सिंचाई की कीमत Lakshmi Narayan Panna द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

सिंचाई की कीमत


(इस कहानी के माध्यम से लेखक मेहनत और दृढ़ संकल्प के साथ ही शिक्षा के महत्व को स्पष्ट करना चाहता है । कहानी में कुछ अवधी बोली के संवादों का प्रयोग किया गया है , जो कि कहानी को जीवंत बनाये रखने हेतु आवश्यक था क्योंकि यह कहानी एक सत्य घटना का वर्णन है । कहानी में होने वाली शाब्दिक त्रुटियों के लिए लेखक क्षमा प्रार्थी है एवं उम्मीद करता है कि पाठकों को पसन्द आएगी । )
भाग-1
दद्दू किसान ने दिन-रात , मेहनत-मजदूरी करके , किसी तरह भूखे पेट रहकर पाई-पाई जोड़ी और सिंचाई की सरकारी क़ीमत अदा कर दी । लेकिन इस क़ीमत ने उसकी सहनशीलता और धैर्य की कमर तोड़ दी । वह कभी भी मेहनत से डरे नही । धरती की छाती पर पूरी लगन और हिम्मत से हल चलाने वाला यह किसान तब भी नही डरा जब पूरी तरह से तैयार फ़सल का 10% हिस्सा भी वह नही पा सका । लेकिन इस बार वह सोचने पर मजबूर था । वह सोंच रहा था कि आखिर इतनी कम जमीन की सिंचाई की क़ीमत इतनी ज्यादा कैसे ? अगर ऐसा होता तो उसके बराबर खेत वाले सभी किसानों की सिंचाई भी बराबर आती । सोंचना भी लाज़मी था क्योंकि पेट की भूख आदमी को सोंचने पर मजबूर कर देती है । उस दिन दद्दू और उनकी पत्नी ने घर में जो कुछ भी रूखा सूखा था अपनी दोनो बेटियों को तो खिला दिया परन्तु वे दोनों पति-पत्नी भूखे ही रह गए । घर में खाने को कुछ नही था । अब उस किसान ने फैसला किया कि जब तक खेती में काम नही है तब तक शहर जाकर मजदूरी करेगा । जिससे कि परिवार के लिए भोजन की व्यवस्था हो सके । ऐसा नही था कि गाँव में उनका कोई नही था , थे तो बहुत लोग । लोग उनको बड़े सम्मान से दद्दू कहते थे । लेकिन वह समझ नही पा रहा थे कि इस मुसीबत की घड़ी में किससे मदद माँगे ? यह भी सोंच रहा था कि अगर किसी ने मना कर दिया तो बरसों का व्यवहार खत्म हो जाएगा । 
दद्दू ने अपनी पत्नी से कहा पता नई कौन जनम की सजा भुगत रहे हन।लेकिन भगवान पर भरोसा राखौ । कउनो न कउनो दिन भगवान सुनिहैं तौ हये । तुम चिंता तनिको न करौ अब खाली ई खेती के सहारे कुछ होई न । अब शहर जाई तौ कुछ दिन के खातिर कुछ रुपया पैसा मिलै तो काम चलै ।
अम्मा क्या कह सकती थी घर की स्थिति को समझ ही रहीं थीं । चिंता इस बात की थी कि जब दद्दू गाँव में मजदूरी करने जाते तो शाम सकारे घर  आ ही जाते । शहर से रोज आना तो सम्भव नही था । अगर ऐसे में कोई जरूरत पड़े तो किससे कहेंगी । फिर मजबूरी कुछ भी करा सकती है । अम्मा ने भी कहा ठीक है आप जाओ हम हियाँ सब सम्भाल लेब ।
दद्दू शहर जाने को तैयार हो गए , शहर में उनका कोई सगा सम्बन्धी तो नही था बस गाँव और पास पड़ोस के कुछ लोग वहाँ पहले से ही मजदूरी करते थे । उन लोगों के सहारे ही दद्दू भी पहुँच गए शहर । उस समय गोमती नदी के तट पर पत्थर लगाने का काम चल रहा था । इसलिए काम मिलना कोई कठिन बात नही थी , फिर भी शहर पहुँचने के दो चार दिनों तक कोई काम मिलने की उम्मीद नही थी । दद्दू घर से कुछ राशन और 10से 15 पैसे ही लेकर चले थे । यह पैसे भी ज्यादा दिनों के लिए पर्याप्त नही थे । पहले दिन ही नमक तेल में लगभग सारे पैसे खर्च हो गए  । अब समस्या थी कि अगले दिन का काम कैसे चले ?
