छूटी गलियाँ
कविता वर्मा
(10)
मैंने नेहा से पूछा "आपने कभी विजय से बात नहीं की?"
"राहुल के बीमार होने के बाद मैंने दो तीन बार फोन लगाने की कोशिश की थी, रिंग गयी लेकिन फोन काट दिया गया" कहते हुए नेहा का गला रुंध गया। एक बेबसी जो बेटे के प्यार से उपजी और ठुकराये जाने की पीड़ा उनकी आँखों में तिर आई। जिस प्रेम और विश्वास से नेहा ने अपने कर्तव्य पूरे किये उसके बदले मिला विश्वासघात का दंश आखिर को निकलता कैसे?
मतलब साफ़ है वह कोई संबंध नहीं रखना चाहता लेकिन फिर भी वह नंबर तो पहचानता है, मेरे मन में यूँ ही एक ख्याल आया, मतलब डोर छितरा गयी लेकिन कोई रेशा अभी भी बाकी है जो टूटने से बच गया है शायद, कौन जाने वह रेशा राहुल है या नेहा? मैंने गहरी साँस लेते हुए आसमान को ताका अब वही जानता है आगे क्या होगा?
रात करीब आठ बजे फोन की घंटी बजी हैलो, नेहा की बहुत धीमी और घबराई हुई आवाज़ आयी।
"हैलो, नेहा जी क्या बात है इतनी रात में, सब ठीक तो है ना? राहुल तो ठीक है?"
"कुछ ठीक नहीं है, पता नहीं क्या होगा? पता नहीं आपका राहुल से यूँ बात करना ठीक था या नहीं? या यह मेरी ग़लती थी।"
"अरे पर हुआ क्या ये तो बताइये? राहुल कहाँ है?"
"वो अपने कमरे में है, मैं यहाँ बाहर।"
"मम्मी कहाँ हो?" राहुल की आवाज़ फोन पर भी सुनाई दी।
"आई बेटा, जी मैं बाद में बात …
"हाँ हाँ आप जाइये कल शाम को पार्क में मिलते हैं, पाँच बजे, चिंता मत करिये सब ठीक हो जायेगा।"
"भगवान करे ऐसा ही हो।" कह कर नेहा ने फोन रख दिया।
राहुल के स्वर के आक्रोश ने मुझे भी चिंता में डाल दिया मैं सोचने लगा मैंने ये ठीक किया या नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं मदद करने और अपराधबोध कम करने की धुन में मैं उस मासूम बच्चे की जिंदगी में नई नई भावनात्मक उलझनें पैदा कर रहा हूँ। मुझे ये सिलसिला शुरू ही नहीं करना था या सिर्फ बर्थ डे के दिन फोन करके ख़त्म कर देना था। उसके मन की उलझनें उसे बैचेन कर रही हैं और बैचेनी आक्रोश बन कर प्रकट हो रही है। कहीं ऐसा ना हो अपने प्रश्नों के जवाब ना मिलने पर वह विद्रोही बन जाये। तो क्या उसे उसके प्रश्नों के उत्तर दे दिए जाएँ? क्या उसे सब सच बता दिया जाना चाहिये? क्या इस कच्ची उम्र में वह इस सच को समझ सकता है या इस सच को भी उसकी उम्र के हिसाब से थोडा तोड़ मरोड़ कर बताया जाये? मैं कुछ निश्चित नहीं कर पाया, विचारों की रेलमपेल में मैं ठीक से खाना भी नहीं खा पाया।
शाम को कुछ जल्दी ही पार्क पहुँच गया। नेहा पार्क के गेट पर ही मिल गई।क्या हुआ मैंने व्यग्रता से पूछा?
