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मूर्ख बुद्धिमान

मूर्ख बुद्धिमान

( यह पुस्तक ऐसे लोगों के लिए एक व्यंग है जो हमेशा ही बस अपने विचारों को ही सर्वोपरि रखते हैं । ऐसे लोग कभी नही सोचते की हर व्यक्ति का अपना बाप , अपने विचार , और अपना आदर्श होता है । सभी को अपने साथ साथ दूसरों की भावना का ख्याल रखना चाहिए आप अपना पक्ष रखने के लिये स्वतंत्र हैं , परन्तु किसी को बेबुनियाद गलत कहने के लिये नही । वह स्वतंत्रता , स्वतंत्रता नही होती जिससे की अन्य को शारीरिक व् मानसिक तकलीफ हो ।

अगर हम आपके आदर्श को और भगवान को गलत नही कहते तो आप बेकार के कुतर्कों से हमे परेशान न करें । अन्यथा हमारे प्रश्नों का सही सलीके से जवाब दें।।)

एक रोज की बात है मेरे बेटे ने कहा पापा मेरे स्कूल में 26 जनवरी के कार्यक्रम में आपकी कविता पढूंगा तो आप जरूर आइयेगा ।

बेटे की इच्छा थी इसलिए जाना तो था ही । स्कूल में पहुँचते ही एक सज्जन पुरुष से मुलाकात हो गयी । उन्होंने मेरा परिचय लिया और फिर कुछ राजनीतिक चर्चा करने लगे , वैसे तो मैं राजनीतिक चर्चा में पड़ता नही इसलिए उनकी हाँ में हाँ करता रहा ।

कुछ देर बाद एक शिक्षक महोदय आये तो मैंने उनसे जय भीम नमोह् बुद्धाय कहकर हाथ मिलाया । मेरे इन शब्दों को सुनकर मेरे साथ खड़े सज्जन पुरुष को न जाने क्या हुआ , उनके रौंगटे खड़े हो गए , भाव-भंगिमा बिगड़ गई , और फटा फट दो चार बातें जड़ डालीं । कहने लगे भीम कोई भगवान तो हैं नही , भगवान तो राम हैं । आपने जय भीम क्यों कहा ?

मैं मन ही मन समझ गया कि ए व्यक्ति निहायत ही मूर्ख है । जिसको ईस्वर , भगवान और महानतम का फर्क ही नही है उसको क्या कहूँ ? परन्तु इस पर मुझे प्रतिक्रिया तो करनी ही थी , इसलिए मैंने सहज भाव में कहा कि दादा व्यक्ति जिसके भी जीवन से कुछ प्राप्त करता है उसको अपना भगवान या आदर्श समझता है , इसमें कोई बुराई तो नही है ।

दादाजी ने पुनः एक प्रश्न जड़ दिया ।

कहने लगे भीम ने कितने राक्षसों को मारा है ? राम ने तो राक्षसों को मारा है । इसलिए भगवान तो राम ही हैं । मैंने कहा दादा भगवान तो राम भी न थें , वे भी तो इंशान ही थे । यदि आप राम को आदर्श मानते हैं तो इसमें मुझे कोई आपत्ति नही है , फिर आपको मुझसे क्यों है ?

कहने लगे राम को दुनिया मर्यादा पुरुषोत्तम कहती है । राम ही भगवान हैं । भीम तो एक साधारण नेता थे , और केवल रैदासों के लिए जो किया सो किया , इसके अलावा क्या किया अगर राम की कृपा न होती तो ये भी न कर पाते ।

अब मेरे सब्र और लिहाज का बाँध टूट रहा था , इसलिए मैंने भी दो चार प्रश्न जड़ दिए और उनके प्रश्नों का उत्तर भी देता गया ।

मैंने कहा दादा जब आप बुजुर्ग लोग ही कहते हैं कि ब्राह्मण को मारना पाप है , तो राम ने रावण को मारकर ब्रह्म हत्या की , इस तरह तो राम की मर्यादा भंग हो जानी चाहिए थी , सीता को अग्नि परीक्षा में सफल होने के बाद भी घर से भगा दिया , ये कहाँ की मर्यादा है ?