   खैर जैसे तैसे करके दद्दू को एक काम मिला । मजदूर अड्डे से एक आदमी ने दद्दू को करबी(जनवरों का हरा चारा ) काटने के लिए बुलाया । लेकिन इस काम के लिए मजदूरी उस आदमी ने बहुत कम बताई । इस काम के एवज में वह मात्र 25 पैसे देने को राजी था । दद्दू ने सोंचा खेती बाड़ी का काम उनके लिए कौन कठिन है दूसरी बात कोई काम भी तो नही है । समझ लेब की अपने गाँव म काम कर रहन है । दद्दू को क्या मालूम कि  वह किसान 25 पैसे के बदले पूरा दिन हिलने भी नही देगा । जब दद्दू उस किसान के साथ उसके घर पहुँचे तब उसने कई और काम भी बताए और करवाये । वर्षा ऋतु थी चारो तरफ खेतों में पानी भरा हुआ था । किसान का खेत भी उसके घर से करीब एक कोस से कम न था । ऐसे में पानी से लबालब भरे खेत से करबी काट कर लाना आसान नही था । करबी काटना और उसे लाना तो कोई भी कर सकता था । कठिन यह था कि करबी भिगनी भी नही चाहिए थी क्योंकि अगर वह पानी में भीग जाती तो जानवर उसमें मुँह भी न मारते । जिसकी वजह से दद्दू को अकौरा भर भर करबी काटके ऊंचाई तक पहुँचाना पड़ता । फिर जाकर यही करना पड़ता । किसान तो जैसे एक दो हफ़्तों के लिए चारे का प्रबंध आज ही कर लेना चाहता था । उसने कम से कम बड़े बड़े चार बोझ करबी कटवाई । अब इसे सिर पर उठाकर किसान के घर भी पहुँचाना था । दद्दू समझ गए थे कि आज का काम महँगा पड़ गया । मन ही मन पछतावा भी हो रहा था कि बिना सोंचे समझे किसी काम के लिए हामी भरनी ही नही चाहिए थी । परन्तु अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत ।
किसान पूरी निर्दयता से सारा काम करवा लेने के फिराक में था । शायद वह भी मजबूर था क्योंकि इस काम के लिए मजदूर मिलना इतना आसान नही था , ऊपर से बारिश का मौसम । जानवरों के लिए चारे का प्रबंध तो करना ही था ।
करबी के चारो बोझ घर तक पहुंचाने में लगभग पाँच बजे गए थे ।दद्दू को वापस अपने गंतव्य पर भी पहुँचाना था परन्तु अभी करबी की खण्डई बाकी थी । दद्दू ने किसान से कहा अब बहुत देर होइ गई भइया , अब छूट्टी दै दो । लेकिन किसान ने कहा -अच्छा छुट्टी क्यों दे दूँ , बात तो काम पूरा करने की हुई थी । पैसे तो काम पूरा होने पर ही मिलेंगे । दद्दू की मजबूरी थी इसलिए सोंचा कोई बात नही विप्पति म जो करावै का हो कराई लो , अब तौ फँसे ह्न ।
खैर दद्दू जुट गए करबी खण्डने में खुद ही मुठ्ठा लगाते खुद ही मशीन का चक्का घुमाते । इसलिए समय अधिक लग रहा था । किसान की पत्नी यह सब देख रही थी , जब उससे दद्दू की पीड़ा सहन न हुई तो अपने पति पर बिगड़ गई । उसने कहा -सुबह से शाम हो गई है तुमने इस आदमी से यह नही पूछा कि कुछ खाया पिया है या नही । बेचारा सुबह से लगा है । हद तो इस बात की है कि वह अकेले चारा काट रहा है और तुम देख रहे हो ।