हरिदास Lakshmi Narayan Panna द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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हरिदास

हरिदास

(हरि के सेवक)

  • ( कभी - कभी जीवन में अचानक ही कहीं न कहीं कुछ ऐसी घटनाएं घट जाती हैं, की उन पर व्यंग करने की आवश्यकता नही पड़ती, कुछ घटनाएं स्वयं में ही व्यंग होती हैं । भूमण्डल पर बहुत सारी जैव विविधता देखने को मिलती है । हमारे वैज्ञानिकों ने तो विविध जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों, सजीव व निर्जीव का विशेष लक्षणों के आधार पर वर्गीकरण भी कर दिया है। जिसे पूरी दुनिया मानती भी है । वही किताबों में पढ़ाया भी जाता है । फिर भी मन में एक प्रश्न सदैव बना रहता है कि किसी की कही बात बिना प्रमाण क्यों मान लें । इसलिए उसके एवज में वैज्ञानिकों ने प्रमाण भी दिए । परन्तु दुनिया कुछ ऐसे होशियार और जानकर भी हैं जिनकी जानकारी के क्या कहने । वे वैज्ञानिकों के दिये तर्कों और प्रमाणों को खारिज करके एक अलग ही थ्योरी पर चलते हैं और स्वयं ही अपने ज्ञान का प्रचार भी करते हैं । वे वैज्ञानिक शोधों से विकसित सभी सुख सुविधावों पर ही निर्वाह करके भी अपने ऊलजुलूल विचारों को ही सर्वोपरि रखते हैं । जब कभी आप ऐसे लोगों से वार्तालाप में पड़ते हैं तब हर उत्तर व्यंग और हर प्रश्न हास्य लगने लगता है । ऐसी ही एक घटना मेरे साथ तब हुई जब मैं एक प्राइवेट संस्था के द्वारा खादी ग्रामोद्योग की इकाइयों का भौतिक निरीक्षण का कार्य कर रहा था । )
  • एक बार जब खादी ग्रामोद्योग के द्वारा संचालित विभिन्न इकाइयों के मानकों का भौतिक सत्यापन करने की लिए कुछ लोगों की आवश्यक्ता थी और मुझे रोजगार की। सत्यापन का कार्य खादी विभाग ने एक प्राइवेट संस्था को दे रखा था, संस्था अपनी तरफ से दैनिक वेतन पर कुछ लोगों को लगा कर इस प्रकार के कार्य करवाती थी । काम में पारदर्शिता बनाये रखने के लिए 4 व 5 लोगों का एक ग्रुप होता था, जिसमें एक टीम का लीडर होता था । फिर उसके ऊपर संस्था का नियमित कर्मचारी होता था । इस प्रकार संस्था ने सत्यापन, और सर्वे का काम करने के मामले में अपनी अच्छी छवी बना रखी है ।
  • अतः वहाँ इस प्रकार सर्वे और सत्यापन से सम्बंधित बहुत सारे काम हुआ करते हैं । उस समय मैं वेरोजगार था आर्थिक परेशानी के कारण काम ढूंढ ही रहा था कि मेरे एक मित्र ने बताया कि लगभग छः महीने का काम तो होगा ही चाहो जॉइन कर लो । अगर तुम्हारा काम अच्छा रहेगा तो आगे और काम मिलते ही रहेंगे । मुझे तो जरूरत थी ही बस मौका चाहिए था, सो मैंने जॉइन कर लिया । काम बड़ा था इसलिए उसके लिए लगभग 30 से 40 लोगों को काम पर लगाया गया था ।
  • लगभग एक हफ्ते की ट्रेनिंग के पश्चात हम लोगों को ग्रुप में बांट कर अपनी -अपनी जिम्मेदारियां समझा दी गईं । पहले दो दिन स्थानीय क्षेत्र में जो इकाइयां लगी थी उन्ही को देखना था । फिर बाद में हमें बाराबंकी जनपद का काम सौंपा गया । वहाँ किस को किस इकाई की जाँच करनी है यह निर्णय लीडर लेता था । मैंने इस काम के दौरान कई तरह के लोग देखे । तरह-तरह के दिमाग वाले लोग उनको समझना फिर उन्हें समझाना आसान काम नही था । फिर भी मजा आ रहा था । कभी कोई सीधा सादा तो कभी थोड़ा बहुत टेढ़ा व्यक्ति भी मिल जाता, सबको प्रशन्न रखते हुए अपना काम निकलना था । इसलिए एक नये प्रकार का अनुभव भी मिल ही रहा था ।
