सरिता Ved Prakash Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सरिता

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माँ की आवाज सुनकर भी सरिता फेस बुक पर अपने नए फेसबुकिए मित्र पवन से चैट करने मे लगी रही, बीच में माँ से इतना ही कहा, “हाँ माँ, मैं अभी आई बस थोड़ी सी पढ़ाई और है, इसको पूरा करके आती हूँ।” माँ ने उलट कर ये ही पूछा, “बेटा खाना कब खाएगी, रात के दस बज गए, सब खाना ठंडा हो गया है, तेरे पिताजी तो खाना खाकर घूमने भी चले गए, अब तू आ जाए तो मैं भी तेरे साथ ही बैठकर खा लूँ, मुझे और भी काम है, रसोई संग्वानी है, सुबह की तैयारी करनी है।”

पवन से कुछ दिन पहले ही सरिता की मित्रता हुई थी, लेकिन बहुत जल्दी पवन सरिता के दिलो दिमाग पर ऐसे छा गया था जैसे वर्षा ऋतु में बादल पूरे आकाश को ढक लेते हैं, उसकी प्यार भरी पोस्ट पढ़ पढ़ कर सरिता के पूरे तन और मन में ठीक वैसे ही लहरें उठने लगती जैसे पवन का झोंका सरिता के शांत से बहते हुए निर्मल शीतल जल को छेड़ कर जाता है तब उसमे लहरें उठने लगती हैं, फिर वही लहरें बहते पवन से अठखेलियाँ करने लगती हैं।

“मैंने प्रबंधन मे स्नातकोत्तर कर लिया है, अब मैं घर पर बैठी सिर्फ और सिर्फ चैटिंग के सहारे नहीं रह सकती, बहुत मन करता है मिलने का, मुझे भी दिल्ली बुला लीजिये, कोई न कोई नौकरी तो मुझे भी मिल ही जाएगी, जब मैं भी कमाने लगूँगी तो माँ व पिताजी से बात कर लेंगे और शादी के बंधन में बंधकर एक हो जाएंगे।” सरिता ने यह सब लिख कर अपनी तरफ से पोस्ट कर दिया।

पवन को तो मुक्त बहने की आदत होती है, बहते हुए नादियों, वृक्षों, झरनों सभी के साथ छेड़ छाड़ करना उसका स्वभाव होता है, किसी भी बंधन से मुक्त यहाँ से वहाँ स्वछंद बहते रहना फिर भी सरिता के ज्यादा जिद करने और बार बार एक ही बात की रट लगाए रखने पर पवन ने सरिता को दिल्ली आने के लिए आमंत्रित कर दिया।

उस दिन सरिता बहुत खुश थी, हिमाचल के एक छोटे से कस्बे से निकल कर दिल्ली जा रही थी, सब से ज्यादा खुशी तो उसे इस बात की थी वह जल्दी ही पवन से मिलेगी, पवन जिसको वह सबसे ज्यादा प्यार करती है, पवन जिसके बारे में सोच कर ही पूरे तन और मन में सिहरन पैदा होने लगती है।

सरिता ने घर पर बताया, “माँ पिताजी, मैं एक नौकरी के लिए दिल्ली जा रही हूँ।” पिताजी से खर्चे के लिए पैसे लिए और चल पड़ी दिल्ली। करीब पाँच घंटे का सफर बस से तय करने के बाद आखिर वह दिल्ली पहुँच गयी।

पवन ने फेस बुक पर ही सरिता को बताया, “तुम दिन में कोई ऑटो या टॅक्सी लेकर दिल्ली के सभी दर्शनीय स्थल देख लेना और शाम को मुझे मंडी हाउस के पास हिमाचल भवन पर मिल जाना, वहाँ से मैं तुम्हें पिक कर लूँगा, दिन में मैं व्यस्तता के कारण ना तो तुम्हें समय दे पाऊँगा और ना ही वहाँ आ पाऊँगा।”

दिल्ली पहुंचते ही सरिता ने ऑटो लिया और चल पड़ी दिल्ली घूमने, ऑटो वाले को पूरे दिन के लिए किराए पर तय कर लिया, कुछ अग्रिम किराया भी दे दिया। “प्रताप नाम है मेरा बेटा जी, मेरा नाम और मेरे ऑटो का नंबर अपने किसी जानकार को भेज दो, सुरक्षा के लिए ठीक रहता है यह दिल्ली है, यहाँ हर तरह का इंसान मिलता है और हम ऑटो वालों के बारे में तो वैसे ही लोगों की बड़ी गलत राय है।”

प्रताप ने लाल किला, गुरद्वारा शीश गंज, गौरी शंकर मंदिर दिखाने के बाद क्नौट प्लेस होते हुए सीधे बिरला मंदिर पर ले जाकर सरिता को उतारा। बिरला मंदिर में दर्शन करने के बाद सरिता ने वहीं मंदिर के बाहर वाले भोजनालय पर खाना खाया फिर आकर ऑटो में बैठ गयी।

जब सरिता किसी भी दर्शनीय स्थल में घूमने जाती तो प्रताप बाहर ऑटो मे प्रतीक्षा करता रहता, अग्रिम किराया उसको मिल ही गया था, जब देखता कि बिल अग्रिम मिले किराए से ज्यादा हो गया है तो और पैसे मांग लेता।

