नृत्यांगना सुरभि Ved Prakash Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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नृत्यांगना सुरभि

नृत्यांगना सुरभि

सुरभि ने अपनी माँ को मनाने की बहुत कोशिश की लेकिन टस से मस नहीं हुई, भैया, भाभी और पिताजी को इस बारे में अभी कुछ बताया ही नहीं था।

सुरभि जानती थी कि एक बार माँ राजी हो जाए तो घर के सभी सदस्य विनय से उसकी शादी के लिए तैयार हो जाएंगे।

यही हाल विनय का भी था उसके घर वाले भी विनय की शादी सुरभि से करने को तैयार नहीं थे।

एक तो विजातिय शादी दूसरे विनय और सुरभि दोनों बेरोजगार, कोई काम धंधा नहीं बस प्यार के सहारे ही दोनों एक दूसरे को अपनाने के लिए पूरी दुनिया से लड़ने को तैयार थे।

दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते, एक दूसरे के बिना रहना मुश्किल हो जाता, एक दिन भी नहीं मिलते तो पागल से हो जाते और सोचते किसी तरह उड़ कर एक दूसरे के पास पहुँच जाएँ।

सुरभि ने विनय पर शादी के लिए ज़ोर डालना शुरू कर दिया, विनय बार बार यही समझाता, “सुरभि, पहले मैं कुछ कमाने लगूँ फिर तुमसे शादी कर घर बसा लूँगा।”

सुरभि कहती, “फिर तो पूरी उम्र प्रतीक्षा ही करते रहना, क्योंकि जल्दी से जल्दी मेरे घर वाले मेरी शादी कहीं और करने वाले हैं।”

“नहीं सुरभि! मैं ऐसा नहीं होने दूंगा।”

“फिर तो आज ही इसी समय मुझसे शादी कर लो।”

विनय अपने बचपन के मित्र नरेश के पास गया और सारी समस्या बताई।

नरेश ने दोनों की बात बड़े ध्यान से सुनी और फिर उनको कोर्ट मैरेज करने की सलाह दी।

सुरभि और विनय की शादी करवा कर नरेश ने दोनों को अपने घर पर ही रख लिया और कहा, “जब तक विनय कुछ कमाने नहीं लगता तब तक तुम दोनों हमारे मेहमान हो।”

नरेश अपने घर में पत्नी के साथ रहता, दिन में नरेश तो काम पर चला जाता, नरेश की पत्नी नयना घर के ही एक हिस्से में लड़कियों को नृत्य की शिक्षा देती।

दिन में विनय भी काम की तलाश में बाहर चला जाता तो सुरभि अकेली रह जाती। सुरभि इस बात से अनभिज्ञ थी कि नयना इसी घर के एक हिस्से में नृत्य पाठशाला चलती है।

विनय सुरभि को बता ही रहा था, “आज एक आदमी ने दुबई में अच्छी नौकरी दिलवाने को कहा है लेकिन वह दो लाख रुपए मांग रहा है, मैंने तो मना कर दिया।”

नरेश भी दोनों की बात सुन रहा था तो वहाँ आकर बोला, “विनय अगर तुम्हें लगता है कि वह आदमी तुम्हारे साथ धोखा नहीं करेगा और अच्छी नौकरी दिलवा देगा तो दो लाख रुपए मैं दे दूंगा, बाद में कमा कर वापस कर देना।”

सुरभि मायूस हो गयी और कहने लगी, “मैं यहाँ आपके बिना अकेली कैसे रहूँगी, मेरा तो बिलकुल भी मन नहीं लगेगा।” तब विनय ने समझाया, “एक महीने बाद पहला वेतन मिलते ही मैं वहाँ पर रहने का प्रबंध करके तुम्हें वहीं बुला लूँगा।”

नरेश ने भी समझाया, “हाँ भाभी! एक महीने की ही तो बात है और हाँ तब तक आप नयना के साथ उसकी नृत्यशाला में हाथ बंटा सकती हैं, आपका दिन भी कट जाएगा और नयना को सहारा मिल जाएगा, इस तरह देखते देखते महिना बीत जाएगा।”

फिर एक दिन विनय दुबई चला गया, सुरभि के आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे, जुदाई के समय विनय का मन भी काफी भारी था लग रहा था कि अभी रो पड़ेगा लेकिन उसने सुरभि को ढाढ़स बंधाने के लिए अपने ऊपर काबू रखा और सुरभि को समझा कर दुबई चला गया।

भारी मन से सुरभि ने नयना की नृत्यशाला में जाना प्रारम्भ कर दिया। नृत्यशाला काफी बड़ी थी और काफ़ी लड़कियां वहाँ नृत्य सीखने आती थी।

एक लड़की भारत नाट्यम सीख रही थी, बार बार बताने पर भी वह अपनी भाव भंगिमा ठीक से नहीं कर पा रही थी तब सुरभि ने बड़े ही आसान तरीके से उसको समझाया तो उसकी समझ में आ गया।

नयना भी यह सब देख रही थी, तब तो नयना कुछ नहीं बोली लेकिन बाद में उसने सुरभि से पूछा , “सुरभि! तुम्हें भारत नाट्यम के बारे में कैसे पता है?”

