जिहादी या अपराधी Ved Prakash Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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जिहादी या अपराधी

जिहादी या अपराधी?

पंडोली गाँव के बारे में कहते हैं कि इस गाँव को पांडवों ने बसाया था, यहाँ पर मीलों तक फैला एक तालाब भी है जिसे पांडवों ने स्वयं अपने हाथों से बनाया था। किवदंती है कि बनवास के समय पांडव इस गाँव में रुके थे, इस गाँव में पानी की भयंकर कमी थी लेकिन वर्षा ऋतु में बारिश अच्छी होती थी, अतः पांडवों ने इस तालाब का निर्माण बारिश का पानी एकत्रित करने के लिए किया। इस तरह तालाब का पानी गाँव वालों के लिए पूरा वर्ष पर्याप्त रहने लगे, इससे गाँव वाले खुश हो गए और उन्होने गाँव का नाम पांडव वाली रख दिया जो बाद में पंडोली बन गया।

पंडोली गाँव में तालाब के किनारे पूरब दिशा में एक मंदिर है और मंदिर भी कहते हैं कि पांडवों ने ही बनवाया था जहां पर कुंती प्रतिदिन पूजा करने जाया करती थी अतः इस मंदिर की मान्यता तो बहुत है लेकिन छोटा सा ही मंदिर है जिसमे तीन तरफ खुले दरवाजे और खिड़कियाँ हैं, बस एक ही बड़ा कमरा है जिसकी सामने वाली दीवार के साथ दुर्गा माँ की मूर्ति विराजमान है, माँ की मूर्ति साक्षात जीवित देवी प्रतीत होती है, अक्सर देखने वाले भ्रमित हो जाते हैं कि यह मूर्ति है या स्वयं देवी माँ यहाँ पर विराजमान हैं।

पंडोली गाँव में राजपूत, ब्राह्मण, सैनी, कहार, धोबी, नाई, बाल्मीकि, हरिजन, लोहार, सुनार, बढ़ई, तेली, जुलाहे और मुसलमान रहते हैं। मैंने हिन्दू और मुसलमान का प्रयोग इसलिए नहीं किया कि हिन्दू तो स्वयं को इसी तरह बांटे रहते हैं वे कभी हिन्दू नहीं बन पाते जबकि मुसलमान तो बस मुसलमान है।

मंदिर की अच्छी मान्यता होने के कारण इस मंदिर में आस पास के गाँव से भी लोग पूजा करने आते हैं। मंदिर के पुजारी महेश दत्त रात में मंदिर के कपाट बंद करके अपने घर चले जाते, पुजारी जी का घर गाँव के बीच में ही है।

एक समय था जब गाँव के मुसलमान गाँव में काफी कम संख्या में थे और एक कोने में ही बसे हुए थे लेकिन धीरे धीरे उन्होने अपनी जनसंख्या इतनी बढ़ा ली कि गाँव में आधे से ज्यादा मुसलमान आबादी हो गयी।

हिंदुओं के बच्चे पढ़ लिख कर गाँव छोड़ छोड़ कर चले गए और शहरों में जा बसे दूसरी तरफ मुस्लिमों ने अपने बच्चों को पढ़ाया ही नहीं, पढ़ाते भी कैसे जब एक एक के बीस बीस बच्चे हो गए, इतने बच्चों की पढ़ाई से पहले तो उनका खाने का ही प्रबंध करना था।

मुसलमान बच्चे पैदा करते और जैसे ही वह पाँच छह वर्ष का हो जाता उसे उसके हाल पर छोड़ देते। कुछ बच्चे छोटे मोटे काम सीख कर उसमे लग गए और बाकी चोरी, झपटमारी, राहजनी वगैरह करने लगे।

थानों में पंडोली का नाम बदनाम होने लगा, अपराधियों की सूची में दस में से नौ बदमाश पंडोली गाँव के होते थे। मस्जिद का इमाम इब्राहिम राजनेताओं से अच्छे संबंध होने के कारण अपराधी मुस्लिम लड़कों को पुलिस की गिरफ्त से छुड़वा लिया करता था। सभी मुसलमान इब्राहिम को अपना मसीहा मानने लगे, इब्राहिम यही तो चाहता था और इसी विश्वास का लाभ उठाते हुए उसने मुस्लिम बच्चों को जिहाद का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया।

एक दिन इब्राहिम ने सभी मौजीज मुस्लिमों को बुलाकर एक गुप्त बैठक की और बताया, “अब हम सबको जिहाद के लिए तैयार होना होगा, अल्लाह के लिए जो भी जिहाद करेगा उसी को जन्नत नसीब होगी अन्यथा जलते रहोगे दोज़ख की आग में, फिर वहाँ तुम्हें बचाने कोई नहीं आएगा, अब सब लोग अपना अपना हाथ उठाकर बताओ कौन कौन जिहाद में अल्लाह का साथ देगा?”

