आधी नज्म का पूरा गीत - 1 Ranju Bhatia द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

आधी नज्म का पूरा गीत - 1

आधी नज्म का पूरा गीत

रंजू भाटिया

Episode 1

अमृता मेरी कलम से

अमृता इमरोज। प्यार के दो नाम। जिनके बारे में तब जाना जब मेरी उम्र सपने बुनने की शुरू हुई थी, और प्यार का वह हल्का एहसास क्या है अभी जाना नहीं था। बहुत याद नहीं आता कि कब किताबें पढने की लत लगी पर जो धुंधला सा याद है कि घर में माँ को पढने का बहुत शौक था और उनकी ‘मिनी लाइब्रेरी’ में दर्जनों उपन्यास भरे हुए थे। माँ तो बहुत छोटी उम्र में छोड़ कर चली गयी और सौगात में जैसे वह अपनी पढने की आदत मुझे दे गयी। यूँ ही एक दिन हाथ में ‘अमृता प्रीतम की रसीदी टिकट’ हाथ में आई और उसको पढना शुरू कर दिया।

उसका एक एक अक्षर दिल में एक मीठा सा एहसास बन कर धडकने लगा, उनका लिखा हुआ उस में कि कोई साया उनको दिखता है जिस को उन्होंने ‘राजन’ नाम दिया और अपने पिता से छिप कर वह उस से बाते करती मिलती है, वही एहसास जैसे मेरे अन्दर भी जाग गया। और वह साया अमृता की रसीदी टिकट से उतर कर मेरे ख्यालों में समां गया जिस से मैं भी अमृता की तरह ढेरों बातें करती और सपने बुनती। पर साया तो साया ही होता है, कभी कभी लगता है अमृता इमरोज के बारे में पढना मुझे बहुत अधिक स्वप्निल बना गया। अमृता की तलाश साहिर से निकली तो इमरोज को पा कर खत्म कर गयी। पर अमृता इमरोज तो एक ही हैं इस विरले जगत में। न अमृता बनना आसान है और न ही इमरोज को पाना। जब भी इमरोज से मिली अमृता के लिए उनकी नजरों में बेपनाह मोहब्बत देखी। सच कहूँ तो एक जलन सी हुई कि कोई इंसान इस समय में भी किसी से इतना प्यार कैसे कर सकता है।

अमृता ही थी जिसने मुझे यह एहसास दिया कि चाँद में अपने राजन से बाते करना और वही थी जिसने बताया कि पानी का परसना क्या होता है। ३६ चक उपन्यास में जहाँ अनीता नदी में नहा रही है और वह उसी धार की तरफ हो जाती है जो कुमार की तरफ से आ रही है। प्रेम का इस से सुन्दर रूप और क्या हो सकता है। यही सच था अमृता की जिन्दगी का। जिसने मुझे भी प्रेम के इस सुन्दर एहसास से परिचित करवाया। आधी रोटी पूरे चाँद का सही अर्थो में अर्थ समझाया।

एक बार किसी ने मुझसे पूछा आखिर आपको किन किताबों ने बिगाड़ा और मैंने बहुत गर्व से कहा अमृता के लिखे ने। असलियत में कोई इमरोज नहीं मिलता क्यों कि इमरोज तो एक ही था, जिसने न उम्र को देखा न ही अमृता के अतीत को। बस अमृता के साथ रहा एक लोकगीत की तरह जिसका मीठा स्वर आज भी रूह को मीठा सा एहसास देता है अपने रंगों से प्रेम का सही उजाला दिखा देता है।