सरिता ने ऑटो में बैठकर कहा, “अंकल आप भी कुछ खा लो भूख लगी होगी।” प्रताप बोला, “बेटा जी! जब आप बिरला मंदिर में गई थीं मैंने तभी अपने ऑटो में बैठकर रोटी खा ली थी, मनोरमा, तुम्हारी आंटी, मेरी धर्म पत्नी वो क्या कहते हैं अँग्रेजी में, माई बैटर हाफ, बहुत ख्याल रखती है मेरा, सुबह ही मुझे लंच पैक करके दे देती है।”

प्रताप ऑटो चलाते हुए बातें भी किए जा रहा था, रास्ते में एक बड़ी इमारत दिखी तो कहने लगा, “बेटा जी! इस इमारत में मेरे बेटे सागर का बहुत बड़ा कार्यालय है, एक बहु राष्ट्रिय कंपनी की इस शाखा के कार्यालय की पूरी ज़िम्मेदारी सागर पर ही है, MBA किया है मेरे बेटे ने, बहुत अच्छे संस्थान से पढ़ कर आया है मेरा बेटा लेकिन अपने परंपरागत संस्कार नहीं भूला।”

“अच्छा अंकल अब तो मैं भी दिल्ली में ही रहूँगी, नौकरी मिलने के बाद फिर कभी मिलूँगी सागर से भी, मैंने भी MBA लिया है, आप बहुत अच्छे हैं, आपका बेटा भी अच्छा होगा, मैं उससे जरूर मिलना चाहूंगी।”

प्रताप ऑटो को जनपथ से इंडिया गेट, संसद भवन, केन्द्रीय सचिवालय और राष्ट्रपति भवन के बाहर से घुमाते व सरिता को सब बताते दिखते हुए कुतुब मीनार ले गया। कुतुब मीनार घूमते हुए शाम हो गयी तो सरिता ने कहा, “अंकल अब आप मुझे मंडी हाउस छोड़ दो मैं और ज्यादा नहीं घूमुंगी।”

कुतुब मीनार से मंडी हाउस के रास्ते में बातों ही बातों में प्रताप ने पूछ लिया, “बेटा यहाँ दिल्ली में जहां रुकोगे वहाँ का पता बता दो मैं वहीं छोड़ दूंगा।”

“अंकल अभी तो पता नहीं, मेरा एक मित्र है, फेस बुक पर मेरी उससे कुछ दिन पहले ही मित्रता हुई थी उसी के भरोसे मैं दिल्ली आई हूँ, उसने मुझे हिमाचल भवन के पीछे मिलने को कहा था, इसलिए मैं यहीं रुक कर उसके आने की प्रतीक्षा करूंगी।”

मंडी हाउस आ गया तो हिमाचल भवन के पीछे वाली गली में उतर कर सरिता ने फुटपाथ पर अपना बैग रख लिया और वहीं बैठ गयी। प्रताप ने अपना किराया लिया और सीधा अपने घर की तरफ चल पड़ा।

पहाड़ गंज के चूना मंडी की एक गली के पुश्तैनी घर में प्रताप अपने परिवार के साथ रहता था, परिवार में स्वयं, पत्नी मनोरमा और बेटा सागर, तीन ही प्राणी थे। मनोरमा घर संभालती और बापू बेटा अपने अपने काम पर चले जाते, शाम को तीनों मिल कर एक साथ खाना खाते, अपनी दिनचर्या एक दूसरे से शेयर करते।

अपना ऑटो गली में लगाकर प्रताप घर में घुसा, हाथ मुह धोये, दिया बत्ती की और बैठ गया सब के साथ खाना खाने के लिए जहां पर बेटा और पत्नी पहले से ही प्रतीक्षा कर रहे थे कि पिताजी आयें और सब एक साथ बैठकर खाना खाएं।

खाना खाते समय प्रताप अपनी दिनचर्या की पूरी कहानी मनोरमा और सागर को सुनाते जा रहे थे, सागर उनकी बात बड़े ध्यान से सुन रहा था, आखिर में जैसे प्रताप ने बताया कि उस लड़की को हिमाचल भवन के पीछे फुटपाथ पर छोड़ कर आ गया तो सागर को कुछ अजीब सा लगा और वह तुरंत ही खाना बीच में छोड़ कर अपने पिताजी को लेकर उस स्थान पर पहुंचा जहां उसके पिताजी ने उस लड़की को छोड़ा था.......

रात के ग्यारह बज रहे थे, दिसम्बर की सर्दी में सरिता उनको वहीं बैठी मिल गयी, सागर ने एक चैन की सांस ली, “बच गयी” उसके मुह से अचानक निकला........