सुरभि ने बताया, “नयना जी! मैंने बचपन में भारत नाट्यम की शिक्षा ली थी, स्कूल में मैंने स्टेज शो भी किए थे लेकिन बाद में सब छूट गया।”

नयना ने सुरभि की इस विद्या के बारे में नरेश को बताया तो नरेश ने नगर के नामचीन भरत नाट्यम शिक्षिका के पास सुरभि को सीखने के लिए भेजा जहां पर शीघ्र ही सुरभि बहुत अच्छा नृत्य सीख गयी।

नरेश और नयना ने अपनी नृत्य पाठशाला की तरफ से सुरभि का एक स्टेज शो नगर की नाट्यशाला में रखा। सुरभि का पहला शो ही लोगों ने काफी पसंद किया, कई संस्थाओं ने अपने यहाँ सुरभि का नृत्य करवाने के पेशकश की। इस तरह धीरे धीरे भारत नाट्यम में सुरभि ने एक अच्छा मुकाम प्राप्त कर लिया।

कई महीने गुजर गए लेकिन दुबई से विनय का कोई फोन नहीं आया। जिस व्यक्ति ने विनय की नौकरी लगवाई थी वह भी अपनी पूरी कंपनी को समेट कर गायब हो गया था। एक तरफ सुरभि को विनय की चिंता सता रही थी दूसरी तरफ उसको नृत्य के नए नए अनुबंध मिल रहे थे। एक दिन एक संस्था जो दुबई मे स्थित थी उन्होने सुरभि को दुबई में कार्यक्रम के लिए अनुबंधित कर लिया। सुरभि ने अनुबंध सहर्ष स्वीकार कर लिया और एक दिन नयना, नरेश व और लड़कियों को लेकर दुबई पहुँच गयी।

दुबई में सुरभि के नृत्य ने धूम मचा दी, नृत्य के साथ साथ वे विनय की भी तलाश कर रहे थे।

एक दिन वहाँ के राजकुमार ने अपने महल में सुरभि के नृत्य का कार्यक्रम रखवाया, पूरा कार्यक्रम सभी ने मन लगाकर किया तो राजकुमार बहुत प्रसन्न हुआ उसी प्रसन्नता के आवेश में राजकुमार ने सुरभि से कुछ भी मांगने के लिए कहा।

सुरभि ने विनय का फोटो राजकुमार को देकर कहा, “अगर आप मेरी सहायता कर सकते हैं तो यह मेरे पति हैं, किसी ने नौकरी के बहाने यहाँ भेजा था लेकिन अब इनका कोई पता नहीं, आप कृपा करके मेरे पति को ढूँढने मे मेरी मदद करवा दें।”

राजकुमार ने तुरंत ही विनय को खोज कर लाने का आदेश दे दिया और चौबीस घंटे में दुबई पुलिस विनय को खोजकर राजकुमार के सामने ले आई।

विनय ने बताया, “मेरे साथ वहाँ भारत में बैठे व्यक्ति ने धोखा किया, दुबई आते ही मेरे सभी कागज छीन लिए एवं यहाँ एक कंपनी मे गुलाम बनाकर छोड़ दिया। न तो में किसी से संपर्क कर सकता था और न ही शिकायत। मैं तो बस यहाँ अपनी किस्मत पर रोकर और मार खाकर ज़िंदगी के दिन गुजार रहा था, अगर मुझे नहीं छुड़ाया जाता तो शायद कुछ दिन बाद मैं मर जाता।”

तभी सुरभि ने विनय के होठों पर हाथ रख दिया और बोली, “मेरे रहते मरने की बात आप फिर कभी मत करना” और दोनों एक दूसरे से लिपट कर रोने लगे।

नरेश व नयना ने वहाँ के राजकुमार से मिलकर विनय की भारत वापसी का प्रबंध करवाया, उसने जितने दिन वहाँ काम किया था उसका सारा धन भी विनय को दिलवाया।

विनय नरेश को उधार लिए पैसे वापस करने लगा तो नरेश ने यह कह कर नहीं लिए, “तू मिल गया मेरा उधार चुकता हो गया, अब इस धन से तुम लोग अपनी गृहस्थी बसाओ और सुखी जीवन व्यतीत करो।”

नरेश बोला, “सुनो विनय, तुमहरी पत्नी एक बहुत अच्छी नर्तकी है, अभी तक तो इसने नृत्य तुम्हें खोज लाने के लिए किया है, लेकिन अब अगर तुम आज्ञा दो तो यह अपनी इस विद्या को, इस कला को पूरे संसार में फैला सकती है।”

विनय ने नरेश की बातों को बड़े ध्यान से सुना और उसने तय किया कि वह सुरभि के लिए एक नृत्य कंपनी बनाएगा।

सुरभि देश विदेश में नाम कमा रही थी, तभी एक दिन विनय और सुरभि के घर वाले प्रकट हो गए, वे सभी अपने किए पर शर्मिंदा थे एवं माफी मांग रहे थे।

वास्तव मे कलाकार का दिल बहुत बड़ा होता है और वह माफ करने की हिम्मत रखता है अतः विनय और सुरभी ने भी अपने सभी घर वालों को क्षमा कर दिया।