कभी कभी सोचती हूँ। जिसने भी कभी दिल से प्यार किया होगा, उसने एक बार इमरोज, अमृता के प्यार की कल्पना जरुर की होगी। मेरे दिल की तरह उस दिल ने भी चाहा होगा कि सामने वाला उसके कहने से पहले उसके दिल की बात समझ जाए और उस बात को पूरा कर दे। जैसे इमरोज अमृता की हर बात उसके कहने से पहले समझ जाते हैं और न जाने कैसे घंटो पहरों घर में रह कर ढेरों बातें किया करते थे जिस में लफ्ज भी होते, रंग भी और गहरी खामोशी भी। और फिर आखिर तंग आ कर दुनिया पूछती आखिर तुम दोनों घर में रह कर करते क्या हो। और फटाक से जवाब आता- बातें। उफ! यह एहसास ही रोमांचित कर जाता है। इमरोज की पेंटिंग और अमृता की कविताओं में, किरदारों में एक खास रिश्ता जुडा हुआ दिखायी देता है। एक ऐसा प्यार का रिश्ता जिसे सामाजिक मंजूरी की जरुरत नही पड़ती है और दिल को हर पल यही एहसास कराता है कि यदि अमृता इमरोज का रूहानी प्यार सच्चा है तो कहीं जिन्दगी में सच्चाई और भी बाकी होगी। इस प्रेम की। इन्तजार तो जारी है और जारी रहेगा। अमृता ने जब होश संभाला तो खुद को अकेला ही पाया। अमृता बचपन से अकेली पली बड़ी है। जब वह मात्र दस साल की थी उनकी माँ का स्वर्गवास हो गया। उनका बचपन वैसा नही था जैसा एक आम बच्चे का होता है। उनके पिता लेखक थे जो रात में लिखते और दिन में सोया करते थे। घर में सिर्फ किताबे और किताबे ही थी जिनमें वह दब कर रह गई थी। कई बार उन्हें लगता था कि वह खुद एक किताब है मगर कोरी किताब सो उन्होंने उसी कोरी किताब में लिखना शुरू कर दिया।

तब उनके पिता ने उनकी प्रतिभा को पहचाना। उसको संवारा तुक और छन्द का ज्ञान करवाया उन्हें भगवान की प्रशंसा के गीत और इन्सान के दुःख दर्द की कहानी लिखने को प्रेरित किया वह चाहते थे कि अमृता मीरा बाई की तरह लिखे पर यह नही हो सका।

अमृता ने चाँद की परछाई में से निकल कर अपने लिए एक काल्पनिक प्रतिमा बना ली थी जिसे वह घंटो चाँद की परछाई में देखा करती थी उसका काल्पनिक नाम उन्होंने राजन रखा था। ग्यारह साल की अमृता ने अपनी पहली प्रेम कविता उसी राजन के नाम लिखी जो उनके पिता ने उनकी जेब में देख ली थी, अमृता डर गई थी और यह नही कह पायी की कविता उन्होंने ही लिखी है। पिता ने उनके मुहं पर थप्पड़ मारा, इसलिए नही कि उन्होंने कविता लिखी इस लिए कि उन्होंने झूठ बोला था।

पर उनकी कविता कोई दोष न ले सकी कि उसने झूठ बोला और बिना रोक टोक के कविता उमड़ पड़ी और बहने लगी। इसी राजन को याद करके जब उन्होंने इमरोज को खत लिखा उस दिन उस ख़त में उन्होंने इमरोज से कहा कि..

मेरी तकदीर

राजन का अस्तित्व इस धरती पर कहीं नही था उसने सिर्फ मेरे सपनों को अपना बना रखा था और जिस दिन तुमने अशु पढ़ कर मुझे फोन किया ‘‘मैं तुम्हारा राजन बोल रहा हूँ, ’’ उस दिन यह धरती की बात बन गई इस बात ने कर्म भी किया है और कहर भी। तुम्हारी नजर ने मेरे ऊपर से बरसों का पडा हुआ कोहरा झाड़ दिया है और आज जब मैं उस नजर को नौ सौ मील की दूरी पर भेज कर आई हूँ एक कोहरा सा फिर मुझ पर पड़ता जा रहा है यह नजर जिन मजबूर हालातों में मुझसे बिछुडी है उसका एहसास भी मेरे पास है और उसी के सहारे तुम्हारे विछोह के दिनों में पड़ने वाली कोहरे को मैं अपने ऊपर से झाडती रहूंगी और जब मेरे सामने फिर तुम्हारी नजर होगी मेरे मन का रंग उसी तरह गुलाबी हो जायेगा।

तुम्हारी बेगम

२१ -१ - ६०

एक गुफा हुआ करती थी --

जहाँ मैं थी और एक योगी

योगी ने जब बाजूओं में ले कर

मेरी साँसों को छुआ

तब अल्लाह कसम !

यही महक थी -

जो उसके होंठो से आई थी -

यह कैसी माया.कैसी लीला

कि शायद तुम भी कभी वह योगी थे

या वही योगी है --

जो तुम्हारी सूरत में मेरे पास आया है

और वही मैं हूँ --और वही महक है।

***