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प्रेम कहानी - टीस

टीस - एक प्रेम कहानी

शाम होने को थी . धुंधलका उतर रहा था . कमरे में तो उतर भी चुका था . मोबाईल की घंटी बजी तो नजरे स्क्रीन पर गयीं . वहां कनिका का नाम चमक रहा था . आज फिर उसका फोन आ गया . उसे विशवास नहीं हुआ . कुछ दिन पहले भी चमका था पर इससे पहले कि वह उठाता , बेल ने बजना बंद कर दिया था .बाद में वह बहुत देर तक फिर से इन्तजार भी करता रहा था कि शायद फिर बेल बजेगी पर बेल नहीं बजी तो उसने सोचा कि गलती से बटन दब गया होगा . वैसे भी अब उनके बीच कहने - सुनने को कुछ बचा भी नहीं था क्योंकि कनिका ने बड़ी सफाई से उन तमाम बातों और उनसे जुड़े रिश्तों से खुद को यह कहकर अलग कर लिया था कि उसके साथ किसी भी रिश्ते के लिए उसने कभी कोई पहल की ही नहीं थी . उसने वजह भी तय कर दी थी कि हमारा रिश्ता बहुत बेमेल है और इस बेमेल रिश्ते को ज्यादा लम्बा नहीं खींचा जा सकता .रिश्ता खत्म करते वक्त उसने यह भी कहा था , " एक तो आप उम्र - दराज हैं , दूसरा आप हर छोटी - बड़ी बात को बड़ी गंभीरता से लेते हैं . आपने दुनिया के बहुत से रंग देख लिए हैं . मुझे भी नहीं पता कि मैं न जाने क्यों आपके साथ घुलने - मिलने लगी और उस सफर में वहां तक चली गयी जिसे आम बोल - चाल में लोग प्यार कहते हैं . शायद मुझे भी यह भरम हो गया था कि मैं आपसे प्यार करती हूँ पर बाद में मुझे एहसास हुआ कि असल में ऐसा कुछ नहीं था . वह तो केवल मेरा सम्मोहन था ! हो सकता है आपके प्रति , आपके व्यक्तित्व के प्रति कोई अचेतन आकर्षण हो . देखिये आप बुरा न माने तो यह एक सच है कि भले ही अपने पैंतीसवें वसंत की ओर बढ़ चुकी हूँ पर मैं आपसे उम्र में बहुत छोटी हूँ और बहुत से मामलों में तो अनुभवहीन भी हूँ . आपके साथ जितनी देर रहती हूँ , उतनी देर भले ही मुझे अपने अंदर ताजगी की खुशबु भरी महसूस होती है पर आपसे अलग होते ही , अपने अकेलेपन में , मैं फिर से उसी बियाबान में खो जाती हूँ जो मेरी नियति है . साथ ही मैं यह मानती हूँ कि आपके साथ किसी भी रिश्ते में मेरा कोई भविष्य नहीं है . अपनी - अपनी जिंदगी में हम दोनों भले ही अकेले न होते हुए भी अकेले ही हैं पर मैं जानती हूँ कि उन रिश्तों से आप भाग नहीं सकते हैं और अपनी दुनिया में , मैं तो यह सब सोच भी नहीं सकती . अगर हम इसी तरह इस बेमेल और कठिन से रिश्ते की किसी भूल - भुलैया में यूँ ही उलझे रहे तो कब कौन सी अनहोनी हो जाये , इसका भी कुछ पता नहीं . इसलिए मैं अब आपसे न तो मिलना चाहूंगी और न ही बात करना मुझे ठीक लगेगा . यह सब मुझे अच्छा लगेगा या नहीं , यह मैं नहीं जानती पर यही सब मैं करूँगीं , यह मैंने तय कर लिया है . "

उसे यह सब सुन कर एक बार तो सदमा सा लगा था .क्योंकि वह समझता था कि संबंध कोई भी हो , अच्छा हो चाहे बुरा हो , उसे गहराई लेने में ढेर सारे दिनों का ही नहीं , ढेर सारी घटनाओं की भी भूमिका होती है . कनिका के लिए भी उसके दिल में जो जगह बनी थी , वह अकस्मात नहीं बनी थी . इस हादसे में कनिका की जिद और अठखेलन के साथ उसके अल्हड़पन और स्वभाव में सादगी का भी बहुत बड़ा हाथ था और अब उसका निश्चय यह था कि कनिका उसकी जिंदगीं का बहुत ही सलोना और सुंदर ही नहीं एक अहम हिस्सा बन चुकी थी .

