तुम मिले (6) Ashish Kumar Trivedi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

  • मंजिले - भाग 14

     ---------मनहूस " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ कहानी है।...

श्रेणी
शेयर करे

तुम मिले (6)


                  तुम मिले (6)


मुग्धा अपनी इच्छा से ससुराल छोड़ कर अपने मायके चली गई थी। इतने दिनों से उसने कोई खबर भी नहीं ली थी। अचानक मुग्धा को देख कर उसके ससुराल वाले आश्चर्य चकित हो गए। उसके जेठ अल्पेश को उसका वहाँ आना बिल्कुल पसंद नहीं आया। मुग्धा के ससुर ने कहा।
"अब क्यों आई हो यहाँ ? तुम अपनी इच्छा से यह घर छोड़ कर गई थी।"
"हाँ मैं अपनी इच्छा से घर छोड़ कर गई थी। लेकिन मैं सौरभ की पत्नी हूँ। इस घर में रहने का हक है मुझे।"
मुग्धा की बात सुन कर अल्पेश बोला।
"तो तुम यहाँ अपना हक जमाने आई हो।"
"भइया हक तो मेरा है ही। मैं तो यहाँ यह जानने के लिए आई हूँ कि सौरभ के केस में आगे क्या हुआ।"
"तुमसे कहा था ना कि जब कुछ पता चलेगा तब तुम्हें बता देंगे।"
"हाँ पर मैं तो यह जानना चाहती हूँ कि तीन साल हो गए पर अभी तक इस केस में कोई कामयाबी नहीं मिली। आप लोग तो पहुँच वाले हैं। तो फिर इस केस को साल्व करने के लिए उसका इस्तेमाल क्यों नहीं करते।"
इस बार जवाब मुग्धा के ससुर ने दिया। 
"तुम कहना क्या चाहती हो कि हम सौरभ को ढूंढ़ने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। हमें जो करना था हमने किया। अपनी कोशिशों से केस क्राइम ब्रांच के सुपुर्द कर दिया। इतनी कोशिश की पर कोई सफलता नहीं मिली। अब हम क्या कर सकते हैं।"
"पापा मैं वो नहीं कह रही थी। लेकिन सौरभ के बारे में सोंच कर मुझे भी फिक्र होती है। इसलिए यहाँ आई थी।"
अल्पेश फिर बीच में बोला।
"फिक्र है तुम्हें ओह....तो फिर घर छोड़ कर क्यों चली गईं। यहाँ रह कर देखतीं कि हम क्या कर रहे हैं। वैसे भी सौरभ जब लापता हुआ था तब तुम ही उसके पास थी। तुम अधिक जानती होगी।"
"मुझे जो पता था मैंने पुलिस को सच सच बता दिया था। फिर भी आप लोग इसी बात को लेकर मुझ पर शक कर रहे थे। मेरे लिए यह सब सहना कठिन हो रहा था।"
मुग्धा और अल्पेश के बीच कहीं बात बढ़ ना जाए यह सोंच कर उसके ससुर ने पूँछ लिया।
"कितने दिन के लिए यहाँ आई हो ?"
"तीन दिनों के लिए..."
अल्पेश ने फिर तीखे स्वर में कहा।
"तुम्हारा मायका भी तो इसी शहर में है। वहाँ क्यों नहीं गई ?"
मुग्धा ने भी उसी अंदाज़ में कहा।
"हाँ मम्मी पापा से मिलने जाऊँगी। लेकिन यहीं रहूँगी।"
एक बार फिर मुग्धा के ससुर ने उन दोनों को शांत कराने के लिए कहा।
"ठीक है....तुम जब तक रहना चाहो यहीं रहो।"
उन्होंने जानकी को आवाज़ लगाई। बीस बाइस साल की एक लड़की आकर खड़ी हो गई। मुग्धा समझ गई कि नई नौकरानी है। उसके ससुर ने जानकी से कहा कि वह मुग्धा का सामान गेस्टरूम में पहुँचा दे। मुग्धा के पास केवल एक बैग था। उसने वह खुद ही ले लिया। जानकी के पीछे वह गेस्टरूम में चली गई।
गेस्टरूम में जाते समय मुग्धा को उसकी सास मिल गई। मुग्धा ने उनके पैर छुए। हमेशा की तरह उन्होंने बिना कुछ बोले उसके सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया और आगे बढ़ गईं। 
मुग्धा समझ रही थी कि भले ही उसके ससुराल वालों ने उसे रहने की इजाज़त दे दी हो पर वो नहीं चाहते हैं कि मुग्धा घर की परिस्थिति के बारे में जान सके। इसीलिए उसे बंगले के पिछले हिस्से में बने गेस्टरूम में ठहराया गया है। सुबह का नाश्ता और दोपहर का खाना जानकी उसके कमरे में पहुँचा गई थी। 
