँगा........

अच्छा तो तू पीछा नहीं छोड़ेगा तो सुन........

पिताजी लोक नायक अस्पताल में नौकरी करते थे, सभी लोग उनकी बहुत इज्जत करते थे, मैं भी अस्पताल में पिताजी के पास आता जाता रहता था........

स्नातक की पढ़ाई मैंने हंसराज कॉलेज से पूरी की, आगे पढ़ाई करने का विचार नहीं था तो मैंने आयकर सलाहकार का काम करना शुरू कर दिया। जैसे जैसे चिकित्सकों व अन्य लोगों को पिताजी द्वारा पता चलता गया तो ज़्यादातर चिकित्सक व अधिकारी अपने आयकर की गणना एवं बचत की सलाह के लिए मुझे अस्पताल में ही बुला लेते, इस तरह मेरा अस्पताल में कई बार आना जाना रहने लगा........

उस दिन डॉ गोयल ने मुझे ओ पी डी में ही बुला लिया। लोक नायक की ओ पी डी खचाखच भरी रहती है, मरीज, मरीज के तीमारदार प्रतिदिन हजारों की संख्या में आते हैं और हर एक चिकित्सक सौ से ज्यादा मरीज देखता है।

सामने पुरानी दिल्ली का क्षेत्र है जहां पर मुस्लिम जनसंख्या ज्यादा है, वहाँ से ज़्यादातर मरीज आते हैं व साथ में दो तीन तीमारदार भी होते हैं चूंकि पूरी ओ पी डी केंद्रीयकृत वातानुकूलित है, कुछ मुस्लिम महिलाएं वहाँ पर आकर बैठ जाती हैं, देखने वाले को लगता तो यही है कि वे ओ पी डी में दिखाने आयीं हैं लेकिन वे तो अपना आधा दिन वहाँ बिताने आती हैं।

मैं डॉ गोयल को आयकर के बारे में समझाकर जैसे ही उनके कमरे से बाहर निकला तो एक लड़की ने अपने चेहरे से बुरक़ा पलटा, अचानक उसका बेहद खूबसूरत चेहरा जैसे ही मेरी नजरों के सामने पड़ा तो मैं देखता ही रह गया, थोड़ी देर के लिए मैं सब कुछ भूल गया, उसकी नजरों से मेरी नजर मिली तो मैं थोड़ा शर्मिंदा सा होकर आगे बढ़ गया........जैसे ही मैं आगे बढ़ा पीछे से किसी ने मुझे छुआ और बड़ी ही मधुर वाणी में बोली... सर.......

मैं पीछे घूमा तो देखा वही खूबसूरत लड़की खड़ी थी......मैंने पूछा हाँ बताओ क्या बात है लेकिन अंदर ही अंदर मैं घबरा भी रहा था कि कहीं ये लड़की मेरी थोड़े समय पहले की हरकत पर कोई हँगामा न खड़ा कर दे .......

डरते डरते मैंने पूछा तो लड़की बोली.......

सर! आप डॉ साहब को जानते हैं और मैंने हाँ में सिर हिला दिया, मैं जैसे उस लड़की के मोह में फँसता जा रहा था। मैंने पहले भी बहुत लड़कियां देखीं, कॉलेज में, स्कूल में भी मेरे साथ पढ़ी हैं, सबसे बातें भी करता था लेकिन ऐसा मैंने कभी भी महसूस नहीं किया था ........

मेरी माँ ज्यादा बीमार है, क्या आप एक बार डॉ साहब को कहकर उनको जल्दी दिखवा सकते हो और उसने अपनी माँ का ओ पी डी का पर्चा मेरे सामने कर दिया........ मैं ना नहीं कर सका व

पर्चा लेकर डॉ साहब के पास चला गया, मेरी विनती पर डॉ गोयल ने उनको अंदर बुलवा लिया एवं उस लड़की की माँ का निरीक्षण करने लगे तब तक मैं उस लड़की के साथ वहीं कमरे में खड़ा रहा........

उस समय ना जाने क्यों मुझे अपने भाग्य पर गर्व हो रहा था........डॉ गोयल ने निरीक्षण करके कुछ दवाइयाँ एवं टैस्ट लिखे एवं उस लड़की को समझाने लगे, मैं भी साथ में ही सुन व समझ रहा था।

डॉ गोयल के कमरे से बाहर आकर लड़की बोली......