  • एक रोज की बात है मैं एक मिनी राइस मिल की जाँच करने गया था । मिनी राइस मिल के लिए लगभग 25 लाख तक का ऋण पास होता है, पास हुए ऋण के अनुसार ही इकाई में प्रति एक लाख पर कम से कम एक वर्कर होना चाहिए । साथ ही यह भी चेक करना होता था जो कुछ उस व्यक्ति ने अपने प्रोजेक्ट में दिखाया है, क्या वैसा ही वास्तव में है ? क्या उसकी इकाई का कोई बोर्ड बैनर लगा है ? या नही । कहीं कोई इकाई केवल कागजों पर ही तो नही है । इसके अतिरिक्त और भी बहुत सारी जानकारी प्राप्त करनी पड़ती थी। जिस राइस मिल को चेक करने गया उसकी स्थिति देख कर तो नही लगता था कि इसमें 25 लाख लगे हैं । फिर भी इकाई यथावत सही स्थिति में,चालू हालत में मिली वरना कई इकाइयां तो बन्द पड़ी मिलीं थी । राइस मिल का मालिक बड़ा ही सज्जन व्यक्ति था । उसने मुझे सारे दस्तावेज दिखाए और जो जानकारी मुझे चाहिए थी सब उससे मिल गई । कुछ कमियां भी मिलीं जैसे कि उसने बोर्ड नही लगा रखा था, उसके लिए मेरे कहने पर कहने लगा कि साहब लगवाया था टूट के गिर गया, फिर लगवा दूँगा ।
  • जब मैं अपना काम कर रहा था तब वहीं पर वह अदभुत पुरुष भी थे जो इस विषय की चर्चा मुख्य पात्र बने । काम खत्म होने के बाद मैंने राइस मालिक से कहा कि थोड़ा पानी मंगवा देते तो, । उसने कहा पानी मंगवाया है बस अभी आ रहा है , ऐसा तो हो ही नही सकता कि कोई बाहर से आये और उसे पानी न मिले ।
  • पास में जो अदभुत पुरुष बैठे थे वे मुझे कुछ इशारा करते हुए कहते हैं - साहब पास में ही मेरा मन्दिर है चलिए आपके लिए पानी का प्रबन्ध वहीं करते हैं । मुझे लगा राइस मिल मालिक के घर परिवार के ही सदस्य होंगे । तो मैंने कहा ठीक है वहीं चलते हैं । तब तक एक लड़का पानी लेकर आ गया तो, मैंने कहा अब आ गया तो यहीं पी लेते हैं, जैसे वहाँ वैसे यहाँ । क्योंकि प्यास तेज लगी थी । मैंने उनसे भी पीने के लिए कहा, जैसा कि सामाजिक तौर तरीके कहते हैं पर उन्होंने मना कर दिया । मुझे क्या पड़ी मैं तो औपचारिकता निभा रहा था ।
  • पानी पीने के बाद जब मैं चला तो वही अद्भुत पुरुष बोले साहब पास में ही मंदिर में मैं पुजारी हूँ । चलिए आपको आगे छोड़ दूँगा और आप भी मंदिर में दर्शन कर लीजिएगा । फील्ड वर्क था सब जगह अपने पास गाड़ी घोड़ा तो था नही इसलिए मैं उनके साथ ही निकल लिया । कुछ ही दूर पर था सो मन्दिर भी तुरन्त पहुंच गए ।
  • मन्दिर तो वाकई खूबसूरत बना था । हो भी क्यों न मनुष्य अपना घर बनाते समय लापरवाही कर सकता, मगर क्या मजाल की मन्दिर मस्जिद बनाते वक्त भूल हो जाये । इसके लिए ज्यादा सुपर्विसिन की भी जरूरत नही, भगवान का डर ही काफी है । मन्दिर प्रांगण में बने चबूतरे पर उन्होंने बैठने का इशारा किया । दोनों लोग जब वैठ गए तब उन्होंने अपने अंदर गुलाटी मार रहे भावों को व्यक्त करना चाहा । मुझसे बोले राइस मिल वाले के बारे में एक बात बताए साहब । मैंने कहा हां जरूर बताएं हमको तो जनकारी चाहिए सब सही जनकारी इकाई पर थोड़े ही मिल सकती है, कुछ बातें पास पड़ोस से भी पता करनी पड़ती हैं । पुजारी जी तो मार उतावले हुए जा रहे थे बात कहने के लिए । जो बात वह कहना चाहते थे वह उनको पच नही रही थी । अब आप तो जानते ही हैं जब खाया पिया पचता नही तो या फिर उल्टी होगी या दस्त आएंगे । पुजारी जी की स्थिति इस वक़्त ऐसा ही थी । अतः समय व्यर्थ किए बिना उन्होंने उगलना शुरू किया ।
  • पुजारी जी कहने लगे साहब उसके यहाँ आपको पानी नही पीना चाहिए था । मैंने पूछा ऐसी क्या बात हो गई कि वहाँ पानी नही पीना चाहिए, क्या उसे कोई छूत की बीमारी है ? बोले नही साहब, वह हरिजन है ।
  • पुजारी की बात सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि आजादी की इतने वर्षों के बाद भी लोग जाती वाद को किसी तरह जिंदा रखे हैं । मुझे मन ही मन क्रोध भी आ रहा था कि किस मूर्ख के साथ बैठ गया । उसकी मूर्खता पर हंसी भी आ रही थी । परन्तु सबसे पहले मैने अपनी जिज्ञासा शांत करना बेहतर समझा । जिज्ञासा यह थी कि मैं जानना चाहता था कि वह व्यक्ति मूर्खतावश यह बोल रहा है कि जातिवाद का समर्थक मूर्खबुद्धिमान है । अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिए मैं बिल्कुल अनजान बन गया, फिर पुजारी जी से प्रश्न किया ।
  • मैंने पूछा पुजारी जी यह हरिजन होता कौन है ? क्या पहचान है इन लोगों की ?