मुग्धा किसी भी तरह अचला से मिलना चाहती थी। लेकिन उसकी कोई राह नहीं दिख रही थी। रात में जानकी जब खाना लेकर आई तो मुग्धा ने उससे बातचीत करना शुरू किया।
"जानकी तुम नई आई हो। पहले तो विमला काम करती थी।"
"जी कोई सात महीने हुए मुझे आए। विमला मेरी चचेरी बड़ी बहन थी। उसकी शादी हो गई। उसने मुझे काम पर रखवा दिया।"
"तुम भी विमला की तरह अच्छा काम करती हो।"
अपनी तारीफ सुन कर जानकी खुश हो गई। मौका देख कर मुग्धा ने पूँछा।
"अच्छा बहुत देर हो गई मुझे आए पर अचला भाभी मिलने नहीं आईं।"
'वो तो घर पर हैं ही नहीं। अपने मायके गई हैं।"
"अच्छा.... कब आएंगी ?"
"अगले हफ्ते..."
तभी जानकी अचानक बोली।
"साहब लोग टेबल पर बैठ गए होंगे। मैं जाती हूँ।"
जानकी के जाने के बाद मुग्धा परेशान हो गई। अचला से मिलना बहुत ज़रूरी था। पर वह तो वहाँ थी ही नहीं। उसे तो परसों जाना है। फिर मुलाकात कैसे होगी। खाने की प्लेट पर ध्यान दिए बिना वह रूम में टहलने लगी। वह मन ही मन सोंच रही थी कि क्या उसका आना बेकार जाएगा। कमरे में चक्कर काटते हुए उसके मन में एक बात आई। साथ ही होठों पर मुस्कान खिल गई। वह बैठ कर इत्मिनान से खाना खाने लगी।
मुग्धा टैक्सी में बैठी अचला के घर जा रही थी। सौरभ के साथ हनीमून पर जाने से पहले एक बार वह अचला भाभी के भतीजे के मुंडन की पार्टी में सबके साथ उनके घर गई थी। उसे पता था कि अचला भाभी का घर किस मोहल्ले में है। वह टैक्सी के बाहर झांक कर स्पेशल बच्चों के स्कूल को देख रही थी। उस स्कूल से बाईं तरफ मुड़ कर सड़क का आखिरी मकान अचला भाभी का था।
मुग्धा सोंच रही थी कि कभी कभी जो बात मुसीबत लगती है वही वरदान बन जाती है। अचला भाभी का उसकी ससुराल में ना मिलना भी ऐसा ही था। वहाँ वह खुल कर उनसे बात नहीं कर सकती थी। उनके मायके में वह खुल कर बात कर सकेंगी। 
मुग्धा को वह स्कूल दिख गया। उसने ड्राइवर को बाईं तरफ मुड़ने को कहा। अंतिम मकान के गेट पर पत्थर लगा था 'भाटिया हाउस'। वह अपनी मंज़िल पर पहुँच गई थी।
मुग्धा को देख कर अचला चौंक गई। अपने पर नियंत्रण कर उसने मुग्धा का स्वागत किया।
"कैसी हो मुग्धा ? तुम्हें मेरा घर मिल गया।"
"ठीक हूँ भाभी। आपके भतीजे के मुंडन पर आ चुकी हूँ।"
अचला ने उसे बैठाया। उसने मुग्धा से उसके आने का कारण पूँछा। मुग्धा ने कहा कि अच्छा होगा कि वह उसके कमरे में चल कर बात करे। अचला ने किचन में कुछ निर्देश दिए और मुग्धा को लेकर अपने कमरे में आ गई। 
अचला समझ रही थी कि मुग्धा इतनी दूर अगर उससे मिलने आई है तो ज़रूर ही सौरभ के केस के बारे में जानना चाहती होगी। मुग्धा पर जो बीती उसके कारण अचला भी दुखी थी। लेकिन वह चाह कर भी उसकी सहायता नहीं कर पा रही थी। 
"अब बताओ तुम मुझसे मिलने क्यों आई हो ?"
"भाभी तीन साल हो गए। लेकिन सौरभ का कोई पता नहीं चला। हमारी ससुराल वाले इस मामले में इतने शांत क्यों हैं ?"
"मुग्धा पुलिस कोशिश कर रही है..."
उसे बीच में ही टोंकते हुए मुग्धा ने कहा।
"भाभी ये बात तो वो लोग भी कह रहे थे। इतने दिनों से अधर में लटके हुए मैं थक चुकी हूँ।"
मुग्धा ने प्रश्न भरी दृष्टि अचला पर डाल कर कहा।
"भाभी क्या सौरभ के बारे में कुछ ऐसा है जो मुझसे छिपाया गया।"
मुग्धा की दृष्टि अचला के चेहरे पर टिकी थी। अचला कुछ असहज लग रही थी। तभी कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई। मेड ट्रे में चाय नाश्ता लेकर भीतर आई। मेड के जाने के बाद अचला ने कहा।
"मुग्धा तुम्हें भूख लगी होगी। नाश्ता कर लो।"
"भाभी प्लीज़ मैं आपके पास बहुत उम्मीद से आई हूँ।"

