दूर की सोंच
आशीष कुमार त्रिवेदी
वकालत के पेशे में ह्रदय नारायण ने अभी पहचान बनानी शुरू ही की थी। कुछ दिनों पहले ही उन्होंने एक नामी मुवक्किल का केस जीता था। केस पेचीदा था और उनके मुवक्किल की प्रतिष्ठा से जुड़ा था। इसलिए वह केस जीत कर शहर में चर्चा का विषय बन गए थे। उन्होंने अपना चैंबर भी ले लिया था। पर आज जो केस उन्होंने लिया वह चौंकाने वाला था।
दोपहर को ह्रदय नारायण अपने चैंबर में बैठे थे। किसी केस के बारे में अपने सहायक गुप्ता से बात कर रहे थे। तभी किसी बूढ़े ने दरवाज़े पर दस्तक दी। उसकी उम्र करीब पचपन साठ साल की होगी। उसकी स्थिति से पता चल रहा था कि वह गरीब और परेशान था।
उसकी स्थिति देख कर सहायक गुप्ता ने ज़रा तेज़ आवाज़ में कहा "कहो भाई क्या काम है?"
गुप्ता का लहज़ा सुन कर वह बूढ़ा पहले तो कुछ घबराया फिर साहस करके आगे आया। गुप्ता को नज़रअंदाज़ कर ह्रदय नारायण से हाथ जोड़ कर बोला "साहब मैं बड़ी उम्मीद से आपके पास आया हूँ।"
ह्रदय नारायण ने उसे बैठने के लिए कहा। वह कुर्सी खींच कर बैठ गया।
"साहब सच कहूँ तो मेरे पास आपकी फीस देने के लिए कुछ नहीं है। फिर भी हिम्मत कर आपके पास आया हूँ।"
ह्रदय नारायण ने उसकी बात सुन कर गंभीरता से पूँछा "बताइए मामला क्या है?"
"मुझे अपने बेटे के खिलाफ धोखा धड़ी का मुकदमा करना है।"
उस बूढ़े की बात सुन कर गुप्ता और ह्रदय नारायण एक दूसरे की तरफ देखने लगे।
"बेटे के खिलाफ धोखा धड़ी का मुकदमा!" गुप्ता हैरानी से बोला।
ह्रदय नारायण को अब केस में दिलचस्पी होने लगी थी। वह बोले "आप ज़रा विस्तार से पूरी बात बताइए।"
कुछ क्षण चुप रह कर बूढ़े ने अपनी कहानी बतानी शुरू की।
"साहब मैं एक किसान हूँ। बाप दादा की थोड़ी सी ज़मीन थी। मेहनत कर मैंने और ज़मीन खरीद ली थी। मेहनत से कभी पीछे नहीं हटा। समय के साथ कदम मिला कर चलता था। अतः ज़मीन के एक टुकड़े पर फूलों की खेती करने लगा। आमदनी अच्छी होने लगी तो कुछ और जायदाद बना लिया।"
बूढ़े ने उन दोनों की तरफ देखा। दोनों उसकी बात ध्यान से सुन रहे थे।
"तीस साल पहले हमारे घर में एक बेटे का जन्म हुआ था। विवाह के पाँच साल बाद मेरी पत्नी की गोद भरी थी। हम दोनों के लिए बहुत खुशी की बात थी। बच्चा तो हुआ पर पहले तीन साल उसके लिए बहुत कठिन थे। आए दिन बीमार रहता था। मैं और मेरी पत्नी उसे सीने से लगाए अस्पताल भागते रहते थे। तब आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी। लेकिन किसी भी तरह हमारी औलाद बच जाए बस इसी फिक्र में रहते थे। उसकी माँ ने कई उपवास किए। देवी देवताओं को मनाया तब जाकर उसकी हालत सुधरी। हमने चैन की सांस ली।
हम दोनों तो अंगूठाछाप थे लेकिन हमने उसे स्कूल भेजना शुरू किया। वह बहुत होशियार था। हमने सोंचा गाँव के स्कूल में क्या सीख पाएगा। इसीलिए उसे शहर के अंग्रेज़ी स्कूल में भर्ती करवा दिया। वहाँ छात्रावास भी था। खर्चा बहुत था पर हमनें उसके भविष्य के बारे में सोंच कर कष्ट सहना भी स्वीकार कर लिया।
मैंने भी अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए हाथ पैर मारने शुरू कर दिए। मेहनत सफल हुई आमदनी कुछ बढ़ गई। गाड़ी चल पड़ी। अपनी योग्यता से हमारे बेटे ने भी छात्रवृत्ति प्राप्त कर ली। इस तरह बारहवीं तक की पढ़ाई हो गई।
बारहवीं के बाद उसने इंजीनियरिंग करने की इच्छा जताई। मेहनत कर एक कॉलेज में दाखिला भी ले लिया। मैंने ज़मीन गिरवी रख कर कर्ज़ ले लिया। इसी समय मैंने फूलों की खेती कर पैसा कमाने के बारे में सुना। मैंने फूलों की खेती करना आरंभ कर दिया। अच्छी आमदनी होने लगी। बेटे ने इंजीनियरिंग पूरी कर नौकरी शुरू कर दी। अब ज़िम्मेदारी कम हो गई थी। मैंने धीरे धीरे कर्ज़ चुका कर ज़मीन छुड़ा ली।
बेटा दिन पर दिन तरक्की करने लगा। लेकिन यह देखने से पहले ही मेरी पत्नी भगवान को प्यारी हो गई। बेटे ने शादी कर गृहस्ती बसा ली। मैं अकेला रह गया। किंतु तसल्ली थी कि तपस्या रंग लाई थी। बेटा अपनी ज़िंदगी में खुश था।"