"बताती हूँ कह कर वह बेंच की ओर बढ़ गई। हमारी वाली बेंच पर कोई बैठा था मैंने आसपास देखा पार्क में कुछ ज्यादा ही भीड़ भाड़ थी, सभी बेंच भरी हुई थीं घास पर भी कई परिवार दरी बिछाए बैठे हुए थे, बहुत शोर शराबा था। नेहा ने प्रश्नवाचक दृष्टी से मेरी ओर देखा, इतने शोर में इस गम्भीर मसले पर चर्चा तो सम्भव नहीं थी।
"कही और चलते है यहाँ तो बात हो नहीं पायेगी।"
"पर कहाँ?" नेहा भी सहमत थी।
"अगर एतराज़ ना हो तो मेरा घर पास ही है, हाँ मैं अकेला रहता हूँ अगर आप विश्वास करें।
"कैसी बातें करते हैं आप ? चलिए आज आपका घर भी देख लिया जाये।" इतने तनाव में रहने के बाद भी हलके फुल्के ढंग से बात चीत करने का उस का ये तरीका मुझे अच्छा लगा और हम पार्क से बाहर आ गये।
यहाँ वहाँ की बाते करते हम घर आ गए, दरवाज़ा खोल कर बैठते ही मैंने पूछा "हाँ तो क्या बात हुई?" मैं अब और इंतज़ार नहीं कर पा रहा था।
"राहुल के मुझे और विजय को लेकर सवाल बढ़ते ही जा रहे हैं पिछले दो महिने से हर रोज़ वह हमारे बारे में बातें करता है। शादी कैसे हुई कहाँ मिले? दादा दादी मुझे प्यार करते थे या नहीं? पापा दुबई कब गये? वो आपको प्यार करते है या नहीं? आपसे बात क्यों नहीं करते? पिछली बार इंडिया कब आये थे? उसके बाद से क्यों नहीं आये? क्या हमारी आपस में नहीं बनती? क्या हमारा तलाक हो गया है? मैं उनसे बात करने की कोशिश क्यों नहीं करती? उन्हें इंडिया क्यों नहीं बुलाती?" नेहा एक साँस में सारे प्रश्न कह गईं जैसे कह कर ही बोझ हल्का हो गया हो। फिर एक गहरी साँस ले कर बताने लगीं "कभी कभी तो पुराने एलबम ले कर बैठ जाता है, सिर्फ आपकी और पापा की एक साथ कोई फ़ोटो क्यों नहीं है?किसी में मैं आपके साथ हूँ किसी में दादा दादी। आप लोग कभी साथ में घूमने नहीं गये?"
"उसके हर प्रश्न में एक शक़ होता है। मैं जानती हूँ वह बहुत अशांत रहता है। यह एहसास कि उसके मम्मी पापा के बीच कुछ अनबन है कुछ असहज है वह एक असुरक्षा की भावना से घिरता जा रहा है। कभी कभी पूछता है मम्मी यदि उस समय जब मेरी तबियत ख़राब हुई थी यदि मुझे कुछ हो जाता तो पापा इंडिया आते, मुझे देखने, मेरा इलाज़ करने? यदि मैं मर जाता तब, तब तो आप अकेली हो जाती ना, फिर आप क्या करतीं? अकेली यहीं रहतीं या पापा के पास चली जातीं या मामा के पास जातीं?
मैं थक गयी हूँ उसके सवालों के जवाब देते देते। जब मैं सवालों को टालने की कोशिश करती हूँ तो वह गुस्सा हो जाता है, चिल्लाने लगता है, तुम मुझसे झूठ बोल रही हो, कुछ छुपा रही हो मुझसे, सामान उठा कर फेंकने लगता है और फिर गुस्से में बिना कुछ खाये पिये ही सो जाता है। लेकिन इतने के बाद भी मुझ से दूर रहना बर्दाश्त नहीं है उसे। कल आपने सुना था ना फोन पर? जब मैं उसके पास जाती हूँ बस मेरा हाथ कस कर पकड़ता है और सो जाता है। अब वह अपने आप को असुरक्षित महसूस करता है। क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा है?" नेहा ने एक साँस में सब कह दिया।
हूँ कहते हुए मेरे मन में कुछ कौंधा, क्या? मैं खुद ही चकित था, वह मुझसे कभी ये बातें नहीं पूछता। "मुझसे तो वह बहुत सामान्य तरीके से बात करता है, अपने स्कूल की, पढ़ाई और दोस्तों की। हाँ ये पूछता है आप इंडिया कब आओगे? लेकिन उसने कभी मेरे और तुम्हारे, आई मीन सॉरी" मैं इस गलती पर बहुत असहज हो गया।
"मेरा मतलब है अपने मम्मी पापा के आपसी रिश्तों के बारे में कोई प्रश्न नहीं किया। हाँ पिछले एक दो बार से उसने ये जरूर कहा लीजिये मम्मी से बात कीजिये और फोन आपको पकड़ा दिया।"
"हाँ पर फोन देकर भी वह वहाँ से हटा नहीं वहीं खड़ा मुझे देखता ही रहा", नेहा ने भी याद करते हुए कहा।
"तो वह देख रहा था कि मम्मी पापा से बात करते हुए सहज थीं या नहीं? बात करती हैं या नहीं, करती हैं तो कितनी देर?"
