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तुम मिले - 10


                          तुम मिले (10)

खाने के बाद दुर्गेश ने कहानी आगे बढ़ाई.....

मुग्धा से शादी होने के बाद सौरभ बहुत खुश था। लेकिन वो तीनों लोग इसे अपनी हार मान रहे थे। मुग्धा के आ जाने के बाद सौरभ को रास्ते से हटाने के लिए उन्हें बहुत सोंच समझ कर चाल चलनी थी। 
इसी बीच एक और बात हो गई। पता चला कि ऑफिस में एक बड़ी रकम का घपला हुआ है। इसके पीछे अल्पेश था। अपनी जलन और हताशा में उसे सट्टे की आदत पड़ गई थी। सट्टे में मिली जीत ज़िंदगी में उसकी नाकामी के अवसाद को कम कर देती थी। अक्सर वह ऑफिस से पैसे लेकर दांव खेलता था। जीतने पर मुनाफा खुद रख कर बाकी रकम वापस कर देता था। अधिक मुनाफे की उम्मीद में उसने एक बड़ी रकम दांव पर लगाई थी। लेकिन दांव उल्टा पड़ गया। रकम डूब गई।
बिज़नेस की यही समस्या थी जिसके चलते सौरभ हनीमून पर नहीं जा सका था। सौरभ ने इस मामले की जाँच की तो अल्पेश का नाम सामने आया। दुर्गेश बहुत नाराज़ हुए। उन्होंने पूरे ऑफिस के सामने अल्पेश को बुरी तरह लताड़ दिया। इसके बाद तो अल्पेश किसी भी तरह सौरभ से बदला लेने की सोंचने लगा। 
सट्टेबाजी की लत के चलते अल्पेश आपराधिक पृष्ठभूमि वाले कुछ लोगों के संपर्क में आया था। उनमें एक था शंभू सहाय। शंभू सुपारी लेकर लोगों की हत्या करने का काम करता था। अल्पेश उससे मिला और सौरभ की हत्या कराने के सिलसिले में उससे मिला। 
लेकिन इसी बीच सौरभ और मुग्धा  एक महीने के लिए हनीमून पर हिल स्टेशन चले गए। अल्पेश को यह सही अवसर लगा। उसने सोंचा कि यदि वहाँ सौरभ के साथ कुछ होगा तो सारी बात मुग्धा पर आसानी से डाली जा सकती है। 
अल्पेश ने शंभू के साथ मिल कर एक प्लान बनाया। वह चाहता था कि सौरभ उसकी आँखों के सामने दम तोड़े। इसलिए उसने शंभू से कहा कि वह सौरभ को अगवा कर यहाँ ले आए। लेकिन इस बात का खयाल रखे कि सौरभ को अगवा करते समय मुग्धा पास ना हो। ताकी वह कोई गवाही ना दे सके। 
शंभू हिल स्टेशन पहुँच कर सही मौके की राह देखने लगा। यह मौका उसे तब मिला जब सौरभ अकेला वॉक के लिए गया। सावधानी बरतने के बावजूद शंभू की सौरभ से बात करते हुए सीसीटीवी फुटेज पुलिस के हाथ लग गई। उसमें भी शंभू की शक्ल नहीं दिखाई पड़ रही थी। 
सौरभ की गुमशुदगी का केस इंस्पेक्टर कर्ण सिंह के पास था। उसने फुटेज में एक बात पकड़ ली। जो आदमी दिखाई दे रहा था उसके बाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली कटी हुई थी। कर्ण सिंह एक काबिल ऑफिसर था। उसने जिस जगह से सौरभ गायब हुआ था वहाँ आसपास के घरों में पूँछताछ की। एक सोलह साल के लड़के ने बताया कि उस दिन उसने सौरभ को एक आदमी के साथ काले रंग की कार में बैठ कर जाते देखा था। 
कर्ण सिंह ने अंदाज़ लगाया कि वह आदमी सौरभ को अगवा कर ले गया होगा। उसने पहले हिल स्टेशन पर ऐसे आदमी की खोज करने का प्रयास किया जिसके बाएं हाथ की उंगली कटी हो। वहाँ सफलता ना मिलने पर कर्ण ने सौरभ के शहर में अपने मुखबिरों को यह काम सौंपा। उन्होंने उसे शंभू के बारे में बता दिया। कर्ण ने शंभू को गिरफ्तार कर उससे पूँछताछ की। शंभू ने सारी बात बता दी।
