दूसरी दुनिया Ashish Kumar Trivedi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

दूसरी दुनिया

दूसरी दुनिया

चिराग कुमार की किताब 'दूसरी दुनिया' का विमोचन था। पत्रकार किताब के विषय में उससे सवाल पूँछ रहे थे। एक अंग्रेज़ी दैनिक की महिला पत्रकार ने प्रश्न किया।

"चिराग, आपकी किताब का नाम है दूसरी दुनिया। यह दूसरी दुनिया है क्या?"

चिराग ने उस पत्रकार को गौर से देख कर कहा।

"अच्छा सवाल किया आपने। दरअसल यह वह दुनिया है जो हमारे आसपास मौजूद है किंतु हमारा समाज उसकी अनदेखी करता है। यह दूसरी दुनिया शहर की झोपड़पट्टियों में बसती है। सड़कों पर सोती है। यह उन गरीब अनाथ बच्चों की दुनिया है जहाँ जाने से बचपन भी कतराता है।"

"आपका इन बच्चों से क्या संबंध है?"

महिला पत्रकार ने दूसरा सवाल किया।

"संबंध तो हम सबका है मैडम... वह हमारे समाज का ही हिस्सा हैं। हाँ मेरा व्यक्तिगत संबंध है क्योंकी मैं भी उसी दुनिया से निकला हूँ।"

सभी उसके बारे में जानने को उत्सुक थे। पत्रकार एक एक कर सवाल कर रहे थे। चिराग धैर्य से उनके जवाब दे रहा था। बहुत देर तक सवाल जवाब चलते रहे। प्रेस कॉन्फ्रेंस समाप्त होने के बाद चिराग भी अपने घर की तरफ चल दिया। सिग्नल पर जब कार रुकी तो एक छोटा सा बच्चा कार की खिड़की के पास खड़ा होकर उससे भीख माँगने लगा। उसने बच्चे को कुछ पैसे दिए और आगे बढ़ गया।

उस बच्चे ने उसके दिमाग में हलचल मचा दी थी। मंगतू की यादें उसके ज़ेहन में ताज़ा हो गई थीं। मंगतू उसका ही तो बीता कल था। वह तो उस दूसरी दुनिया से निकल आया लेकिन आज भी बहुत से बच्चे उसी दुनिया में रह रहे थे। वह भी मंगतू की तरह चिराग कुमार बन सकते थे। पर उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं था। उसके मन में सवाल उठा 'तुम्हारा हाथ पकड़ कर कोई तुम्हें निकाल लाया। पर क्या तुम कुछ नहीं करोगे?'

यह सवाल उसके दिल को मथे दे रहा था।

जब से होश संभाला था तब से ही खुद को बूढ़ी भिखारिन के साथ भीख माँगते पाया था। वह उसे अम्मा कहता था। वही उसके लिए माँ, बाप, भाई, बहन सब कुछ थी। भिखारिन ने बताया था कि वह उसे सड़क पर मिला था। बच्चे के साथ अच्छी भीख मिलेगी यह सोंच कर उसने उसे अपना लिया। नाम तो कोई जानता नहीं था। लेकिन भीख माँगने के हुनर के कारण सब उसे मंगतू कहते थे। मंगतू ने भी यही जाना था कि भीख माँगना उसकी नियति है। इसलिए भीख माँगने की अपनी कला को दिन प्रतिदिन और निखार रहा था। साहब मेमसाहब का जैसा मूड देखता वैसे ही उसका माँगने का तरीका होता।

इस तरह दस साल की उम्र तक कई भिखारियों की आँखों में चुभने लगा था। पर उनकी हर कुटिल चाल से उसे अम्मा बचा लेती थी। एक दिन अम्मा अपनी एकमात्र जायदाद अपना छोटा सा झोपड़ा उसे सौंप दुनिया से कूच कर गई। झोपड़ा नाले के किनारे बना था जहाँ शहर भर की गंदगी आकर गिरती थी। सड़ांध की उसे ऐसी आदत पड़ गई थी कि यदि परफ्यूम की गंध नाक में चली जाए तो उसे उबकाई आती थी।

इस परिस्थिति में मंगतू ने किशोरावस्था में कदम रखा। कभी यदि कोई भीख देते समय दुत्कार देता तो उसे ठेस पहुँचती थी। सड़क पर भटक कर भीख माँगते हुए एक दिन उसे एक साथी मिला। मंगतू से करीब दो साल बड़ा था। नाम था रंजीत। यह नाम उसने खुद अपने आप को दिया था। वह फिल्मों का शौकीन था। फिल्मों में विलेन रंजीत का चाकू चलाना उसे बहुत अच्छा लेता था। अपने साथ भी एक चाकू रखता था। उसने मंगतू से कहा कि वह क्यों थोड़े से पैसों के लिए लोगों के सामने गिड़गिड़ाता है। वह उसके साथ आ जाए। वह उसे पैसा कमाने का सही तरीका सिखा देगा।

