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दोहरा दर्द

Few part of previous story

(दोहरा दर्द भाग-1 का कुछ अंश)

पहले मैं उसके प्यार को नही समझ सका जब वह कहती थी पढ़ाई पर ध्यान दो और कुछ बन जाओ ।

दूसरी तरफ नियति अपना खेल खेल रही थी जिससे मैं अनजान था । मुझे तो पता भी नही था क्या होने वाला है मेरी जिंदगी में …

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मैं जिस विद्द्यालय में पढ़ता था वहाँ एक रोज किसी के टाइटल पूछने पर मैंने कहा कि टाइटल तो कोई नही लिखता जाति का चमार हूँ । जिस पर पहले तो किसी को यकीन नही हुआ सब कहने लगे सर आप नाराज क्यों हो रहे हैं । मैंने कहा मैं नाराज नही हूँ मुझे पता है जाति धर्म मूर्खों का गढ़ा हुआ है । इसलिए मैं अपने को छोटा महसूस नही करता । मैं डरता भी नही किसी से क्योंकि जो परीक्षा चाहो उसमें प्रतियोगिता करवा कर देख लो अगर मैं पीछे रहूँगा तो आगे वाले को बड़ा मानूँगा यदि आगे रहा तो मैं बड़ा हूँ । इसलिए जाति पूछने का क्या मतलब जब आप लोग नही मानते तभी कहना पड़ता है । खैर इसके बाद वहाँ किसी ने मुझसे जाति नही पूँछी । लेकिन यहीं से मेरे दोहरे दर्द की कहानी ने जन्म लेना प्रारम्भ कर दिया । मैं आने वाली परेशानी से बेखबर अपनी तैयारी में जुटा था । चेहरे पर छाई हुई चमक गरीबी पर पर्दा डाले हुए थी । मेरा विश्वास और पिताजी की बातें मुझे बल दे रहीं थीं । लेकिन दर्द का बीज अंकुरित हो रहा था, जिसकी खबर किसी को न थी । एक रोज मेरे गाँव की ही जो लड़की मेरी दीदी के गाँव में व्याही थी । उसके साथ मेरी माँ गाँव से दीदी के घर आईं मेरे पिताजी भी आये थे । उस लड़की के पति से बहुत अनबन चल रही थी जिसके चलते वह जब भी झगड़ा करता तो मेरे वालों को सम्बोधित करके गाली देता था । मैंने कई बार उससे कहा, तुम अपने ससुराल वालों को गाली देते हो तो सीधे उनके नाम से दो, पूरे गाँव वालों को गाली क्यों देते हो । लेकिन वह शराब पीकर अक्सर ही गाली देता था । उस रोज भी मैन अपनी माँ से कहा तुम मत जाना उसके घर, लेकिन उस लड़की के कहने पर वे उसके घर समझाने चली गईं । उस दिन भी वह शराब पीकर गाली गलौज करने लगा मेरी माँ के समझाने पर उन्हें भी धकेल दिया । जब मुझे पता चला तो खून खौल उठा । अब समझाने का समय बीत चुका था अब समय था सुधारने का । मैं अपने दो तीन साथियों के साथ उसके घर पहुँचा जहाँ वह नही था । मैंने पता लगाया तो सूचना मिली गाँव से बाहर सौंच के लिए गया है । हम लोगों ने उसे वहीं घेर लिया और शुरू किया बजाना । मरते समय इस बात का ध्यान था कि खून न निकलने पाए और मार भी कम न पड़े । हम तो उसे अधमरा ही कर देते कि अचानक एक गावँ वाले ने देख लिया वह शोर करने लगा । उसे बचाने भी आ गया हमारी उससे भी तू तू मैं मैं हो गई । अधिक लोग जाने इससे पहले हम वहां से भाग लेना ही उचित समझे और गाँव के पीछे से होकर घर आ गए । घर में किसी को इस मार पीट की जानकारी न थी । अगले दिन उस शराबी ने थाने में शिकायत की पुलिस हम तीनों को खोजने लगी । एक तीसरे दिन हमे पकड़ लिया गया । मामला दोनों तरफ से किये गए झगड़े का था इसलिए समझा बुझाकर छोड़ दिया गया । इस घटना के बाद वह शराबी तो सुधर गया, परन्तु मेरे पिताजी के मन मे बड़ी ठेस लगी । पिताजी की तकलीफ मैं समझ रहा था परन्तु मैं अपने आप को दोषी हरगिज़ नही मानता था । इस घटना के कारण पिताजी को लगने लगा कि मेरा बेटा बिगड़ रहा है । उन्हें इस बात का डर सताने लगा कि कहीं उनका बेटा गुंडा मवाली न बन जाए । अब वे मेरी शादी व्याह की सोचने लगे । उन्होंने कई रिस्ते देखे और मैं बिना देखे ही मना कर दिया करता क्योंकि मुझे पता था कि शादी करने की स्थिति अभी नही है । मुझे अभी डॉक्टर भी बनना था । एक दिन उनको मेरी दोस्त के बारे में जानकारी हुई । अब तो पिताजी को अपने सारे सपने टूटते दिखने लगे । उन्होंने मुझे उससे मिलने से मना कर दिया । मैंने उनसे कहा कि हमारे बीच कोई आपत्ति जनक सम्बन्ध नही हैं । पिता का दिल मानने को तैयार न हुआ । पिताजी के मन में मेरे लिए फिक्र बढ़ने लगी थी । उन्हें लगता था अब इसकी शादी की उम्र हो गई है । इधर एक नई मुसीबत मेरे फंसने का इंतज़ार कर रही थी ।

