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तुम मिले - 5



                        तुम मिले (5)

सुकेतु ने जानबूझ कर मुग्धा को अपने घर पर मिलने बुलाया था। अब तक मुग्धा और उसकी माँ एक दूसरे से नहीं मिली थीं। दोनों ने सिर्फ सुकेतु से एक दूसरे के बारे में सुना भर था। सुकेतु चाहता था कि दोनों आपस में मिल कर एक दूसरे को समझने का प्रयास करें। 
सुकेतु अपनी माँ के दिल को अच्छी तरह जानता था। ऊपर से चाहें ना दिखाएं पर मुग्धा के बारे में जान कर उनका दिल द्रवित हो गया था। यह जान कर कि मुग्धा दोपहर लंच के समय आने वाली है उसकी माँ ने लंच की तैयारी शुरू कर दी। बड़ी लगन से उन्होंने लंच तैयार किया। 
मुग्धा के पहुँचने पर उन्होंने सुझाव दिया कि लंच का समय हो गया है। बातें शुरू करने से पहले वो लोग लंच कर लें। सुकेतु की माँ खाना टेबल पर रखने लगी तो मुग्धा भी मदद के लिए आगे आई।
"तुम क्यों परेशान होती हो बेटी। मैं कर लूँगी।"
"आंटी जी मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। उल्टा आपकी मदद करके मुझे खुशी होगी।"
सुकेतु की माँ ने कुछ नहीं कहा। मुग्धा ने उनके साथ मिल कर खाना मेज़ पर लगा दिया।
"आंटी जी आपने तो बहुत सारी चीज़ें बना डालीं।"
"बच्चों को खिलाने में माँ को अलग ही सुख मिलता है।"
मुग्धा को अच्छा लगा कि वह उसे अपने बच्चों में शामिल करती हैं। 
"वैसे मुझे भी कुकिंग करना अच्छा लगता है। कभी मौका मिला तो आपको भी बना कर खिलाऊँगी।"
तीनों लोग लंच करने लगे। लंच करते हुए सुकेतु की माँ ने मुग्धा से उसके काम और माता पिता के बारे में पूँछा। लेकिन अन्य कोई बात नहीं की। लंच के बाद वह मुग्धा और सुकेतु को बातें करने के लिए छोड़ कर आराम करने चली गईं।
सुकेतु ने मुग्धा को दर्शन के साथ हुई बातचीत के बारे में बताया। सुन कर मुग्धा भी चिंतित हो गई।
"इसका मतलब है कि हमें चार साल प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।"
"हाँ उसके बाद भी कुछ कानूनी प्रक्रियाएं होंगी। पर तुम परेशान ना हो। हमने फैसला किया है ना कि हम एक दूसरे का साथ निभाएंगे। हम इंतज़ार करेंगे।"
सुकेतु की बात सुन कर मुग्धा गंभीर हो गई।
"मुग्धा तुम यही सोंच रही हो ना कि यह इंतज़ार तो लंबा है। आगे ना जाने क्या होगा। दर्शन ने भी एक संभावना का ज़िक्र किया था।"
"कैसी संभावना ?"
सुकेतु कुछ ठहर कर बोला।
"अगर इस बीच में सौरभ वापस आ जाए।"
आरंभ में मुग्धा यह प्रार्थना करती थी कि सौरभ सही सलामत लौट आए। जैसे जैसे वक्त बीतता गया और सौरभ का कोई पता नहीं चला तो उसकी उम्मीद धूमिल पड़ने लगी। अब उसकी सोंच दो दिशाओं में भागती थी। कभी वह सोंचती कि सौरभ जल्दी ही लौट आएगा। तो कभी निराश होकर उसके लौटने की उम्मीद छोड़ देती। पिछले डेढ़ साल से तो उसने यह मान लिया था कि अब सौरभ नहीं लौटेगा। वह चाहती थी कि जो भी हो लेकिन असमंजस दूर हो।
"सुकेतु मैंने तो उसके लौटने की उम्मीद छोड़ दी थी। पर अगर ऐसा होता है तो फिर मैं कुछ कह नहीं सकती कि क्या करूँगी। सही कहूँ तो मैं इस बारे में सोंचना भी नहीं चाहती।"
सुकेतु भी इस बारे में सोंचना नहीं चाहता था। लेकिन क्योंकी दर्शन ने यह सवाल उठाया था इसलिए इस संभावना के बारे में मुग्धा से बात की। 
"देखो इस संभावना के बारे में कुछ भी कहना कठिन है। पर जो होगा मिल कर देखेंगे।" 
मुग्धा कुछ सोंच कर बोली।
"चार साल इंतज़ार करने के अलावा कोई और राह नहीं है ?"
"इसके अलावा यही हो सकता है कि पुलिस सौरभ को ढूंढ़ ले या वह अब जीवित नहीं है इस बात को प्रमाणित कर दे।"
