तीसरे वृतांत में आज की परिस्थितियों मे मित्र की पहचान होना बहुत आवश्यक है इसके संबंधित एक वृतांत परिवार परामर्श केंद्र में आता हैं जो इस प्रकार है। रामप्रसाद नाम का एक संपन्न किसान था जिसके एक मात्र पुत्र हरिसिंह का विवाह रानी नाम की एक लडकी के साथ हुआ था। रामप्रसाद के देहांत के उपरांत हरिसिंह स्वतंत्र हो गया था उसके उपर किसी का भी जोर नही चलता था। धीरे धीरे गलत मित्रों की संगति के कारण पतन की राह पर बढने लगा और एक दिन जुए एवं अन्य व्यसनों के कारण उसकी सारी संपत्ति नष्ट हो गयी और उसे धन की कमी सताने लगी। वह अपने घर में पत्नी के साथ मारपीट करके उसको उसे पिता के यहाँ से धन लाने का दबाव डालने लगा। जब उसका अत्याचार बहुत बढ गया और सहनशीलता को पार कर गया तो उसकी पत्नी ने परिवार परामर्श केंद्र में इस मामले की शिकायत की परंतु परामर्शदाताओं के अथक प्रयास के बाद भी हरिसिंह नही सुधरा तो रानी ने उससे तलाक के लिए अर्जी देकर अपने ऊपर हुये अनाचार की शिकायत पुलिस में दर्ज करा दी। पुलिस ने जाँच के उपरांत हरिसिंह के खिलाफ मामला दर्ज करके कोर्ट में भिजवा दिया। न्यायालय ने उसे तीन वर्ष के कारावास की सजा सुनायी एवं उनका तलाक भी मंजूर हो गया।
तीन वर्ष के उपरांत हरिसिंह जेल से वापिस आता है तब तक उसका हृदय परिवर्तन हो चुका था और वह निरंतर अपनी गलतियों को महसूस कर रहा था। अपनी पत्नी को याद करते हुए उसके मन में स्नेह एवं प्रेम का भाव उमड पडता है। वह उसके पास जाकर अपने कृत्य के लिए माफी माँगता हैं और पुनः शादी करने का प्रस्ताव रखता है। जिस प्रकार दूध का जला छाछ भी फूंक फूँक कर पीता है उसी तरह रानी भी उसके ऊपर विश्वास नही कर पा रही थी और वह मना कर देती है। इसके बाद हरसिंह के बहुत अनुनय विनय करने पर रानी पुनः परिवार परामर्श केंद्र में जाती है और हरिसिंह के पुनः शादी के अनुरोध के बारे बताती हैं यह सुनकर परामर्शदाता पुनः दोनो से बात करते हैं एवं हरिसिंह के कारावास के दौरान उसके आचरण के जानकारी जेल अधीक्षक से प्राप्त की जाती हैं जो कि बहुत ही सकारात्क थी। इस प्रकार परामर्शदाता रानी को पुनः विवाह करने की सलाह देते हैं। दोनो सादगी पूर्ण ढंग से पुनः कानूनन शादी कर लेते है।
लगभग एक साल बाद वे दोनो अपनी एक संतान के साथ पुनः परामर्श केंद्र आकर परामर्शदाताओं का आभार व्यक्त करते हैं कि उनकी सलाह के कारण अब वे सुखमय जीवन व्यतीत कर रहें हैं।
एक अन्य वृतांत जो के परामर्श केंद्र तक पहुँचा ही था, उसमें स्वमेव ही परामर्श केंद्र के नाम व साख के कारण समस्या निदान हो गया, वह इस प्रकार था। एक प्रोफेसर साहब जो कि अपने विषय के बहुत विद्वान थे उन्हें ना जाने कैसे यह भ्रम हो गया कि उनकी सुंदर पत्नी पर कई लोग निगाह रखते हैं और उनकी पत्नी भी हो सकता है कि कभी बहक जाये इसलिये वे जब भी बाहर जाते थे, अपने घर को चारों ओर से बंद करके रखते थे। इससे उनकी पत्नी सुजाता एक प्रकार नजरबंद का जीवन जी रही थी और मन ही मन बहुत