सैंडविच की प्लेट उसकी तरफ बढ़ा कर अचला ने उसे आश्वासन दिया।
"तुम खाओ...मैं बताती हूँ।"
मुग्धा ने एक सैंडविच उठा लिया। अचला ने कहना शुरू किया।
"सौरभ छोटा होने के कारण घरवालों का लाडला था। एमबीए करने के बाद पापा और अल्पेश ने उसे सुझाव दिया कि कहीं और नौकरी करने से अच्छा है अपने बिजनेस में काम करे। सौरभ ने उनकी बात मान ली। मुग्धा सौरभ एक अच्छा लड़का था। जितने दिन भी तुम उसके साथ रही यह बात महसूस की होगी।"
मुग्धा कुछ समझ नहीं पा रही थी कि अचला यह भूमिका क्यों बना रही है। उसने टोंकते हुए कहा।
"भाभी आप सही कह रही हैं। मैं जितने दिन सौरभ के साथ रही वह अच्छा इंसान लगा। पर सौरभ का केस इतना उलझ गया है कि मुझे लगता है कि ज़रूर कुछ ऐसा है जो मुझे नहीं पता लेकिन सौरभ के लापता होने से जुड़ा है।"
अचला कुछ देर रुक कर बोली।
"पता नहीं कि सौरभ के लापता होने से इस बात का संबंध है या नहीं लेकिन एक बात है जो तुम्हें नहीं पता। मुझे भी सौरभ के गायब होने के बाद ही यह बात पता चली।"
"कौन सी बात भाभी....."
मुग्धा ने अचला के चेहरे पर नज़र टिका दी। 
"सौरभ ससुर जी का ही बेटा है पर हमारी सास उसकी माँ नहीं हैं। ससुर जी का किसी के साथ अफेयर था। वही सौरभ की माँ थीं।"
यह सच सुन कर मुग्धा स्तब्ध रह गईं।