छूटी गलियाँ - 7 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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छूटी गलियाँ - 7

  • छूटी गलियाँ
  • कविता वर्मा
  • (7)

    दूसरे दिन शाम को घूमने गया तो नेहा को बेंच पर बैठे पाया। "अरे आप नमस्ते, कैसी हैं? कैसी रही बर्थ डे पार्टी?"

    "नमस्ते जी ठीक हूँ, पार्टी बहुत अच्छी रही, बहुत सालों बाद मैंने राहुल को उसके बर्थ डे पर इतना खुश देखा। आपका ये एहसान …।"

    "अरे कैसी बातें करती हैं आप। एक बच्चे को खुश करना भगवान की सच्ची प्रार्थना है।"

    "लेकिन" कहते हुए वह अटकी।

    "जी कहिये ना संकोच मत करिये।"

    "कल पार्टी के बाद राहुल अपने पापा के बारे में बहुत सारी बातें पूछ रहा था। जैसे मुझसे क्या क्या बातें हुई? जब मैंने कहा कुछ खास नहीं तो वह थोडा उदास हो गया। बाद में उसे अफ़सोस हो रहा था, कि उसने पापा से ज्यादा बातें क्यों नहीं कीं, बार बार पूछता रहा मम्मी, पापा फिर फोन करेंगे ना?"

    "आपने क्या कहा?"

    "मैंने…, मैं क्या कहती आपने उसका बर्थ डे खुशियों से भर दिया।"

    "अरे तो आप क्या समझती हैं, एक बार उससे बात करके मैं पीछे हट जाऊँगा। देखिये आप मुझे गलत ना समझिये लेकिन मैं राहुल को इस तरह अकेले नहीं छोड़ने वाला। उसे जब जब अपने पापा की याद आये या वह उनसे बात करना चाहे, मैं उससे बात करूँगा।"

    नेहा मेरा मुँह ताकती रह गयी, फिर कुछ संभल कर बोली "मैं कैसे .... "

    "बस अब कुछ न कहिये, कोई तकल्लुफ नहीं।"

    "बाबूजी सींगदाना।"

    "हाँ भाई दो पुड़िया बना दो।" मैंने जेब से पैसे निकलते हुए कहा।

    सींगदाना खाते हुए नेहा से कई बातें होती रहीं, उसके जॉब की, राहुल के बचपन की, सनी की और भी जाने क्या क्या।

    सोनू के केस के सिलसिले में कुछ दिन बहुत व्यस्त रहा ना पार्क जाना हुआ ना ही नेहा से मिलना या बात करना।

    एक शाम नेहा पार्क में ही मिल गयी, वह मेरा ही इंतज़ार कर रही थी देखते ही बोली "वो राहुल"

    "क्या हुआ राहुल को?"

    "आपसे बात करने के बाद से ही वह अपने पापा का नंबर माँग रहा है, उनसे बात करने की जिद कर रहा है।"

    "ओह्ह तो इसमें परेशान होने की क्या बात है? मैंने तो आपसे पहले ही कहा है कि मैं उसे इस नाज़ुक उम्र में अकेले नहीं छोडूँगा। आप तो जब भी ऐसी बात हो मुझे फोन करके बता दीजिये, मैं उससे बात कर लूँगा। मैं आज ही रात में बात करूंगा, कोई खास बात हो तो बता दीजिये।

    "नहीं खास कुछ नहीं, बस वो आपका नंबर।"

    "आप चिंता मत कीजिये मैं उसे समझा दूँगा, कि यहाँ से आई एस डी कॉल बहुत महँगे हैं इसलिए फोन मैं ही करूँगा। आप भी बस इतनी इतनी सी बातों में परेशान हो जाती हैं।" नेहा की परेशानियों को समझकर उनकी मदद कर दिल का एक कोना सुकून से भर जाता है जैसे कोई महत्वपूर्ण काम कर दिया हो।

    रात में ठीक आठ बजे मैंने फोन किया "हैलो राहुल बेटा कैसे हो?"