उद्वेलित हो रही थी। उसके आस पडोस के लोगों को इस बात का पता होने पर उनका परिवार हंसी का पात्र बन रहा था। सुजाता ने अपने पतिदेव को बहुत समझाने का प्रयास कि परंतु वह असफल रही, अंत में उसने परिवार परामर्श केंद्र जाने का निर्णय लिया। एक दिन प्रोफेसर साहब से चूक हो गई और वे बाथरूम का दरवाजा बंद करना भूल जिसका लाभ उठाकर उनके जाने के बाद सुजाता वहाँ से निकल गई और सीधे परामर्श केंद्र पहुँची और अपनी व्यथा से अवगत कराया। उसकी अजीबोगरीब बातें सुनकर सबको बहुत आश्चर्य हुआ और तुरंत एक हवलदार को प्रोफेसर साहब को बुलाने के लिये भेजा गया। प्रोफेसर साहब को झेंप के कारण कुछ कहते नही बन रहा था। उन्होंने अपनी गलती स्वीकर कर ली और सबके सामने लिखित रूप में सुजाता को आश्वस्त किया कि वह उसकी स्वतंत्रता का हनन नही करेंगें एवं उन पर पूर्ण विश्वास रखेंगें। इसके बाद वे दोनो परामर्शदाताओं का आभार व्यक्त करते हुए मुस्कुराते हुए वापिस घर चले गये।
अगला प्रसंग रामनरेश और राजश्री के बीच का है जिसमें परिवार के ही एक सदस्य द्वारा गलतफहमी में अपने ही परिवार को दंडित करने का प्रयास किया जा रहा था। जिसकी समाप्ति के लिये परिवार परामर्श केंद्र ने अथक परिश्रम करके मामले को सुलझा लिया। इन दोनो का प्रेम विवाह हुआ था। शादी के उपरांत एक दिन लडकी का भाई राजीव उससे मिलने सुबह सुबह उसके घर आया उसे देखकर वे दोनो बहुत प्रसन्न हुये और उसकी आवभगत की। उसके लिये रामनरेश ने राजश्री से चाय नाश्ता लगाने के लिये कहा। उस दिन दुर्भाग्य से उसके घर में दूध खत्म हो गया था और बाजार भी बंद था। यह देखकर रामनरेश ने बिना दूध की चाय बनाने के लिये कह दिया। उसकी पत्नी ने उसको कहा कि मेरा भाई बिना दूध की चाय नही पीता है। रामनरेश के जोर देने पर उसने पुनः अपनी बात को दोहरा दिया। इससे नाराज होकर उसने एक थप्पड अपनी पत्नी पर जड़ दिया जिससे उसकी नाक से खून बहने लगा। यह देखकर उसका भाई अपने जीजा से बहुत कुपित हो गया और बहन को साथ में ले जाकर पुलिस थाने में घरेलू प्रताडना, मारपीट एवम दहेज प्रताडना की शिकायत दर्ज करा दी। यह विवाद परिवार परामर्श केंद्र को सुलझाने हेतु भेजा गया। केंद्र के परामर्शदाताओं द्वारा जब इस मामले की गहराई से छानबीन की गई तो पता हुआ कि यह रामनरेश की कभी कभी पत्नी पर हाथ उठाने की पुरानी आदत हैं। उसके बाद वह माफी भी माँग लेता था और मामला वही शांत हो जाता था परंतु इस बार उसके भाई के हस्तक्षेप के कारण यह मामला पुलिस एवं परामर्श केंद्र तक पहुँच गया। रामनरेश ने परामर्शदाताओं के समक्ष अपनी गलती स्वीकार करते हुये बताया कि धोखे से उसका हाथ राजश्री की नाक पर पड गया जिससे खून आ गया। उसकी पत्नी ने भी यह बात स्वीकार की और उसके पति द्वारा माफी माँगने पर उसे माफ करने की बात कहकर अन्य आरोपों को भी निराधार बताया। उसने पति को माफ कर दिया और यह छोटा सा पारिवारिक विवाद कठोर कानूनी कार्यवाही से बच गया।