प्रताप ने पूछा, “बेटा अभी तक गए नहीं आप? आपका वो मित्र अभी तक आया नहीं? ये मेरा बेटा सागर है, मैंने जैसे ही इसको तुम्हारे बारे में बताया तो ना जाने क्यों खाना बीच में हो छोड़ कर मेरे साथ यहाँ आ गया। ”

सरिता बहुत परेशान थी, प्रताप के पूछने पर रो पड़ी, पवन से उसका संपर्क ही नहीं हो पा रहा था, यही बात उसने प्रताप को बताई। सागर ने पवन की आई डी जांच कर देखी तो बंद मिली, वही हुआ जिसकी सागर को आशंका थी, सागर ने उस समय पुलिस सहायता लेना उचित समझा और तीनों थाने चले गए, वहाँ पर सागर ने थानेदार को पूरी घटना विस्तार से बताई, पुलिस ने तत्परता दिखाई और पुलिस जांच में पता चला कि पवन की आई डी झूठी थी जो उसी दिन बंद कर दी गयी एवं सभी पोस्ट भी मिटा दी गयी। सरिता को अपनी भूल पर पछतावा हो रहा था वह सोच रही थी कि क्यों उसने फेस बुक पर एक अंजान व्यक्ति से दोस्ती करके उस पर इतना भरोसा किया।

सरिता समझ चुकी थी कि प्यार के नाम पर उसके साथ धोखा हो गया है लेकिन प्रताप ने समझाया, “बेटा जी, भगवान की कृपा से अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है आपका बहुत बचाव हो गया है, चलो जल्दी ही यह पवन का झोका गुजर गया, अगर मैं सागर को आज के पूरे दिन की कहानी नहीं सुनाता तो हम भी यहाँ पर नहीं पहुँचते, ऐसी परिस्थिति में क्या कुछ हो सकता था या वह झूठा आदमी पवन अगर मिल भी जाता तो आगे क्या क्या करता पता नहीं, अब तो बस भगवान का शुक्र मनाओ और बेटा जी अगर हम पर विश्वास कर सको तो हमारे साथ हमारे घर चलो, सुबह सोचेंगे कि आगे क्या करना है।”

सुबह सुबह सागर अपने कार्यालय के लिए तैयार हो रहा था, सरिता भी जाग गयी थी, जाग क्या गयी सो ही नहीं पायी थी रात भर, तभी सागर बोला, "सरिता जी आपने कहा था कि आप अपने घर पर नौकरी के बारे में कह कर आई हैं, अगर आप नौकरी करना चाहती हैं तो मेरे कार्यालय में एक सहायक प्रबन्धक की जगह खाली है आपको अच्छा लगे तो जल्दी से तैयार होकर मेरे साथ चलें, आपकी नौकरी हो जाएगी एवं एक महिला हॉस्टल में आपके रहने का प्रबंध करवा दूंगा तब तक आप कंपनी के अतिथि गृह में रह सकती हैं।"

सरिता को ऐसा लगा जैसे एक भयंकर सपने से जागी हो, बुरा समय गुजर गया था, सरिता ने फोन पर अपने पिता को अपनी कुशलता कि सूचना दी और अपनी नौकरी के बारे में भी बताया।

सरिता को मजिल मिल गयी, वह अपने सागर तक पहुँच गयी, अब पवन की अठखेलियाँ बंद हो गयी, अब तो सरिता की सभी लहरें सागर की भव्य लहरों में समा चुकी थीं। सरिता को सागर से प्यार तो तभी हो गया था जब उसने अपनी सूझ बूझ से सरिता को भयंकर खतरे से बचा लिया था, प्यार धीरे धीरे आगे इतना बढ़ा कि कुछ दिन बाद मनोरमा को एक सुंदर सुशील बहू मिल गयी, सरिता सागर में पूर्ण रूप से समा गयी।

सरिता

माँ की आवाज सुनकर भी सरिता फेस बुक पर अपने नए फेसबुकिए मित्र पवन से चैट करने मे लगी रही, बीच में माँ से इतना ही कहा, “हाँ माँ, मैं अभी आई बस थोड़ी सी पढ़ाई और है, इसको पूरा करके आती हूँ।” माँ ने उलट कर ये ही पूछा, “बेटा खाना कब खाएगी, रात के दस बज गए, सब खाना ठंडा हो गया है, तेरे पिताजी तो खाना खाकर घूमने भी चले गए, अब तू आ जाए तो मैं भी तेरे साथ ही बैठकर खा लूँ, मुझे और भी काम है, रसोई संग्वानी है, सुबह की तैयारी करनी है।”

पवन से कुछ दिन पहले ही सरिता की मित्रता हुई थी, लेकिन बहुत जल्दी पवन सरिता के दिलो दिमाग पर ऐसे छा गया था जैसे वर्षा ऋतु में बादल पूरे आकाश को ढक लेते हैं, उसकी प्यार भरी पोस्ट पढ़ पढ़ कर सरिता के पूरे तन और मन में ठीक वैसे ही लहरें उठने लगती जैसे पवन का झोंका सरिता के शांत से बहते हुए निर्मल शीतल जल को छेड़ कर जाता है तब उसमे लहरें उठने लगती हैं, फिर वही लहरें बहते पवन से अठखेलियाँ करने लगती हैं।