    "पाs s पा आप कहाँ थे? आपने फिर फोन ही नहीं किया।"

    "बेटा मैं फोन करता लेकिन यहाँ और वहाँ के समय में अंतर होता है ना, जब मैं फ्री होता हूँ तब तुम स्कूल में होते हो।"

    "ओह्ह हाँ इसलिए, पापा आप अपना नंबर दे दीजिये न।"

    "बेटा यहाँ कम्पनी के नियम बहुत स्ट्रिक्ट हैं। काम के समय में पर्सनल फोन नहीं आने चाहिए।"

    "कंपनी, पर पापा आप तो डॉक्टर हैं न?"

    आँ हाँ हाँ, यहाँ ये मेडिकल कंपनी कहलाती है। "मैंने किसी तरह बात को संभाला। अब मुझे काफी संभलकर बात करनी होगी। ये आजकल के बच्चे, इन्हे बहलाना इतना आसान नहीं है।

    फिर तो राहुल बड़े उत्साह से स्कूल, गेम्स, दोस्तों, टीचर्स के बारे में बातें करता रहा, हमने करीब आधा घंटा बातें कीं।

    "अच्छा पापा पर आप जल्दी जल्दी फोन किया करिये। आई मिस यू पापा मिस यू वैरी मच।"

    आई मिस यू टू बेटा आई लव यू, सोनू मेरे सामने खड़ा हो गया। मैं चाहकर भी अपने आँसू नहीं रोक पाया।

    फोन रख कर देर तक यूँ ही बैठा रहा, आँसू बहते रहे। मैंने कभी सोनू से ये सब क्यों नहीं कहा? मैंने उसे कभी नहीं जताया कि मैं उसे कितना प्यार करता हूँ। क्यों नहीं मैंने उसे अपने गले से लगाया? आज राहुल से बात करके मैंने जाना कि मैंने क्या मिस कर दिया।

    दूसरे दिन सुबह सुबह ही मैं तैयार हो गया, दस बजे वकील के यहाँ जाना था उसके पहले मैं सोनू से मिलना चाहता था। मुझे अचानक आया देख कर सोनू चकित रह गया। मैंने हाथ में पकड़ा लिफाफा उसे पकड़ाया तो उसकी आँखों में एक कौतूहल था, सोनू ने उसे खोलकर देखा, उसमे उसका रुबिक क्यूब था जो उसके बारहवें या तेरहवें बर्थ डे पर मैंने उसे दिलवाया था, ये मेरे सिंगापुर जाने से पहले की बात है। क्यूब हाथ में लेकर उसकी आँखें छलक आयीं, आज मैंने अपनी सारी झिझक परे खिसका कर अपनी दोनों बाँहे उसकी ओर बढ़ा दीं, वह भी मेरे गले से लग गया, मैंने उसे जोर से भींच कर उसके कान में धीरे से कहा "आई लव यू बेटा, आई लव यू टू मच जल्दी घर आ जाओ बेटा, मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ।"

    "आई लव यू पापा, आई एम सॉरी पापा।"

    "नहीं बेटा" मैंने उसके आँसू पोंछे, "ऐसा मत कहो बस जल्दी से घर आ जाओ।"

    "जी पापा" आज उसका चेहरा आँसुओं से धुल कर निखरा सा लग रहा था, उसके चेहरे पर हमेशा रहने वाले अवहेलना और कटुता के भाव आँसुओं में धुल गए थे। आज वह बहुत शांत और मासूम सा लग रहा था। मैंने उसके सिर पर हाथ रखा, उसने मेरी आँखों में देख कर कहा "पापा मैं बहुत जल्दी ठीक होकर वापस आऊँगा।"

    बहुत सारे हादसों के बाद आज पहली बार हमने एक दूसरे से आँख मिला कर बात की थी। मुझे अपना आप बहुत हल्का लगा मानों सीने से पत्थर हट गया हो। एक छोटे से बच्चे से बात करके मैंने जाना कि प्यार जताना कितना जरूरी है और इसके कितने सुखद परिणाम होते हैं। घर पर भी मैं अक्सर राहुल और सनी के बारे में सोचा करता, अब मुझे विश्वास हो गया था कि सनी जल्दी ठीक हो जायेगा, मैंने उसके लिए नई संभावनाओं की तलाश शुरू कर दी। उसका आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए, उसे व्यस्त रखने के लिए उसकी रूचि के अनुरूप कोर्स ढूँढना शुरू कर दिये।