जिस स्कूल में मैं पढ़ाता था वहीं सीमा नाम की लड़की भी पढ़ाती थी । पहले मैं उसका नाम भी नही जानता था । मुझे उससे नाम पूछने की कभी जरूरत भी नही पड़ी । क्योंकि वह प्राइमरी में पढ़ाती थी और मैं सीनियर सेकेंडरी में । इण्टर द्वितीय वर्ष के विद्द्यार्थियों का क्लास टीचर था । लेकिन मेरे क्लास में चित्रकला पढ़ाने वाली एक लड़की से मेरी बात होती थी जो सीमा की दोस्त थी । मुझे क्या पता जिस लड़की से इतना अच्छे से व्यवहार करता हूँ वही मेरे लिए मुसीबतों का पहाड़ बना रही है । एक दिन उसने मुझे किसी से मिलाने की बात कही और मेरे पूछने पर की किससे मिलाना है ? यह कहकर टाल दिया कि आपके ही समुदाय से है । मैंने भी कह दिया ठीक मिल लेंगें समुदाय से क्या मतलब । अगर मुझसे कोई मिलना चाहता है तो मिलने में क्या हर्ज है । लेकिन मुझे क्या पता कि मैंने अपनी मुसीबत से मिलने की हां भर ली है । वह मुसीबत मेरे करीब थी और मैं उससे बेखबर था । वह रोज मेरे करीब से गुजरती फिर भी मैं पहचान नही रहा था । आखिरकार वह दिन आ गया जब मुसीबत ने मेरे जीवन में पहला कदम रखा । यह मार्च 2006 की बात है जब हाइस्कूल के छात्रों की प्रयोगात्मक परीक्षा हो रही थी । मेरी ड्यूटी दूसरे स्कूल में थी जिस दिन खाली होता अपने स्कूल बुला लिया जाता । उस दिन सुबह खाली होने के कारण अपने ही स्कूल जाना था । सुबह जब मैं स्कूल पहुंचा आर्ट टीचर ने सबसे पहले मुझसे कहा आज आपको उससे मिलवाऊंगी जिससे कहा था । कई बार वह कह चुकी थी इसलिए मैं भी उत्सुक था यह जानने के लिए की आखिर किससे मिलाना चाहती है । लंच का समय था वह मेरे पास आई और कहने लगी चलिए आपको उससे मिलवाती हूँ । मैं सीढ़ियों की ओर बढ़ा तो वह कहने लगी उधर नही इधर आइए । मैंने कहा उधर तो क्लास चलती हैं उधर कौन है । उसने कहा आप चलिए तो । फिर वह मुझे स्कूल के सबसे अंत वाली क्लास में ले गई । वहां पर उसने एक लड़की की तरफ इशारा करते हुए कहा ये सीमा है आपसे मिलना चाहती थी । आज मैं अपनी बर्बादी के बिल्कुल सामने खड़ा था । फिर भी बेखबर था कि यह मेरी बर्बादी का पहला दिन है । सीमा नाम है मेरा उसने कहा । मैं हमेशा की तरह जैसे सबसे मिलता था वैसे ही उससे भी मिला । मैंने पूछा बताइए क्यों मिलना चाहती थी आप । उसे तो जैसे इंतज़ार ही था इस प्रश्न का । फिर भी थोड़ा घबरा रही थी । वह जो कहना चाहती थी कहते वक़्त जुबान फंस रही थी । लेकिन उसने भी शायद ठान रखा था कि आज कहकर रहेगी । उसने मुझसे जो कहा वह पहली मुलाकात में कहना किसी लड़की के लिए आसान नही था । कुछ समय तक तो मैं समझ नही पा रहा था कि वह क्या कहना चाह रही है । बिना कुछ सोंचे समझे