जल्दी ही मंगतू ने रंजीत से पॉकेटमारी का हुनर सीख लिया। अब किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता था। सिर्फ हाथ की सफाई से अच्छा पैसा मिल जाता था। रंजीत की तरह वह भी दिल खोल कर खर्च करता था। धीरे धीरे नशे ने भी उसके जीवन में अपनी जगह बना ली।

'ज़िंदगी से उन्हें जितनी उपेक्षा मिली थी उतना ही वह 'ज़िंदगी को मुंह चिढ़ाते थे। मंगतू और रंजीत रोज़ दोपहर उस पुल पर जाकर खड़े हो जाते थे जिस पर से ट्रेन गुज़रती थी। दोनों ट्रेन के आने का इंतज़ार करते थे। पटरियों की थरथराहट ट्रेन के आने की सूचना दूर से ही दे देती थी। धड़धड़ करती ट्रेन किसी राक्षसी की तरह उन्हें निगलने के लिए दौड़ी आती थी। लेकिन दोनों ढीट की तरह उसके पास आने का इंतज़ार करते थे। जब वह इतना पास आ जाती कि ज़िंदगी और मौत के बीच सिर्फ एक क्षण शेष रहता तो दोनों बारी बारी से नीचे बहती नहर में कूद जाते थे। इस तरह ज़िंदगी से खिलवाड़ करना उन्हें रोमांच देता था।

एक दिन इसी खेल ने रंजीत की जान ले ली। मंगतू सही समय पर कूद गया पर रंजीत चूक गया। इस हादसे के बाद मंगतू को गहरा सदमा लगा। अब किसी भी चीज़ में उसका मन नहीं लगता था। वह नशे में डूबता चला गया। पॉकेटमार कर जो मिलता उसे नशे में खपा देता। एक दिन वह और उसके जैसे और नशेड़ी एक जगह पर नशा कर रहे थे। तभी वहाँ पुलिस आ गई। उम्र कम थी। अतः उसे बाल सुधार घर भेज दिया गया। यहीं उसके जीवन में उस फरिश्ते ने कदम रखा।

एक दिन सुधार गृह के सभी बच्चों को बाहर मैदान में एकत्रित किया गया। कुछ ही समय में एक पच्चीस छब्बीस साल का एक युवक उनसे मुखातिब हुआ।

"दोस्तों मेरा नाम डेनियल गोम्स है। मैं गोआ का रहने वाला हूँ। मैं यहाँ आप लोगों की मदद करने के लिए आया हूँ। हम यहाँ अगले कुछ दिनों तक रोज़ दो घंटे की क्लास लेंगे। इस क्लास में आपको डांस सिखाया जाएगा। डांस एक ऐसी कला है जहाँ आप अपने शरीर तथा चेहरे की मुद्राओं से स्वयं को अभिव्यक्त कर सकते हैं। यह आपको खुशी के साथ साथ अनुशासित व स्वस्थ जीवन प्रदान करता है।"

डेनियल की क्लास पहले ध्यान तथा योग से आरंभ होती थी। उसके बाद डांस शुरू होता था। प्रारंभ के कुछ दिनों में सभी को संगीत पर अपने हिसाब से थिरकने को कहा जाता था। उसके बाद डेनियल ने उन लोगों को कुछ मुद्राएं सिखानी शुरू कीं।

बाल सुधार गृह में अधिकांश बच्चे नशे के आदी थे। डेनियल उन्हें नशे के नुकसान के बारे में बताता था। वह बच्चों को समझाता था कि जीवन अनमोल है। इसे नशे जैसी चीज़ के लिए बेकार नहीं करना चाहिए। आरंभ में यह बातें मंगतू को अच्छी नहीं लगती थीं। एक दिन वह चिढ़ कर बोला।

"मेरा झोपड़ा उस नाले पर बना है जहाँ पूरे शहर की गंदगी आकर गिरती है। हमारी ज़िंदगी भी उस गंदगी की तरह है। सबने हमें निकाल कर फेंक दिया है।"

"तुम्हारा नाम क्या है?"

