छूटी गलियाँ - 6 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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छूटी गलियाँ - 6

  • छूटी गलियाँ
  • कविता वर्मा
  • (6)

    "नमस्ते, देर तो नहीं हुई मुझे?"

    "नहीं नहीं बैठिये, मैंने बेंच पर एक ओर खिसकते हुए कहा। हम काफी देर तक एक दूसरे को योजना की रूपरेखा बताते समझाते रहे। करीब एक घंटे तक हर पहलू पर विचार करने के बाद उसने मुझसे विदा ली। उसके जाने के बाद भी बहुत देर तक मैं अपनी योजना पर विचार करता रहा। उसे सही गलत के तराजू पर परखता रहा। योजना को अमल में लाने में सिर्फ दो दिन शेष थे। मुझे अभी काफी तैयारी करनी थी। फोन पर मेरी आवाज़ शांत होनी चाहिये संयत, आज़ जैसी अधीरता नहीं हो। बात करते हुए मुझे इतना सामान्य होना होगा जैसे मैं हमेशा से राहुल से बात करते रहा होऊँ। और इसके लिए मुझे अभ्यास कर लेना चाहिये।

    घर आते आते मुझे जोर से भूख लग आई। टिफिन वाला अभी तक नहीं आया था, उसके इंतज़ार के अलावा कोई चारा भी नहीं था मैं ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ा होकर बोलने लगा।

    "हैलो राहुल बेटा हैप्पी बर्थ डे कैसा है मेरा बेटा?" मुझे याद आया राहुल तो कई सालों से अपने डैडी से मिला ही नहीं है।

    "हैलो बेटा हाऊ आर यू? हैप्पी बर्थ डे .... नहीं नहीं मेनी मेनी हैप्पी रिटर्न्स ऑफ़ द डे।" हाँ ये ठीक है।

    इसके बाद वो क्या कहेगा? एक बारह साल का बच्चा पहली बार अपने डैडी से बात करेगा तो क्या कहेगा? अगर वो भावुक हो गया तो? अगर मैं ही भावुक हो गया तो? जब सिंगापुर से फोन करता था सनी ही सबसे पहले फोन उठाता था। कितना उत्साह होता था उसके स्वर में सब कुछ बता देने की बेताबी सब कुछ जान लेने की उत्सुकता। राहुल भी वैसे ही बात करेगा। अगर मैंने ही राहुल और सनी के नामों में गड़बड़ कर दी तो? नहीं मुझे बहुत सावधानी से बात करना होगी। अपनी भावनाओं पर मैं खुद ही चकित था। मैं तो उससे कभी मिला भी नहीं हूँ फिर ये जुड़ाव ये भावुकता क्यों?

    रात में बहुत देर तक रूपरेखा बनाता रहा कब आँख लगी पता ही नहीं चला। दूसरे दिन मैं काफी शांत था। आखिर पाँच तारीख भी आ गई शाम को नेहा का फोन आया मुझे याद दिलाने के लिये।

    "हाँ हाँ मैं तैयार हूँ।" उस शाम मैं कहीं बाहर भी नहीं गया कुछ डर था और कुछ बैचेनी भी।

    ठीक आठ बजे मैंने नेहा का लेंड लाइन फोन मिलाया।

    "हैलो हैलो कौन?" एक बच्चे की आवाज़ आयी।

    "हैलो राहुल, राहुल बेटा।"

    "हाँ मैं राहुल, आप कौन?"

    "बेटा मैं डैडी बोल रहा हूँ।"

    "डैडी, ख़ुशी के अतिरेक वह चीख पड़ा, हैलो डैडी आप !

    "हाँ बेटा मैं मेनी मेनी हैप्पी रिटर्न्स ऑफ़ द डे!"

    "थैंक यू डैडी, थैंक यू वेरी मच। कहाँ हैं आप कैसे हैं? मेरे बर्थ डे पर क्यों नहीं आये?"