अब एक और रोचक वृतांत से आपको अवगत करा रहा हूँ। कुछ दिन पूर्व परामर्श केंद्र में एक संभ्रांत परिवार की युवती आई, उस वक्त वह काफी परेशान दिख रही थी और आते ही बदहवास लडखडाती आवाज में अपने साथ हो रही बदसलूकी और अनुचित व्यवहार की शिकायत पति के खिलाफ कर रही थी। उसके साथ उसकी लगभग दस वर्षीय पुत्री भी थी। पुत्री के चेहरे पर भी घबराहट के चिन्ह देखे जा सकते थे। उस युवती के थोडा शांत हो जाने पर उससे पति से विवाद का पूरा विवरण विस्तार से सुना। युवती गुस्से में अपने पति पर गंभीर आरोप लगाते हुए कह रही थी कि मेरे पति बेवजह मारपीट करते हैं, अभी तक तो सब ठीक था परंतु जब से स्वयं के घर का निर्माण प्रारंभ किया है, उसके बाद से झगडे होने लगे है। युवती आगे कहती है कि घर का निर्माण कार्य मैं स्वयं देख रही हूँ। निर्माण सामग्री से लेकर इंजीनियर के पास तक जाने की सारी गतिविधियाँ, फिर घर का काम करना, इतना करने के पश्चात भी मेरे पति मुझसे मारपीट करने लगते हैं।
मैं एक संभ्रांत परिवार से हूँ। मेरे माता पिता दोनो शासकीय महाविद्यालय में साइंस के प्रोफेसर हैं। मैं स्वयं भी एम.एस.सी. प्रथम श्रेणी से पास हूँ। पति भी एम.एस.सी है एवं सास ससुर भी उच्च शिक्षा प्राप्त, शासकीय महाविद्यालय में प्रोफेसर है। पैसों की तंगी नही है। पति शहर से 40-45 किलोमीटर दूर शासकीय महाविद्यालय में शिक्षक हैं। वे सुबह घर से निकलते है तो शाम 7 बजे तक घर आते हैं। मैं घर पर बच्ची को देखते हुए सारे कार्य निपटाती हूँ फिर भी मेरे पति द्वारा उचित व्यवहार नही किया जा रहा है।
इतना सुनने के पष्चात परामर्शदाताओं ने युवती के पति को बुलाने के लिये पुलिस के वाहन को उसके कार्यस्थल पर भेजा। पति महोदय के आते ही वह पत्नी पर नाराज होता हुआ बोला कि आखिर तुमने अपना घर तोडने की सोच ही ली है और मुझे मेरे कार्यस्थल से जिस तरह पुलिस वाहन से बुलवाया गया है उससे मेरे आत्म सम्मान को काफी ठेस पहुँची है। मेरे साथी शिक्षक एवं अन्य स्टाफ चर्चायें कर रहे हैं कि मैंने ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया जिस पर मुझे पुलिस वाहन भेजकर तत्काल बुलवाना पडा। परामर्शसमिति के पूछने पर पति महोदय ने बताया कि मेरी पत्नी ने मुझ पर क्या क्या आरोप लगाये है ? यह सुनकर परामर्श समिति ने उसकी पत्नी द्वारा बतायी गयी बातों को संक्षिप्त में बता दिया गया।
पति ने बताया कि मैं सुबह उठकर बच्ची को तैयार करता हूँ, स्कूल भेजने के लिये। उसके पश्चात चाय नाश्ता बनाकर बच्ची को देता हूँ फिर स्वयं नहा धोकर स्वयं का दोपहर का भोजन बनाता हूँ और बस द्वारा सुबह अपने कार्यस्थल के लिय निकल जाता हूँ। पत्नी तब तक सोती रहती हैं क्या मैंने इसलिये षादी की थी ? शाम को घर आने के बाद बच्ची का होमवर्क करता हूँ उसके बाद रात्रि का भोजन बनाता हूँ और हम सब भोजन करके सो जाते है। यह मेरी दिन भर की कार्यप्रणाली है। मै कब झगडा करता हूँ, कब मारपीट करता हूँ ? यह सब कपोल कल्पित बातें हैं। यह क्यों कर रही हैं यह मुझे नही पता ?
