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तुम मिले (7)


                   
                  तुम मिले (7)


मुग्धा के मन में कई सारे सवाल उभरने लगे। यह बात उससे और उसके माता पिता से क्यों छिपाई गई ? क्योंकी सौरभ ससुर जी की जायज संतान नहीं था इसीलिए उसे खोजने में कोई तेजी नहीं दिखाई गई। पर भाभी का तो कहना है कि सौरभ सबका लाडला था। 
अचला भी उसके मन में उमड़ रहे सवालों को समझ रही थी। उसने आगे कहना शुरू किया।
"मुग्धा में समझ रही हूँ कि तुम्हारे मन में क्या चल रहा है। मैं तुम्हारे सवालों का जवाब देने की कोशिश करती हूँ।"
अचला ने उसे सारी बात बताई....
मुग्धा के ससुर दुर्गेश तब एक रियल स्टेट फर्म में काम करते थे। उनके परिवार में पत्नी रमा और तीन साल का बेटा अल्पेश था। दुर्गेश वैसे तो ठीक ठाक कमा लेते थे लेकिन वह खुद एक दिन रियल स्टेट बिज़नेस में अपनी जगह बनाना चाहते थे।
दुर्गेश की फर्म में अल्पना भी काम करती थी। अल्पना का अपने पती से तलाक हो गया था। वह बेहद खूबसूरत थी। साथ काम करते हुए दुर्गेश और अल्पना एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो गए। हलांकि अल्पना जानती थी कि दुर्गेश एक बेटे का पिता है। दोनों समय के साथ साथ एक दूसरे के नज़दीक आते गए।
एक दिन अल्पना ने दुर्गेश को बताया कि वह उसके बच्चे की माँ बनने वाली है। दुर्गेश ने भले ही वैवाहिक जीवन की मर्यादा का उलंघन किया था किंतु वह एक अच्छे दिल का इंसान था। उसने अल्पना को आश्वासन दिया कि वह बच्चे की परवरिश की ज़िम्मेदारी उठाने को तैयार है। लेकिन सारी बात की भनक रमा को हो गई। अपने पती के धोखे के बारे में सुन कर रमा को बहुत बुरा लगा। रमा अल्पेश को लेकर अपने मायके चली गई। दुर्गेश को भी अपने किए पर पछतावा था। उसकी भूल ने उसका परिवार तोड़ दिया था।
अपने वादे के मुताबिक दुर्गेश ने बच्चे की परवरिश का दायित्व ले लिया। लेकिन वह अल्पना के साथ नहीं रहता था। बच्चे के जन्म के बाद से ही अल्पना बीमार रहने लगी थी। सौरभ जब डेढ़ साल का था तब अल्पना का देहांत हो गया। दुर्गेश के लिए बिना माँ के बच्चे को संभालना कठिन हो रहा था।
रमा के मायके की स्थिति उन दिनों ठीक नहीं थी। ऐसे में दो और लोगों का बढ़ जाना उसके मायके वालों के लिए मुश्किल पैदा करने लगा। रमा सब समझती थी। लेकिन कुछ कर नहीं पा रही थी। स्थिति को समझ उसकी माँ ने सलाह दी कि वह अपने पती के पास लौट जाए।
परिवार की माली हालत सही नहीं थी। ऐसे में रमा का अपने बेटे के साथ वहाँ रहना उसके भाई भाभी को अखर रहा था। अक्सर बातों ही बातों में पती पत्नी रमा को यह एहसास दिलाते की वह उन पर बोझ है। रमा बहुत परेशान थी। समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे। 
दुर्गेश भी अपनी पत्नी और बच्चे के बिना बहुत अकेलापन महसूस करता था। वह चाहता था कि रमा उसे माफ कर घर लौट आए। इसी इच्छा के साथ वह रमा को मनाने उसके घर पहुँच गया। साथ में नन्हा सौरभ भी था। उसने रमा को समझाया कि जो कुछ हुआ उसका उसे बहुत पछतावा है। वह उसके साथ घर लौट चले। रमा अपने मायके में मिलने वाले तानों से परेशान थी। वह दुर्गेश के साथ घर लौट गई।