मेरा नाम सकीना है, यहीं पुरानी दिल्ली में डिलाइट सिनेमा के पीछे मेरा घर है, क्या मैं आपका नाम जान सकती हूँ?........

हाँ क्यों नहीं, मेरा नाम प्रदीप है और मैं यहीं अस्पताल के क्वार्टर में अपने माँ पिता के साथ रहता हूँ।

अच्छा तो प्रदीप जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया, अब मैं माँ को यहाँ बैठकर दवा लेने चली जाती हूँ........

अरे चलो मैं दिलवा देता हूँ दवा भी.......उसको दवा दिलवा कर मैंने कहा.......

सुबह माँ को खाली पेट आना है, जल्दी आ जाना मैं यहीं पर मिल जाऊंगा, सभी टैस्ट जल्दी करवा दूंगा।

सकीना ने जी! कहा और रिक्शा रोककर माँ को बैठाया फिर स्वयं बैठकर चली गयी, मैं उसको जाते हुए देखता रहा वह भी पलट कर तब तक देखती रही जब तक रिक्शा मुड़ नहीं गयी........

अगले दिन सुबह ही मैं तैयार होकर उसी जगह पहुंघ गया जहां मैंने सकीना को छोड़ा था, थोड़ी देर प्रतीक्षा करने के बाद सकीना की रिक्शा आकर रुकी, मुझे वहाँ खड़ा देखकर वह प्रसन्न हो गयी, प्रसन्नता उसके चेहरे पर साफ झलकने लगी, मैं तो प्रफुल्लित था ही........

सबसे पहले एक्सरे करवाया, फिर खून की जांच के लिए खून का नमूना दिया, बस उस दिन इतना ही काम था........

जांच रिपोर्ट कब मिलेगी, सकीना ने पूछा........

सकीना! तुम पर्चा मुझे दे जाओ, मैं ले लूँगा और कल डॉ गोयल की ओ पी डी है उनको सारी रिपोर्ट्स दिखा दूंगा अगर दवाइयों में कुछ बदलाव करना होगा तो कर देंगे, आप मेरा मोबाइल नंबर ले लो फोन करके पूछ लेना........

अगले दिन सभी जांच रिपोर्ट्स लेकर मैंने ने डॉ गोयल को दिखाई, रिपोर्ट्स देखकर डॉ गोयल ने पहले वाली दवाइयाँ ही जारी रखी और बताया जल्दी ही स्वस्थ हो जाएंगी लेकिन प्रदीप तुम इस चक्कर में कैसे पड़ गए........

मैं थोड़ा सकपका गया व जल्दी ही संभाल कर बोला........

नहीं डॉ साहब ऐसी कोई बात नहीं, सकीना मेरे साथ कॉलेज में पढ़ती थी, अचानक यहाँ मिल गयी, अपनी बीमार माँ को दिखाने आई थी मैंने बस थोड़ी सी मदद कर दी........

उस दिन मैंने डॉ गोयल के सामने झूठ बोला, मैं तो सकीना को पहले कभी मिला भी नहीं था लेकिन उससे मिलने के बाद मेरी स्थिति ऐसी हो गयी थी कि उसके बिना सब सूना सूना उदास सा लगता।

मैं घर जाकर थोड़ा आराम करने लगा घर में कोई नहीं था, माँ पिताजी दोनों ही ड्यूटि पर थे और मैं बैठकर सकीना के फोन का इंतज़ार कर रहा था, बार बार फोन की तरफ देखता, उसको उठाता, रिंग टोन वॉल्यूम चेक करता लेकिन उसका फोन नहीं आया, उसकी माँ का दवा का पर्चा और और जांच रिपोर्ट्स मेरे पास थी........

जैसे जैसे समय बीत रहा था, मेरे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी, तभी दरवाजे की घंटी बजी और मैं उछल गया, दरवाजा खोला तो सामने सकीना खड़ी थी, मैंने छूटते ही पूछ लिया फोन क्यों नहीं किया मैं कब से राह देख रहा हूँ?

हाँ बताती हूँ अंदर तो आने दो या बाहर से ही भगा दोगे.......