नये बन रहे घर के बारे में बात करने पर पति महोदय ने कहा कि बस यही है उसकी वजह। मैं अब पत्नी के साथ नही रह सकता हूँ। दोनो के माता पिता आ चुके थे वे भी कुछ समझ नही पा रहे थे कि आखिर यह सब क्या हो रहा है। आज तक दोनो पति पत्नी ने कुछ भी ऐसी पारिवारिक विवाद की चर्चा हम लोगों से क्यों नही की और बात परामर्श केंद्र तक आ पहुँची। इतना होते होते शाम ढलने लगी थी और हमारे समझौते का प्रयास असफल होते दिख रहा था। तभी मैंने एक सहायक को कुछ रूपये देकर चाय नाश्ता लाने के लिये कहा एवं उस बच्ची के लिये भी चाकलेट लाने के लिये कहा। इसी बीच उस बच्ची से मैंने अकेले चर्चा की और उस बच्ची की बातें सुनने में तल्लीन हो गया क्योंकि वह जो बता रही थी उसे किसी ने भी अभी तक नही बताया था। पूरा वाक्या सुनकर मुझे फिर आशा की किरण दिखी कि अब तो समझौता होना ही है।
बच्ची ने मुझे बताया कि अंकल मैं अब सब समझती हूँ, मेरे पापा तो सही है मेरी नजर में। कुछ देर बाद बच्ची ने जो बताया उसे सुनकर मैं अचंभित रह गया। उसने बताया कि नये घर बनने से पूर्व सब ठीक था, जब से घर बन रहा है तभी से विवाद होने लगे है पापा का कहना था कि जब मेरा शहर में ट्रांसफर हो जायेगा तब घर बनवाने का काम शुरू करेंगे परंतु मम्मी के दबाव और सारे कार्य को संभाल लेने की जिद के कारण उन्हें कार्य शुरू करवाना पडा। मम्मी से मिलने एक बाबा आते है वे जब भी आते नये घर में बंद कमरे में एक दो घंटे रूकते और मम्मी भी उनके साथ रहती। इसी प्रकार कुछ समय पश्चात घर के युवा इंजीनियर जो निर्माण कार्य की देखरेख करते हैं उनके साथ भी मम्मी बंद कमरे में एक दो घंटे रहती हैं। यह बातें शायद पापा को मालूम पडने पर मम्मी को डांटा फटकारा तो मम्मी यहाँ चली आई।
मुझे सब समझ में आ गया था। मैंने उस युवती को अकेले में बुलाया और उपरोक्त बातें जो उसकी बच्ची ने बताई थी सुनकर सन्न रह गई और गिडगिडाकर कहने लगी कि मेरे घर को बचा लीजिए एवं यह घटना मेरे पति एवं परिवार को कृपया ना बताएँ। इसके पश्चात पति महोदय को काफी समझाया एवं पत्नी ने माफी माँगी वादा किया कि आगे से किसी प्रकार की शिकायत का मौका नही दूँगी। अंत में सौहाद्रपूर्ण वातावरण में दोनो ने परामर्श केंद्र के प्रति आभार व्यक्त करते हुए अपने घर के लिये निकल गये।
परिवार परामर्ष केंद्र में एक नया मामला आया। एक गाँव की महिला कम पढी लिखी महिला आई और कहा कि मेरे पति ने दूसरी शादी कर ली है, जबकि मैं ब्याहता पत्नी हूँ। उस महिला के साथ दो बच्चे लगभग सात एवं नौ वर्ष के थे। उसने बताया कि न्यायालय में मेरा केस चला जिसमें मैं विजयी हुई हूँ। मेरे वकील ने बताया कि जब भी आपकी इच्छा हो तो पति के पास चली जाना और यह केस निर्णय की सत्यप्रति है। परामर्श