“मैंने प्रबंधन मे स्नातकोत्तर कर लिया है, अब मैं घर पर बैठी सिर्फ और सिर्फ चैटिंग के सहारे नहीं रह सकती, बहुत मन करता है मिलने का, मुझे भी दिल्ली बुला लीजिये, कोई न कोई नौकरी तो मुझे भी मिल ही जाएगी, जब मैं भी कमाने लगूँगी तो माँ व पिताजी से बात कर लेंगे और शादी के बंधन में बंधकर एक हो जाएंगे।” सरिता ने यह सब लिख कर अपनी तरफ से पोस्ट कर दिया।

पवन को तो मुक्त बहने की आदत होती है, बहते हुए नादियों, वृक्षों, झरनों सभी के साथ छेड़ छाड़ करना उसका स्वभाव होता है, किसी भी बंधन से मुक्त यहाँ से वहाँ स्वछंद बहते रहना फिर भी सरिता के ज्यादा जिद करने और बार बार एक ही बात की रट लगाए रखने पर पवन ने सरिता को दिल्ली आने के लिए आमंत्रित कर दिया।

उस दिन सरिता बहुत खुश थी, हिमाचल के एक छोटे से कस्बे से निकल कर दिल्ली जा रही थी, सब से ज्यादा खुशी तो उसे इस बात की थी वह जल्दी ही पवन से मिलेगी, पवन जिसको वह सबसे ज्यादा प्यार करती है, पवन जिसके बारे में सोच कर ही पूरे तन और मन में सिहरन पैदा होने लगती है।

सरिता ने घर पर बताया, “माँ पिताजी, मैं एक नौकरी के लिए दिल्ली जा रही हूँ।” पिताजी से खर्चे के लिए पैसे लिए और चल पड़ी दिल्ली। करीब पाँच घंटे का सफर बस से तय करने के बाद आखिर वह दिल्ली पहुँच गयी।

पवन ने फेस बुक पर ही सरिता को बताया, “तुम दिन में कोई ऑटो या टॅक्सी लेकर दिल्ली के सभी दर्शनीय स्थल देख लेना और शाम को मुझे मंडी हाउस के पास हिमाचल भवन पर मिल जाना, वहाँ से मैं तुम्हें पिक कर लूँगा, दिन में मैं व्यस्तता के कारण ना तो तुम्हें समय दे पाऊँगा और ना ही वहाँ आ पाऊँगा।”

दिल्ली पहुंचते ही सरिता ने ऑटो लिया और चल पड़ी दिल्ली घूमने, ऑटो वाले को पूरे दिन के लिए किराए पर तय कर लिया, कुछ अग्रिम किराया भी दे दिया। “प्रताप नाम है मेरा बेटा जी, मेरा नाम और मेरे ऑटो का नंबर अपने किसी जानकार को भेज दो, सुरक्षा के लिए ठीक रहता है यह दिल्ली है, यहाँ हर तरह का इंसान मिलता है और हम ऑटो वालों के बारे में तो वैसे ही लोगों की बड़ी गलत राय है।”

प्रताप ने लाल किला, गुरद्वारा शीश गंज, गौरी शंकर मंदिर दिखाने के बाद क्नौट प्लेस होते हुए सीधे बिरला मंदिर पर ले जाकर सरिता को उतारा। बिरला मंदिर में दर्शन करने के बाद सरिता ने वहीं मंदिर के बाहर वाले भोजनालय पर खाना खाया फिर आकर ऑटो में बैठ गयी।

जब सरिता किसी भी दर्शनीय स्थल में घूमने जाती तो प्रताप बाहर ऑटो मे प्रतीक्षा करता रहता, अग्रिम किराया उसको मिल ही गया था, जब देखता कि बिल अग्रिम मिले किराए से ज्यादा हो गया है तो और पैसे मांग लेता।

सरिता ने ऑटो में बैठकर कहा, “अंकल आप भी कुछ खा लो भूख लगी होगी।” प्रताप बोला, “बेटा जी! जब आप बिरला मंदिर में गई थीं मैंने तभी अपने ऑटो में बैठकर रोटी खा ली थी, मनोरमा, तुम्हारी आंटी, मेरी धर्म पत्नी वो क्या कहते हैं अँग्रेजी में, माई बैटर हाफ, बहुत ख्याल रखती है मेरा, सुबह ही मुझे लंच पैक करके दे देती है।”

प्रताप ऑटो चलाते हुए बातें भी किए जा रहा था, रास्ते में एक बड़ी इमारत दिखी तो कहने लगा, “बेटा जी! इस इमारत में मेरे बेटे सागर का बहुत बड़ा कार्यालय है, एक बहु राष्ट्रिय कंपनी की इस शाखा के कार्यालय की पूरी ज़िम्मेदारी सागर पर ही है, MBA किया है मेरे बेटे ने, बहुत अच्छे संस्थान से पढ़ कर आया है मेरा बेटा लेकिन अपने परंपरागत संस्कार नहीं भूला।”

“अच्छा अंकल अब तो मैं भी दिल्ली में ही रहूँगी, नौकरी मिलने के बाद फिर कभी मिलूँगी सागर से भी, मैंने भी MBA लिया है, आप बहुत अच्छे हैं, आपका बेटा भी अच्छा होगा, मैं उससे जरूर मिलना चाहूंगी।”