"पर पुलिस तो कुछ पता नहीं कर पाई।"
मुग्धा की बात सुन कर सुकेतु के मन में वह सारे सवाल घूम गए जो कल रात उसको परेशान कर रहे थे।
"मुग्धा कल से मैं कुछ सवालों को लेकर परेशान हूँ। तुम्हारे ससुराल वाले तो पहुँच वाले हैं। उन्होंने अपने बेटे को खोजने की कोई खास कोशिश नहीं की। चुपचाप बैठ गए।"
"वैसे मैंने पहले कभी इस तरह से सोंचा नहीं। पर तुम्हारी बात ठीक है।"
"अच्छा मुग्धा... ज़रा सोंच कर बताओ। तुम्हें कभी भी ऐसा लगा कि सौरभ के अतीत में कुछ ऐसा है जिसे वह और उसके घरवाले छुपा रहे हों।"
"नहीं मैंने कभी ऐसा महसूस तो नहीं किया। जैसा मैंने बताया था कि शुरुआत के कुछ दिन बिज़नेस में समस्या रही। तब सौरभ का अधिकांश समय अपने पापा और बड़े भाई के साथ ऑफिस में बीतता था। जब हम घूमने गए तभी सही मायनों में एक दूसरे के साथ वक्त बिताने को मिला। तब वह बड़े प्यार से पेश आता था। मैंने तो इस तरह की कोई बात महसूस नहीं की। बाद में घरवाले उसके गायब होने का ज़िम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया।"
सुकेतु ने जो सवाल किया उसने अब मुग्धा के मन में भी कई सवाल पैदा कर दिए। वह उन पर विचार करने लगी। सुकेतु के मन में भी बहुत कुछ चल रहा था। कुछ देर तक दोनों ही कुछ नहीं बोले। सुकेतु मन में कुछ फैसला कर बोला।
"मुग्धा मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है। हो सकता है कि यह सब मेरा वहम हो। पर हमें इस केस में अपनी तरफ से कोशिश करनी पड़ेगी।"
उसकी बात सुन कर मुग्धा को आश्चर्य हुआ।
"हम क्या कर सकते हैं ?"
"तुम अपनी ससुराल जाकर पता करने का प्रयास करो कि क्या सौरभ के अतीत में कुछ था जिसे वह लोग छुपा रहे हों।"
मुग्धा ने सुकेतु की बात पर विचार किया। उसे भी लग रहा था कि सच तक पहुँचने के लिए उसे यह कोशिश करनी ही पड़ेगी। 
"ठीक है..मैं कोशिश करूँगी कि ऑफिस से छुट्टी लेकर वहाँ जा सकूँ।"
मुग्धा ने सुकेतु से कहा कि वह अगले हफ्ते ही सौरभ के घर जाएगी। सुकेतु की माँ आराम करने के बाद उनके पास आकर बैठ गईं। सुकेतु चाहता था कि कुछ समय मुग्धा और माँ अकेले एक दूसरे से बात करें। कुल्फी लाने का बहाना कर वह दोनों को साथ छोड़ कर बाहर चला गया। उसकी माँ उसके इरादे को भांप गई थीं।
मुग्धा और माँ दोनों ने दिल खोल कर आपस में बातें की। मुग्धा के साथ जो कुछ हुआ उस पर माँ ने संवेदना जताई। मुग्धा को धैर्य व हौसले से काम करने की सलाह दी। माँ से बात कर मुग्धा को बहुत अच्छा लगा। 
सुकेतु के आने पर सबने कुल्फी खाई। सबके साथ कुल्फी खाते हुए मुग्धा को बहुत अच्छा लगा। घर लौटते समय मुग्धा का मन बहुत हल्का हो गया था। 
मुग्धा ने मन ही मन अपने आप को एक नई लड़ाई के लिए तैयार कर लिया। वह विचार करने लगी कि सौरभ के अतीत के बारे में जानने की शुरुआत वह कैसे करे।
अपने ससुर व जेठ पर वह इस संबंध में भरोसा नहीं कर सकती थी। उसकी सास बहुत चुप रहती थी। मुग्धा ने सदा महसूस किया कि वह अपने पती के दबाव में रहती हैं। बची थी केवल उसकी जेठानी अचला। 
अचला भी वैसे तो अधिक नहीं बोलती थी। लेकिन मुग्धा ने महसूस किया था कि वह अपने फैसले लेने में कुछ हद तक सक्षम है। जितने दिन भी वह अपनी ससुराल में रही अचला का व्यवहार उसके प्रति अच्छा रहा। खासकर सौरभ के लापता होने के बाद वह उससे नर्मी से पेश आती थी। मुग्धा ने अचला के ज़रिए सच जानने का निश्चय किया। 
अपने ऑफिस से छुट्टी लेकर वह अपने मिशन के लिए ससुराल पहुँच गई।

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