समिति द्वारा निर्णय की कापी माँगने पर कहने लगी कि अभी तो नही लाई हूँ जब पति को बुलायेंगे तब ले आऊँगी। हमने आगामी तारीख दे दी और आने के लिये कहा। महिला के पति को भी सूचना देकर उसके गाँव से बुलवाया गया। निश्चित तारीख और समय पर पति महोदय अपनी दूसरी पत्नी के साथ आ गये और हमसे प्रकरण की जानकारी ली। पति ने अपने बयान में कहा कि वह एक शासकीय माध्यमिक शाला में शिक्षक है और साथ ही साथ गाँव में पुश्तैनी जमीन भी है। भला एक पत्नी के रहते हुये मैं दूसरा विवाह कैसे कर सकता हूँ, यदि मैं ऐसा करूँगा तो मुझे सजा हो जायेगी और नौकरी भी चली जायेगी।
दोनो पत्नियों के चक्रव्यूह में बैठा पति परेशान दिखने लगा। पहली पत्नी से न्यायालय के केस की कापी प्राप्त कर पढा गया, तब माजरा समझ में आया। पति महोदय ने कहा कि मैं न्यायालय के निर्णय के पश्चात दो तीन बार पहली पत्नी को लेने गया और बच्चों से मिलवाने का आग्रह किया और पुनः साथ रहने के लिय कहा लेकिन पत्नी एवं उसके भाइयों ने मुझे मना कर दिया और धक्के देकर मुझे भगा दिया। इसके बाद न्यायालय के निर्णय के 1 वर्ष 6 माह बाद पश्चात मैंने दूसरी पत्नी को पहली पत्नी के बारे में पूरी बातें बताकर शादी कर ली। दूसरी पत्नी ही मेरी असली पत्नी है, क्योंकि पहली पत्नी से तलाक हो चुका है। अब इसमें मेरी क्या गलती है ?
पहली पत्नी के साथ उसके मायके पक्ष से भी काफी लोग आये थे, वे सभी काफी नाराज होने लगे। तब सभी को बताया गया कि न्यायालय का जो निर्णय हुआ है उसमें लिखा है कि 6 माह तक पत्नी जाना चाहें तो पति के पास जा सकती है, नही तो दो बच्चों के साथ हमेशा के लिये तलाक हो चुका है। पहली पत्नी ने बच्चों की माँग की थी जिसे न्यायालय ने मान लिया था, इसलिये बच्चे पहली पत्नी के पास है। इतना सुनने पर पहली कहने लगी की हमारे वकील ने तो कहा था कि तुम कभी भी जा सकती हो। इसी बीच एक वकील साहब अपने किसी काम से परामर्श केंद्र आये हुये थे तो उनसे निर्णय को पुनः पढकर सुनाने का निवेदन किया गया। उन्होंने ने भी निर्णय पढकर यह कहा कि समय सीमा समाप्त हो चुकी है और तलाक हो चुका है। यह सुनकर परेशान बच्चों एवं पत्नी ने रोना पीटना शुरू कर दिया।
इस बीच हमने पति महोदय से कोई रास्ता निकालने का निवेदन किया। तब पति ने दूसरी पत्नी के चर्चा कर बताने के लिए समय माँगा। दोनो ने सलाह करके कहा कि आप ही बतायें हम लोग क्या कर सकते हैं ? परामर्श समिति ने बताया कि अब वह अकेली रहती है एवं मजदूरी करती है एवं उसके बच्चे भूख से तडपते रहते है। बच्चे तो तुम्हारे ही है और परामर्श समिति ने एक सुझाव दिया कि पति महोदय बच्चों को रख लें एवं उनका उचित लालन पालन करें तथा पहली पत्नी को बच्चों से मिलने की छूट रहेगी। यह सुनकर पति महोदय एवं उनकी दूसरी पत्नी ने इस बात पर खुशी खुशी सहमति दे दी। इस बात पर पहली पत्नी ने भी सहमति दे दी।