कम से कम मुठ्ठा तो लगा देते । अब चलो मैं मुठ्ठा लगती हूँ तुम उसके साथ लगके मशीन का चक्का घुमाओ । इस तरह वह महिला दद्दू के लिए उस दिन फरिस्ता बन गई नही तो दद्दू उस दिन के बाद दो तीन दिन काम करने के लिए उठ नही पाते । चारा काटने के बाद दद्दू को वादे के मुताबिक उनकी मजदूरी मिली ।उस महिला ने भोजन के लिए भी पूँछा परन्तु दद्दू ने हाथ जोड़े और वे अपने अड्डे के लिए निकल पड़े । 
भाग-2
इधर अड्डे पर उनके साथी इंतजार कर रहे थे । उनको इस बात की चिंता भी थी कि अनजान जगह कहीं भूल भटक न जाएं तो ढूंढना भी मुश्किल होगा । खाना तैयार था सब इंतजार कर रहे थे कि पता नही खाना खाया या नही , देर ज्यादा हो गई है  । अब बनाएगा तो ज्यादा रात हो जावेगी । दद्दू के पहुंचते ही सब डाँटने लगे कि इतनी देर तक काम होता है कहीं ।
 कन्हाई काका तो बिगड़ ही पड़े बोले भइया इयु गाँव न आय की अपनि चलै । ऐसे काम करिहौ तौ कै दिन चली । 
दद्दू - पूछौ न भइया फँस गयेन तौ का करी । पइसौ एकौ नही बचे रहैं तबैह सोंचा , बइठे स बेगारी भली । बस समझि लेउ बेगारी कर रहे रहन ।
 कन्हाई काका  - खाना-वाना खाये हौ या नाही । 
दद्दू  -तुमसे कबहुँ कुछ छुपा है , तुम जानि के अनजान बनि रहे हौ कन्हाई ।
कन्हाई काका -ठीक है तनुक बहुत जो बचा है , यहै खाय लेउ । अब अतनी रति म का बनाइहौ ।
दद्दू ने उस दिन वही खाया और फिर रात अधिक हो गयी थी तो सब सो गए । अगले दिन सुबह जब सब काम पर गए तो दद्दू भी साथ गए । मुंशी से कोई बात तो हुई नही थी फिर भी सोंचा , चलते हैं हो सकता है कुछ काम मिल ही जाय । वैसे भी खाली बैठना है । यही लिये दद्दू भी उनके साथ ही पहुंच गए । नियति का संयोग की उस दिन एक मजदूर की तबियत ठीक न होने के कारण वह आया नही था । उस मजदूर की जगह खाली थी । काम शुरू हो गया था , मजदूर अपनी पूरी शक्ति के साथ जूट हुए भविष्य का निर्माण कर रहे थे । बड़े-बड़े पत्थर के खण्डों को ऐसे उठा रहे थे कि मानो बच्चों के खेलने वाली गेंद हो । बात हैरत की इसलिए थी कि वे मजदूर जिनके शरीर के भीतर हड्डियों का ढाँचा निकलकर चिल्ला रहा था , कि अब बस वे और सहन नही कर सकते । मगर मजदूर अपने हौसले के बूते शरीर की कमजोरी को परास्त कर रहे थे । वे जनते थे कि आज अगर उनकी हिम्मत जवाब दे गई तो कल शायद भूख के कारण यह शरीर ही मिट्टी में मिल जाएगा । और फिर उनकी जिंदगी के वे अकेले हकदार भी नही थे , उनपर जिम्मेदारी थी उनकी , जिसके हर मुशीबत में साथ देने का वचन लिया था , जिनको उन्होंने जन्म दिया था और जिन्होंने उन्हें जन्मा था । उनके पास विकल्प कम और जिम्मेदारियों बहुत थीं । किसी को कर्ज चुकाने था तो किसी को बेटी का व्याह करना था , कोई अपने मरे हुए माता पिता का श्राद्ध करने के लिए काम कर रहा था तो कोई उनको दो वक्त का भोजन खिलाने के लिए । सबके पास कारण अलग थें परन्तु उद्देश्य एक था । 
