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केंद्र बिंदु

केंद्र बिंदु

आशीष कुमार त्रिवेदी

पारस देख रहा था कि आरव का मन खाने से अधिक अपने फोन पर था। वह बार बार मैसेज चेक कर रहा था। सिर्फ दो रोटी खाकर वह प्लेट किचन में रखने के लिए उठा तो पारस ने टोंक दिया।

"खाना तो ढंग से खाओ। जल्दी किस बात की है तुम्हें।"

"बस पापा मेरा पेट भर गया।" कहते हुए वह प्लेट किचन में रख अपने कमरे में चला गया।

पारस का मन भी खाने से उचट गया। उसने प्लेट की रोटी खत्म की और प्लेट किचन में रख आया। बचा हुआ खाना फ्रिज में रख कर वह भी अपने कमरे में चला गया। लैपटॉप खोल कर वह ऑफिस का काम करने लगा। पर काम में उसका मन नही लग रहा था। वह आरव के विषय में सोच रहा था। उसने महसूस किया था कि पिछले कुछ महीनों में आरव के बर्ताव में बहुत परिवर्तन आ गया है। पहले डिनर का समय खाने के साथ साथ आपसी बातचीत का भी होता था। आरव उसे स्कूल में क्या हुआ इसका पूरा ब्यौरा देता था। किंतु जबसे उसने कॉलेज जाना शुरू किया है तब से बहुत कम बात करता है। इधर कुछ दिनों से तो उसका ध्यान ही जैसे घर में नही रहता था। पारस सोचने लगा। उम्र का तकाज़ा है। उन्नीस साल का हो गया है अब वह। नए दोस्त नया माहौल इस सब में उसने अपनी अलग दुनिया बसा ली है। उसके मन ने तर्क किया। वह भी तो इस उम्र से गुज़र चुका है। उसके भी यार दोस्त थे। पर ऐसी बेखयाली तो नही थी। शायद आज की पीढ़ी ही ऐसी है। काम में मन तो लग नही रहा था। उसने लैपटॉप बंद कर दिया। पानी पीने के लिए जब वह बाहर आया तो देखा कि आरव बॉलकनी में खड़ा किसी से फोन पर बात कर रहा था। जो कुछ भी उसके कान में पड़ा उससे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे दूसरी तरफ कोई लड़की बात कर रही थी। इस तरह बेटे की बात सुनना उसे अच्छा नही लगा। वह अपने कमरे में आ गया।

बिस्तर पर लेटे हुए उसे शिवानी की याद आ गई। दोनों के बीच प्रेमी प्रेमिका वाला प्यार नही हुआ। उनकी अरेंज्ड मैरिज थी। लेकिन दोनों के बीच प्यार अवश्य था। आरंभ के दो साल सिर्फ वही दोनों थे। बेफिक्री के दिन थे। बस सैर सपाटा, फिल्में और रेस्टोरेंट में डिनर। तभी एक दिन शिवानी ने उसके कान में किसी तीसरे प्राणी के आने की खबर सुनाई। जिम्मेदारियों ने दस्तक दे दी थी। सैर सपाटे की जगह डॉक्टर की क्लीनिक के चक्कर लगने लगे। आने वाले के स्वागत की तैयारियां होने लगीं। और नौ माह बाद आरव उनके जीवन में आया। वह दोनों बहुत खुश थे। उसे याद है जब आरव छह महीने का था तो एक पूरी रात दोनों पति पत्नी ने उसके सुखद भविष्य के सपने देखने में ही काट दी थी।

आरव ने प्ले स्कूल जाना शुरू कर दिया था। एक दिन कूरियर से शिवानी की सबसे अच्छी सहेली की शादी का कार्ड आया। शिवानी शादी में जाने के लिए बहुत उत्साहित थी। पारस ने सुझाव दिया कि वह तो वहाँ किसी को जानता नही है। इसलिए शिवानी अकेली ही शादी में चली जाए। आरव को वह संभाल लेगा। पहले तो वह कुछ पशोपश में रही फिर मान गई। विदा होते समय आरव को देख कर वह कुछ भावुक हो गई। लेकिन पारस ने उसे तसल्ली दे कर समझा दिया।