वह कहने लगी । मेरे पापा बहुत परेशान हैं, कई रिस्ते देख चुके हैं पर बात नही बनती । बहुत दिनों से वे लड़का ढूंढ रहे हैं लेकिन कोई तैयार नही होता । मैं उसे ठीक से समझ नही पा रहा था । तो मैंने कहा, किस काम के लिए लड़का चाहिए ? उसने कहा शादी के लिए ? मैंने फिर पूछा किसकी शादी के लिए । तब उसने बताया मेरी शादी के लिए । मैंने कहा ठीक है अगर मेरी नजर में कोई होगा तो जरूर बताऊंगा । अबकी बार उसके शब्द सुनकर मैं चौंक गया । जिन शब्दों की उम्मीद नही थी, उसने वह कह दिया । उसने कहा मैं आपसे शादी करना चाहती हूँ । थोड़ी देर के लिए तो मैं सोंच में पड़ गया कि इतनी सहजता से कोई लड़की अपनी शादी की बात कैसे कर सकती है । मुझे जबाब ढूंढे नही मिल रहा था । फिर मैंने कहा मैं शादी नही करना चाहता क्योंकि अभी मेरी पढ़ाई पूरी नही हुई है । वह तो जैसे पहले से जबाब ढूढ कर बैठी थी, उसने तुरंत कहा मैं आपकी पढ़ाई में कोई रुकावट नही बनूँगी बस आप हां कह दीजिये । मैं उसे वहीं रोकना चाहता था इसलिए कहा मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नही है, मेरा घर भी नही बना है । यहां तक मेरे घर मे दरवाजे की जगह लकड़ी की तटीय लगी है । बिना किसी व्यवस्था के शादी कैसे कर सकता हूँ । लंच टाइम खत्म हो रहा है मैं जाता हूँ । मैं वहां से ऐसे भागा जैसे कोई आफत आ गई हो । लेकिन मैं नही जानता था कि मुसीबत इतनी आसानी से पीछा नही छोड़ती । मेरा बुरा वक्त शुरू हो चुका था । घर आने पर भी न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं फंस गया हूँ । उसकी हिम्मत तो देखो पहली बार में कोई लड़की कैसे यह सब कह सकती है । मैंने फिल्मों में देखा था कि कुछ लड़कियां जिसे पसन्द करती हैं उससे ही शादी करती हैं । नही मिलने पर या तो कोई आरोप लगा देती हैं या जान दे देती हैं । यह सब सोंचकर मुझे और डर लगने लगा । मैंने अपने मंझले जीजा के भाई से पूरी कहानी बताई क्योंकि वह मेरा अच्छा दोस्त भी था । लेकिन उसने हँसी मजाक में पिताजी से बोल दिया । पिताजी तो शादी का मन पहले ही बना चुके थे । इसलिए कहने लगे अगर अपनी जाति की पढ़ी-लिखी लड़की है तो परेशानी क्या है बस लड़की का चरित्र ठीक होना चाहिए । मैंने पिताजी से कहा जो लड़की मुझे ठीक से जानती भी नही, पहले उससे कभी कोई बात भी नही हुई तो इतनी जल्दी शादी की बात कैसे कर सकती है ? मुझे कुछ गड़बड़ लग रहा है । उस वक़्त तो पिताजी ने कहा ठीक है देख लो सोंच समझ लो फिर बताना । लेकिन अब शादी कर लो मैं बूढ़ा हो गया हूँ इसलिए अपनी बहू तो देख लूँ । मैंने सोंचा खैर मेरे पिताजी तो मेरे कहने पर ही शादी का सोंचेंगे ।