इसमें गौर करने वाली बात यह है कि पहली पत्नी ने न्यायालय कि निर्णय को यह समझा कि वह कभी भी अपने पति के पास जा सकती है परंतु समय सीमा 6 माह है इसे वह नही समझ पाई जो कि संबंध विच्छेद का कारण बन गई।
वक्त की गति और भाग्य का खेल किसी भी व्यक्ति को जीवन में कहाँ से कहाँ पहुँचा दे यह किसी को नही मालूम हो पाता है। अपनी नियति के आगे मानव विवश हो जाता है। कुछ ऐसा ही पल्लवी के साथ हो गया था, जिसकी कल्पना किसी ने भी नही की थी। अभी उसके विवाह को एक माह भी पूरे नही हुये थे कि विचारों में अंतर्विरोधों के कारण उन दोनो संबंध विच्छेद का आवेदन दे दिया था और पल्लवी अमेरिका छोडकर वापिस अपने माता पिता के पास अपने गृहनगर आ गयी थी। उसने मानसी को संपर्क करके अपनी इन बातों की जानकारी दी जिसे सुनकर वह भी हतप्रभ रह गई और उसने राकेश को ये बातें बताई। राकेश मन ही मन बहुत दुखी हुआ और मानसी को पल्लवी के पास जाकर उसे सांत्वना देने की सलाह दी। पल्लवी कुछ दिनों के लिए मानसी को स्वयं अपने पास आने का आग्रह करती है। जिसे स्वीकार कर मानसी पल्लवी के पास कुछ दिनों के लिए चली जाती है। पल्लवी ने अपने संबंध विच्छेद के वास्तविक कारण को नही बताया और ना ही मानसी ने उसे जानने की इच्छा व्यक्त की। उसने पल्ल्वी से पूछा कि अब तुम छः माह के उपरांत जब तुम्हे वैधानिक रूप से संबंध विच्छेद की स्वीकृति प्राप्त हो जायेगी उसके बाद क्या करोगी ? उसने कहा कि मैं एक बच्चों का स्कूल खोलकर उन्हें निशुल्क शिक्षा प्रदान करने में अपना समय बिताऊँगी। मानसी के यह पूछने पर कि तुम्हें पुनर्विवाह कर लेना चाहिए तो वह बोली कि जब एक के साथ जीवन निर्वाह नही हो सका तो आगे किसी दूसरे के साथ निभेगी या नही इस बात का क्या भरोसा है ? मानसी ने उसको समझाते हुए कहा कि अभी तुम्हारे पास चार माह का समय तो वैसे ही है। आनंद आज भी तुम्हें प्रेम करता है और यदि वह विवाह के लिए तैयार हो तो क्या तुम उसके साथ पुनः विवाह करना चाहोगी ? पल्लवी ने कहा कि अभी मैं कुछ नही कह सकती ? जब ऐसी परिस्थिति आयेगी तब सोचूँगी। मानसी घर वापिस आने के बाद आनंद से मिलकर सभी बातों से अवगत कराती है और कहती है कि आनंद यदि तुम वास्तविक प्रेम करते हो और इन परिस्थितियों में समझौता कर सकते हो तो तुम पल्लवी के साथ पुनः विवाह के बारे में सोच सकते हो ? आनंद सोचकर कहता है कि हाँ मैं तैयार हूँ। मैं उसे आज भी उतना ही प्रेम करता हूँ जितना पहले करता था। यह सुनकर मानसी बहुत खुश होती है और कहती है कि यही सच्चा प्रेम है जो कि जीवन में एक दिन सफलता का सेतु बनता है। मैं पल्लवी को समझाती हूँ और ईश्वर की इच्छा हुई तो तुम दोनो का जीवन व्यवस्थित होकर एक दूसरे के प्रति समर्पित हो सकेगा। अब मानसी पल्लवी को समझाती है और अंततः वह भी शादी के लिए तैयार हो जाती है।
