तुम मिले (9)
कई मिनटों तक मुग्धा वैसे ही बैठी रहीं। फिर खुद को संभाल कर उसने सुकेतु को फोन किया। सुकेतु ने उससे कहा कि वह फौरन उसके पास पहुँच रहा है।
सुकेतु जब पहुँचा तब मुग्धा की आँखों में आंसू भरे थे। सुकेतु को देखते ही वह उसके गले लग कर रोने लगी। सुकेतु उसे ढांढस बंधाने लगा। कुछ देर बाद जब मुग्धा कुछ शांत हुई तो उसने कहा।
"सौरभ के पापा का फोन आया था। उन्होंने बताया कि सौरभ की गुमशुदगी की गुत्थी सुलझ गई है। एक नर कंकाल मिला था। डीएनए जाँच से साबित हो गया कि वह सौरभ का ही कंकाल है।"
कहते हुए मुग्धा फिर भावुक हो गई। सुकेतु ने उसे संभाला।
"पापा की आवाज़ में बहुत पीड़ा थी सुकेतु। मेरा कलेजा फट गया। लेकिन अंत में उन्होंने जो कहा उसे सुन कर मैं भी खुद पर काबू नहीं रख पाई।"
"ऐसा क्या कहा उन्होंने मुग्धा...."
"उन्होंने कहा कि वह कभी सपने में भी नहीं सोंच सकते थे कि उनके अपने उनके साथ ऐसा करेंगे।"
यह बात सुन कर सुकेतु भी दंग रह गया। मुग्धा ने उससे कहा।
"मुझे जल्द से जल्द उनके पास पहुँचना है।"
"तुम अकेली नहीं जाओगी। मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा। वहाँ मेरी ज़रूरत पड़ेगी।"
सुबह होते ही मुग्धा सुकेतु के साथ अपनी ससुराल के लिए निकल गई।
बंगले के लॉन में मीडिया वाले जमा थे। दुर्गेश के मुह के आगे कई सारे माइक लगे थे। उनके ऊपर सवालों की बौछार हो रही थी।
"क्या ये सच है कि आपकी पत्नी ने बड़े बेटे अल्पेश और उसकी बीवी अचला के साथ मिल कर सौरभ के कत्ल का षडयंत्र रचा ?"
"आपका बेटा सौरभ आपकी नाजायज़ संतान था ?"
"सौरभ की पत्नी का क्या हुआ ? सुना है आप लोगों के जुल्मों से तंग आकर उसे ससुराल छोड़ कर जाना पड़ा।"
सवालों की इस बौछार के बीच दुर्गेश बहुत परेशान व बेहाल नज़र आ रहे थे। उनकी यह दशा देख कर मुग्धा का दिल पसीज गया। सुकेतु ने आगे बढ़ कर दुर्गेश को संभालते हुए मीडिया वालों को डांट लगाई।
"आप लोगों को दिख नहीं रहा है कि इनकी क्या हालत है। अभी ये किसी भी सवाल का जवाब नहीं देंगे। आप लोग जाइए।"
सुकेतु दुर्गेश को लेकर बंगले के अंदर चला गया। मुग्धा भी उसके पीछे भीतर आ गई। दुर्गेश को सही तरह से बैठाने के बाद सुकेतु ने पानी लाने को कहा। जानकी पानी लेकर आई तो मुग्धा गिलास लेकर अपने ससुर को पानी पिलाने लगी। पानी पीने के बाद दुर्गेश कुछ सामान्य हुए। उन्होंने सुकेतु की तरफ देखा। उनकी आँखों में सवाल था कि यह कौन है।
"मैं सुकेतु हूँ। मुग्धा का दोस्त। खबर सुन कर मुग्धा परेशान हो गई थी। इसलिए मैं साथ आया हूँ।"
दुर्गेश ने सुकेतु का हाथ पकड़ कर अपने पास बिठा लिया। फिर मुग्धा की तरफ देख कर बोले।
"उन लोगों ने मुझे तुम्हारे विरुद्ध भड़का दिया था। उनका कहना था कि तुम्हारा शादी से पहले से ही सुकेतु के साथ संबंध था। इसलिए तुमने सौरभ को गायब करवा दिया। पर मैं क्या जानता था कि मेरे अपने ही विश्वासघाती हैं।"