कुछ दिन बाद वह आर्ट टीचर फिर से मेरे पास आकर कहने लगी कि आपने बताया नही क्या सोंचा ? मैंने कहा मैं शादी नही करना चाहता तो और क्या बता दूं यह बात तो मैं पहले ही कह चुका हूँ । अब तो वह पीछे ही पड़ गई । कहने लगी बताइए मेरी सहेली में क्या कमी है ? आप उससे शादी क्यों नही करना चाहते ? उसने इस प्रकार कई सवाल एक के बाद एक दाग दिए । मैं अपने वसूलों से कभी समझौता नही करता था । मेरे वशूल थे कि मैं कभी किसी भोजन, दिन वस्त्र और इंशान को खराब नही कहता था । इसलिए मैंने कहा मैं कमी क्या बता दूं बस शादी नही करनी । वह भी पीछा नही छोड़ रही थी । उसने फिर कहा तब फिर आप क्यों शादी नही करना चाहते जब कोई कमी नही । अब मुझे सच्चाई बताना ही पड़ा मैन बताया कि मैं बहुत गरीब घर से हूँ और अभी मुझे पढ़ाई भी करनी है । शादी के बाद यह सम्भव नही होगा अभी तो अपना खर्च है फिर एक और व्यक्ति का खर्च मैं कैसे चला पाऊंगा । क्या कहीं ऐसे होता है कि लड़की चाहती है तो लड़का हां करे ही ? कोई जबरदस्ती है क्या ? उस दिन तो वह चुप हो गई । मैं निश्चिन्त हो गया । मेरा ध्यान अपनी पढ़ाई पर केंद्रित था । मुझे आभास भी नही था कि वह लड़की मेरे पीछे ही पड़ जाएगी । एक बार फिर उसने वही प्रश्न किये । मेरे मना करने पर कहने लगी । कोई बात नही आप सीमा के मम्मी पापा से तो मिल लीजिए । मैंने उनसे मिलने से इनकार कर दिया । लेकिन वह तूफान जो मेरी जिंदगी में आने वाला था, हाथ पैर धोकर मेरे पीछे पड़ा हुआ था । फिर भी मैं तो अपने लक्ष्य की ओर ही निशाना साधे हुए था । एक दिन तो खुद सीमा मेरे पास आकर कहने लगी कि मेरे मम्मी पापा आपसे मिलना चाहते हैं । एक बार उनसे मिल लीजिए । मैंने फिर इनकार कर दिया । परन्तु उसने तो जिद्द पकड़ ली थी । मैंने परेशान होकर कहा आखिर क्यों मेरे सपनों में आग लगाना चाहती हो ? मैं तो बचपन से दुःख और गरीबी झेल रहा हूँ । इस गरीबी से छुटकारा पाने के लिए जरूरी है कि मेरी पढ़ाई सफलता पाने तक सही ढंग से चलती रहे । मैं अपनी पढ़ाई में कोई रुकावट नही डालना चाहता । इसलिए मुझे माफ़ करो कोई और लड़का होगा तो बता दूँगा । इस पर वह कहने लगी मैं आपकी पढ़ाई में कोई रुकावट नही बनूँगी । मैं आपको पसंद करती हूँ और आपसे ही शादी करूंगी । तब मैंने कहा शादी कोई गुड्डा गुड़िया का खेल थोड़े न है कि जब मन किया जिसके साथ चाहा खेल लिया । शादी के लिए घर वालों की मर्ज़ी का भी बड़ा महत्व है । अगर मेरे घरवाले नही तैयार हुए तो शादी कैसे होगी । मेरे घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नही है कि मेरे माता पिता शादी के लिए तैयार हो जाएं । अगर तैयार हो भी गए तो शादी का खर्च कैसे उठाएंगे । इसलिए शादी का चक्कर छोड़ो मुझे अपना काम करने दो । मगर वह भी मानने की नही एक दिन उसने अपने पिता श्री एम लाल को स्कूल बुला लिया । उसके पिता लखनऊ के राजकीय पॉलीटेकनिक ने कर्मशाला निरीक्षक थे । लंच के समय स्कूल की आया ने मुझसे कहा सर आपसे कोई मिलने आया है । मैं नीचे उतरकर गेट पर गया तो वहां एक पुरानी c d 100 ss मोटर बाइक लिए हुए लगभग 50 वर्ष का एक व्यति खड़ा था । मैं उससे पहले कभी नही मिला था इसलिए जाते ही पूछना पड़ा कि क्या आप ही मिलने आये हैं । उसने कहा हाँ मैं सीमा का पाप हूँ । मैं समझ गया वह मानी नही । खैर ! कोई नही ।