प्रताप ऑटो को जनपथ से इंडिया गेट, संसद भवन, केन्द्रीय सचिवालय और राष्ट्रपति भवन के बाहर से घुमाते व सरिता को सब बताते दिखते हुए कुतुब मीनार ले गया। कुतुब मीनार घूमते हुए शाम हो गयी तो सरिता ने कहा, “अंकल अब आप मुझे मंडी हाउस छोड़ दो मैं और ज्यादा नहीं घूमुंगी।”

कुतुब मीनार से मंडी हाउस के रास्ते में बातों ही बातों में प्रताप ने पूछ लिया, “बेटा यहाँ दिल्ली में जहां रुकोगे वहाँ का पता बता दो मैं वहीं छोड़ दूंगा।”

“अंकल अभी तो पता नहीं, मेरा एक मित्र है, फेस बुक पर मेरी उससे कुछ दिन पहले ही मित्रता हुई थी उसी के भरोसे मैं दिल्ली आई हूँ, उसने मुझे हिमाचल भवन के पीछे मिलने को कहा था, इसलिए मैं यहीं रुक कर उसके आने की प्रतीक्षा करूंगी।”

मंडी हाउस आ गया तो हिमाचल भवन के पीछे वाली गली में उतर कर सरिता ने फुटपाथ पर अपना बैग रख लिया और वहीं बैठ गयी। प्रताप ने अपना किराया लिया और सीधा अपने घर की तरफ चल पड़ा।

पहाड़ गंज के चूना मंडी की एक गली के पुश्तैनी घर में प्रताप अपने परिवार के साथ रहता था, परिवार में स्वयं, पत्नी मनोरमा और बेटा सागर, तीन ही प्राणी थे। मनोरमा घर संभालती और बापू बेटा अपने अपने काम पर चले जाते, शाम को तीनों मिल कर एक साथ खाना खाते, अपनी दिनचर्या एक दूसरे से शेयर करते।

अपना ऑटो गली में लगाकर प्रताप घर में घुसा, हाथ मुह धोये, दिया बत्ती की और बैठ गया सब के साथ खाना खाने के लिए जहां पर बेटा और पत्नी पहले से ही प्रतीक्षा कर रहे थे कि पिताजी आयें और सब एक साथ बैठकर खाना खाएं।

खाना खाते समय प्रताप अपनी दिनचर्या की पूरी कहानी मनोरमा और सागर को सुनाते जा रहे थे, सागर उनकी बात बड़े ध्यान से सुन रहा था, आखिर में जैसे प्रताप ने बताया कि उस लड़की को हिमाचल भवन के पीछे फुटपाथ पर छोड़ कर आ गया तो सागर को कुछ अजीब सा लगा और वह तुरंत ही खाना बीच में छोड़ कर अपने पिताजी को लेकर उस स्थान पर पहुंचा जहां उसके पिताजी ने उस लड़की को छोड़ा था.......

रात के ग्यारह बज रहे थे, दिसम्बर की सर्दी में सरिता उनको वहीं बैठी मिल गयी, सागर ने एक चैन की सांस ली, “बच गयी” उसके मुह से अचानक निकला........

प्रताप ने पूछा, “बेटा अभी तक गए नहीं आप? आपका वो मित्र अभी तक आया नहीं? ये मेरा बेटा सागर है, मैंने जैसे ही इसको तुम्हारे बारे में बताया तो ना जाने क्यों खाना बीच में हो छोड़ कर मेरे साथ यहाँ आ गया। ”

सरिता बहुत परेशान थी, प्रताप के पूछने पर रो पड़ी, पवन से उसका संपर्क ही नहीं हो पा रहा था, यही बात उसने प्रताप को बताई। सागर ने पवन की आई डी जांच कर देखी तो बंद मिली, वही हुआ जिसकी सागर को आशंका थी, सागर ने उस समय पुलिस सहायता लेना उचित समझा और तीनों थाने चले गए, वहाँ पर सागर ने थानेदार को पूरी घटना विस्तार से बताई, पुलिस ने तत्परता दिखाई और पुलिस जांच में पता चला कि पवन की आई डी झूठी थी जो उसी दिन बंद कर दी गयी एवं सभी पोस्ट भी मिटा दी गयी। सरिता को अपनी भूल पर पछतावा हो रहा था वह सोच रही थी कि क्यों उसने फेस बुक पर एक अंजान व्यक्ति से दोस्ती करके उस पर इतना भरोसा किया।

सरिता समझ चुकी थी कि प्यार के नाम पर उसके साथ धोखा हो गया है लेकिन प्रताप ने समझाया, “बेटा जी, भगवान की कृपा से अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है आपका बहुत बचाव हो गया है, चलो जल्दी ही यह पवन का झोका गुजर गया, अगर मैं सागर को आज के पूरे दिन की कहानी नहीं सुनाता तो हम भी यहाँ पर नहीं पहुँचते, ऐसी परिस्थिति में क्या कुछ हो सकता था या वह झूठा आदमी पवन अगर मिल भी जाता तो आगे क्या क्या करता पता नहीं, अब तो बस भगवान का शुक्र मनाओ और बेटा जी अगर हम पर विश्वास कर सको तो हमारे साथ हमारे घर चलो, सुबह सोचेंगे कि आगे क्या करना है।”