दद्दू बैठे यह सब देख रहे थे , बड़े -बड़े पत्थरों को देखकर उनका मन विचलित हो रहा था । वे सोंच रहे थे कि यह तो बड़ा कठिन काम है । ऐसा काम करना आत्महत्या करने के समान है । लेकिन मरता क्या न करता दद्दू जानते थे कि इस वक़्त इसके सिवाय कोई और चारा नही है । यही सब सोंचते हुए कुछ देर में दद्दू ने अपनी जेब से गाँजा निकाला और चिलम तैयार की । गंजेड़ी भंगेड़ियों की एक खास बात यह होती है कि अगर चिलम बन रही  तो कितना भी महत्वपूर्ण कार्य ही क्यों न हो बिना एक दो कस लिए तो हिलने वाले नही । मुंशी ने दद्दू को चिलम बनाते देखा तो बोला -दादा क्या एक दो कस मिलेगा ?
दद्दू ने कहा काहे नही भइया आय जाओ दुइ दुइ फूंक बहुत हैं ।
इस तरह से दद्दू की मुंशी से बातचीत होने लगी । जब मुंशी ने जाना कि इनको काम चाहिए तो बोला आज एक आदमी नही आया है अगर चाहो तो दादा तुम आज काम कर सकते हो । मजदूरी हम बना देंगे , कल देकेदार से बात करके काम पर लगा लेंगे । आज चाहो तो जो मजदूर नही आया है उसकी जगह पर काम कर लो । दद्दू के लिए तो एक एक दिन महत्वपूर्ण था इसलिए । उसी दिन से कम शुरू कर दिया । 
दद्दू ने जब पहला पत्थर उठाया तो समझ गए वे मजदूर वाकई में कमाल कर रहे थे जो स्वयं के भार वाले पत्थरों को उठाकर एक डेढ़ सौ मीटर दूर तक ले जा रहे थे। दद्दू जितने पत्थर उठाते उतनी बार ईश्वर से विनती करते । वे कहते कि हे ! भगवान हमारि यह मजदूरी छोडैक दो । हमरी खेती बाड़ी सुधारि जाए और यू काम न करै का परे तौ अच्छा है ।
लेकिन अफ़ससोस की दद्दू की सुनने वाला कोई नही  था , बस दद्दू के शरीर से निकलता पसीना और पत्थर । खैर उस दिन शाम ढलने पर कुछ पैसे काटकर मुंशी ने दद्दू की मजदूरी दे दी । इस तरह दद्दू ने 10 से 12 दिन काम किया फिर घर के लिए कुछ पैसे भेजे । 
इधर अम्मा घर की तंगी को देखते हुए मेहनत मजदूरी करके बच्चों का पेट पाल रहीं थी । दद्दू के भेजे गए पैसों से कुछ राहत मिली । 
कुछ दिनों बाद दद्दू भी घर आये लेकिन जल्द ही लौट गए । क्योंकि अगली फ़सल की बुवाई और फ़सल तैयार होने तक के लिए भी पैसों की जरूत थी । फसल बोने के बाद यदि मजदूरी करने जाते तो फसल बर्बाद , यदि फसल देखते तो भूखों मरते इसलिए जो भी खाली समय था उसका पूरा उपयोग जरूरी था । 
इसलिए दद्दू शहर में मजदूरी करने के दौरान एक आध दिन के लिए घर आते और फिर चले जाते । 