मैंने कहा बताइए अंकल क्यों मिलना चाहते थे मुझसे । मुझे क्या पता इतने दिनों से उनकी लड़की की शादी क्यों नही तय हो रही थी । लेकिन असलियत सामने आ ही जाती है । कोई चाहे जितना छूपाने की कोशिश करे । वे पूछने लगे कहाँ के रहने वाले हो । मैंने कहा मैं लखनऊ के बख्शी का तालाब क्षेत्र के नारायणपुर गाँव का हूँ । पिताजी का नाम पूछा मैंने बता दिया । फिर उसने अपना परिचय दिया बताने लगे कि मैं यहीं पॉलीटेकनिक मैं हूँ । मेरी बिटिया सीमा ने आपके बारे में बताया था इसलिए आया था । और बताइए आपने पढ़ाई कहाँ तक कि है ? मैंने कहा अभी तो B.Sc. किया हूँ, आगे तैयारी कर रहा हूँ । यह सुनकर उस व्यक्ति के बात करने का तरीका ही बदल गया । मैं कुछ समझ भी नही पाया कि उसने अपना रंग बदल दिया ।

कहना लगा मैं तो तुमसे अपनी बिटिया की शादी करने की सोच रहा था, लेकिन तुम तो सिर्फ B.Sc. हो । तुम्हारे पास कोई टेक्निकल डिग्री या डिप्लोमा तो है नही । प्राइवेट नौकरी करते हो, और आज कल B.Sc. M.Sc. करके तो तमाम लोग घूमते हैं । उनको तो जल्दी नौकरी भी नही मिलती । अगर मैं अपनी बिटिया की शादी तुमसे कर दूं तो क्या खिलाओगे मेरी बिटिया को । तुम्हारे बाप भी नौकरी में नही हैं । सुना है ट्यूशन करके पढ़ाई करते हो । ऐसा लगा जैसे पुरानी फिल्मों का अम्बरीशपुरी बोल रहा हो । मैं तो यह सब सुनकर क्रोध के मारे एक वक्त के लिए शांत ही हो गया था । जब मुंह खुला तो बस इतना कहा कौन कहता है की B.Sc. करने वाले सब घूमते ही हैं । क्या डिप्लोमा करने वाले सब सेलेक्ट हो ही जाते हैं । और तो और मैंने कब कहा कि मैं तुम्हारी लड़की से शादी करना चाहता हूँ । तुम्हारी लड़की ही पीछे पड़ी है और अगर वह मुझसे शादी करना ही चाहती है तो मैं उसे लेकर सड़क पर रहूँगा सूखी रोटियां खिलाऊंगा । फिर भी करना चाहती है तो करो । इतना कहकर मैं वहां से चला आया । सीमा ने पूछा तो मैंने कहा किससे पूछ कर बुला लाई अपने बाप को । मेरी बेइज्जती क्यों करवा रही हो जब मैंने तुम्हें बताया था मैं तुम्हारे लायक नही हूँ तो अपने बाप क्यों नही बताया । तब वह कुछ नही बोल पाई ।

