तुम मिले - 3 Ashish Kumar Trivedi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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तुम मिले - 3


                    तुम मिले (3)


कहानी सुनाते हुए मुग्धा भावुक हो गई। सुकेतु उसे ढांढस बंधाने लगा। मुग्धा बोली। 
"सुकेतु मैं अजीब सी स्थिति में हूँ। मैं नहीं जानती कि मैं सौरभ की पत्नी हूँ या उसकी विधवा। इस स्थिति में रहना मेरे लिए बहुत कठिन है।"
सुकेतु उठ कर उसकी बगल में बैठ गया। वह जानता था कि इस समय शब्द मुग्धा को तसल्ली नहीं दे सकते। उसने उसका सर अपने कंधे पर रख लिया। प्यार से उसका सर सहलाने लगा। कुछ देर ऐसे ही बैठे रहने के बाद मुग्धा सीधे होकर बैठते हुए बोली। 
"तो जो था वह मैंने तुम्हें बता दिया। हमारी कहानी ऐसी जगह पर है जहाँ से आगे बढ़ने का रास्ता नज़र नहीं आता। अब तुम सोंच लो क्या करना है।"
"मुग्धा मैंने तो पहले ही बताया था कि सुहासिनी के जाने के बाद मैंने अपने आप को सबसे काट कर एक दायरे में बंद कर लिया था।  मैं अकेलेपन की कैद में था। लेकिन तुम उस दायरे को पार कर मेरे पास आ गईं। मैंने तुम्हारे साथ आगे बढ़ने का फैसला किया। मेरी किस्मत की इस राह पर आकर भी अटक गया। लेकिन इस बार मैं अकेला नहीं तुम साथ हो। मैं इस मोड़ से आगे बढ़ने की राह दिखने तक इंतज़ार करूँगा।"
"लेकिन सुकेतु यह ज़रूरी तो नहीं कि हम इस मोड़ से आगे बढ़ पाएं। मेरे कारण तुम क्यों इस असमंजस में रहना चाहते हो। तुम किसी और के साथ आगे बढ़ सकते हो।"
"मुग्धा मेरे जीवन में जल्दी ही कोई प्रवेश नहीं कर पाता। तुमने किया है तो मैं तुम्हें छोडूंगा नहीं। आखिरी तक साथ निभाऊँगा। हर कहानी अंजाम तक पहुँच ही जाती है। हमें भी आगे की कोई राह मिल ही जाएगी। तब तक इसी मोड़ पर खड़े होकर एक दूसरे का साथ निभाएंगे।"
सुकेतु ने मुग्धा की तरफ देख कर प्रश्न किया।
"तुम मेरे साथ इंतज़ार करने को तैयार हो।"
"सुकेतु मैं भी बहुत समय से अकेली असमंजस के इस मोड़ पर खड़ी थी। अकेलेपन से उकता चुकी थी जब तुम्हारा साथ मिला। इंतज़ार तो मैं भी कर रही हूँ कि इस मोड़ से आगे बढूं। अब तुम साथ हो तो इंतज़ार आसान हो जाएगा। मैं तो बस तुम्हारे बारे में सोंच कर परेशान थी। क्या हमें इस मोड़ से आगे बढ़ने की राह मिलेगी"
"अभी कुछ कह नहीं सकता हूँ। पर कोई राह तो होगी ही। मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि हर स्थिति में तुम्हारे साथ खड़ा रहूँगा।"
उसकी बात सुन कर मुग्धा की आँखें फिर नम हो गईं। इस बार वह उठी और सुकेतु को गले लगा लिया। कुछ देर तक दोनों उसी हालत में बैठे रहे। कमरे में पूरी तरह सन्नाटा था। मुग्धा और सुकेतु मौन रह कर एक दूसरे को संबल दे रहे थे।
अचानक कुछ याद कर मुग्धा बोली।
"सुकेतु बहुत देर हो गई। तुम्हें भूख लगी होगी। रेस्टोरेंट में हमने केवल कॉफी पी  थी।"
सुकेतु ने अब महसूस किया कि सचमुच उसे भूख लग रही थी। मुग्धा उठ कर खड़ी हो गई। 
"मैं सैंडविचेस बना कर लाती हूँ।"
सुकेतु ने उसे रोकते हुए कहा।