इसी बीच दद्दू के एक पुराने मित्र मिले जो शहर में रहते थे । उन्होंने दद्दू से हाल-चाल पूछे तो दद्दू ने सारी कहानी कह सुनाई । सारी दास्ताँ सुनने के बाद उस मित्र ने सिंचाई की पर्ची दिखाने को कहा । दद्दू ने पर्ची दिखाई तब उन्होंने बताया कि यह पर्ची तो दद्दू के नाम की है ही नही । उन्होंने कहा दद्दू आपने यह सिंचाई क्यों भरी यह तो तुम्हरे पड़ोसी गाँव के फलाँ ठाकुर  की के नाम की है । सिंचाई की भरपाई करने से पहले किसी से पूछ लेना चाहिए था । तुम्हारे घर में तो तुम्हारा भाई मास्टर है । पढ़े लिखे लोगों के घर में ऐसा होगा तो फिर गरीब अनपढों का क्या होगा । दद्दू उनकी सारी बात सुनते रहे कुछ नही बोले , भीतर का दर्द पानी बनकर उनकी आंखों से छलक पड़ा तब उनके मित्र को सब समझ में आ गया । वह कहने लगे दद्दू मैं समझ गया जिससे भी तुमने पूछा सब ने तुम्हे धोखा दिया । कोई बात नही दद्दू जो हुआ भूल जाओ , समझना कि अनपढ़ होने की सजा मिली है ।  आगे से सावधान रहिएगा ऐसी कोई बात हो तब किसी विश्वास पात्र से या गाँव घर से बाहर के आदमी से पूछना क्योंकि अक्सर वही धोखा देती हैं जो ज्यादा करीबी होते हैं ताकि आपकी मजबूरी का फायदा उठा सकें । 
वह मित्र तो चला गया लेकिन दद्दू को चैन नही था , वह अपने साथ हुए इस धोखे को बर्दाश्त नही कर पा रहे थे । उनको सबसे ज्यादा दुःख तो इस बात का था कि जिस भाई को उन्होंने ही पढ़ाया लिखाया काबिल बनाया और तो और वह एक मास्टर (शिक्षक ) है । उस भाई ने भी धोखा किया , आखिर कौन सी वजह होगी ? जो उसने भी सच नही बताया । बहुत सोंचने विचारने के बाद दद्दू को समझ में आ गया कि किस वजह से उनके भाई ने सच नही बताया । 
दद्दू तीन भाई थे जिनमें दद्दू सबसे बड़े , घर के सभी सदस्यों को दद्दू गलतियों पर फटकारते थे ताकि कोई भी किसी गलत राह पर न चले । दद्दू का उद्देश्य भले ही किसी को ठेस पहुँचाने का न रह हो परन्तु अक्सर ही कुछ लोंगों को यह बात बवांरा नही गुजरती की उन्हें कोई डाँट फटकार लगाए । इसलिए दद्दू के दोनों भाई अक्सर ही खफ़ा रहते थे । जिस खेत की सिंचाई आई उसे दद्दू का ही छोटा भाई बटाई बोता था शायद इसीलिए जब ठाकुर ने वह पर्ची उनके घर भेजी तो मास्टर ने सोंचा की क्यों न इसका बोझ दद्दू के सर पर ही डाल दिया जाए । इसीलिए मास्टर ने पर्ची पढ़ने के बाद दद्दू को नही बताया । 
अब जो हुआ सो हुआ दद्दू कर भी क्या सकते थे । अगर धोखेबाजी के लिए अपने भाइयों को कहते तो परिवार बिखरता जो वह कभी नही चाहते थे । दुःखी दद्दू जब घर आए तो अम्मा से सारी बात बताई । कहने लगे बताओ जिनके लिए हम हमेशा मुशीबत सहा , खेती का सारा काम हम अकेले किया , पढ़ाया , लिखाया वहे हमरे साथ धोखा किहिन । हमरे बप्पा हमेशा कहिन की यहिका पढ़ाओ लिखाओ ना नइ तौ धोखेबाज़ निकरी , लेकिन हम अपनी जिद पर यहिका स्कूल भेजा ।
 अम्मा कहने लगीं कि "तौ अब का करिहौ " ।
दद्दू ने साहस भरी साँस ली और कहने लगे हाँ.....