मंगतू ने सकुचाते हुए अपना नाम बताया। सारे बच्चे हंसने लगे।

डेनियल ने सबको शांत कराते हुए कहा।

"शहर की गंदगी और इंसान में फर्क होता है। इंसान उस हीरे की तरह होता है जो धूल में पड़े रह कर भी अपनी कीमत नहीं खोता। दूसरों से पहले तुम्हें अपना मूल्य समझना होगा।"

डेनियल की इस बात का मंगतू पर बहुत असर हुआ। उसने पूरी कोशिश की कि वह नशे की लत से आज़ाद हो जाए। इसमें डांस ने उसकी बहुत मदद की। जब वह नाचता था तब एक अलग ही दुनिया में पहुँच जाता था। अपने दुख तकलीफ सब भूल जाता था। डांस में इतना तन्मय हो जाता था कि उसे थकावट भी महसूस नहीं होती थी।

डेनियल उसमें आए इन बदलावों को महसूस कर रहा था। डांस के प्रति उसकी लगन ने डेनियल को बहुत प्रभावित किया था। डेनियल ने फैसला कर लिया कि वह मंगतू इस दुनिया से बाहर निकलने में मदद करेगा।

डेनियल का अपना एक डांस स्कूल था। उसने बाल सुधार गृह के अधिकारी से बात की कि वह मंगतू को अपने स्कूल में दाखिला देना चाहता है। अधिकारियों से अनुमति मिलने के बाद वह मंगतू को अपने साथ ले गया। डांस स्कूल में जब मंगतू का पहला दिन था तब डेनियल ने उसे अपने पास बुला कर कहा।

"आज से तुम्हारी 'ज़िंदगी की नई शुरुआत हो रही है। आज मैं तुम्हें एक तोहफा देना चाहता हूँ।"

कुछ पलों के मौन के बाद उसने कहा।

"अब तुम्हारी अपनी एक नई पहचान होगी। अब दुनिया तुम्हें चिराग कुमार के नाम से पुकारेगी। इस नाम से तुम दुनिया में अपना एक अलग स्थान बनाओगे।"

डेनियल की बात सुन कर मंगतू के दिल में भावनाओं का तूफान उमड़ पड़ा। बहुत कुछ था जो वह कहना चाहता था। वह सब उसकी आँखों से बहते आंसू बयान कर रहे थे। डेनियल ने आगे बढ़ कर उसे गले लगा लिया। बिना कुछ बोले मंगतू के आंसुओं ने सब कुछ कह दिया।

उस दिन से चिराग अपने नाम को चमकाने की कोशिश में जुट गया। डेनियल के स्कूल में उसे डांस के साथ साथ व्यक्तित्व निर्माण की भी शिक्षा दी गई। चिराग को बैले डांस में अधिक रुचि थी। वह इसी में निपुणता हासिल करने लगा।

कुछ ही समय में चिराग ने डांस में अपना नाम बना लिया। मंच पर नृत्य करते हुए उसकी हर एक मुद्रा ऐसी होती थी जैसे पानी की धारा निर्बाध बह रही हो। उसे नाचते देख दर्शक झूम उठते थे। फिर उसके जीवन में सबसे बड़ा लम्हा आया जब उसे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मिली। गोआ में बैले डांसिंग की अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता में उसे दूसरा स्थान प्राप्त हुआ। उसके बाद उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।

डेनियल ने उसे सुझाव दिया कि वह अपने जीवन की कहानी को किताब के रूप में लोगों तक पहुँचाए। जिससे कई लोग प्रेरणा ले सकें। चिराग ने दूसरी दुनिया के नाम से अपनी कहानी लोगों के सामने पेश की।

डांस के क्षेत्र में अपना स्थान बना लेने के बाद से ही चिराग के मन में यह सवाल उठ रहा था कि डेनियल ने उसके साथ जो किया उसका कर्ज़ वह कैसे उतारेगा। उसने डेनियल से इस विषय में बात भी की। डेनियल उसे समझाते हुए बोला।

"तुमने आज अपने लिए जो जगह बनाई है। वह मेरे लिए बहुत है। लेकिन आज तुम जिस जगह हो वहाँ से तुम और बहुत से गरीब अनाथ बच्चों की मदद कर सकते हो।"

उस दिन से चिराग इसी विषय में सोंच रहा था। आज सिग्नल पर भीख माँगते बच्चे को देख कर उसने तय कर लिया था कि इस चकाचौंध में वह कभी भी उस दुनिया को नहीं भूलेगा जहाँ से वह आया है। वह दोनों दुनिया के बीच एक छोटे से पुल की तरह काम करेगा। जिस पर से होकर और बहुत से मंगतू समाज में अपनी जगह बना सकें। अपनी किताब से होने वाली कमाई को वह इसी काम में लगाएगा।

***