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स्वाभिमान

स्वाभिमान

रागिनी एक संभ्रांत परिवार की पढी लिखी, सुंदर एवं सुशील लडकी थी। उसका विवाह एक कुलीन परिवार के लडके राजीव के साथ संपन्न हुआ था। उसके माता पिता आश्वस्त थे कि उनकी बेटी उस परिवार में सुखी रहेगी परंतु उसके विवाह के कुछ माह बाद ही उसे दहेज के लिये प्रताड़ित किया जाने लगा और उसकी यह पीडा प्रतिदिन उस पर हो रहे अन्याय एवं अत्याचार से बढती जा रही थी। उसका पति भी प्रतिदिन नशे का सेवन कर उसके साथ दुव्यवहार करने लगा था जिससे वह बहुत दुखी थी। एक दिन तो हद ही हो गई जब उसके पति ने उस पर हाथ उठा दिया। उसके पडोसी भी उसके प्रति सहानुभूति रखते हुये उसे सलाह देते थे कि वह यह बात अपने माता पिता को बताये एवं पुलिस की मदद भी प्राप्त करे परंतु रागिनी समझती थी कि इससे कुछ समय के लिये राहत तो मिल सकती है परंतु यह स्थायी समाधान नही है।

जब उस पर अत्याचार की पराकाष्ठा होने लगी तो उसने गंभीरतापूर्वक चिंतन मनन करके एक कठोर निर्णय ले लिया जो कि सामान्यतया भारतीय नारी के लिये चुनौतीपूर्ण था उसका पति प्रतिदिन की आदत के अनुसार शाम को नशा करके घर आया और रागिनी को ऊँची आवाज में डाँटता हुआ उस पर हाथ उठाने लगा तभी रागिनी ने उसका हाथ अपने हाथ से जोरो से पकड लिया और जब उसने दूसरा हाथ उठाने का प्रयास किया तो रागिनी ने अपनी पूरी शक्ति और ताकत से उसके इस प्रहार को रोककर उसे जमीन पर पटक दिया। वह साक्षात रणचंडी का अवतार बन गयी थी। वह समाज को यह बताना चाहती थी कि नारी अबला नही सबला है और वह अत्याचार का प्रतिरोध भी कर सकती है। अब उसने पास ही में पडे एक डंडे से राजीव पर प्रहार कर दिया। राजीव डंडे की चोट से एवं अपनी पत्नी के इस रौद्र रूप को देखकर दूसरे कमरे की ओर भाग गया। यह एक सत्य है कि नशा करने वाले व्यक्ति का शरीर अंदर से खोखला हो जाता है वह ऊँची आवाज में बात तो कर सकता है परंतु उसमें लडने की शक्ति खत्म हो जाती है। राजीव की बहन उसे बचाने हेतु बीच में आयी परंतु वह भी डंडे खाकर वापस भाग गयी।

यह घटना देखकर मुहल्ले वाले राजीव के घर के सामने इकट्ठे होने लगे और महिलाओं का तो मानो पूरा समर्थन रागिनी के साथ था, रागिनी एक स्वाभिमानी महिला थी जिसने अपने माता पिता के पास ना जाकर एक मकान उसी मोहल्ले में किराए पर ले लिया। वह स्वावलंबी बनना चाहती थी, वह पाककला में बहुत निपुण थी उसने इसका उपयोग करते हुये अपनी स्वयं की टिफिन सेवा प्रारंभ कर दी। शुरू शुरू में तो उसे काफी संघर्ष एवं चुनौतियों का सामना करना पडा परंतु धीरे धीरे सफलता मिलती गयी।

आज वह एक बडी दुकान की मालिक है जिसमें सौ से भी अधिक महिलाएँ कार्य कर रही हैं। उसकी प्रगति देखकर राजीव और उसका परिवार मन ही मन शर्मिंदा होने लगा और अपनी हरकतों के कारण पूरे मुहल्ले में सिर उठाने के लायक भी नही रहा। हमें जीवन में संकट से कभी घबराना नही चाहिये। जीवन में कभी भी चिंता करने से समस्याएँ नही सुलझती है। हमें स्वाभिमानपूर्वक समाधान पर ध्यान केंद्रित कर इस दिशा में कर्म करना चाहिये।

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