सीमा के पिता से मिलने के बाद मेरा क्रोध शांत नही हो रहा था । इसलिए मैंने अपने कई दोस्तों को इस समस्या के बारे में बताया । दीदी के घर पर बचपन से रहता था तो वहां मेरे कई दोस्त थे । मेरी बड़ी दीदी की बेटी, और आशीष नाम के लड़के से अच्छी बनती थी । उन्हें भी इस समस्या से अवगत कराया । बड़ी दीदी की बेटी ने कहा तो मामा मैं अपनी सहेली के साथ जाकर सीमा से मिल लूँ फिर आपको बताती हूँ । अगर लड़की ठीक होगी आपके साथ अच्छा रिश्ता निभा सकती हो तो शादी करने में कोई बुराई नही । अगर ठीक नही होगी हम खुद बताएंगे, वैसे भी लड़कियों को लड़कियां ही ठीक से समझ सकती हैं । मैंने कहा देख लो लेकिन मैं अभी शादी नही करना चाहता । मेरी भांजी अपनी सहेली के साथ स्कूल गई वहां वह सबसे पहले सीमा से मिली फिर मुझसे मिलकर वापस चली आई । घर आकर उसने कहा मामा लड़की आपके लिए ठीक नही क्योंकि वह तो आपके लिए बिल्कुल साइको है । आपको बिना शादी के ही अपना समझ रही है । कोई लड़की शादी से पहले इतना अधिकार नही दिखती जितना हमने उसमें देखा ।

मैंने कहा मुझे भी यही शक था । वैसे भी मैं शादी नही करना चाहता ।

लेकिन जब मैं उसके पिता से मिला तो मैंने उसे घर का पता बता दिया था । फिर भी उसकी बातें सुनकर मुझे यकीन हो गया था कि वह अपनी लड़की की शादी किसी भी हालत में मुझसे नही करेगा । अगर घर भी पहुंच गया तो घर की हालत देखकर मना कर देगा ।

