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चेहरे पर चेहरा

चेहरे पर चेहरा

रामसिंह नाम का एक व्यक्ति था, वह पेशे से डाक्टर था। वह बहुत से लोगों को नौकरी पर रखे था। उसने यह प्रचारित किया था कि वह जनता के हित में एक सर्वसुविधा युक्त आधुनिक तकनीक से सम्पन्न अस्पताल बनाना चाहता है। वह हमेशा मंहगी कारों पर चला करता था। उसके पास घर पर मरीजों का तांता लगा रहता था। कुछ तो उससे अपना इलाज कराने के लिये दूर-दूर के दूसरे नगरों से भी आते थै। वह बीमारों के इलाज के बदले उनसे एक भी पैसा नहीं लेता था। गरीबों की मदद करने के लिये वह हमेशा तत्पर रहा करता था। उन्हें वह दवाएं भी बिना पैसो के दिया करता था। उसकी शानो-शौकत व रहन-सहन देखकर लोग उसे बहुत अमीर, परोपकारी और ईमानदार मानते थे।

लोग उसे अस्पताल के लिये दिल खोलकर दान दिया करते थे। बहुत से लोगों ने अपना कीमती सामान और धन उसके पास सुरक्षित रख दिया था। वह उनके धन पर उन्हें ब्याज भी देता था। उनका ब्याज हमेशा उन्हें समय से पहले प्राप्त हो जाया करता था।

एक दिन अचानक वह नगर से गायब हो गया। किसी को भी पता नहीं था कि वह कहाँ चला गया। लोग आश्चर्य चकित थे। कुछ दिन तक तो लोगों ने उसकी प्रतीक्षा की किन्तु फिर जब उनका धैर्य समाप्त होने लगा तो सबके सामने स्थिति स्पष्ट होने लगी। वह बहुत सा धन अपने साथ ले गया था। वह सारा धन जो लोगों ने उसके पास अमानत के तौर पर या व्यापार के लिये रखा था वह सब लेकर चंपत हो गया था।

लोगों ने जब उसकी षिकायत पुलिस में की तो पुलिस ने उसकी खोजबीन प्रारम्भ की और तब जाकर पता चला कि उसके पास उसका स्वयं का कुछ भी नहीं था। जो कुछ भी था सब किराये का था जिसका किराया तक उसने नहीं दिया था। उसकी डिग्री जो वह अपने बैठक खाने में टांगे था वह फर्जी थी। लोगों के पास अब सिवाय हाथ मलने और पछताने के कोई चारा नहीं बचा था। हमें किसी की चमक-दमक देखकर उससे प्रभावित नहीं हो जाना चाहिए। हमें अपने विवेक को जागृत करके रहना चाहिए वरना हम भी ऐसे जालसाजों एवं धोखेबाजों के शिकार हो सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति की जीवन-शैली और कार्य करने की पद्धति सामान्य से भिन्न हो तो हमें हमेशा उससे सावधान रहना चाहिए। यह निश्चित समझिये कि वह कोई न कोई ऐसा कार्य करेगा जो समाज के लिये हितकारी नहीं होगा। ऐसे व्यक्ति पर विश्वास करना स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना होता है।

पाँच वर्ष बाद की एक शाम-मैले कुचेले कपडे पहने भीगता हुआ एक व्यक्ति मंदिर की सीढी पर बैठा हुआ था। मंदिर में आरती हो रही थी, पुजारी जी आरती के उपरान्त सीढियों से नीचे उतर रहे थे कि उन्होंने उस व्यक्ति को देखा और ठिठक कर रूक गये। वो उसको पहचानने का प्रयत्न करने लगे। तभी वह हाथ जोडकर उनके करीब आया और बोला हाँ मैं वही हूँ जो आज से पाँच वर्ष पूर्व यहाँ के लोंगो को बेवकूफ बनाकर,धोखा देकर, लाखों रूपये लेकर चम्पत हो गया था। मुझे मेरी करनी का फल मिल गया। देखिये आज मेरी कितनी दयनीय हालत है। पुजारी जी ने फिर पूछा ये कैसे हो गया। वह बोला मैंने यहाँ से जाकर उन रूपयों से एक उद्योग खोला था। मुझे उसमें घाटा होता चला गया। वह बंद हो गया और मेरी जमा पूँजी समाप्त हो गयी। मेरी पत्नी और मेरा एकमात्र बच्चा टीबी की बीमारी में परलोक सिधार गये। मैं अकेला रह गया और आज दो वक्त की रोटी के लिये भी मोहताज हूँ। यह दुर्दशा मेरे गलत कार्यों के कारण हुई है। जीवन में कभी किसी को धोखा देकर उसका धन नही हडपना चाहिये। किसी के विश्वास को तोडना जीवन में सबसे बडा पाप होता है। मुझे इंसान तो क्या भगवान भी माफ नही करेंगे। मैं इसी प्रकार अब भटकता रहूँगा। इतना कहकर वह रोते हुए अनजाने गन्तव्य की ओर चला गया।

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