  • पुजारी जी ने बताया कि हरिजन बहुत नीच जात होते हैं ।
  • मैंने पुनः प्रश्न किया, पुजारी जी नीच का क्या मतलब है ? क्या ये लोग चोरी बदमाशी करते हैं ? या दारू शराब पीते हैं ?
  • पुजारी की ने कहा क्या मजक करते हैं साहब, आपको सब पता है बस न जानने का नाटक कर रहे हैं । मैंने कहा नही पुजारी जी मुझे ये जात पात की जानकारी ज्यादा नही है । मैं ज्यादतर शहर में रहा हूँ और वहाँ सब लोग तो एक साथ खाते पीते हैं । जात तो पता नही बस sc, st, obc और सामान्य वर्ग के बारे में सुना है । लेकिन ये सब तो एक साथ खा पी सकते हैं । हरिजन के बारे में आपसे ही सुन रहा हूँ । पुजारी जी बोले हरिजन sc में ही आते हैं, इनको हम लोग नीच मानते हैं । अब तो साहब दौर बदल गया वरना हमारे बाप दादा तो इनको अपने नजदीक भी नही आने देते थे । पहले इनको सबसे वे काम दिए जाते थे जो सबसे छोटे समझे जाते थे । मैंने कहा पुजारी जी हमें तो पढ़ाया जाता था कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नही होता, कोई काम नीच नही होता नीचता तो हमारी सोंच में ही होती है । इसलिए काम को तो छोटा न कहिए काम के आधार पर किसी को नीच नही कहा जा सकता । मैन आपसे पूंछा की कैसे पहचानेंगे कि फला व्यक्ति छोटी जात का है ? आप तो इनके पास रहते हैं तो आप जानते होंगे, परन्तु हमारे जैसे जो लोग दूर से आएंगे, वे कैसे जान पाएंगे कि फला व्यक्ति छोटी जात का है । पुजारी जी बोले ओ तो साहब चेहरा बता देता है ।किसी बड़े आदमी के चेहरे पर तेज होता है जो इनमें नही दिखेगा । मैं पुजारी को अभी और उलझाना चाहता था, सो मैंने कहा बात तो आपकी ठीक है पर ऐसे तो यह पता लगेगा कि कौन अमीर है और कौन गरीब । गरीब का चेहरा कैसे तेजवान हो पायेगा जिसे उसकी मजदूरी भी तो ठीक से मिल नही पाता, उसका आत्मविश्वास भी कमजोर हो जाता है । कई गरीब तो ऐसे हैं कि आत्मविश्वास की क्या कहें उनका तो विश्वास भी कहीं खो चुका है ।उसके चेहरे पर क्या खाक तेज होगा । आप और कोई पहचान बताएं कि सुविधापूर्वक जाना जा सके । बोले वैसे तो कोई खास पहचान नही है । कोई बात नहीं छोड़िये, अनजाने में होने वाली गलती भगवान माफ कर देते हैं । मैंने कहा पुजारी गलती कौन सी हुई । कहने लगे कुछ नही, खैर अब तो इतना धर्म अधर्म की बात सोचना सम्भव है ही नही वरना धर्म के नियम कायदे से देखें तो बीच बराव करना पड़ता है ।
  • मैंने कहा वैसे पुजारी जी हरिजन का मतलब ही बता दीजिए । आखिर यह यह है क्या जो इसे नीच कहा जाता है । पुजारी जी बोले हरिजन का मतलब है हरि अर्थात भगवान के जन । मैं यही सुनना ही चाहता था, मुझे आगे के लिये स्वतः ही एक नायाब प्रश्न मिल गया । मैं जानता था अब पुजारी मेरे प्रश्न का जबाब सायद ही दे पाएगा । वैसे भी अर्थहीन बात करने वाले वे लोग जो लकीर के फकीर मात्र हैं उनके दिमाग के क्या कहने । पुरखों से विरासत में मिले दूषित ज्ञान के आधार पर बकबक करने की कला और दे भी क्या सकती है । सामाजिक ज्ञान को नवीकृत करने के बजाय इनको अपनी झूठी शान की कहानियों में मजा जो आता है ।
  • इसलिए खुद को ऊंच मानकर बेवकूफी करते फिरते हैं, मान लीजिए यदि कोई व्यक्ति जिसे ये हरिजन कहते हैं, वह ताकतवर हो और कहे मैं हरि का जन इसलिए मेरी भी पूजा करो । क्या तब भी ये उसे नीच कहेंगे ? उसकी बात नही मानेंगे ? वे जरूर उस ताकतवर व्यक्ति के तलवे चाटने लगेंगे । मेरे मन मे इसी प्रकार के सवाल-जवाब विचरण कर रहे थे, मैंने पुनः प्रश्न किया ।
  • पुजारी जी आप इस मंदिर में जिस मूर्ति की पूजा करते हैं, उसे हरि भी तो कहते हैं ?