आरती हास्टल में अकेली रहती थी। मानसी और पल्लवी दोनो शादी हो जाने के कारण जा चुकी थी। गौरव को उसने शादी करने से मना कर दिया था इसलिये उसने भी मिलना बंद कर दिया था। वह चुपचाप अपने बीते हुये दिनों को याद करके कुंठित होती रहती थी। मानसी और पल्लवी जब आपस में मिल गये तो उन्हें भी आरती की याद आने लगी और वे दोनो उसके हास्टल गये जहाँ उन्हें पता हुआ कि वह हास्टल छोडकर कहीं और रहने लगी है। उन्होंने उसके माता पिता को फोन करके आरती के बारे में जानकारी ली और उसके नये हास्टल का पता लेकर उससे मिलने पहुँच गई। आरती, पल्ल्वी और मानसी दोनो को देखकर भौचक्की रह गई। उसे जब पल्ल्वी के विषय में पूरी जानकारी प्राप्त हुई तो वह आश्चर्यचकित होकर मन ही मन बहुत दुखी हो गई और उससे पूछने लगी कि अब आगे उसकी क्या योजना है ? पल्लवी ने कहा कि तुम मेरी बात छोडो और अपने बारे में बताओ। कहीं रिश्ता तय हुआ या नही ? आरती ने कहा कि यदि रिश्ता तय हो जाता तो तुम लोगों को अवश्य जानकारी देती। अब दोनो उसको गौरव के विषय में बताती है कि वह अब बिल्कुल बदल चुका है और एक परामर्श केंद्र के माध्यम से जनसेवा में लगा हुआ है। आरती कहती है हाँ मुझे इस बारे में मालूम है। मैं भी गौरव के विषय में सोचती हूँ परंतु मेरे द्वारा कहे गये शब्दों के कारण मेरी उससे मिलने की हिम्मत नही होती। मेरे मन में उसके प्रति आज भी प्रेम हैं मैं केवल उसकी पुरानी जीवनशैली से ही नफरत करती थी। यह सुनकर मानसी कहती है कि अगर गौरव तैयार हो तो क्या तुम उसके साथ विवाह करना पसंद करोगी ? यह सुनकर आरती हाँ कह देती है। आरती के मन की खुशी उसके चेहरे पर झलक रही थी। मानसी यह सारी बातें राकेश को बताती है और उसे गौरव से बात करने के लिये कहती है। राकेश भी गौरव को सारी बातें बताकर कहता है कि जो बीत गया सो बीत गया अब आगे की सुध लो। तुम आरती को उसके कहे हुए शब्दो के लिये माफ करके, शादी के लिए तैयार हो तो हम उससे आगे बात बढाये। गौरव कहता है माफी उसको नही मुझे माँगनी चाहिये क्योंकि गलती मेरी थी और उसके कहे हुए शब्दों के कारण ही आज मेरे जीवन में परिवर्तन आया है। मैं भी अपने संकोच के कारण उससे नही मिल पाया। अगर तुम मेरी इन भावनाओं को उस तक पहुँचा सको तो मैं तुम्हारा आभारी रहूँगा।
इसके कुछ माह बाद ही पल्ल्वी का आनंद और आरती का गौरव के साथ विवाह हो जाता है। तीनों अपने जीवनसाथीयों के साथ सुखमय जीवन बिताने लगते है एवं परामर्श केंद्र के माध्यम से अनेक बिगडे हुये रिश्तो को बनाने की सेवा में अपना समय व्यतीत करते हैं।