प्रदीप ने पीछे हट कर रास्ता छोड़ा तो सकीना अंदर आ गयी, अंदर आते आते उसने स्वयं ही दरवाजा बंद कर दिया।

सकीना ने खुश होते हुए प्रदीप को बताया........डॉ गोयल की दवा से माँ के स्वास्थ्य में काफी सुधार है,

माँ की बीमारी का पर्चा व जांच रिपोर्ट सकीना को सौंपते हुए प्रदीप ने बताया........

आज तो मुझे डॉ गोयल के सामने झूठ बोलना पड़ा, जब मैं रिपोर्ट दिखाने गया तो अचानक पूछ बैठे……..

प्रदीप तुम इसमे इतनी रुची क्यों ले रहे हो, तब एक बार तो मैं सकपका गया था लेकिन तभी मैंने बोल दिया........

डॉ साहब ऐसी कोई बात नहीं, सकीना मेरे साथ हंसराज कॉलेज में पढ़ती थी........हाँ प्रदीप, मैं पढ़ती तो थी लेकिन हंसराज में नहीं ज़ाकिर हुसैन से मैंने स्नातक की पढ़ाई की है और हाँ जो तुमने डॉ साहब से कहा था ऐसी कोई बात नहीं, क्या वास्तव में ऐसी कोई बात नहीं है, अगर ऐसी बात नहीं है तो बार बार अपने मोबाइल पर क्यों देख रहे थे, मेरे फोन की प्रतीक्षा में थे ना?

प्रदीप ने नजरें झुका ली तभी सकीना ने प्रदीप के गाल पर एक प्यारा सा चुंबन ले लिया........

प्रदीप की तो जैसे जान ही निकल गयी, कुछ सोच भी नहीं पाया था कि सकीना ने प्रदीप का हाथ पकड़ कर प्रदीप को उठाया और ड्रेसिंग टेबल के सामने ले जाकर खड़ा करके बोली.......

देखो आज मैं तुम्हें दुनिया के सबसे सुंदर और नेक नौजवान से मिलवाती हूँ, देखो सामने खड़ा है........

मैंने अपना अक्स शीशे में देखा कर सकीना की बात पर शर्मा गया और वहाँ से जाने लगा लेकिन सकीना ने फिर रोक कर कहा, देखो मुझे तो यह नौजवान बहुत पसंद है लेकिन पता नहीं वह भी मुझे इतना पसंद करता है........

मैंने सकीना अपनी बाहों में भरकर ऊपर उठा लिया और ज़ोर ज़ोर से बोलने लगा, सकीना, आई लव यू, आई लव यू टू मच, आई कांट लिव विदाउट यू और उसके होठों पर प्यार भरा चुंबन ले लिया।

अच्छा प्रदीप, अब मुझे छोड़ो और ये बताओ किचन कहाँ है, मैं कॉफी बनाकर लाती हूँ, तुम तो कॉफी पिलाने से रहे, मैं ही पिला देती हूँ।

सकीना और प्रदीप अब करीब करीब रोज ही मिलने लगे, हमारे प्यार की लता ऊँचाइयाँ छूने लगी, फूल खिलने लगे।

जब फूल खिलते हैं तो खुशबू चारों तरफ फैलती है वैसे ही हमारे प्यार की खुशबू भी चारों तरफ फैल गयी।

घर वालों तक बात पहुंची तो मेरे घर वाले मुझे और सकीना के घर वाले सकीना को समझाने लगे लेकिन प्यार तो अंधा बहरा होता है, इसलिए हमें ना तो किसी की बात सुनाई देती है और ना ही हमें अपने इस धार्मिक भिन्नता वाले प्यार में आने वाले खतरे दिखते थे।

हम दोनों पर घर वालों की तरफ से सख्ती होने लगी, मुझ पर कुछ कम लेकिन सकीना पर तो बहुत ज्यादा सख्ती हुई, उसका घर से निकलना बंद व मोबाइल भी छीन लिया गया........

हम दोनों का मिलना तो दूर, बात करना भी दूभर हो गया फिर भी हम हार माने वालों में नहीं थे........