जब अचानक कनिका ने अपना यह निर्णय सुनाया तो उसे लगा कि जिस समय वह प्रकृति की सबसे सुंदर वादियों के बीच बादलों से घिरी किसी पहाड़ी पर खड़ा होकर बादलों के बरसने की प्रतीक्षा कर रहा था की तभी दूर से कोई पहाड़ टूटा और चट्टान का एक टुकड़ा उसके सपनों पर आ गिरा . उसके सपने ही नहीं टूटे , वह भी टूटने को हुआ .

यहीं उसके अनुभव काम आये .जिंदगी के थपेड़ों ने उसे बचना भी सिखाया था . जिंदगी किसी एक जगह ठहर जाये , यह उसे वैसे भी पसंद नहीं था . उसका मन भारी तो हुआ पर बिना किसी हील - हुज्जत या गिले - शिकवे के उसने कनिका की सभी बातें स्वीकार कर लीं . उसने तय कर लिया कि पहले की तरह कनिका की इस इच्छा का भी सम्मान करेगा और अब , वह कनिका से कोई सम्पर्क नहीं रखेगा .

अपनी देह से अलग अपनी अधेड़ जिंदगी की जरूरी बातों में वह फिर से खो गया .

आज अचानक यह फोन . उसने अनमने भाव से फोन उठा लिया , " हेलो ! "

" कैसे हैं, नमस्ते . मैं कनिका बोल रही हूँ ."

" तुम्हे बताने की जरूरत नहीं है ."

" नमस्ते ! "

" नमस्ते ! आज अचानक कैसे याद किया ?"

" अचानक नहीं , याद तो हमेशा ही आती है . खुद को रोक लेती थी बस."

" तुम्हें इस तरह फोन नहीं करना चाहिए था . यह ठीक बात नहीं है . "

" जानती हूँ परन्तु कुछ बातों पर मन का भी अंकुश नहीं होता. आप बहुत याद आये तो फोन किये बिना रहा नहीं गया ."

" देखो कनिका ! तुम खिलौनों से खेलने की उम्र पार कर चुकी हो . जो लोग खिलौनों से खेलने के बाद उसे तोडना अपनी मजबूरी समझते हैं , वे खुद को भी कभी साबुत नहीं रख पाते . यह बात भी तुम्हें समझनी होगी . "

" आप तो जानते हैं कि मैं साबुत कभी थी ही नहीं इसलिए मुझे टूटने से डर नहीं लगता ."

" लगता है इन दिनों में बहुत बड़ी हो गयी हो जो इतनी बड़ी - बड़ी बातें भी करने लगी हो . "

" और आपके लिए मुझे लगता है कि आप उन बातों से अभी भी उभरे या निकले नहीं हैं जो मुझे बड़ा हो जाना कह रहे हैं . "

" कनिका ! यह कभी मत भूलना कि जीवन में जो कुछ भी हो जाता है उसे बाद में बदला नहीं जा सकता और हम जिन भी रिश्तों को अपनी इच्छा से बनाते हैं , वे एक दिन या किसी एक आवेग से नहीं बनते . मैंने तुम्हारी हर इच्छा का सम्मान किया क्योंकि मैं तुम्हें किसी भी तरह से दुःख नहीं पहुंचाना चाहता था . "

" मैं भी आपको दुखी नहीं देख सकती ."

" कहना क्या चाहती हो . क्या फिर से वही सब . अब यह नहीं हो सकता , कनकी . बहुत संताप सहा है मैंने . बड़ी मुश्किल से सम्भला हूँ ."

" बड़ा तो आपने मुझे कह ही दिया है . शायद उसी बड्डपन कि वजह से मैंने आपको फोन किया हो ........ पहले मेरी पूरी बात सुन तो लीजिये . "

" ..............................................................! "

" सोच लीजियेगा कि एक लड़की आयी थी जिंदगी की रेल के किसी स्टेशन पर , जो आपका ढेर सारा सामान उठा कर भाग गयी परन्तु उसने आपको दुःख पहुंचाया ही नहीं , दुःख सहा भी है . चालाक नहीं थी , नादान थी पर आप तो नादान नहीं हैं न . इस बार मेरी बात का यकीन कर लीजिये कि उसे अपने संताप का इतना कष्ट नहीं है जितना आपको संतापित करने का . "

वे कुछ नहीं कह पाए . उन्हें लगा कि उधर से भी कुछ भी बोलने की स्थिति में कोई नहीं है .

फोन कब कट गया , उन्हें पता नहीं लगा . उसी चोट से वे एक बार फिर से उबरना उनकी मजबूरी बन गयी .

सुरेंद्र कुमार अरोड़ा

डी - 184 , श्याम पार्क एक्सटेंशन , साहिबाबाद - 201005 ( उ . प्र ) मोबाईल : 9911127277

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