मुग्धा भी उनके बगल में बैठ कर उन्हें सांत्वना देने लगी।
"मैंने रमा को देवी समझा था। मुझे लगता था कि उसने मेरी भूल को माफ कर सौरभ को अपना लिया है। लेकिन उसने तो मेरी भूल का बदला अपने पाप से लिया।"
अपनी बात कहते हुए दुर्गेश फफक कर रो पड़े। सुकेतु ने उन्हें समझाया कि वह कुछ देर आराम कर लें। लेकिन दुर्गेश नहीं माने। उन्होंने कहा कि जब तक वह सारी बात नहीं बता लेंगे उनके दिल को चैन नहीं मिलेगा।
दुर्गेश उन लोगों को सौरभ की मौत का सच बताने लगे।
अचला ने मुग्धा को जो कुछ बताया था उसमें दो बातें सच नहीं थीं। एक यह कि वह सौरभ के बारे में उसकी गुमशुदगी से पहले से जानती थी। दूसरा रमा ने कभी भी सौरभ को दिल से नहीं अपनाया था। वह सौरभ में हमेशा अपने पती के धोखे को ही देखती थी।
दुर्गेश का बिज़नेस अच्छा चलने लगा था। रमा नहीं चाहती थी कि वह घर छोड़ कर जाए और उसकी कोख जाई औलाद का हक मारा जाए। घर में रहते हुए रमा दुर्गेश की नज़र में अच्छी भी बने रहना चाहती थी। अतः वह केवल सौरभ को अपनाने का दिखावा करती थी।
अल्पेश का मन पढ़ने लिखने में नहीं लगता था। जैसे तैसे ग्रैज्यूएशन कर वह भी अपने पिता के साथ बिज़नेस में लग गया। सौरभ एक होनहार लड़का था। वह पढ़ाई में बहुत होशियार था।
सौरभ अपनी माँ और बड़े भाई अल्पेश की बहुत इज्ज़त करता था। उसे अपने जन्म के बारे में पता था। इसके बावजूद भी रमा ने उसे अपने बेटे की तरह पाला था। इस बात के लिए उसके मन में रमा के लिए श्रद्धा का भाव था। उसकी सदैव यही कोशिश रहती थी कि वह कुछ ऐसा करे जिससे उसकी माँ और बड़े भाई अल्पेश को उस पर गर्व महसूस हो।
जब सौरभ ग्रैज्यूएशन के अंतिम साल में था तब अल्पेश की शादी अचला से हुई। भाभी के आने से वह बहुत खुश था। देवर होने के नाते अचला से हंसी मज़ाक करता था। लेकिन अचला उसके हंसी मज़ाक को दूसरे ही रूप में लेती थी।
अल्पेश की तुलना में सौरभ बहुत अधिक खूबसूरत व आकर्षक था। अचला उसकी इस खूबसूरती पर फिदा हो गई। पहले तो सौरभ को उसकी मंशा को समझ नहीं पाया। लेकिन जब बात उसकी समझ आई तो उसने अपने व्यवहार को बदल लिया। वह अचला से दूर रहने लगा। अपनी दाल ना गलते देख अचला ने सीधे सीधे संबंध बनाने का प्रस्ताव रखा। लेकिन सौरभ ने दृढ़ता से मना कर दिया। सौरभ का ग्रैज्यूएशन पूरा हो गया था। वह एमबीए करने के लिए बाहर चला गया। उसे लगा इस वक्त में अचला को अपनी गलती समझ आ जाएगी।
अचला ने सौरभ के इस बर्ताव को अपना अपमान माना। वह सौरभ से इस बात का बदला लेने का मौका ढूंढ़ने लगी। जब सौरभ एमबीए करने गया था तभी अचला को पता चल गया कि सौरभ उसके ससुर की नाजायज़ संतान है। उसकी सास ऊपर से चाहें जो दिखाए लेकिन वह सौरभ को बिल्कुल पसंद नहीं करती है।