सकीना ने घर में रहकर भूख हड़ताल शुरू कर दी, उसकी भूख हड़ताल का मुझे तो पता भी नहीं था क्योंकि हमारी आपस में बात ही नहीं हो पा रही थी,

शुरू में तो उसके घर वालों ने भूख हड़ताल को हल्के में लिया और सोचा कि भूख सताएगी तो खुद ही खाना खाने आएगी लेकिन जब भूख हड़ताल को कई दिन हो गए और उसकी तबीयत बिगड़ने लगी तब उसके घर वालों ने सकीना से मेरी बात करवाई एवं मुझे बात चीत के लिए घर पर बुलाया, तब सकीना ने भूख हड़ताल छोड़ी........

मैं तो खुश था और खुशी खुशी अकेला ही सकीना के घर चला गया.......

सकीना के घर पर कुछ और लोग भी बैठे थे उनमें एक मौलवी साहब भी थे.......

मौलवी साहब बोले......

अच्छा तो बरखुरदार, तुम सकीना से शादी करना चाहते हो?

हम अभी सकीना से तुम्हारा निकाह पढ़ देते हैं लेकिन पहले तुम इस्लाम कबूल कर लो........

मैंने और सकीना ने ऐसा करने से मना कर दिया, बस उसी बात को लेकर मेरे और उन लोगों के बीच गरमा गरमी हो गयी.......

बात इतनी बढ़ी कि वे लोग मुझे जान से मारने पर उतर आए एवं उनमे से एक आदमी ने मुझ पर गोली चला दी ........

सकीना ने पहले ही देख लिया था तो वह फुर्ती से मेरे सामने आ गयी, गोली सीधी सकीना को लगी, घर में कोहराम मच गया, मौलवी समेत सब लोग वहाँ से भाग गए और मैं सकीना को अपनी बाहों में उठाकर सीधा लोक नायक हस्पताल पहुँच गया।

अपनी टूटती साँसों और थमती धड़कन के साथ सकीना ने कहा, प्रदीप मेरे पास ज्यादा समय नहीं है, मेरी इच्छा पूरी कर दो, मैं अगर मुस्लिम रह कर मर गयी तो मुझे दोज़ख ही मिलेगा, मेरी मांग भर दो मैं सुहागिन हिन्दू मरना चाहती हूँ और सुहागिन मरने पर मैं स्वर्ग में जाऊँगी। मैंने अपना अंगूठा चीरकर सकीना की मांग अपने खून से भर दी, उसके बाद सकीना बेहोश हो गयी।

नाजुक हालत में सकीना को ऑपरेशन थिएटर में ले जाया गया, मैं बाहर खड़ा बिलख बिलख कर रोने लगा, काश! गोली मुझे ही लग गयी होती और वहीं बेंच पर बैठे बैठे ना जाने कब मेरी आँख लग गयी।

इतनी कहानी सुनाकर प्रदीप चुप हो गया और राजेश बार बार यही पूछे जा रहा था भाई बताओ ना क्या हुआ था सकीना का? प्रदीप ने बड़े ही भारी मन से राजेश से कहा अच्छा एक कॉफी और पिला, राजेश एक बार फिर कॉफी बना लाया, दोनों कॉफी का सिप ले रहे थे, प्रदीप चुप था, राजेश ने फिर ज़ोर देकर पूछा तब प्रदीप बोला...... भाई ये तुम्हारी भाभी ही सकीना है। सकीना के कंधे में गोली लगी थी जो डॉक्टर ने निकाल दी थी, तीन दिन बाद सकीना को होश आया जब सकीना को होश आ गया तो पुलिस ने ब्यान लिया, अपने ब्यान मे सकीना ने अपना नाम मधु प्रदीप सारस्वत बताया क्योंकि मेरा पूरा नाम प्रदीप सारस्वत है, एवं उसने बताया, “मैं और प्रदीप एक दूसरे से प्यार करते हैं, मैं प्रदीप सारस्वत की पत्नी मधु प्रदीप सारस्वत हूँ, हम दोनों पार्क से घूम कर आ रहे थे तो कुछ गुंडों ने हमें लूटने की कोशिश की, अपनी कोशिश नाकाम होने पर उन्होने हम पर गोली चला दी जो मुझे लग गयी।”

और उसके बाद हमने सबकी रजामंदी से हिन्दू रीति रिवाज से शादी कर ली।

बस अब कहानी भी पूरी हो गयी और कॉफी भी खतम हो गयी, रात भी बहुत हो गयी है, चलो सो जाते हैं, सुबह तेरी भाभी वापस आ रही है उसे लेने हवाई अड्डे भी जाना है।