बूढ़ा बोलते बोलते चुप हो गया।
समस्या कहाँ पैदा हुई।" ह्रदय नारायण ने पूँछा।
बूढ़ा उनकी तरफ देख कर बोला "बेटा अपनी ज़िंदगी में मस्त था। कभी भूलकर भी मेरा हालचाल नहीं पूछता था। मैंने भी खुद को अपने काम में व्यस्त कर लिया। दोनों अपनी ज़िंदगियों में खुश थे।
एक दिन अचानक वह अपनी कार में अपने परिवार के साथ मिलने आया। उसे देख कर मुझे अच्छा लगा। दोपहर खाने के बाद उसने मुझसे कहा कि आप यहाँ अकेले रहते हैं यह मुझे अच्छा नहीं लगता। आप भी हमारे साथ चल कर रहिए। उसका प्रस्ताव सुन कर मुझे प्रसन्नता हुई। लेकिन मैंने कहा कि मैं यहीं ठीक हूँ। पर जब पोती ने भी ज़िद की तो मन पिघल गया। मैं उनके साथ जाने को राज़ी हो गया।
मैंने सोंचा था कि कुछ दिन ठहर कर लौट आऊँगा। मैंने फूलों की देखभाल के संबंध में अपने सहयोगी को आवश्यक निर्देश दिए और उनके साथ चला गया। बेटे बहू ने मेरी खूब खातिर की। करीब महीना बीत गया। इस बीच मैंने महसूस किया कि अब स्थिति कुछ बदल गई थी। अब पहले जैसी खातिरदारी नहीं होती थी। मैंने वापस जाने का मन बना लिया।
मैं अपने सहयोगी से बात कर वहाँ के हालचाल लेता रहता था। वह सब ठीक है कह कर मुझे तसल्ली देता था। मैंने जब उसे फोन किया तो संदेश मिला कि फोन बंद है। दो दिन तक मैं लगातार फोन करता रहा। लेकिन फोन बंद रहा। मैं परेशान हो गया। मैंने बेटे से वापस जाने को कहा तो वह टाल गया। एक दिन मैं स्वयं ही सामान बांध जाने को तैयार हो गया। तब मुझे जो पता चला सुन कर मेरे होश उड़ गए।
बेटे ने बताया कि मेरी सारी संपत्ति अब उसकी हो गई है। वह वहाँ कोई फैक्ट्री शुरू करने वाला है। उसने मेरी बीमा पॉलिसी लेने के नाम पर धोखे से कागज़ पर मेरे अंगूठे के निशान ले लिए थे।
मेरे पास अब कोई चारा नहीं था। अपमान सह कर भी मैं वहाँ रह रहा था। लेकिन जब मेरी पोती ने भी माँ बाप की सह पाकर मेरे साथ बुरा व्यवहार शुरू किया तो मैंने घर छोड़ दिया।
भटकते हुए मैं एक आश्रम में पहुँच गया। वहाँ कई बेघर बुज़र्ग रहते थे। मैं वहीं रहने लगा। अपने शरीर से जितना हो सकता था लोगों की सेवा कर देता। सर पर छत और पेट में रोटी की व्यवस्था हो गई। लेकिन रह रह कर मन कचोटता था। जिसे तकलीफें सह कर काबिल बनाया उसने चालाकी से सब हड़प लिया। मन उसे सज़ा दिलाने के लिए छटपटा रहा था।
जब आपका नाम सुना तो मन में एक उम्मीद जगी कि यह आदमी मेरी मदद कर सकता है। इसलिए बड़ी आस के साथ यहाँ आया हूँ।"
बूढ़े ने उम्मीद के साथ उसे देखा फिर बोला "मेरे पास कुछ नहीं है। लेकिन अगर आप मेरी संपत्ति वापस करवा पाए तो मैं उसे बेंच कर आपकी फीस चुकाऊँगा। बाकी जो बचेगा उसमें से कुछ अपने लिए रख कर बाकी आश्रम को दान दे दूँगा। मुझे उम्मीद है कि आप जीतेंगे। लेकिन फैसला आप को करना है।" कह कर उसने हाथ जोड़ दिए।
ह्रदय नारायण ने कुछ पल सोंच कर उसका मुकदमा लड़ने के लिए हाँ कर दिया।
बूढ़े के जाते ही गुप्ता बोला "सर आपने यह केस क्यों लिया। फीस तो मिलेगी नहीं ऊपर से हारने के बहुत चांस हैं।"
"मुझे उस बूढ़े की आँखों में सच्चाई नज़र आई।"
"लेकिन अदालत सबूत और गवाह के आधार पर फैसला देती है। भावनाओं पर नहीं।" गुप्ता ने अपनी दलील दी।
ह्रदय नारायण कुछ देर सोंच कर बोले "हो सकता है मेरा तर्क सुन कर तुम सोंचो कि यह पागल हो गए हैं। लेकिन मैंने यह केस मेरे तुम्हारे और हम जैसे उन सब लोगों के लिए लिया है जो धीरे धीरे बुढ़ापे की तरफ बढ़ रहे हैं। कल हमारे बच्चे भी जवान होंगे। तब उनके सामने यह उदाहरण रहना चाहिए कि बूढ़े माता पिता से धोखा करने पर सज़ा भुगतनी पड़ती है। यह मेरी भविष्य के लिए एक कोशिश है।"
ह्रदय नारायण ने गुप्ता पर नज़रें टिका दीं। गुप्ता को कोई तर्क नहीं सूझ रहा था।
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