सुबह सुबह सागर अपने कार्यालय के लिए तैयार हो रहा था, सरिता भी जाग गयी थी, जाग क्या गयी सो ही नहीं पायी थी रात भर, तभी सागर बोला, "सरिता जी आपने कहा था कि आप अपने घर पर नौकरी के बारे में कह कर आई हैं, अगर आप नौकरी करना चाहती हैं तो मेरे कार्यालय में एक सहायक प्रबन्धक की जगह खाली है आपको अच्छा लगे तो जल्दी से तैयार होकर मेरे साथ चलें, आपकी नौकरी हो जाएगी एवं एक महिला हॉस्टल में आपके रहने का प्रबंध करवा दूंगा तब तक आप कंपनी के अतिथि गृह में रह सकती हैं।"

सरिता को ऐसा लगा जैसे एक भयंकर सपने से जागी हो, बुरा समय गुजर गया था, सरिता ने फोन पर अपने पिता को अपनी कुशलता कि सूचना दी और अपनी नौकरी के बारे में भी बताया।

सरिता को मजिल मिल गयी, वह अपने सागर तक पहुँच गयी, अब पवन की अठखेलियाँ बंद हो गयी, अब तो सरिता की सभी लहरें सागर की भव्य लहरों में समा चुकी थीं। सरिता को सागर से प्यार तो तभी हो गया था जब उसने अपनी सूझ बूझ से सरिता को भयंकर खतरे से बचा लिया था, प्यार धीरे धीरे आगे इतना बढ़ा कि कुछ दिन बाद मनोरमा को एक सुंदर सुशील बहू मिल गयी, सरिता सागर में पूर्ण रूप से समा गयी।

सरिता

माँ की आवाज सुनकर भी सरिता फेस बुक पर अपने नए फेसबुकिए मित्र पवन से चैट करने मे लगी रही, बीच में माँ से इतना ही कहा, “हाँ माँ, मैं अभी आई बस थोड़ी सी पढ़ाई और है, इसको पूरा करके आती हूँ।” माँ ने उलट कर ये ही पूछा, “बेटा खाना कब खाएगी, रात के दस बज गए, सब खाना ठंडा हो गया है, तेरे पिताजी तो खाना खाकर घूमने भी चले गए, अब तू आ जाए तो मैं भी तेरे साथ ही बैठकर खा लूँ, मुझे और भी काम है, रसोई संग्वानी है, सुबह की तैयारी करनी है।”

पवन से कुछ दिन पहले ही सरिता की मित्रता हुई थी, लेकिन बहुत जल्दी पवन सरिता के दिलो दिमाग पर ऐसे छा गया था जैसे वर्षा ऋतु में बादल पूरे आकाश को ढक लेते हैं, उसकी प्यार भरी पोस्ट पढ़ पढ़ कर सरिता के पूरे तन और मन में ठीक वैसे ही लहरें उठने लगती जैसे पवन का झोंका सरिता के शांत से बहते हुए निर्मल शीतल जल को छेड़ कर जाता है तब उसमे लहरें उठने लगती हैं, फिर वही लहरें बहते पवन से अठखेलियाँ करने लगती हैं।

“मैंने प्रबंधन मे स्नातकोत्तर कर लिया है, अब मैं घर पर बैठी सिर्फ और सिर्फ चैटिंग के सहारे नहीं रह सकती, बहुत मन करता है मिलने का, मुझे भी दिल्ली बुला लीजिये, कोई न कोई नौकरी तो मुझे भी मिल ही जाएगी, जब मैं भी कमाने लगूँगी तो माँ व पिताजी से बात कर लेंगे और शादी के बंधन में बंधकर एक हो जाएंगे।” सरिता ने यह सब लिख कर अपनी तरफ से पोस्ट कर दिया।

पवन को तो मुक्त बहने की आदत होती है, बहते हुए नादियों, वृक्षों, झरनों सभी के साथ छेड़ छाड़ करना उसका स्वभाव होता है, किसी भी बंधन से मुक्त यहाँ से वहाँ स्वछंद बहते रहना फिर भी सरिता के ज्यादा जिद करने और बार बार एक ही बात की रट लगाए रखने पर पवन ने सरिता को दिल्ली आने के लिए आमंत्रित कर दिया।

उस दिन सरिता बहुत खुश थी, हिमाचल के एक छोटे से कस्बे से निकल कर दिल्ली जा रही थी, सब से ज्यादा खुशी तो उसे इस बात की थी वह जल्दी ही पवन से मिलेगी, पवन जिसको वह सबसे ज्यादा प्यार करती है, पवन जिसके बारे में सोच कर ही पूरे तन और मन में सिहरन पैदा होने लगती है।

सरिता ने घर पर बताया, “माँ पिताजी, मैं एक नौकरी के लिए दिल्ली जा रही हूँ।” पिताजी से खर्चे के लिए पैसे लिए और चल पड़ी दिल्ली। करीब पाँच घंटे का सफर बस से तय करने के बाद आखिर वह दिल्ली पहुँच गयी।

