आधी नज्म का पूरा गीत
रंजू भाटिया
episode 18
मैं जो तेरी कुछ नहीं लगती
अमृता ने कहा कि आपने मेरी नज्म मेरा पता नज्म की एक सतर पढ़ी है -----यह एक शाप है.एक वरदान है..इस में मैं कहना चाहती हूँ कि यह सज्जाद की दोस्ती है, और साहिर इमरोज की मोहब्बत जिसने मेरे शाप को वरदान बना दिया आपके लफ्जों में "अ शिव का प्रतीक है और ह शक्ति का"..जिस में से शिव अपना प्रतिबिम्ब देख कर ख़ुद को पहचानते हैं और मैंने ख़ुद को साहिर और इमरोज़ के इश्क से पहचाना है..वह मेरे ह है मेरी शक्ति के प्रतीक...और यह पढ़ कर जाना कि के इश्क उनके मन की अवस्था में लीन हो चुका है.और यही लीनता उनको ऊँचा और ऊँचा उठा देती है…
उनके इसी "मैं "से फ़िर हम मिलते हैं उनकी कविता मैं जो तेरी कुछ नही लगती..यह मैं वही हैं जिसका हाथ अंधेरे के मेले में खोये एक बच्चे ने पकड़ लिया था...यहाँ इस कविता में इस "मैं से" हम भरपूर मिलते हैं...हथेली पर, इश्क की मेहंदी का कोई दावा नहीं....हिज्र का एक रंग हैऔर तेरे ज़िक्र की एक खुशबुमैं जो तेरी कुछ नही लगती....यह आखिरी पंक्ति लिखना कोई आसान काम नही है मैं जो तेरी कुछ नही लगती यानी पंडित के दो बोल ही सब कुछ है और वफा, प्यार कुछ भी नहीं..हमारे समाज में यही कुछ तो होता आया है.अगर ऐसा न होता तो प्यार की कोई कहानी भी नही सुनाई देती, जिसका अंत सिर्फ़ मिलन पर होता..हिज्र के रंग को कोई नही देखता है.....मेहँदी का रंग सब देख लेते हैं..कोई नही सोचता है की मेहँदी का रंग ही सही में विरह का रंग भी होता है......मैं जो तेरी कुछ नही लगती..यह पंक्ति एक बार नहीं बार बार सुनाई देती है पढने में आती है..कभी हौले से कभी तेज स्वर में...आसमान जब भी रात का और रौशनी का रिश्ता जोड़ते हैंसितारे मुबारकबाद देते हैं..क्यों सोचती हूँ मैंअगर कहीं..मैं..जो तेरी कुछ नही लगती...यहाँ आसमान.रात और अँधेरा धूप के टुकडे से मैं तक चला आया है..शादी का वातावरण है..गीतों के शोर में यह आवाज़ कभी दूर से कभी पास से सुनाई देती हैकि मैं तेरी कुछ नही लगती....आसमान ने रात और रोशनी का गठबंधन कर लिया है.सितारे भी मुबारकबाद दे रहे हैं..और मैं ??फ़िर इसी मैं की झलक हम देखते हैं इस कविता में..उम्र की सिगरेट जल गईमेरे इश्क की महककुछ तेरी साँसों मेंकुछ हवा में मिल गईज़िन्दगी की आधी से अधिक सिगरेट जल चुकी है.सिर्फ़ आखिरी टुकडा बचा हैदेखो यह आखिरी टुकडा हैउँगलियों में से छोड़ दोकहीं मेरे इश्क की आंचतुम्हारी उँगली को न छू ले
सिगरेट पीने वाला यदि न संभले तो यह आखिरी टुकडा जरुर उसकी उंगलियाँ जला देगा..पर यह मैं क्या करे...इसके पास तो सिर्फ़ यादों के टुकड़े बचे हैं और एक औरत को तो सपने देखने का हक भी नही हैं..जीवन बाला ने कल रातसपने का एक निवाला तोडाजाने यह ख़बर कैसेआसमान के कानों तक जा पहुँचीअमृता की कविता निवाला में यह बात कितनी सुंदर कही गई है...यहाँ आसमान समाज का प्रतीक है और इसके कान बहुत तेज है यह तो दिल की धड़कने और सपनों की आहट भी सुन लेता है और..बड़े पंखों ने यह ख़बर सुनीलम्बी चोंच ने यह खबर सुनीतेज जुबानों ने यह ख़बर सुनीतीखे नाखूनों ने यह ख़बर सुनी..कि एक औरत ख्वाब देखने का गुनाह कर रही है और ख़ुद ख्वाब का निवाला किस हाल में है..इस निवाले का बदन नंगाखुशबु की ओढनी फटी हुईमन की ओट नही मिलीतन की ओट नहीं मिलीऔर फ़िर नतीजा क्या हुआ..एक झपट्टे में निवाला छिन गयादोनों हाथ जख्मी हो गएगालों पर खराशे आ गईऔर सपने देखने वाले का हाथ खाली हो गया..फ़िरमुहं में निवाले की जगहनिवाले की बातें रह गयींऔर आसमान की काली रातेंचीलों की तरह उड़ने लगीं......फ़िर से वही रात आ गई..फर्क सिर्फ़ यही है कि यहाँ राते चीलों की तरह उड़ रही है..बदन की महक भी उड़ रही है..सूरज बनने को सब तैयार हैं..पर रोशनी बननेको कोई तैयार नही..क्यों कि चीलें सूरज नही बन सकती है.....इस तरह अमृता का लेखन हमें अमृता के और करीब ले जाता है..क्यों कि हमउस में ख़ुद को महसूस कर लेते हैं..इस तरह हर इंसान के अन्दर कितने ही तरह के लेवल्स हैं..अगर इनको एक कर लिया जाए तो वही सबसे खूबसूरत है..क्यों कि वही मन का संन्यास है और वही है तपस्या...और वही है "मैं से मैं तक" की यात्राकहीं पढ़ा था कि हर पाठक एक यात्री होता है और हर....किताब एक यात्रा.और इस यात्रा में यात्री को जो अच्छे बुरे तजुर्बे होते हैं, उन्ही के आधार पर वह यात्रा के विषय में अच्छी बुरी राय बनाता है. कोई यात्रा सफल होती है और कोई असफल.जब वह इस यात्रा से लौटता है तो सबको इस यात्रा की कहानी सुनाता है. उसने क्या देखा ? क्या अनुभव किया ? कैसे कहाँ अच्छा लगा ? कहाँ बुरा लगा..और अंत में हाथ में क्या आया...यही बात मैं आपसे अमृता की बातें करते हुए महसूस करती हूँ...जो एक रूहानी एहसास मैं इस यात्रा में महसूस करती हूँ.वह जब आपको सुनाती हूँ तो वही प्यार सा एहसास एक प्यास आप सब में भी महसूस करती हूँ...मुझे लगता है कि जो ज़िन्दगी हम जी नही पाते हैं वह जब पढ़ते हैं, अनुभव करते हैं तो वही दिल को एक आत्मिक संतोष दे जाती है..
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