परन्तु जिंदगी का खेल बहुत अजीब होता है यह बात मुझे पहले नही पता थी । सीमा एक बार फिर मुझसे कहने लगी मम्मी तैयार हो गई हैं बस पापा थोड़ा परेशान हैं । कहते हैं कि लड़के ने कोई टेक्निकल डिग्री या डिप्लोमा नही किया है तो नौकरी मिलने में समस्या होगी, लेकिन मम्मी उन्हें समझा रही हैं । पापा भी मान ही जायेंगे । मैंने सोचा इसे समझकर अपना पीछा छुड़ा लूँ । तो मैंने कहा देखो मां बाप बच्चों का भला ही चाहते हैं । इसलिए ओ जो भी सोंच रहे हैं वह तुम्हारे भले के लिए ही है । जब तुम्हारे पिता नही चाहते तो क्यों मेरे पीछे पड़ी हो । लेकिन किसी ने सच ही कहा है कि “सीधे पेड़ पहले काटे जाते हैं” । मेरे सच्चाई और अच्छाई ही मेरी दुश्मन बन गई थी फिर भी मैं समझ नही रहा था । मैं किसी को दुःख पहुंचाए बगैर अपना पीछा छुड़ाना चाहता था । मेरे इस गुण के कारण वह मेरे पीछे पड़ी थी उसको लगता था की वह शादी के बाद कुछ गलती भी करेगी तो मैं उसे कुछ कह नही पाऊंगा । क्योंकिं वह मुझे एक सीधा सादा इंशान समझती थी । यही कारण था कि मुझे किसी भी हाल में छोड़ना नही चाहती थी । मैं इस बात को समझ नही रहा था कि वह किस स्वार्थ के चलते मेरे जैसे गरीब लड़के से शादी करना चाहती है । कभी कभी मुझे यह बात अखरती थी कि जिसका बाप सरकारी नौकरी करता है वह लड़की मेरे जैसे गरीब लड़के से शादी क्यों करना चाहती हैं । फिर उसे प्यार समझ कर शांत हो जाता । मुझे लगता कि जैसे फिल्मों में होता है कि एक अमीर लड़की किसी गरीब लड़के से प्यार करती है और निभाती भी है । उसी प्रकार शायद वह भी प्यार करती है ।

मैं शादी नही करना चाहता था लेकिन जाने अनजाने इसे रोकने में भूल करता जा रहा था । जिससे कि यह मुसिबत टालने की बजाय और नजदीक आती जा रही थी । मैं परेशान था इस मुशीबत से पीछा छुड़ाना चाहता था, मुझे रास्ता दिखाने वाला कोई मिल नही रहा था । तब मैं डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर हॉस्टल गया । वहां पर कमलेश नाम के एक मित्र रहते हैं । मैं उन्हें भइया कहता हूँ क्योंकि वे मुझसे सीनियर हैं और बड़े भी । मुझे पता था वे सही उपाय बताएंगे । मैंने उनको सारी कहानी बताई उन्होंने भी मेरी बात ध्यान से सुनी, फिर कहने लगे जो व्यक्ति ऐसी बातें करता है उससे एक बार मिलना तो चाहिए । मुझसे कहने लगे चलो एक बार उसके घर चलकर देखते हैं कैसा आदमी है । जो इस प्रकार किसी की डिग्री को छोटा या बड़ा कहकर अपमान करने की हिम्मत रखता है । पॉलीटेकनिक का पता पूछने की जरूरत ही नही थी वह पहले ही पता था और नाम तो उसने बताया ही था । फिर क्या हम दोनों लोग नाम पूछते हुए उनके घर पहुंच गए । चूँकि हम बिना सूचना के गए थे तो उन्हें भी दिखावा करने का मौका नही मिला । वहां पहुंचकर हम जब सीमा के पिता से मिले तो आश्चर्यचकित हो गए । कुछ ऐसा पता चला जिसकी हमने उम्मीद भी नही की थी । सीमा के पिता ने बताया कि वह अभी अभी मेरे घर से आ रहे हैं । और मेरे पिताजी से बात कर चुके हैं । मैंने पूछा क्या बात की आपने तो कहने लगे वे तो तैयार हैं । लेकिन मैंने तुम्हारा घर देखा वह तो बना नही है मेरी बिटिया को बहुत दिक्कत होगी । मुझे नही लगता मेरी बिटिया वहां रह पाएगी ।

मैं तो यही चाहता ही था कि यह शादी न हो इसलिए मैंने सीमा के पिता से कहा तो मत करिए शादी । घर बनाना इतना आसान तो है नही की एक दिन में बन जायेगा । कमलेश भैया मुझे मझे बीच मे रोकते हुए कहने लगे कि अंकल आप तो सर्विस करते हैं । बिटिया की शादी में कुछ दान दहेज देने की सोच ही रखे होंगे तो वह देने के बजाय शहर में एक छोटा सा प्लाट दे दीजियेगा फिर कोई समस्या नही होगी । तब सीमा के पिता कहने लगे मैं प्लाट कैसे दे सकता हूँ