अब हम ..अगर हमरे घर कोई लरिका पैदा हुआ तो वहिका इतना पढाईब कि कोई वहिका बेवकूफ़ न बनाय पावै । हम तो सोचा है कि बिटियन का भी पढ़ाई लेकिन नंगीचे कोई स्कूल नही हैं , बाहर कहाँ भेज देइ उनका ध्यान कौन रखी । हम अपने कलेजे पर पत्थर रखि के लरिका का अकेले शहर भेजब और इन धोखेबाजन का देखाइब कि हम बेवकूफ नही हन ।
भाग-3
दद्दू का इरादा इतना पक्का थी उनका सोंचा हुआ हो गया , कुछ सालों बाद दद्दू के घर एक लड़के का जन्म हुआ । अब दद्दू से अम्मा (दद्दू की पत्नि) ने कहा लो आय गया तुम्हार सपना । अगर इरादा पक्का है तो याद होइ की का कहे रहौ । दद्दू ने कहा सब याद है । बच्चा जैसे ही पढ़ने लायक हुआ दद्दू ने उसका दाखिला एक स्कूल में करवा दिया । दद्दू का सपना पूरा करने के सारे गुण थे उस बच्चे में फिर भी उसे पढ़ाने वाले ध्यान नही दे रहे थे । 
ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों का हाल तो कभी सुधरा ही नही । शायद उनमें गरीबों के बच्चे पढ़ते हैं इसलिए । मैं शिक्षकों की योग्यता पर प्रश्न चिन्ह तो लगा नही सकता क्योंकि उनके चयन कई परीक्षाओं को पास करने के बाद होता है । अगर मैं ऐसा करूँ तो पूरी परीक्षा प्रणाली और चयनकर्ताओं पर प्रश्न होगा । इस बात के वर्णन की जरूरत इसलिए पढ़ी की आज का यह बहुत बड़ा सोचनीय मुद्दा है । आखिर पढ़े लिखे योग्य सरकारी शिक्षक ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में ठीक से क्यों नही पढ़ाते ? (प्रश्न विचारणीय है)।
अब पुनः दद्दू की कहानी पर आता हूँ । 
दद्दू को शायद यह समझ में आ गया कि यहाँ कुछ होने वाला नही है । इसलिए दद्दू ने  अपने लड़के को शहर में अपनी बड़ी बेटी , जिसका व्याह कुछ सालों पहले ही शहर में हुआ था के पास पढ़ने के लिए भेज दिया । दद्दू के दामाद एक बहुत ही नेकदिल इन्शान हैं । उन्होंने वादा किया कि वह दद्दू का सपना पूरा करने में पूरी मदद करेंगे ।
दद्दू का सपना धीरे धीरे साकार हो रहा था । उनका बेटा  जैसे जैसे बड़ा हो रहा था उसका ज्ञान बढ़ता जा रहा था । उसका पढ़ाई के प्रति लगाव देखकर दद्दू को भरोसा हो गया था कि उनका बेटा उनके सपने को टूटने नही देगा । लेकिन गरीबी का रंग दूर से ही झलकता है । दद्दू के बेटे को भी दद्दू की गरीबी दिखने लगी थी पढ़ाई का खर्च वे कैसे पूरा करते होंगें , वह समझ रहा था । इसलिए उसने भी सोंच लिया था कि अपने बाप की गरीबी मिटा कर रहूँगा । वह और भी लगन और मेहनत से पढ़ने लगा । धन के अभाव में किताबों का भी अभाव होने लगा उसकी पढ़ने की क्षमता के हिसाब से किताबें कम पड़ रहीं थी और कुछ जरूरी और बढ़िया किताबें खरीदने में वह असमर्थ था ।  इसलिए मैट्रिक पास होते ही उसने ट्यूशन देना शुरू कर दिया । पढ़ाने से उसका पढ़ हुआ और भी स्पष्ट होने लगा । यह काम दद्दू को भी अच्छा लगा । लेकिन अक्सर ऐसा ही होता है कि व्यक्ति की पहुंच उसकी आर्थिक स्थिति के अनुसार ही होती है । इसलिए उसे जो ट्यूशन मिले उनसे काम चलने वाला नही था । जैसे जैसे दर्जे बढ़ते जा रहे थे किताबों और स्टेशनरी का खर्च भी बढ़ रहा था । फिर भी उसने मेहनत मजदूरी करके पढ़ाई जारी रखी और उच्च शिक्षा हासिल करके साबित कर दिया कि दद्दू अनपढ़ नही थे । 
