अहा जिन्दगी
मानव की चाहत
जीवन
सुख-शान्ति से व्यतीत हो
इसी तमन्ना को
भौतिकता में खोजता
समय को खो रहा है।
वह प्राप्त करना चाहता है
सुख, शान्ति और आनन्द
वह अनभिज्ञ है
सुख और शान्ति से
क्षणिक सुख से वह संतुष्ट होता नहीं
वह तो चिर-आनन्द में
लीन रहना चाहता है।
मनन और चिन्तन से उत्पन्न विचारों को
अन्तर्निहित करने से प्राप्त अनुभव ही
आनन्द की अनुभूति है
वह हमें
परम शान्ति एवं संतुष्टि की
राह दिखलाता है।
हमारी मनोकामनाएं नियंत्रित होकर
असीम सुख-शान्ति और
अद्भुत आनन्द में प्रस्फुटित होकर
मोक्ष की ओर अग्रसर करती हैं।
तुम करो इसे स्वीकार
सुख-शान्ति और आनन्द से
हो तुम्हारा साक्षात्कार।
पत्नी और प्रेमिका
धन नहीं
प्रेमिका नहीं,
प्रेमिका नहीं
धन की उपोगिता नहीं,
पत्नी पर धन खर्च होता है
प्रेमिका पर होता है धन कुर्बान,
पत्नी घर की रानी,
प्रेमिका दिल की महारानी
पत्नी देती है सात वचन
प्रेमिका देती है बोल-वचन
पत्नी होती है जीवन-साथी
प्रेमिका केवल धन की साथी
प्रेमिका से प्यार
पत्नी का तिरस्कार
आधुनिक परिदृश्य में
सभ्यता, संस्कृति और संस्कार
हो रहा है सभी का बहिष्कार
समाज में यह नहीं हो सकता स्वीकार
पत्नी में ही देखो
प्रेमिका को यार
इसी में मिलेगा
जीवन का सार।
सच्ची प्रगति
एक ही राह
एक ही दिशा
और एक ही उद्देश्य
मैं और तुम
चल रहे हैं
बढ़ रहे हैं
अलग-अलग
बनकर हमसफर
चलें यदि साथ-साथ
तो हम दो नहीं
वरन हो जाएंगे
एक और एक ग्यारह
रास्ता आसान हो जाएगा
और हमें मंजिल तक
आसानी से पहुंचाएगा।
विपत्तियां होंगी परास्त
और हवाएं भी
सिर को झुकाएंगी।
हमारा दृष्टिकोण हो मानवतावादी
धर्म और कर्म का आधार हो
मानवीयता
तब समाज से समाप्त हो जाएगा
अपराध
निर्मित होगा एक ऐसा वातावरण
जहां नहीं होगी अराजकता
नहीं होगा अलगाववाद
नहीं होगी अमीरी-गरीबी
नहीं होगा धार्मिक उन्माद
और नहीं होगा जातिवाद।
लेकिन हमारे राजनीतिज्ञ
ऐसा होने नहीं देंगे
मैं और तुम को हम बनकर
चलने नहीं देंगे
हमें छोड़ना होगा
राजनीति का साया
और अपनाना होगी
वसुधैव सः कौटुम्बकम् की छाया।
तभी हमारे कदमों को
मिल पाएगी दिशा और गति
तभी होगी हमारी सच्ची प्रगति।
भ्रूण हत्या
उसकी सजल करुणामयी आँखों से
टपके दो आँसू
हमारी सभ्यता, संस्कृति और संस्कारो पर
लगा रहे हैं प्रश्नचिन्ह?