    सनी

    आज पापा मुझसे मिलने आये थे मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि पापा मुझसे मिलने आये थे। सोना और मम्मी के जाने के बाद हमारे बीच शायद ही कभी ठीक से बात हुई हो। हाँ मम्मी के अंतिम संस्कार के बाद उन्होंने मुझे गले लगाया था, लेकिन मैं ही उनके गले नहीं लग सका। सच कहूँ तो मैं उनसे नाराज़ था बहुत नाराज़, पापा ने अपनी महत्वाकांक्षा, अपने सपनों के लिये हम सब को अकेला छोड़ दिया। वो वहाँ इतने व्यस्त हो गये कि हमारे लिए उनके पास वक्त ही नहीं रहा। उन्होंने कभी सोचा ही नहीं कि सोना, मम्मी और मुझे उनकी कितनी ज़रूरत थी। कितना खाली खाली लगता था उनके बिना। मेरे सारे दोस्त छुट्टियाँ अपने पापा के साथ बिताते थे, रोज़ शाम पापा के आने का इंतज़ार करते थे और हम लोग पापा के फोन के इंतज़ार में बैठे रहते थे। बस हमारे लिए महँगे महँगे गिफ्ट्स भिजवाते रहते थे बाकी तो उन्हें हमारी चिंता ही नहीं थी। मम्मी तो उनका इंतज़ार करते करते ही चली गयीं और सोना, कितनी लाड़ली थी वह पापा की वो उनसे मिले बिना ही चली गई।

    सिसक उठा सनी, सोना मेरी प्यारी छोटी बहन। सनी बहुत देर तक रोता रहा रुबिक क्यूब हाथ में था, पापा आप हमें छोड़ कर क्यों चले गए थे? धीरे धीरे सनी के मन में उमड़ा शिकायतों का ज्वार मद्धिम पड़ने लगा। उसके सोचने की दिशा अनजान हवा के झोंकों से अपना रुख बदलने लगी। वह सोचने लगा पापा जब सिंगापुर जाने वाले थे मैं और सोना कितने खुश थे कि हमारे पापा भी विदेश में रहेंगे, उन्हें ज्यादा पैसे मिलेंगे, हमें भी महँगे गिफ्ट्स मिलेंगे, कितनी जिद करके हम पापा से अपनी हर बात मनवा लेते थे। मम्मी गुस्सा करती थीं लेकिन पापा हमारी सभी बातें मान लेते थे और मम्मी से कह कर सब मनवा देते थे।

    पापा मुझे और सोना को कितना प्यार करते थे शायद उनकी वो प्यार भरी डाँट ना मिलने से ही ये सब हुआ। मेरा और सोना दोनों का ही ध्यान पढ़ने से हट गया, हमारी संगत मौज़ मस्ती करने वालों से हो गई उस समय अगर पापा यहाँ हमारे साथ होते तो हमें भटकने से रोक लेते, पर वो यहाँ नहीं थे इसलिए मैं उनसे नाराज़ था। पापा मुझे प्यार करते हैं, मेरी फिक्र करते हैं, मेरे लिए सब छोड़छाड़ कर यहाँ रह रहे हैं , आय लव यू पापा मैं जल्दी अपनी आदतों पर काबू पा लूँगा आपके लिए, अपने लिए, मैं ठीक हो जाऊँगा, जल्दी ही घर वापस आऊँगा आपके पास।

    उस दिन सुबह आठ बजे नेहा का फोन आया वह बड़ी घबराई हुई थी। "राहुल को बहुत तेज़ बुखार है वह अधबेहोशी की हालत में बार बार पापा पापा कह रहा है, मैं उसे हॉस्पिटल ले कर आई हूँ क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आ रहा है।"

    ***