हाँ दद्दू के कष्टों का अंत यहीं नही हुआ । दद्दू के बेटे ने उच्च शिक्षा तो हासिल कर ली परन्तु बेरोजगरी के कारण वह उनकी आर्थिक स्थिति को सुधारने में नाकामयाब था । लेकिन दद्दू न जाने किस मिट्टी के बने थे उन्होंने अपने बेटे को बेरोजगरी के कारण कभी कुछ नही कहा जबकि हमेशा हौसला देते रहे कि एक न एक दिन उसे रोजगार मिलेगा , निराश न हो और अपनी पढ़ाई जारी रखे । 
दद्दू के घर वालों की ईर्ष्या बढ़ती जा रही थी क्योंकि अब वे दद्दू को धोखा नही दे सकते थे । जिसके परिणाम यह हुआ कि उन लोगों ने परिवार के भोले भाले लोगों के बहलाकर अपने पक्ष में कर लिया और दद्दू न चाहते हुए भी परिवार को टूटने से नही बचा पाए । उन लोगों ने दद्दू से बात करना भी बन्द कर दिया , दद्दू को इसका बड़ा दुःख पहुंचा की जिस परिवार को उन्होंने कभी टूटने नही दिया उनके साथ धोखा होने बाद भी उन्होंने परिवार को साथ जोड़े रखा । वह उनसे इतनी नफरत करता है कि ईर्ष्या बस उन्हें छोड़ दिया । अब दद्दू ने भी सब्र कर लिया और अपने बेटे को अपनी पूरी कहानी बताई और कहा बेटा कुछ भी हो जाए अपने परिवार को शिक्षित रखना । अशिक्षा के कारण ही मुझे धोखा मिला परिवार बिखर गया । पूरी कहानी सुनाने के बाद दद्दू के बेटे ने वादा किया कि दद्दू की गरीबी का अंत कर देगा । परन्तु शायद दद्दू के कष्ट ही उनकी शक्ति थे इसलये अपने बेटे को नौकरी मिलने से पहले ही दद्दू ने दुनिया छोड़ दी । कुछ समय बाद दद्दू के बेटे को नौकरी भी मिली और दद्दू के घर की गरीबी खत्म हो गई । इस तरह सिंचाई की वह कीमत दद्दू के जीवन में शिक्षण शुल्क बन गयी । 
दद्दू को भले ही अक्षर ज्ञान नही था परन्तु ग्रामीण परिवेश में जो हिम्मत उन्होंने दिखाई शिक्षा के महत्व को समझ वह सराहनीय है । इस प्रकार सिंचाई की उस कीमत ने दद्दू के परिवार को एक नई दिशा दी । 
अक्सर ही हमारे जीवन में बहुत सारे कष्ट और मुसीबतें आ जाती हैं , तब हम घबरा जाते हैं । लेकिन उस वक़्त हमें हिम्मत और धैर्य के साथ अपने लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए । मंजिल उन्ही को मिलती है जो सपने देखते हैं और उन पर अमल भी करते हैं । दद्दू की कहानी में हो सकता था दद्दू सोंचते की अपने बेटे को भी मजदूरी और खेती में लगा कर आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करते , परन्तु उन्होंने ऐसा नही किया उन्होंने अपनी कमजोरी को समझा और उसे मिटाने का संकल्प लिया । इस प्रकार उन्होंने अपनी आने वाली पीढ़ियों को अशिक्षा के अंधकार में डूबने से बचा लिया । इसी के साथ उन्होंने अपने साथ धोखा करने वालों को एक बेहतरीन जबाब दिया ।