कन्या भ्रूण हत्या
एक जघन्य अपराध और
अमानवीयता की पराकाष्ठा है,
सभी धर्मों में यह है महापाप,
समय बदल रहा है
अपनी सोच और
रूढ़ियों में लायें परिवर्तन,
चिन्तन, मनन और मंथन द्वारा
सकारात्मक सोच के अमृत को
आत्मसात किया जाये
लक्ष्मीजी की करते हो पूजा पर
कोख में पल रही लक्ष्मी का
करते हो तिरस्कार
उसे जन्म के अधिकार से
वंचित मत करो
घर आई लक्ष्मी को
प्रसन्नता से करो स्वीकार
ऐसा जघन्य पाप किया तो
लक्ष्मी के साथ-साथ
सरस्वती को भी खो बैठोगे
अंधेरे के गर्त में गिरकर
सर्वस्व नष्ट कर बैठोगे।
प्रश्न और समाधान
अब प्रश्नो को विश्राम दो
एक प्रश्न का समाधान
दूसरे प्रश्न को जन्म देता है
प्रश्न से समाधान
समाधान से प्रश्न
उलझनें बढ़ाता है
समाधान से बढ़ती है
ज्ञान की पिपासा
यही पिपासा संवेदनशीलता बनकर
राह दिखाती है
प्रश्न और समाधान
करते हैं भविष्य का मार्गदर्शन
और सिखाते हैं
जीवन जीने की कला।
सपनों का शहर
हमारा भी सपना है
शहर हमारा अपना है
जब खुली आँखों से देखता हूँ
यह मात्र एक कस्बा है
बिजली सड़क और पानी
हैं विकास की प्रमुख निशानी
पर इनका है नितान्त अभाव
फिर भी इसे कहते हैं संस्कारधानी।
बिजली का कभी भी कितना भी कट,
खो गईं हमारे शहर से
स्वच्छ और सुन्दर सड़क,
विकास के नाम पर
हर नेता लड़ रहा है
गड्ढों में सड़क को
खोजना पड़ रहा है।
जनता कर रही है
पानी के लिये हाय! हाय!
नेता सपनों मे खोये हैं
करके जनता को बाय-बाय!
इन्तजार है उस मसीहा का
जो करेगा
बिजली, पानी और सड़क का उद्धार
जिसे होगा विकास से सच्चा प्यार
तब हम गर्व से कहेंगे
यही है हमारे सपनों का
सुन्दर और वास्तविक शहर।
नारी व आर्थिक क्रान्ति
हम अपनी धुन में
वे अपनी धुन में
नजरें हुई चार
पहले मित्रता फिर प्यार
पत्नी के रूप में
कर लिया स्वीकार।
जिन्दगी को मिल गयी
मनचाही सौगात,
दोनों के जीवन में
हो गया नया प्रभात।
वह मेरे साथ
कार्यालय आने-जाने लगी,
मेरे काम में हाथ बंटाने लगी।
उसकी होशियारी के आगे
कटने लगे मेरे कान और नाक
आमदनी बढ़ने लगी और
लगने लगे उसमें चार चाँद।
उसने नारी का सम्मान बढ़ाया
और समाज में अपना
विशिष्ट स्थान बनाया।
उसने बता दिया नारी को अवसर मिले
तो वह कम नहीं है पुरुष से
यदि देश में ऐसा परिवर्तन आ जाये
हर परिवार में नारी होगी स्वाबलंबी
वह राष्ट्र की विकास दर में योगदान करेगी
आर्थिक क्रान्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी
सृजन का नया इतिहास बनेगा
और तब हमारे राष्ट्र में आयेगी समृद्धि
बढ़ेगा उसका और राष्ट्र का गौरव,मान और सम्मान
अंतिम रात्रि
आज की रात मुझे
विश्राम करने दो
क्या पता
कल का सूरज देख सकूं
या न देख सकूं,
चांद की दूधिया रौशनी को
आत्मा पर दस्तक देने दो
वह ले जा रही है
अंधकार से प्रकाश की ओर।
विचारों की आंधी को
भूत, भविष्य और वर्तमान का
चिन्तन और दर्शन करने दो।
हो जाने दो हिसाब
पाप और पुण्य का,
प्रतीक्षा और प्रेरणा में
जीवन बीत गया
अब अंत है
अनन्त में भी आत्मा प्रकाशित रहे
प्रभु की ऐसी कृपा होने दो
हमने किये जो धर्म से कर्म
उनका प्रतिफल मिले
