आधी नज्म का पूरा गीत - 2 Ranju Bhatia द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आधी नज्म का पूरा गीत - 2

आधी नज्म का पूरा गीत

रंजू भाटिया

Episode 2

अमृता प्रीतम जो नाम है अपनी शर्तों पर जीने का

जिसने उस वक़्त स्त्री की उस शक्ति को जी के दिखा दिया जब एक औरत अपने घूंघट से बाहर निकलने का सोच भी नहीं सकती थी, अमृता ने न केवल अपनी जिंदगी को इस तरह से जिया, अपने लिखे स्त्री चरित्रों को भी उस चमत्कारिक अनूठी ताकत में दिखाया जो न केवल आज वरन आने वाले वक़्त के लिए एक मिसाल बन के रहेंगी, चाहे वह उर्मि हो, चाहे वह ३६ चक की अलका या शाह जी की कंजरी हो या पिंजर की पूरो। अमृता जी की लिखी स्त्री चरित्र एक स्त्री की उस उंचाई को दिखाते हैं जहाँ वह स्त्री रह कर ही खुद में सम्पूर्ण है, वह पुरुष से महान नहीं कहलाना चाहती, न ही उसका मर्द जाती से कोई दुश्मनी या मुकाबला है वह तो खुद में ही सम्पूर्ण है, अमृता की यह सप्त तारिकाएँ आने वाले वक़्त के लिए एक मिसाल है,

मेरे लिए जिन्दगी एक बहुत लम्बी यात्रा का नाम है

जड़ से लेकर चेतन तक की यात्रा का नाम

अक्षर से लेकर अर्थ तक की यात्रा का नाम

और हकीकत जो है - वहाँ से लेकर

हकीकत जो होना चाहिए -

उसकी कल्पना और उसमें एतकाद रख पाने की यात्रा का नाम

इसलिए कह सकती हूँ

कि मेरी कहानियों में जो भी किरदार हैं

वह सभी किरदार जिन्दगी से लिए हुए हैं।

लेकिन वह लोग -

जो यथार्थ और यथार्थ का फासला तय करना जानते हैं।

अमृता जी की रसीदी टिकट का एक छोटा सा अंश जिसमें उन्होंने अपने जीवन के सोलहवें साल के आगमन और कविताएं लिखने की शुरुआत का जिक्र अपने खास अंदाज में किया है-

घर में पिताजी के सिवाय कोई नहीं था- वे भी लेखक जो सारी रात जागते थे, लिखते थे और सारे दिन सोते थे। माँ जीवित होतीं तो शायद सोलहवाँ साल और तरह से आता- परिचितों की तरह, सहेलियों की तरह। पर माँ की गैर हाजिरी के कारण जिंदगी में से बहुत कुछ गैर हाजिरी हो गया था। आसपास के अच्छे-बुरे प्रभावों से बचाने के लिए पिता को इसमें ही सुरक्षा समझ में आई थी कि मेरा कोई परिचित न हो, न स्कूल की कोई लड़की, न पड़ोस का कोई लड़का।

सोलहवाँ बरस भी इसी गिनती में शामिल था और मेरा ख्याल है, इसीलिए वह सीधी तरह का घर का दरवाजा खटखटाकर नहीं आया था, चोरों की तरह आया था।

आगे देखिये

कहते हैं ऋषियों की समाधि भंग करने के लिए जो अप्सराएँ आती थीं, उनमें राजा इंद्र की साजिश होती थी। मेरा सोलहवाँ साल भी अवश्य ही ईश्वर की साजिश रहा होगा, क्योंकि इसने मेरे बचपन की समाधि तोड़ दी थी। मैं कविताएँ लिखने लगी थी और हर कविता मुझे वर्जित इच्छा की तरह लगती थी। किसी ऋषि की समाधि टूट जाए तो भटकने का शाप उसके पीछे पड़ जाता है- ‘सोचों’ का शाप मेरे पीछे पड़ गया

अमृता जी की लिखी हुई कई नज्म और कहानी लेख ने मुझे हमेशा प्रेरणा दी है । इस लिए तो इनको मैं अपना गुरु मानती हूँ.और हर बार इनके लिखे को पढ़ना एक नया अनुभव दे जाता है। और एक नई सोच। वह एक ऐसी शख्सियत थी जिन्होंने जिंदगी अपनी शर्तों पर जी। एक किताब में उनके बारे में लिखा है की हीर के समय से या उस से पहले भी वेदों उपनिषदों के समय से गार्गी से लेकर अब तक कई औरतों ने अपनी मरजी से जीने और ढंग से जीने की जरुरत तो की पर कभी उनकी जरुरत को परवान नही चढ़ने दिया गया और अंत दुखदायी ही हुआ ! आज की औरत का सपना जो अपने ढंग से जीने का है वह उसको अमृता इमरोज के सपने सा देखती है। ऐसा नही है की अमृता अपनी परम्पराओं से जुड़ी नही थी। वह भी कभी कभी विद्रोह से घबरा कर हाथो की लकीरों और जन्म के लेखो जोखों में रिश्ते तलाशने लगती थी, और जिस समय उनका इमरोज से मिलना हुआ उस वक्त समाज ऐसी बातों को बहुत सख्ती से भी लेता था। पर अमृता ने उसको जी के दिखाया। और इस अमृतनामा में हम उनके लिखे इन्ही सप्त तारिकाओं की बात करेंगे जिसने अमृता के लिखे का हर पहलु सामने आये यह कोशिश रहेगी मेरी, चाहे फिर जिन्दगी की लड़ाई हो या फिर प्रेम से जुडी बातें अमृता ने स्त्री के हर पहलु से खुद को जोड़ कर लिखा जो आने वाले वक़्त तक नयी दिशा दिखाता रहेगा, अमृता और इमरोज यह दो नाम एक साथ लिए जातें रहेंगे। उनकी लिखी इस कविता की तरह

उनकी लिखी इस पर एक उनकी लिखी इस पर एक कविता याद आई।

तुम्हे खुद से जब लिया लपेट

बदन हो गए ख्यालों की भेंट

लिपट गए थे अंग वह ऐसे

माला के वो फूल हों जैसे

रूह की वेदी पर थे अर्पित

तुम और मैं अग्नि को समर्पित

यूं होंठो पर फिसले नाम

घटा एक फिर धर्मानुषठान

बन गए हम पवित्र स्रोत

था वह तेरा मेरा नाम

धर्म विधि तो आई बाद !!

***