लघुकथा
ढोलक की थाप
" आय - हाय . बेटा बन गया दूल्हा . ले आया दुल्हन . दूधों नहाओ - पूतो फलों ."
खुले हाथों से जोर - जोर से तालिओं कि गड़गड़ाहट होने लगी . साथ ही एक - दो थाप ढोलक के भी सुनाई दे रहे थे
सुबह - सुबह घर के सब लोग जब अपने - अपने नित्य कर्मों को निपटाने में लगे थे , तभी घर के गेट पर इस तरह की निरंकुश आवाजों ने अतिरंजित सनसनाहट पैदा कर दी .
माँ को , घर में ब्याह की गहमागहमी से कल ही फुरसत मिली थी . सारे रिश्तेदारों को विदा करने का ज़िम्मा उन्हीं के बूढ़े कंधों पर था . वे कुछ देर और सोना चाहती थी पर अचानक हुए इस हमले ने घर में हपड़ा - तफड़ी का माहौल बना दिया . नई दुल्हन को छोड़कर घर के सभी सदस्य बाहर के आंगन में आ जुटे .
उन्हें देखकर कानफोड़ू तालियों की गड़गड़ाहट और भी बढ़ गयी . बेटा उनींदा सा था . उसकी नींद अधूरी थी . उसका अनमना होना स्वाभाविक था सो बोल पड़ा , " ये सुबह - सुबह क्या हल्ला मचा रखा है ? क्या चाहते हो तुम लोग ? जाओ यहां से ! "
उसने एक साथ सवाल ही नहीं किये , अपना निर्णय भी सुना दिया .
माँ को पता था कि बेटे की शादी की है तो किन्नरों का सामना तो करना ही पड़ेगा . इनका आशीर्वाद लेना भी नव दम्पत्ति के लिए जरूरी होता है . यह परम्परा उसके संस्कार में थी . उसने अपनी यह जिम्मेदारी भी निभाने का निर्णय कर लिया , " बेटा ! तू इन्हें मत रोक . ये आशीर्वाद के रूप में जो भी कहें या गायें , इन्हें गाने दे . हम इनको , इनका नेक इन्हें दे देंगें . "
बेटा चुप लगा गया .
उधर से तालियों की गड़गड़ाहट के साथ बेसुरे शब्दों की दो - चार पंक्तियों के बीच बेसुरी आवाजें भी लगने लगीं , " माँ जी ! आज इक्कीस हजार लिए बिना नहीं जाऊंगीं . अगले साल बेटा होगा बेटा तब इक्यावन ! "
" पर मुझे तो बेटी चाहिए . " बेटे ने झट से कहा .
" चलो वही सही ! ऊपर वाला करे ऐसा ही हो पर अब तो इक्कीस लिए बिना नहीं जाऊंगीं . " इतना कहकर किन्नर ने जोर की ताली बजाई और बेतरतीब मेकअप वाले चेहरे से मुस्कुरा दी .
" ठीक है . माँ ने तुमसे वादा किया है तो मैं भी नहीं मुकरूँगां पर तुम्हें भी मेरी एक बात का जवाब देना होगा . " बेटा आज अलग ही मूड में दिखा .
किन्नर ने अपने साथियों के साथ तालियों की गति बढ़ा दी , " पूछो दूल्हे मियाँ पूछो ? यहां तो सब कुछ खुला हुआ है .पर लगेंगें पूरे के पूरे इक्कीस . "
" हाँ भाई हाँ . इक्कीस ही मिलेंगें पर ये तो बताओ कि.........? "
बेटा अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था किन्नर ने प्रश्न उछाल दिया , " तुम एक महीने में कितना कमा लेते हो , यही न ."
बेटा कुछ देर तक उसे आदर मिश्रित आत्मीय नजरों से देखता रहा तो न जाने क्यों अपनी आदत के खिलाफ किन्नर के चेहरे पर शर्माहट तैर गयी . बेटा उसे किसी उलझन में डाले बगैर बोला , " ऊपर वाले की मर्जी से तुम सुंदर तो हो ही , समझदार भी लगती हो . मेरे सिर्फ एक सवाल का जवाब दे दो कि तुम चाहो तो कुछ भी वो काम कर सकती थीं जैसे हम सब करते हैं या अपने घर में अपने माँ - बाप के साथ रह सकती थीं जैसे हम रहते हैं . तो फिर इस काम में , इन लोगों के साथ क्यों आ गयीं ? "
किन्नर को इस सवाल की उम्मीद नहीं थी क्योंकि ये सवाल इतने अपनेपन के साथ उससे कभी किसी ने नहीं किया था . आज उसकी दुखती रगों पर किसी नौजवान ने अचानक अपनी अंगुली रख दी थी तो उसे लगा कि पोखर के शांत जल में किसी ने ककंड़ कोई आग का गोला फेंक दिया है . और बेतरतीब लहरें तूफ़ान बनकर एक साथ उछल पड़ी हैं .उसके हाथ से निकलने वाली तालिओं की गड़गड़ाहट थम गयी . वह कुछ देर के लिए चुप रहने के बाद अपनी स्वाभाविक आवाज में बोली , " मेरे सलोने ! जैसा तू अपनी बहन का भाई है , कभी मैं भी अपने भाईओं की बहन हुआ करती थी और सातवीं तक स्कूल में पढ़ने के बाद घर में ही अपनी पढ़ाई भी कर रही थी क्योंकि सातवीं के बाद मेरी सच्चाई सबके सामने आने लगी थी और तब स्कूल ने मुझे स्कूल में दूसरे बच्चों के साथ पढ़ने की इजाजत नहीं दी . तब मेरी माँ और मेरे पिता मेरे साथ थे . फिर अचानक पहले पिता और फिर माँ भी एक दिन मुझे मेरे भाइयों के पास छोड़ कर हमेशा के लिए चले गए तो सारे रिश्ते भी उनके साथ ही गुम हो गए . मैं अपने ही घर में अपमानित ही नहीं तिरस्कृत भी होने लगी . कुछ दिन तक लड़ती रही अपनी अस्मिता की लड़ाई . जब हार गयी ,मेरे लिए रोटियों के लाले पड़ गए तो हारकर जिंदगी की खोज में एक दिन सब कुछ छोड़कर इस दुनिया में आ गयी जहां मुझे दो वक्त की रोटी के साथ प्यार के दो शब्द भी नसीब है . इतना ही नहीं इस दुनिया में मुझे मिलता है अपने जैसों का साथ भी . अपमान की जिल्ल्त बहुत पीछे छूट गयी है . अब लाओ पूरे इक्कीस नहीं तो ऊपर करूँ अपना ये ....? "
तालियां फिर से गड़गड़ाने लगीं .
" अरे नहीं ऐसा कुछ मत करना . आज तुम्हे पूरे इक्कीस ही मिलेंगें और जब चाहो आकर मुझसे कम्प्यूटर सीखना शुरू कर दो . सीख जाओगी तो तुम्हें अपना एसिस्टेंट भी बना लूंगा . बेटे ने पीछे मुड़कर देखा तो वहां नई दुल्हन सीमा भी खड़ी थी . उसने कहा , " हाँ ! दीदी , तुम हाँ कर दो बस . "
किन्नर की तालियों से कानफोड़ू गड़गड़ाहट नहीं , किसी तबले का मधुर संगीत निकल रहा था . साथ में ढोलक की थाप भी थी .
सुरेंद्र कुमार अरोड़ा