"रहने दो...फोन से खाना आर्डर कर देता हूँ।"
सुकेतु ने खाना आर्डर कर दिया। मुग्धा वॉशरूम में फ्रेश होने चली गई। जब वह लौट कर आई तो उसने बात आगे बढ़ाई।
"तुमने क्या सोंचा है ? कोई उपाय निकल सकता है हमारे एक होने का।"
"देखो मुग्धा सौरभ लापता है। कोई नहीं कह सकता कि वह जीवित है या मृत। कानूनी मामला है। मेरा एक दोस्त वकील है। उससे मिल कर पूँछता हूँ। शायद कोई उपाय निकल आए।"
दोनों मिल कर आने वाले भविष्य की संभावनाओं पर विचार करने लगे। तभी कॉलबेल बजी। खाने की डिलीवरी आई थी। मुग्धा और सुकेतु खाना खाने लगे। खाते हुए सुकेतु सौरभ के गायब होने के बारे में सोंच रहा था। 
"एक बात बताओ मुग्धा सौरभ को लापता हुए कितने दिन हो गए।"
"तीसरा साल है।"
"आखिरी बार सौरभ के केस में अपडेट कब लिया था तुमने।"
"जब मैं सौरभ के घर में थी तो समय समय पर पुलिस तफ्तीश के बारे में उन लोगों से पूँछती रहती थी। पर मैंने महसूस किया कि उन्हें मेरी पूँछताछ पसंद नहीं। इसलिए वह मुझे इस बात का एहसास कराने लगे कि जो हुआ उसके लिए मैं दोषी हूँ। वहाँ का माहौल मुझे रहने लायक नहीं लगा। मैं मम्मी पापा के घर चली गई। वहाँ से भी मैं अपनी पूँछताछ करती रहती थी। उनका वही जवाब होता कि जब कुछ पता चलेगा बता देंगे। साल भर पहले जब मैं यहाँ आ रही थी तब आखिरी अपडेट लिया था। जवाब वही था।"
"मुग्धा पुलिस की तहकीकात में कुछ तो सामने आया होगा। सौरभ अचानक कैसे गायब हो गया।"
"पुलिस को एक सीसीटीवी फुटेज हाथ लगी थी। चाय वाले की दुकान से आगे बढ़ने पर सड़क बाईं तरफ मुड़ जाती है। वहीं एक दुकान के बाहर लगे कैमरे में सौरभ किसी आदमी से बात करते दिखा था। लेकिन कैमरे के एंगिल के कारण उस आदमी की शक्ल दिखाई नहीं पड़ रही थी। पुलिस ने अंदाज़ लगाया कि कोई चालीस पैंतालीस साल का आदमी था। बात करते हुए सौरभ उसके साथ आगे बढ़ गया जिससे कैमरे की ज़द से बाहर हो गया। पुलिस ने बहुत कोशिश की लेकिन उस आदमी के बारे में कुछ पता नहीं चला।"
सुकेतु कुछ देर सोंच कर बोला।
"तो हो सकता है कि सौरभ के गायब होने में उस आदमी का हाथ हो।"
"पुलिस भी कुछ तय नहीं कर पाई। फुटेज देखने से लग रहा था कि जैसे वह आदमी सौरभ से कुछ पूँछ रहा हो। पुलिस का मानना था कि या तो वह आदमी सचमुच सौरभ से किसी चीज़ के बारे में पूँछ रहा था। सौरभ उसे वह चीज़ या जगह दिखाने के लिए उसके साथ आगे बढ़ गया हो। या तो उस आदमी ने इस बहाने से सौरभ को किडनैप कर लिया हो।"
"मुग्धा अगर सौरभ को किडनैप किया गया होता तो उसके घरवालों के पास फिरौती की मांग के लिए कॉल आती। पर तुमने तो ऐसा कुछ नहीं बताया। इसका मतलब उस शख्स ने उसे किडनैप नहीं किया।"
"हाँ पुलिस का भी यही मानना था। इसलिए यह मान लिया गया कि वह आदमी सौरभ से कोई जानकारी चाहता होगा।" 
इसके बाद मुग्धा और सुकेतु दोनों ही चुप हो गए। सुकेतु ने तय किया कि जल्द ही अपने वकील दोस्त से मिल कर इस मामले में क्या हो सकता है पता करेगा। मुग्धा को इस बात का आश्वासन देकर कि वह आगे की राह निकालने के बारे में सोंचेगा सुकेतु अपने घर चला गया।