परिवार और समाज को
प्रार्थना कर लेने दो
सोचते-सोचते ही सो गया
प्रारम्भ से अन्त नहीं
अन्त से प्रारम्भ हो गया।
जीवन का क्रम
मेघाच्छादित नील-गगन
गरजते मेघ और तड़कती विद्युत भी
आकाश के अस्तित्व और अस्मिता को
नष्ट नहीं कर पाते,
वायु का प्रवाह
छिन्न-भिन्न कर देता है
मेघों को,
आकाश वहीं रहता है
लुप्त हो जाते हैं मेघ।
ऐसा कोई जीवन नहीं
जिसने झेली न हों
कठिनाइयाँ और परेशानियाँ,
ऐसा कोई धर्म नहीं
जिस पर न हुआ हो प्रहार,
जीवन और धर्म
दोनों अटल हैं।
मानव रखता है
सकारात्मक और नकारात्मक दृष्टिकोण,
सकारात्मक व्यक्तित्व
कठिनाइयों से संघर्ष कर
चिन्तन और मनन करके
कठिनाइयों को पराजित कर
जीवन को सफल करता है
नकारात्मक व्यक्तित्व
पलायन करता है
समाप्त हो जाता है
जीवन संघर्ष में मानव
विजय, पराजय या मृत्यु पाता है
विजयी व्यक्तित्व
पाता है मान-सम्मान
होता है गौरवान्वित,
पराजित पाता है तिरस्कार
मृत्यु के साथ ही
समाप्त हो जाता है उसका अस्तित्व
नहीं रहता उसका कोई इतिहास।
जीवन का क्रम
चलता जाता है
आज भी चल रहा है
कल भी चलता रहेगा।
वह अटल है
नीले आकाश के समान
कल भी था
आज भी है
और कल भी रहेगा।
धन और धर्म
गरीबी जन्म देती है अभावों को
अभावों में पनपते हैं अपराध।
अत्यधिक अमीरी भी
दुर्गुणो को जन्म देती है
जुआ, सट्टा, व्यभिचार में
कर देती है लिप्त।
हमारे धर्मग्रन्थों में
कहा गया है
धन इतना हो
जिससे पूरी हों हमारी आवश्यकताएं
पर धन का दुरुपयोग न हो
जीवन
परोपकार और जनसेवा से
पूर्ण हो
पाप-पुण्य की तुलना में
पुण्य का पलड़ा भारी हो
तन में पवि़त्रता
और मन में मधुरता हो
हृदय में प्रभु की भक्ति
दर्शन की चाह हो
धर्म-कर्म करते हुए
लीला समाप्त हो,
निर्गमन के बाद
लोग करें हमें याद।
सुख की खोज
मानव सुख की खोज में
मन्दिर मस्जिद और गुरुद्वारे जाता है
साघु-संतों की संगति करता है
पर सुख नहीं मिल पाता है
जब दुख खत्म होगा
तभी सुख की अनुभूति होगी
सुख का कोई रूप नहीं होता
हम उसे महसूस करते हैं
सुख के लिए
सकारात्मक दृष्टिकोण चाहिए
वह होगा तो
सुख भी साथ-साथ होगा।
समय के हस्ताक्षर
समय अपने हस्ताक्षर
खोज रहा है
थका हुआ
बोझिल आँखों से
परिवर्तन को निहार रहा है,
ईमानदारी के दो शब्द
पाने के लिये
अपने ही ईमान को
बेच रहा है,
उसकी व्यथा पर
दुनिया मे कोई
दो आंसू भी नहीं बहा रहा है,
समय की पहचान मानव
समय पर नहीं कर रहा है,
समय आगे बढ़ता जा रहा है
अपनी इसी भूल पर मानव
आज भी पछता रहा है।
भ्रष्टाचार और समाज
पैट्रोल के दाम
तेजी से बढ़ रहे हैं
उससे भी दुगनी गति से
भ्रष्टाचार बढ़ रहा है।
खाद्य पदार्थों के आयात-निर्यात में
करोड़ों का लेन-देन हो रहा है।
यही आहार
मानव मस्तिष्क को भ्रमित कर
भ्रष्टाचार करा रहा है।
यह ऐसा अचार हो गया है
जिसके बिना भोजन अधूरा है
जिस मानव ने
सभ्यता और संस्कृति का विकास किया
आज वही
भ्रष्टाचार में लिप्त है।
इसे समाप्त किया जा सकता है
हर आदमी सिद्धांतों पर अटल हो जाए
कभी समझौता न करे
भ्रष्टाचार स्वमेव समाप्त हो जाएगा
देश इससे मुक्त होगा
स्वर्णिम भारत का सपना
साकार हो जाएगा।