उसने सौरभ को लेकर अपने पती का मन भी टटोल कर देखा। उसके ससुर हर बात में अल्पेश को कम करके आंकते थे। सौरभ की हर बात में सराहना करते थे। अतः अल्पेश के मन में भी सौरभ के लिए नफरत थी। जिसे वह भी अपने मन में छिपाए रखता था। अचला ने अपनी सास और पती के मन में सौरभ के लिए पल रही इसी नफरत को अपना हथियार बनाने का फैसला लिया।
अपनी योजना के अनुसार वह अपने पती और सास को सौरभ के खिलाफ भड़काने लगी। उसका कहना था कि रमा ने तो उसे अपने बेटे से अधिक प्यार दिया। अल्पेश ने भी बड़े भाई की तरह सदा उसका साथ दिया। लेकिन सौरभ बड़ी चालाकी से ससुर जी को अपने पक्ष में कर सब कुछ हड़प लेना चाहता है।
एमबीए करने के बाद जब सौरभ लौटा तो अपने पिता के ज़ोर देने पर वह भी बिज़नेस में शामिल हो गया। अपनी योग्यता के दम पर उसने बिज़नेस में अपनी अच्छी पैठ बना ली। दुर्गेश बिज़नेस के फैसले लेने के लिए सौरभ पर ही यकीन करते थे। अक्सर वह अल्पेश को डांटते हुए कहते कि अपने छोटे भाई से सबक लो। इतने कम दिन में उसने बिज़नेस की बारीकियां सीख लीं। जबकी इतने सालों में तुम छोटे मोटे फैसले लेने के काबिल भी नहीं बन पाए। सौरभ के बढ़ते कद से अल्पेश उससे और भी चिढ़ने लगा।
अचला के भड़काने के बाद रमा को भी चिंता होने लगी थी कि कहीं सौरभ सब कुछ हड़प ना ले। जब वह सौरभ के कारण अल्पेश को परेशान देखती तो उनके मन की जलन कई गुना बढ़ जाती थी। रमा अल्पेश और अचला मिल कर सौरभ को रास्ते से हटाने के बारे में सोंचने लगे।
दुर्गेश चाहते थे कि अब सौरभ भी घर बसा ले। उन्होंने सौरभ से पूँछा तो उसने कहा कि जैसा आप लोग कहेंगे वैसा ही करूँगा। दुर्गेश ने रमा से बात की। रमा को यह बात अच्छी नहीं लगी। यदि सौरभ की शादी हो जाती तो उसे रास्ते से हटाने में कठिनाई होती। उसने अल्पेश और अचला को सारी बात बताई। उन्हें भी यह ठीक नहीं लगा। उन लोगों ने दुर्गेश को समझाने की कोशिश की कि सौरभ की अभी उम्र ही क्या है। क्यों अभी से उसे गृहस्ती के झंझटों में फंसाया जाए। लेकिन दुर्गेश ने तय कर लिया कि सौरभ की शादी कराएंगे।
कहानी सुनाते हुए दुर्गेश रुके। मुग्धा को देख कर बोले।
"तब मुझे क्या पता था कि उन लोगों की सोंच क्या है। मैं रिश्ते ढूंढ़ने लगा। रिश्ता तय करने से पहले सौरभ उन लोगों की राय मांगता। वो लोग कोई ना कोई नुख्स निकाल देते। जब तुम्हारा रिश्ता आया तब भी उन लोगों ने बात बिगाड़ने की कोशिश की। लेकिन सौरभ को तुम बहुत पसंद आई थीं। इसलिए मजबूरी में उन्हें हाँ करनी पड़ी।"
तभी जानकी कमरे में आई। उसने कहा कि मुग्धा और सुकेतु थके होंगे। पहले फ्रेश होकर कुछ खा लीजिए फिर बात कीजिएगा। दुर्गेश ने भी हाँ में हाँ मिलाई। सुकेतु और मुग्धा फ्रेश होने चले गए।
दोनों ही के मन में हलचल थी कि आखिर उन तीनों ने सौरभ के साथ क्या किया।