मेरे और भी तो बच्चे हैं । कमलेश भइया ने कहा तो आपसे दहेज में देने को कौन कह रहा है । जब तक इनकी नौकरी नही लगती तब तक दिक्कत होगी फिर आप धीरे धीरे करके इनसे प्लाट कीमत ले लीजिएगा आपका पैसा भी निकल आएगा और इनकी मदद भी हो जाएगी । परन्तु जिसके मन मस्तक में चालाकी होती है वह किसी की मदद नही करता । सिर्फ गरीबों का मजाक उड़ाने में मजा आता है उसको । उसने भी ऐसा ही किया कमलेश भइया से कहने लगा तुम इसके रिस्तेदार तो हो नही । दोस्त ही तो हो मैं तुम्हारी बात पर कैसे विश्वास कर लूं । शादी के बाद पैसा कौन लौटता है ।

हम दोनों लोग उसकी मानसिकता समझने लगे थे । हम यह भी समझ रहे थे यह शादी मना नही करेगा । अगर शादी न करनी होती तो इतना सोंचता नही । घर बार देखने के बाद भी उसने यह नही कहा कि मैं अपनी बिटिया की शादी नही कर सकता । अब समय था घर जाकर पिताजी से शादी से मना करने को कहने की । मझे पता था पिताजी मेरी बात जरूर समझेंगें । अब अगर कोई मुझे इस मुसीबत से छुटकारा दिला सकता था तो थे मेरे पिताजी क्योंकि उनकी बात पत्थर की लकीर होती थी । उनकी बात को पूरा करने के लिए अगर किसी ताकत की जरूरत पड़ती तो वह भी थी । उनके कई साथी थे जो एक इशारे पर उनके साथ खड़े होने को तैयार रहते थे । उनमें से एक थे कन्हाई बप्पा जो उस समय पैरोलीसिस के शिकार हो चुके थे । उन्होंने मुझे बचपन में मेरे पिताजी से एक महात्मा की सलाह पर खरीदा था क्योंकि मेरे पिताजी के लड़के बड़े होने से पहले ही मृत्यु के गोद में सो जाते थे । मेरे जन्म से पहले भी मेरी माँ की तबीयत बहुत खराब थी गरीबी के कारण पिताजी बहुत परेशान थे । फिर एक दिन वे उस महात्मा के पास पहुँचे जिन्होंने कहा अबकी जो लड़का होगा उसे सबसे पहले किसी को बेचने का रिवाज अदा करना फिर मेरे पास ले आना । पिताजी के सबसे अच्छे दोस्त थे कन्हाई बप्पा इसलिए उन्होंने ही मुझे खरीदने का रिवाज पूरा किया । चूँकि उन्होंने मुझे खरीदकर बेटा बनाया था इसलिए मेरी हर मुसीबत में मेरे साथ खड़े होते थे । परन्तु अब वे इस लायक नही थे कि मैं उनसे कुछ कह सकूँ । अब तो मेरे पिताजी ही मेरी जिंदगी का फैसला कर सकते थे । मैं वहाँ से आने के बाद घर निकलने की तैयारी में जुट गया । अगले दिन ही मैं घर निकल गया । वहां पहुंचकर जब मैंने पिताजी से सब बताया और शादी से इनकार करने को कहा तो उनकी नेकदिली ने सारा खेल बिगाड़ दिया । मेरे और पिताजी के बीच बहुत सारी बातें हुईं मैं उन्हें भविष्य में आने वाली कठिनाइयों से अवगत कराता और वे भाग्य और भगवान की बातें करते । मैं कहता समय पर जाग जाने वाले अपना भाग्य खुद लिख सकते हैं । भाग्य के भरोसे तो बुजदिल बैठा करते हैं । यह मेरी जिंदगी है इसे मैं भाग्य के भरोसे नही छोड़ सकता । लेकिन ये क्या ? ……

To be continued

(शेष दोहरा दर्द भाग-3 में पढ़ें)

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