    "बेटा यहाँ बहुत काम है मुझे बिलकुल समय नहीं मिलता।"

    "आप फोन तो कर सकते हैं, आप कभी फोन भी नहीं करते, मेरे दोस्तों के डैडी भी तो बाहर हैं वो तो रोज़ फोन करते हैं।"

    अब उसे अपने दोस्तों की याद आई, वह वहीं से आवाज़ लगाने लगा, ऐ राज़, तनय, अभिषेक देख मेरे पापा का फोन आया है।

    "पापा आप इंडिया कब आने वाले हैं, और मेरा बर्थ डे गिफ्ट? आप गिफ्ट भी नहीं भेजते।" उसके स्वर में नाराज़गी थी।

    "अरे भेजा है मैंने गिफ्ट, देखते हैं आपको पसंद आता है या नहीं, मम्मी से पूछो।"

    "मम्मी s s s वह इतने जोर से चीखा कि मुझे अपने कान से फोन हटाना पड़ा।

    "मम्मी मेरा गिफ्ट, पापा ने भेजा है मेरे लिए सच्ची, थैंक यू पापा थैंक यू वैरी मच। लो मम्मी से बात करो, आप जल्दी आना हाँ।" उसने फोन नेहा को पकड़ा दिया।

    "हैलो,थैंक यू"

    "अरे इसमे थेंक यू की क्या बात है?"

    "अरे वाह प्ले स्टेशन, मम्मी देखो पापा ने प्ले स्टेशन भेजा है।" राहुल की ख़ुशी से किलकती आवाज़ आ रही थी।

    "आप उसके साथ रहिये, गुड नाइट।"

    "गुड नाइट।"

    मैं बहुत खुश था, एक बच्चे को खुश करके बहुत हल्का महसूस कर रहा था। नेहा ने बातों बातों में राहुल से पता कर लिया था वो बर्थ डे पर क्या चाहता है? गिफ्ट पापा के नाम से पैक करवा लिया था, फिर मेरा राहुल का पापा बन कर फोन करना, उसके पसंद का गिफ्ट उस छोटे से बच्चे को दुनिया जहान की खुशियाँ दे गया।

    रात देर तक मैं कल्पना में उस छोटे बच्चे की ख़ुशी को विचारता रहा, कैसा लगा होगा उसे मुझसे बात करके? वह खुश तो था, ख़ुशी से कैसे चहक रहा था। उसे शक़ भी नहीं हुआ कि मैं उसका डैडी नहीं कोई और हूँ? कैसे होता उसने तो कई सालों से अपने डैडी की आवाज़ नहीं सुनी है। इसका मतलब मेरी योजना सफल रही मैं राहुल को वह ख़ुशी दे सका जिसकी उसे चाह थी वह उसका हक़दार भी था। आखिर को उस मासूम का कसूर भी क्या है? कसूर तो सनी और सोना का भी कुछ नहीं था लेकिन वे मेरी महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ गए। मेरे सपनों ने उनके भविष्य के सपनों को खोखला कर दिया। उड़ान के लिए जरूरी ठोस जमीन को खोखला कर दिया। मैं कुसूरवार हूँ उनका। पिता होने का सही अर्थ समझने में विफल रहा जिसकी सजा उन्हें भुगतनी पड़ी। मेरे बच्चे उनके बारे में सोच कर ही मन भारी हो जाता है।

    मम्मी मम्मी देखो पापा ने कितना अच्छा प्ले स्टेशन भेजा है, नेहा जैसे ही फोन रख कर पलटी राहुल ने चहकते हुए कहा। उसका चेहरा, उसकी आँखें उसका रोयाँ रोयाँ ख़ुशी से आल्हादित था उसे तो मानो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतने सालों बाद उसके पापा ने उसे बर्थ दे विश किया उसके लिए गिफ्ट भेजा। वह उस से नज़रें नहीं हटा पा रहा था मानों उसमे वह अपने पिता को ही देख रहा हो। अपने दोस्तों को दिखाते हुए भी वह उसे अपने हाथ में थामे रहा मानो अपने पापा का हाथ थाम रखा हो।

    नेहा ख़ुशी से दमकते हुए राहुल को मुग्ध सी निहारती रही, उसने उसे इतना खुश कभी नहीं देखा था। उसकी बातों में पापा की हर धुंधली सी याद चमक रही थी। वह दोस्तों को अपने पापा के बारे में बता रहा था जिन्हे उसने सालो से नहीं देखा था लेकिन वह उसके ख्यालों में इतने जीवंत थे जैसे वह उनसे रोज़ मिलता हो।

    "जानते हो मेरे पापा बहुत बड़े डॉक्टर हैं दुबई में प्रेक्टिस करते हैं बहुत बिजी रहते हैं, लेकिन देखा उन्होंने मेरे लिए टाइम निकाला ना, वह मुझे बहुत प्यार करते हैं।"