शंभू उस दिन सौरभ से मिला। उसे झूठी कहानी बताई कि कार में उसका दोस्त है जो बहुत बीमार है। वह चल कर उसकी मदद कर दे। सौरभ बात मान कर उसके साथ कार तक गया। उसने देखा कि पिछली सीट पर एक आदमी सीने पर हाथ रखे कराह रहा है। जब वह उसे देखने के लिए कार के अंदर गया तब बीमारी का नाटक कर रहे आदमी ने उसे कुछ सुंघा दिया। सौरभ बेहोश हो गया। सौरभ को नींद की दवा का इंजेक्शन दिया गया। जिसके कारण वह रास्ते भर सोता रहा।  
शहर में पहुँच कर शंभू ने अल्पेश को फोन किया। अल्पेश ने उसे सौरभ को लेकर अपने फार्म हाउस' पर आने को कहा। वहाँ उसने खुद अपने हाथ से सौरभ को चार गोलियां मारीं। सौरभ की लाश को फार्म हाउस के पास के जंगल में दफना दिया गया। 
कर्ण सिंह जितना काबिल ऑफिसर था उतना ही शातिर भी था। उसने शंभू को दूसरे केस में जेल भेज दिया और उसके बयान के आधार पर अल्पेश को ब्लैकमेल कर मोटी रकम वसूलने लगा। 
सौरभ को गायब हुए लगभग तीन साल हो गए थे। दुर्गेश का मन अब बिज़नेस में नहीं लग रहा था। उन्होंने सब कुछ अल्पेश पर छोड़ दिया। सौरभ के केस में कोई सफलता ना मिलने से परेशान वह थे। उन्होंने यह केस क्राइम ब्रांच के सुपुर्द करवाने का प्रयास किया। अल्पेश ने इस काम में रोड़ा डालने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सका। केस नागेश राणा के अधीन आ गया।
नगेश ने जब सौरभ के केस को स्टडी किया तो उनके अनुभव ने यह संकेत दिया कि सौरभ के गायब होने में किसी नज़दीकी का हाथ है। उन्होंने सबसे पहले मुग्धा के बारे में पता किया। लेकिन उन्हें कोई सुराग नहीं मिला। लेकिन जब उन्होंने परिवार के अन्य लोगों के बारे में पता किया तो अल्पेश के बारे में जो पता चला वह केस को हल करने की चाभी साबित हुआ।
यह पता चलते ही कि केस क्राइम ब्रांच के ऑफिसर नगेश राणा के सुपुर्द हो गया है कर्ण सिंह घबरा गया। उसने आखिरी किस्त के रूप में अल्पेश से एक बहुत बड़ी रकम मांग ली। उसने अल्पेश से कहा कि इसके बाद वह और पैसे नहीं लेगा। साथ ही नागेश राणा को गुमराह करने का प्रयास भी करेगा। रकम बहुत अधिक थी। अल्पेश उसका जुगाड़ नहीं कर पा रहा था। इसलिए उसने अचला को अपने मायके से मदद लाने भेजा था। वहीं मुग्धा उससे मिली थी। 
नागेश राणा को इस बात की सूचना थी कि कर्ण सिंह अल्पेश से उसके फार्म हाउस' पर मिलता रहता था। नागेश उनकी अगली मुलाकात की प्रतीक्षा में थे। जब अल्पेश रकम देने के लिए कर्ण सिंह से मिला तब नागेश ने उन्हें रंगे हाथ पकड़ लिया। अल्पेश ने गुनाह कबूल कर लिया। उसके बताए गए स्थान से सौरभ का शव निकाल कर डीएनए कराया गया। शव सौरभ का था। रमा और अचला को भी सब पता था। अतः उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। 
सब कुछ जान लेने के बाद सुकेतु और मुग्धा कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थे। कुछ समय तक सब शांत रहे। दुर्गेश बहुत दुखी थे। मुग्धा उन्हें समझाने लगी कि अब वह अपने मन को शांत करने का प्रयास करें। वह बोले।
"क्या मिला उन लोगों को यह सब करके। खुद भी जेल में हैं। मेरी भी दुनिया उजड़ गई। मैं रमा का दोषी था। सौरभ तो निर्दोष था। सदा उसे मान सम्मान दिया। फिर उसे क्यों मारा।"
दुर्गेश रुके और मुग्धा के सर पर हाथ रख कर बोले।
"तुमने भी बहुत कुछ सहा। अब सुकेतु के साथ नया जीवन शुरू करो। वह बहुत अच्छा इंसान है।"
सुकेतु और मुग्धा दोनों ने दुर्गेश के पैर छुए। उन्होंने दोनों को सुखी रहने का आशीर्वाद दिया।







              







              

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