आधी नज्म का पूरा गीत - 10 Ranju Bhatia द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

आधी नज्म का पूरा गीत - 10

आधी नज्म का पूरा गीत

रंजू भाटिया

episode १०

मोहब्बत से बड़ा जादू इस दुनिया में और कोई नहीं है

विभाजन का दर्द अमृता ने सिर्फ सुना ही नहीं देखा और भोगा भी थाइसी पृष्ठभूमि पर उन्होंने अपना उपन्यास पिंजरलिखा1947 में 3 जुलाई को अमृता ने एक बच्चे को जन्म दिया और उसके तुरंत बाद 14 अगस्त 1947 को विभाजन का मंजर भी देखा जिसके संदर्भ में उससे लिखा किः-‘‘ दुखों की कहानियां कह- कहकर लोग थक गए थे, पर ये कहानियां उम्र से पहले खत्म होने वाली नहीं थींमैने लाशें देखीं थीं, लाशों जैसे लोग देखे थे, और जब लाहौर से आकर देहरादून में पनाह ली, तब ----एक ही दिन में सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक रिश्ते कांच के बर्तनों की भांति टूट गये थे और उनकी किरचें लोगों के पैरों में चुभी थी और मेरे माथे में भी ----- ’’जीवन के उत्तरार्ध में अम्रता जी इमरोज के बहुत नजदीक रहींउन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है........‘‘मुझ पर उसकी पहली मुलाकात का असर- मेरे शरीर के ताप के रूप में हुआ थामन में कुछ घिर आया, और तेज बुखार चढ़ गयाउस दिन- उस शाम उसने पहली बार अपने हाथ से मेरा माथा छुआ था- बहुत बुखार है? इन शब्दों के बाद उसके मुहं से केवल एक ही वाक्य निकला था- आज एक दिन में मैं कई साल बडा हो गया हूं--कभी हैरान हो जाती हूं - इमरोज ने मुझे कैसा अपनाया है, उस दर्द के समेत जो उसकी अपनी खुशी का मुखालिफ हैं-- एक बार मैने हंसकर कहा था, ईमू ! अगर मुझे साहिर मिल जाता, तो फिर तू न मिलता- और वह मुझे, मुझसे भी आगे, अपनाकर कहने लगा:-मैं तो तुझे मिलता ही मिलता, भले ही तुझे साहिर के घर नमाज पढ़ते हुए ढूंढ लेता! सोचती हूं - क्या खुदा इस जैसे इन्सान से कहीं अलग होता है--’’अमृता प्रीतम ने स्वयं अपनी रचनाओं में व्यक्त अधूरी प्यास के संदर्भ में लिखा है कि‘‘गंगा जल से लेकर वोडका तक यह सफरनामा है मेरी प्यास का’’अमृता प्रीतम की ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त पुस्तक कागज ते कैनवासकी कविता कुमारीमें वह आधुनिक लड़की की कहानी बयाँ करती हैंउनकी आत्मकथा रसीदी टिकटभी बेखौफ नजीर पेश पद्मा कहती हैं, 'अमृताजी ने अपनी रचनाओं के जरिए उन महिलाओं को एक रास्ता दिखाया था जो तब दरवाजों के पीछे सिसका करती थीं'अनीता एक थी अनीताउपन्यास की नायिका है, जिसके पैरों के सामने रास्ता नहीं, लेकिन वह चल देती है- कोई आवाज़ है, जाने कहाँ से उठती है और उसे बुलाती है...कैली रंग का पत्ताउपन्यास की नायिका है, एक गाँव की लड़की, और कामिनी दिल्ली की गलियांउपन्यास की नायिका है, एक पत्रकारइनके हालात में कोई समानता नहीं, वे बरसों की जिन संकरी गलियों में गुज़रती है, वे भी एक दूसरी की पहचान में नहीं आ सकतींलेकिन एक चेतना है, जो इन तीनों के अन्तर में एक-सी पनपती है...वक्त कब और कैसे एक करवट लेता है, यह तीन अलग-अलग वार्ताओं की अलग-अलग ज़मीन की बात हैलेकिन इन तीनों का एक साथ प्रकाशन, तीन अलग-अलग दिशाओं से उस एक व्यथा को समझ लेने जैसा है, जो एक ऊर्जा बनकर उसके प्राणों में धड़कती है...मुहब्बत से बड़ा जादू इस दुनिया में नहीं हैउसी जादू से लिपटा हुआ एक किरदार कहता है- ‘‘इस गाँव में जहाँ कैली बसती है, मेरी मुहब्बत की लाज बसती है’’ और इसी जादू में लिपटा हुआ कोई और किरदार कहता है- ‘‘प्रिय तुम्हें देखा तो मैंने खुदा की ज़ात पहचान ली....’’जब कहीं कोई आवाज़ नहीं, किसी को अहसास होता है कि कुछ एक क्षण थे, कुछेक स्पर्श, और कुछेक कम्पन, और वे सब किसी भाषा के अक्षर थे...कुछ पल ऐसे भी होते हैं, जो भविष्य से टूटे हुए होते हैं, फिर भी साँसों में बस जाते हैं, प्राणों में धड़कते हैं...शमा की तरह जलती-पिघलती वे सोचती है- ‘‘यही तो आग की एक लपट है, जिसकी रोशनी में खुद को पहचानना है’’...शायद इस लिए उनके लिखे उपन्यासों का मसला उस औरत और मर्द के रिश्ते पर रहा, जो इंसान को इंसान के रिश्ते तक पहुंचाता है और फ़िर एक देश से दूसरे देश के रिश्तों तक..पर यह रिश्ता अभी उलझा हुआ है..क्यूंकि अभी दोनी अधूरे हैं दोनों ही एक दूजे को समझ नही पाए हैं..उनके अनुसार हम लोग जवानी.खूबसूरती की कोशिश को कुछ सुखों और सहूलियतों की कोशिश को मोहब्बत का नाम दे देते हैं..लेकिन मोहब्बत जैसी घटना सिर्फ़ एक किसी पूरे मर्द या पूरी औरतके बीच घट सकती है..पूरी औरत से यहाँ उनका मतलब पूछा गया तो जवाब बहुत खूबसूरत दिया उन्होंने..वह औरत जो आर्थिक तौरपर, जज्बाती तौर पर और जहनी तौर पर स्वंतंत्र हो..आजादी कभी किसी से मांगी या छीनी नही जा सकती है..न ही यह पहनी जा सकती है, यह वजूद की मिटटी से उगती है..

***