पवन ने फेस बुक पर ही सरिता को बताया, “तुम दिन में कोई ऑटो या टॅक्सी लेकर दिल्ली के सभी दर्शनीय स्थल देख लेना और शाम को मुझे मंडी हाउस के पास हिमाचल भवन पर मिल जाना, वहाँ से मैं तुम्हें पिक कर लूँगा, दिन में मैं व्यस्तता के कारण ना तो तुम्हें समय दे पाऊँगा और ना ही वहाँ आ पाऊँगा।”

दिल्ली पहुंचते ही सरिता ने ऑटो लिया और चल पड़ी दिल्ली घूमने, ऑटो वाले को पूरे दिन के लिए किराए पर तय कर लिया, कुछ अग्रिम किराया भी दे दिया। “प्रताप नाम है मेरा बेटा जी, मेरा नाम और मेरे ऑटो का नंबर अपने किसी जानकार को भेज दो, सुरक्षा के लिए ठीक रहता है यह दिल्ली है, यहाँ हर तरह का इंसान मिलता है और हम ऑटो वालों के बारे में तो वैसे ही लोगों की बड़ी गलत राय है।”

प्रताप ने लाल किला, गुरद्वारा शीश गंज, गौरी शंकर मंदिर दिखाने के बाद क्नौट प्लेस होते हुए सीधे बिरला मंदिर पर ले जाकर सरिता को उतारा। बिरला मंदिर में दर्शन करने के बाद सरिता ने वहीं मंदिर के बाहर वाले भोजनालय पर खाना खाया फिर आकर ऑटो में बैठ गयी।

जब सरिता किसी भी दर्शनीय स्थल में घूमने जाती तो प्रताप बाहर ऑटो मे प्रतीक्षा करता रहता, अग्रिम किराया उसको मिल ही गया था, जब देखता कि बिल अग्रिम मिले किराए से ज्यादा हो गया है तो और पैसे मांग लेता।

सरिता ने ऑटो में बैठकर कहा, “अंकल आप भी कुछ खा लो भूख लगी होगी।” प्रताप बोला, “बेटा जी! जब आप बिरला मंदिर में गई थीं मैंने तभी अपने ऑटो में बैठकर रोटी खा ली थी, मनोरमा, तुम्हारी आंटी, मेरी धर्म पत्नी वो क्या कहते हैं अँग्रेजी में, माई बैटर हाफ, बहुत ख्याल रखती है मेरा, सुबह ही मुझे लंच पैक करके दे देती है।”

प्रताप ऑटो चलाते हुए बातें भी किए जा रहा था, रास्ते में एक बड़ी इमारत दिखी तो कहने लगा, “बेटा जी! इस इमारत में मेरे बेटे सागर का बहुत बड़ा कार्यालय है, एक बहु राष्ट्रिय कंपनी की इस शाखा के कार्यालय की पूरी ज़िम्मेदारी सागर पर ही है, MBA किया है मेरे बेटे ने, बहुत अच्छे संस्थान से पढ़ कर आया है मेरा बेटा लेकिन अपने परंपरागत संस्कार नहीं भूला।”

“अच्छा अंकल अब तो मैं भी दिल्ली में ही रहूँगी, नौकरी मिलने के बाद फिर कभी मिलूँगी सागर से भी, मैंने भी MBA लिया है, आप बहुत अच्छे हैं, आपका बेटा भी अच्छा होगा, मैं उससे जरूर मिलना चाहूंगी।”

प्रताप ऑटो को जनपथ से इंडिया गेट, संसद भवन, केन्द्रीय सचिवालय और राष्ट्रपति भवन के बाहर से घुमाते व सरिता को सब बताते दिखते हुए कुतुब मीनार ले गया। कुतुब मीनार घूमते हुए शाम हो गयी तो सरिता ने कहा, “अंकल अब आप मुझे मंडी हाउस छोड़ दो मैं और ज्यादा नहीं घूमुंगी।”

कुतुब मीनार से मंडी हाउस के रास्ते में बातों ही बातों में प्रताप ने पूछ लिया, “बेटा यहाँ दिल्ली में जहां रुकोगे वहाँ का पता बता दो मैं वहीं छोड़ दूंगा।”

“अंकल अभी तो पता नहीं, मेरा एक मित्र है, फेस बुक पर मेरी उससे कुछ दिन पहले ही मित्रता हुई थी उसी के भरोसे मैं दिल्ली आई हूँ, उसने मुझे हिमाचल भवन के पीछे मिलने को कहा था, इसलिए मैं यहीं रुक कर उसके आने की प्रतीक्षा करूंगी।”

मंडी हाउस आ गया तो हिमाचल भवन के पीछे वाली गली में उतर कर सरिता ने फुटपाथ पर अपना बैग रख लिया और वहीं बैठ गयी। प्रताप ने अपना किराया लिया और सीधा अपने घर की तरफ चल पड़ा।

पहाड़ गंज के चूना मंडी की एक गली के पुश्तैनी घर में प्रताप अपने परिवार के साथ रहता था, परिवार में स्वयं, पत्नी मनोरमा और बेटा सागर, तीन ही प्राणी थे। मनोरमा घर संभालती और बापू बेटा अपने अपने काम पर चले जाते, शाम को तीनों मिल कर एक साथ खाना खाते, अपनी दिनचर्या एक दूसरे से शेयर करते।