लौटते समय उसका फोन आया था। उसने बताया था कि वह ट्रेन में बैठ चुकी है और कल सुबह तक पहुँच जाएगी। अगले दिन शिवानी की जगह वह मनहूस खबर आई। रात के करीब ढाई बजे ट्रेन के कुछ डिब्बे पटरी से उतर गए। बहुत से लोग मारे गए। उनमें से एक शिवानी भी थी।

पारस की दुनिया उजड़ गई। घर वालों ने दूसरी शादी का सुझाव दिया "अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है। पूरी ज़िंदगी पड़ी है। फिर आरव को भी एक माँ मिल जाएगी।"

पारस भावनात्मक रूप से इस सब के लिए तैयार नही था। उसने साफ इंकार कर दिया। पिता ने भी समझाया "अभी हो सकता है तुम्हें किसी के साथ की आवश्यक्ता महसूस ना हो। लेकिन उम्र बीतने पर जब आरव बड़ा हो कर अपनी दुनिया में रम जाएगा तब तुम अकेलापन महसूस करोगे।"

आज पारस को अपने पिता की कही बात का मतलब समझ आ रहा था। वह आरव की परवरिश में मशगूल हो गया। घर ऑफिस और आरव की जिम्मेदारियों में अपने लिए उसके पास बहुत कम समय बचता था। कभी कभी वह सोचता भी था कि उसकी जरूरतों के लिए भी कोई होता। लेकिन आरव के जीवन में कोई प्रतिकूल प्रभाव ना पड़े यह सोच कर स्वयं को संभाल लेता था।

आरव के कुछ दोस्त कॉलेज की तरफ से ट्रिप पर जा रहे थे। वह भी ज़िद करके उनके साथ चला गया। पारस अब पहले से भी अधिक अकेलापन महसूस करने लगा था। कभी कभी वह सोचता कि जिसके लिए उसने इतना कुछ सहा उसे भी उसकी कोई परवाह नही है। उसने अपने आप को खुद में ही समेट लिया।

आरव भी जब से ट्रिप से लौटा था उसे महसूस हो रहा था कि उसके पापा किसी बात पर आहत हैं। पारस का चुप चुप रहना उसे भी पीड़ा पहुँचा रहा था। उसने पूंछने का प्रयास किया लेकिन पारस ने टाल दिया।

आरव के लिए भी एक एक दिन कठिन हो रहा था। उसने तय कर लिया था कि आज पापा के मन की बात जानकर ही रहेगा। वह पारस के कमरे में जाकर बोला "पापा आज मैं आपके पास सोऊंगा।" यह कह कर वह उसके बिस्तर पर बैठ गया।

"यह क्या है। तुम क्या छोटे बच्चे हो। अपने कमरे में जाओ।" पारस कुछ गुस्से से बोला।

"बड़ा हुआ तो क्या हुआ। आज भी मैं आपका वही आरव हूँ।"

"सच" पारस शिकायती लहजे में बोला।

"हाँ बिल्कुल सच है पापा। मैं देख रहा हूँ कि आपके मन में कोई बात है। पर आप बता नही रहे हैं। प्लीज़ पापा बताइए ना क्या बात है।" आरव ने पारस का हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा लिया।

पारस कुछ देर तक आरव को देखता रहा फिर बोला "मैं और तुम दो बिंदु थे जो एक दूसरे से जुड़े थे। हमारे बीच आपसी प्यार और विश्वास की रेखा थी। लेकिन अब एक नया बिंदु आ गया है। तुम उससे जुड़ गए हो। मैं अलग थलग पड़ गया हूँ।"

अपने पापा का दर्द आरव समझ गया। कुछ रुक कर बोला "पापा बचपन में आप मुझे ज्योमेट्री पढ़ाते थे। आपने मुझे सर्कल के बारे में बताया था। उसकी परिधि का हर बिंदु समान रूप से केंद्र से जुड़ा होता है। अगर केंद्र से ज़रा भी इधर उधर हो तो उसका आकार बिगड़ जाता है। मेरी ज़िंदगी का केंद्र बिंदु हैं आप। मैं सदा आपसे जुड़ा रहूँगा।" आरव पारस को गले लगा कर रोने लगा। पारस की आँखों से भी आंसू झरने लगे। अब पारस का मन हल्का हो गया था। उसका आरव समझदार हो गया था।

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