"हाँ और जब एकाध मिनिट बाद ही मैंने फोन रख दिया तो उसने अंदाज़ा लगाया कि कुछ गड़बड़ है।"
"ओह्ह ये आजकल के बच्चे कितने ध्यान से हर बात को देखते समझते हैं" नेहा ने उसांस भरी।
फिर भी प्रश्न तो वही है कि वह ये सब बातें अपने पापा से क्यों नहीं पूछता ? मेरे दिमाग में अभी भी वही प्रश्न घुमड़ रहा था।
"विजय का स्वभाव कैसा है? क्या वह बहुत गुस्से वाला है? शायद उसके गुस्से वाली कोई छवि राहुल के दिमाग पर अंकित हो।"
"नहीं नहीं वो तो बहुत शांत स्वभाव के है, वह कभी किसी से ऊँचे स्वर में बात नहीं करते। मैंने कभी उनकी ऊँची आवाज़ नहीं सुनी तो जाहिर है राहुल ने भी नहीं सुनी।"
"फिर क्या कारण हो सकता है?" मैं सोच में पड़ गया। "उसे याद है जब विजय आखरी बार यहाँ आये थे, उन्होंने उसे प्यार किया था? उसके साथ समय बिताया था?"
"आखरी बार वो अपनी मम्मी के न रहने पर आये थे, करीब चौदह पंद्रह दिन रुके थे, वह समय तो मेहमानों, रस्मों रिवाज़ों में ही निकल गया। राहुल उस समय नौ दस साल का था उसे दादी से बहुत लगाव था, जब भी वह दादी को याद करके रोता विजय उसे प्यार से समझाते थे चुप कराते थे। बहुत ज्यादा समय तो उन्हें नहीं मिलता था, कभी कभी थोड़ी बहुत बातें होती थीं।"
हूँ, मैं सोच में पड़ गया।
"हो सकता है वह अभी भी अपने पिता से वह नज़दीकियाँ महसूस नहीं कर पा रहा है। उसे डर है कि तीन साल बाद तो पापा से बात होना शुरू हुई है यदि वह सवाल करेगा तो ये सिलसिला कहीं रुक न जाये" नेहा कुछ सोचते हुए बोली।
मुझे धक्का लगा, तो क्या मैं अभी भी एक पिता के रूप में एक बच्चे का विश्वास जीतने में असफल हूँ? मैं बहुत मायूस हो गया समझ ही नहीं आया क्या कहूँ, पर बात शायद सही भी है। "मैं अभी भी उसका विश्वास नहीं जीत पाया " मैंने बहुत मायूसी से कहा।
"आप क्यों निराश होते है? सच तो ये है कि राहुल ने कभी पिता के प्यार को महसूस ही नहीं किया। जब दो साल का था तभी विजय दुबई चले गए थे, वहाँ से फोन पर बहुत औपचारिक बातें होती थीं, ज्यादातर तो मम्मी पापा से ही बातें होती थीं। राहुल तो उस समय बहुत छोटा था उन्होंने भी उससे बात करने की उत्सुकता नहीं दिखाई और पिछले तीन साल से ये सिलसिला भी बंद है।"
"मतलब साफ़ है आपसे पूछने में उसे कोई झिझक महसूस नहीं होती पर अपने पापा को लेकर वह असुरक्षित महसूस करता है। अब प्रश्न ये है कि आगे क्या किया जाये, क्या उसे सब सच बताया जाये? अगर नहीं तो झूठ का ये नाटक कब तक चल सकता है? जितना इस बात को टाला जायेगा उतना उसका शक़ और बढ़ेगा, उसकी बैचेनी उसका आक्रोश उसे विद्रोही न बना दें। इससे उसकी पढ़ाई पर भी असर पड़ेगा।"
कुछ देर हम दोनों ही विचारों में उलझे चुपचाप बैठे रहे, कमरे में अँधेरा भर गया था, मैंने उठ कर लाइट जलाई फ्रिज़ से पानी की बॉटल निकाल कर नेहा को दी।
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