अपना ऑटो गली में लगाकर प्रताप घर में घुसा, हाथ मुह धोये, दिया बत्ती की और बैठ गया सब के साथ खाना खाने के लिए जहां पर बेटा और पत्नी पहले से ही प्रतीक्षा कर रहे थे कि पिताजी आयें और सब एक साथ बैठकर खाना खाएं।

खाना खाते समय प्रताप अपनी दिनचर्या की पूरी कहानी मनोरमा और सागर को सुनाते जा रहे थे, सागर उनकी बात बड़े ध्यान से सुन रहा था, आखिर में जैसे प्रताप ने बताया कि उस लड़की को हिमाचल भवन के पीछे फुटपाथ पर छोड़ कर आ गया तो सागर को कुछ अजीब सा लगा और वह तुरंत ही खाना बीच में छोड़ कर अपने पिताजी को लेकर उस स्थान पर पहुंचा जहां उसके पिताजी ने उस लड़की को छोड़ा था.......

रात के ग्यारह बज रहे थे, दिसम्बर की सर्दी में सरिता उनको वहीं बैठी मिल गयी, सागर ने एक चैन की सांस ली, “बच गयी” उसके मुह से अचानक निकला........

प्रताप ने पूछा, “बेटा अभी तक गए नहीं आप? आपका वो मित्र अभी तक आया नहीं? ये मेरा बेटा सागर है, मैंने जैसे ही इसको तुम्हारे बारे में बताया तो ना जाने क्यों खाना बीच में हो छोड़ कर मेरे साथ यहाँ आ गया। ”

सरिता बहुत परेशान थी, प्रताप के पूछने पर रो पड़ी, पवन से उसका संपर्क ही नहीं हो पा रहा था, यही बात उसने प्रताप को बताई। सागर ने पवन की आई डी जांच कर देखी तो बंद मिली, वही हुआ जिसकी सागर को आशंका थी, सागर ने उस समय पुलिस सहायता लेना उचित समझा और तीनों थाने चले गए, वहाँ पर सागर ने थानेदार को पूरी घटना विस्तार से बताई, पुलिस ने तत्परता दिखाई और पुलिस जांच में पता चला कि पवन की आई डी झूठी थी जो उसी दिन बंद कर दी गयी एवं सभी पोस्ट भी मिटा दी गयी। सरिता को अपनी भूल पर पछतावा हो रहा था वह सोच रही थी कि क्यों उसने फेस बुक पर एक अंजान व्यक्ति से दोस्ती करके उस पर इतना भरोसा किया।

सरिता समझ चुकी थी कि प्यार के नाम पर उसके साथ धोखा हो गया है लेकिन प्रताप ने समझाया, “बेटा जी, भगवान की कृपा से अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है आपका बहुत बचाव हो गया है, चलो जल्दी ही यह पवन का झोका गुजर गया, अगर मैं सागर को आज के पूरे दिन की कहानी नहीं सुनाता तो हम भी यहाँ पर नहीं पहुँचते, ऐसी परिस्थिति में क्या कुछ हो सकता था या वह झूठा आदमी पवन अगर मिल भी जाता तो आगे क्या क्या करता पता नहीं, अब तो बस भगवान का शुक्र मनाओ और बेटा जी अगर हम पर विश्वास कर सको तो हमारे साथ हमारे घर चलो, सुबह सोचेंगे कि आगे क्या करना है।”

सुबह सुबह सागर अपने कार्यालय के लिए तैयार हो रहा था, सरिता भी जाग गयी थी, जाग क्या गयी सो ही नहीं पायी थी रात भर, तभी सागर बोला, "सरिता जी आपने कहा था कि आप अपने घर पर नौकरी के बारे में कह कर आई हैं, अगर आप नौकरी करना चाहती हैं तो मेरे कार्यालय में एक सहायक प्रबन्धक की जगह खाली है आपको अच्छा लगे तो जल्दी से तैयार होकर मेरे साथ चलें, आपकी नौकरी हो जाएगी एवं एक महिला हॉस्टल में आपके रहने का प्रबंध करवा दूंगा तब तक आप कंपनी के अतिथि गृह में रह सकती हैं।"

सरिता को ऐसा लगा जैसे एक भयंकर सपने से जागी हो, बुरा समय गुजर गया था, सरिता ने फोन पर अपने पिता को अपनी कुशलता कि सूचना दी और अपनी नौकरी के बारे में भी बताया।

सरिता को मजिल मिल गयी, वह अपने सागर तक पहुँच गयी, अब पवन की अठखेलियाँ बंद हो गयी, अब तो सरिता की सभी लहरें सागर की भव्य लहरों में समा चुकी थीं। सरिता को सागर से प्यार तो तभी हो गया था जब उसने अपनी सूझ बूझ से सरिता को भयंकर खतरे से बचा लिया था, प्यार धीरे धीरे आगे इतना बढ़ा कि कुछ दिन बाद मनोरमा को एक सुंदर सुशील बहू मिल गयी, सरिता सागर में पूर्ण रूप से समा गयी।