    राहुल की मासूम बातें सुन कर नेहा की आँखें भर आयीं। क्या होगा जब राहुल को इस मीठी ख़ुशी के कड़वे सच का पता चलेगा? क्या वह बर्दाश्त कर पायेगा? एक क्षणिक ख़ुशी के लिए मैंने झूठ का जो कंटीला पौधा रोप दिया है वह कहीं इसे लहुलुहान तो नहीं कर देगा? बहुत सारे द्वंद के साथ नेहा पार्टी के इंतज़ामों में लगी रही।

    अंजलि के सारे प्रोग्राम को दरकिनार कर दीपक सहाय की योजना अनुसार पार्टी घर पर रखी गई थी। कोई गड़बड़ ना हो इसलिये सिर्फ राहुल के दोस्तों को बुलाया गया था। अंजलि को तो यूँ भी बुलाया नहीं जा सकता था। वह आती तो इस फोन के बाबद उससे कई झूठ बोलने पड़ते, उससे कहे गए और आज हुए के सच का स्पष्टीकरण देना पड़ता। जिसके लिए एक कहानी का तानाबाना बुनना पड़ता। हर रेशे की बुनाई याद रखना पड़ती। झूठ की बुनाई महीनता से करनी पड़ती है जबकि सच मोटे और खुरदरे धागों से भी बुना होता है शायद इसीलिये सच चुभता है।

    देर रात नेहा राहुल को देखने उसके कमरे में गई, वह लेटे लेटे छत को ताक रहा था, पापा की फ़ोटो उसके बिस्तर पर रखी थी, चेहरे पर ख़ुशी और आँखों में मुस्कान थी। नेहा को देखकर वह उठ बैठा।

    "मम्मी पापा सच में मुझे प्यार करते हैं ना?" इस लंबे अंतराल के बाद इस बात पर विश्वास करना उसके लिये मुश्किल था पर वह इस पर विश्वास करना चाहता था पूरा विश्वास और इस विश्वास की जड़ों को नेहा के शब्दों की दृढ़ता और सच्चाई से परखना चाहता था।

    नेहा अचकचा गई उसके सिर पर हाथ फेर कर बोली "हाँ बेटा" इसके आगे उससे कुछ ना बोला गया। राहुल देर तक उसे देखता रहा शायद उसे उम्मीद थी नेहा और कुछ कहेगी।

    "अच्छा मम्मी पापा को कैसे पता चला मुझे प्ले स्टेशन चाहिए था।"

    "मुझे क्या पता, तुम्हे पापा से पूछना चाहिए था।"

    "कहीं आपने तो उन्हें नहीं बताया? मम्मी आपकी पापा से बात होती है?"

    "नहीं मैंने कुछ नहीं बताया उन्हें।"

    "फिर पापा को कैसे पता चला? अच्छा मम्मी पापा ने आपसे क्या क्या बातें कीं?"

    "कुछ खास नहीं बस पूछ रहे थे पार्टी कैसी चल रही है।" नेहा अब इस विषय पर और झूठ बोलने से बचना चाह रही थी। वह नहीं चाहती थी कि राहुल कोई और झूठा सपना देखने लगे और ना ही चाहती थी कि उसके शब्दों का कंपन इस झूठ के सच को उजागर कर दे।

    "बस इतना ही पूछा, और कोई बात नहीं की? मुझे पापा से और बात करना चाहिए था ना? पूछना था उन्हें हमारी याद नहीं आती? इतने सालों से वो आये क्यों नहीं? मम्मी पापा मुझे प्यार करते है ना, वो फिर फोन करेंगे ना ?"

    नेहा कोई झूठी दिलासा नहीं देना चाहती थी अब इस विषय से ही उसे बैचेनी होने लगी उसने तुरंत विषय बदला, "अच्छा राहुल अब सो जाओ सुबह स्कूल जाना है, मुझे भी अभी सुबह की तैयारी करना है।" उसने राहुल का माथा चूमा "हैप्पी बर्थ डे बेटा।"

    कमरे से निकलते ही उसने गहरी साँस ली, वह अभी भी खुद को किसी व्यूह में फँसा महसूस कर रही थी। रात देर तक वह इसी उधेड़बुन में रही, जो किया वह ठीक था या नहीं?

    ***