  • पुजारी जी ने कहा हां हरि भगवान सब एक ही हैं । मैं अब सही रास्ते पर था, मैंने तुरन्त ही एक और प्रश्न किया ।
  • पुजारी जी इस पत्थर की मूर्ति और आपका क्या सम्बन्ध है ?
  • यह प्रश्न पुजारी के लिए बहुत ही आसान था ।
  • पुजारी जी तुरन्त बोले - ये प्रभु मेरे मालिक हैं और मैं तो इनका सेवक हूँ ।
  • मैंने पुनः पूछा यहाँ किसकी मर्जी चलती है आपकी या आपके मालिक की ?
  • पुजारी बोले हर जगह मालिक की ही मर्जी चलती है, हम आप होते ही कौन हैं । पुजारी जी ने मेरे सभी प्रश्नों का बहुत ही अच्छे से उत्तर दिया । अब बारी थी पुजारी को शिक्षित करने की । पुजारी जी बोले आप प्रश्न बहुत करते हैं देखिए साहब भगवान पर शक नही करना चाहिए । भगवान की मर्जी न हो तो पत्ता भी नही हिल सकता । तब मैंने पुजारी की बात को काटते हुए कहा ठीक है मान लिया । बस एक बात बताएं फिर कुछ नही क्या सच में भगवान हरि है और आप उसके सेवक हैं ? बोले हाँ ।
  • मैंने कहा तो फिर हरिजन आपसे नीच कैसे ? आपके मालिक का की संतान है आप उसके भी तो नौकर हैं ।
  • पुजारी बहुत कन्फ्यूज हो गया । कहने लगा अब आप मेरे सवाल का जवाब दो ।
  • मैंने कहा अगर मुझे पता होगा तो बताऊंगा अन्यथा क्षमा । बोले तो क्या जो वेद, शास्त्र और पुराण कहते हैं वह सब झूठ है केवल आप सही हैं ?
  • मैंने कहा आजतक ईश्वर भगवान जैसे कोई चीज नही आई जो आकर यह कहे कि यह सब उसने लिखा । किसने लिखा कब लिखा मैं नही जानता इसलिए उसे मानता भी नही । जरा सोंचिए ईश्वर को भेदभाव करना होता तो वह जल, अग्नि और वायु पर भी कुछ लोगों का अधिकार स्थापित कर देता । परन्तु उसने ऐसा नही किया क्योंकि वायु पर चालाक लोगों नियंत्रण हो नही पाया । अरे इनका बस चलता तो सारे जल स्रोतों पर ताला लगा देते, आग भी न लेने देते और निर्बल को थोड़ी आग के बदले प्रताड़ित करते । जल स्रोतों पर थोड़ा बहुत प्रतिबन्ध लगा ही दिया था ।
  • धन्य है वह महामानव जिसने हमें समता का पाठ पढ़ाया और अपने अधिकारों के लिए लड़ने का जज़्बा दिया ।
  • पुजारी मेरी बात को सुनता रहा अन्त में इतना बोला कि तुम नास्तिक हो, तुम्हे समझना व्यर्थ है ।
  • मैंने पुजारी जी आप जो चाहे वही सोंच सकते हैं क्योंकि आप तो हरिदास हैं । मैं नास्तिक सही कम से कम इन्शान को इन्शान समझता हूँ । मानव को एक जाति मानता हूँ । मैं किसी मनुष्य के स्पर्श से अपवित्र तो नही होता । मेरी नजर में मनुष्य गोमूत्र से अधिक पवित्र है । यह बात दास और गुलामों की समझ में नही आएगी ।
  • समाप्त