दादा कुछ रुके फिर बोल पड़े , रावण को मारने का कारण था क्योंकि उसने सीता जी को उठा लिया था । मैंने कहा अगर कोई भाई अपनी बहन की राखी का कर्ज नही चूका सकता तो उसको भाई कहलाने का कोई हक नही है । आप मुझे बताएं ये कहाँ की मर्यादा है कि राम की उपस्थिति में लक्ष्मण ने सूर्पनखा के नाक कान काट लिए ।

यदि सूर्पनखा ने प्रेम निवेदन भी किया था तो राम ने झूँठ क्यों बोला ? की मेरा अनुज अविवाहित है ।

राम और लक्ष्मण दोनों ने पहले तो सूर्पनखा का उपहास उड़ाया फिर बेइज्जत किया , क्या भगवान ऐसा होता है ? रावण को मारकर सीता लंका से ले तो आये लेकिन सीता जी के साथ क्या न्याय किया ? पहले जिस सीता ने राम इंतजार हर पल हर क्षण किया होगा , उसने भी केवल शक मात्र के कारण त्रिस्कार कर दिया । ये तो नारी का अपमान है कि अपने को निर्दोष सावित करने के बाद भी त्रिस्किरित की गयी। राम भगवान थे तो इतना अन्याय अपनी अर्धांगिनी के साथ तो नही करना चाहिए था ।

दादा को क्रोध आने लगा जिसको शांत करते हुए मैंने पुनः प्रश्न किया कि दादा मैंने सुना है कि लंका विजय में वानरों और पशु पक्षियों जैसे कि गिद्धों का बड़ा योगदान रहा है नल और नील जैसे वानर थे , जिन्होंने समुद्र पर सेतु बनाया । दूसरी और जटायू गिद्ध समय और मौसमी दशाएं बताते थे और उन्हीने तो सीता जी का पता बताया था । क्या ये सब सच है ?

दादाजी के चेहरे पर मुस्कान आयी और बोले ये तो जग जाहिर है ।

इसी बीच मैंने एक प्रश्न और कर दिया की दादाजी लंका विजय के बाद राम ने बंदरों और पशु पक्षियों की शिक्षा व्यवस्था का ध्यान क्यों नही रखा ? आज कल तो बंदरों और गिद्धों की हालत बहुत खराब है । गिद्ध दिन व् दिन पलायन करते जा रहे हैं बंदरों की संख्या घट रही है । राम राज्य में इनको न्याय क्यों नही मिला ?

अगर मेरे इन सवालों का सही जबाब आप दे दें तो मैं भीम का नाम लेना छोड़ दूँ ।

बताइए कि हर आदमी अपने बाप को बाप कहता है क्या बाप की जाति देखी जाती है ? या कोई अपने से ऊँची जाति के आदमी के बाप को बाप कहता है ? क्या किसी को कहना चाहिये कि मेरा बाप तुम्हारे बाप से अच्छा है ? वैसे ही व्यक्ति का अपना आदर्श होता है उसे अपने आदर्श का सम्मान करने दें ।

अब दादाजी के पास मेरे किसी प्रश्न का सही जबाब नही था बस था तो उनका कंठी माला जिसे दिखाते हुए कह रहे थे मैं तो राम को भगवान मानता हूं । मैंने कहा मैं तो अपने माता पिता को भगवान मानता हूं और बाबा साहब भीम राव आंबेडकर को अपने जीवन का गुरु और आदर्श । रही बात ईस्वर की तो वह तो सर्वव्यापी है तो उसको ढूंढने की क्या जरूरत ही क्या है ? उसको तो जहाँ मानेंगे वहां मिलेगा बस मन से देखिए । मैंने कुछ नया नही कहा आप जैसे बुजुर्गों के द्वारा दी गई सीख ही आज आप को बता रहा हूँ । बस इतना कहना चाहता हूँ अपने विचार रखें , थोपें नही और न ही किसी के आदर्श का अपमान करें । यदि आप अपना और अपने आदर्श का सम्मान चाहते हैं तो , अन्यथा आपकी मर्जी ।।

लक्ष्मी नारायण पन्ना

( प्रवक्ता रसायन शास्त्र एवं कलमकार)

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