रमा घर तो लौट आई लेकिन अब वह दुर्गेश से खिंची खिंची रहती थी। घर का सारा काम करती थी। लेकिन अपने पती से बात भी नहीं करती थी। दुर्गेश को दुख होता था। पर उसे लगता था कि जो उसने रमा के साथ किया उसकी सज़ा उसे मिलनी चाहिए। दुर्गेश सौरभ को लेकर अधिक परेशान था। वह चाहता था कि रमा उसे अपना ले।
सौरभ को अपनाने की शुरुआत अल्पेश ने की। वह सौरभ के साथ खेलता था। उसके साथ एक बड़े भाई की तरह पेश आता था। सौरभ ने जब बोलना शुरू किया तो उसे भइया कह कर बुलाने लगा। सौरभ बहुत ही चुलबुला और मासूम था। वह ऐसी हरकतें करता था जिससे रमा का ध्यान अपनी तरफ खींच सके। कभी वह काम करती हुई रमा का पल्लू पकड़ कर खींचने लगता। कभी उसका हाथ पकड़ लेता। कभी जब रमा आराम करने लेटती तो उसके पास जाकर लेट जाता। रमा का दिल इम बातों से पिघल जाता था। लेकिन ऊपरी तौर पर वह गुस्सा दिखाती थी। 
एक दिन रमा रसोई में काम कर रही थी। अल्पेश और सौरभ खेल रहे थे। तभी रमा को सौरभ के रोने की आवाज़ सुनाई पड़ी। खेलते हुए सौरभ गिर गया था। उसके माथे से खून बह रहा था। दुर्गेश काम पर गया था। रमा फौरन सौरभ को लेकर डॉक्टर के पास गई। डॉक्टर को सौरभ के सर पर टांके लगाने पड़े। सौरभ सारी रात रमा की छाती से चिपका रहा। उस दिन के बाद रमा ने हमेशा के लिए उसे अपना लिया। 
उस दिन के बाद से सब अच्छा होने लगा। दुर्गेश को अपना बिज़नेस शुरू करने में सफलता मिली। दुर्गेश को लगा कि सौरभ के आने के कारण ही यह सब हो सका।
कहानी सुना कर अचला बोली।
"मम्मी जी ने हमेशा सौरभ को अल्पेश से भी अधिक प्यार दिया। सौरभ सभी का चहेता था। इसलिए ऐसा मत सोंचो कि उसे ढूंढ़ने में घरवालों ने कोई कसर छोड़ी है।"
मुग्धा सारी बात बड़े ध्यान से सुन रही थी। अभी भी उसके मन में सवाल था।
"भाभी शादी से पहले हमें सौरभ के बारे में क्यों नहीं बताया गया ?"
"वो मैं नहीं जानती हूँ। ये भी हो सकता है कि किसी ने कभी सौरभ को बाहर का नहीं समझा। इसलिए यह बात बताना ज़रूरी नहीं समझा। कुछ भी हो पर तुम यह समझ लो कि हमारे ससुराल वाले दिल के अच्छे लोग हैं।"
मुग्धा का मन अब शांत हो गया था। लेकिन अब अचला के मन में भी एक प्रश्न खड़ा हुआ था। 
"मुग्धा मुझे भी एक सवाल पूँछना है।"
मुग्धा कुछ चौंक गई। किंतु खुद पर काबू कर बोली। 
"कैसा सवाल भाभी....पूँछिए क्या पूँछना है ?"
"तुम घर छोड़ कर चली गई थीं। वहीं से सौरभ के बारे में पूँछ लेती थीं। इस बार तुम खुद ससुराल आईं। मुझसे मिलने यहाँ तक आ गईं।"
अचला उठी और मुग्धा के बगल में जाकर बैठ गई।
"तुमने कहा था कि तुम इस अधर में नहीं रहना चाहती हो। आगे बढ़ना चाहती हो। क्या तुमने अपने लिए कोई नई राह और हमराही चुन लिया है।"
मुग्धा भौंचक रह गई। अचला ने उसके दिल के भीतर झांक कर देख किया था। अब उससे कुछ भी छिपाना ठीक नहीं था। उसने अचला को अपने और सुकेतु के बारे में सब बता दिया। सब जान कर अचला बोली।
"ज़िदगा कभी कभी अजीब से मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है। सौरभ मेरा देवर है। मैंने हमेशा उसके सही सलामत लौटने की प्रार्थना की है। पर मैं यह भी चाहती हूँ कि तुम भी खुश रहो। पर हम दोनों ही कुछ कर नहीं सकते। सिवाय इंतज़ार के।"
मुग्धा को भी लगा कि अब इंतज़ार ही एक रास्ता बचा है।
              

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