सभी ने अपने दोनों हाथ उठा लिए और स्वयं भी खड़े हो गए, ऐसा नजारा देख कर इब्राहिम की बांछे खिल उठी और उसने अपने सिर पर लगी गोल टोपी को अपने बाएँ हाथ से उतार कर दायाँ हाथ अपने गंजे सिर पर फेरते हुए इस्लाम की तरफ देखकर कहा, इस्लाम जो उस मीटिंग में अपनी आठ साल के बेटी को साथ ले आया था ----

“इस्लाम, तुम्हारी बच्ची बहुत सुंदर है, अल्लाह इसको अपनी पनाह में लेना चाहते हैं, ये बच्ची तुम्हें और तुम्हारे परिवार को जन्नत में लेकर जाएगी और स्वयं जन्नत की महारानी बनेगी।”

इस्लाम – लेकिन इमाम साहब, इसको क्या करना होगा?

इब्राहिम – इसको कुछ नहीं करना, करेंगे तो हम। अब तुम यहीं पर रुको मैं तुम्हें पूरी योजना समझा दूंगा।

इस्लाम अपनी ननन्ही से बेटी के साथ वहीं मदरसे में रुक गया, बाकी सबको इब्राहिम ने जाने का फरमान ने सुना दिया। इब्राहिम ने इस्लाम को समझाया – अब तुम्हारी बेटी अल्लाह की पनाह में रहेगी, उसको थोड़ी तकलीफ होगी, थोड़ा दर्द होगा लेकिन बाद में उसको और तुम सबको जन्नत नसीब होगी।

इस्लाम – लेकिन ऐसा क्या करेंगे आप जो मेरी बेटी को दर्द होगा तकलीफ होगी?

इब्राहिम – तुम्हारी बच्ची बस एक हफ्ता मदरसे में रहेगी, हम चार पाँच लोग रोजाना दिन में कई कई बार बड़ी बेरहमी से उसके साथ दुष्कर्म करेंगे, जब तक ये सहन करती रहेगी तब तक हम बेरहमी से दुष्कर्म करते रहेंगे और जब ये सह नहीं पाएगी तो मर जाएगी तब इसको हम मंदिर के पास फिंकवा देंगे, इसका सारा इल्जाम पंडित और उसके परिवार पर लगा देंगे।

मेरी बात मीडिया से हो चुकी है वो लोग इस पंडित को इस मंदिर को और यहाँ के हिंदुओं को बदनाम करने में कोई कमी नहीं छोड़ेंगे। यहाँ की सरकार हमारी बात मानती है और हमारी ऊपर तक बात हो चुकी है बस तुम एक बार तैयार हो जाओ, अपनी आठ साल की बच्ची को हमारी पनाह में छोड़ जाओ।

इस्लाम – लेकिन इमाम साहब वह बहुत छोटी बच्ची है, हमने बड़े लाड़ प्यार से उसे पाला है, मैं अपनी बच्ची के साथ ऐसा सब कैसे होने दे सकता हूँ?

इब्राहिम – तो जाओ और हमेशा जलते रहना दोज़ख की आग में, कोई तुम्हें बचाने नहीं आएगा। तुम अल्लाह के फरमान को ठुकरा रहे हो, शुक्र मनाओ की अल्लाह ने इस काम के लिए तुम्हारी बच्ची को चुना है। जिहाद के लिए चुना जाना तो बहुत बड़ी किस्मत की बात है, सोचो सिर्फ एक बच्ची की कुर्बानी तुम्हें जन्नत ले जाएगी तुम्हारे सब गुनाह माफ हो जाएंगे। इस्लाम कुछ बोला भी नहीं और खड़ा देखता रह गया, चार जिहादी आकर उससे उसकी बच्ची को छीन कर मदरसे के तहखाने में ले गए, इब्राहिम भी उनके पीछे चला गया, थोड़ी देर बाद ही इस्लाम को अपनी बेटी की चीखें सुनाई देने लगी, एक जिहादी ने आकर उसके कानों में रुई ठूंस दी और चुप रहने की सलाह देकर वहाँ से चले जाने को कहा।

इस्लाम अपने सिले होंठ और बंद कान लिए घर पहुंचा तो घरवाली ने बच्ची के बारे में पूछ लिया। इस्लाम कुछ कहता इससे पहले ही इब्राहिम के भेजे जिहादी ने बता दिया कि बच्ची को जिहाद की स्पेशल ट्रेनिंग दी जा रही है अभी वह कुछ दिन वहीं अल्लाह की पनाह में रहेगी।

जिहाद के नाम पर सात दिन वो लोग उस बच्ची के शरीर पर तरह तरह के अत्याचार करते रहे और एक दिन जब उसके शरीर ने जवाब दे दिया तो बच्ची मर गयी।

रात के अंधेरे में बच्ची को मंदिर के पास रख दिया पुलिस में शिकायत कर दी गयी, पंडित महेश दत्त और उसके भाई भतीजों का नाम लिखवा दिया गया। सुबह मंदिर खोलने से पहले ही पुलिस ने पंडित को गिरफ्तार कर लिया, साथ में उसके भाई भतीजों को भी उठाकर थाने ले गयी।

थाने में ले जाकर उन चारों को उल्टा लटका दिया एवं बेल्ट से मारना शुरू कर दिया, उनको तो यह भी नहीं पता था कि किस जुर्म की सजा दी जा रही है।

थोड़ी देर बाद उनको नीचे उतारा, वे लोग ठीक से बैठ भी नहीं पा रहे थे, तभी उनको आदेश हुआ, “अब तुम्हें कबूल करना है कि तुम चारों ने इस लड़की को अगवा किया था, सात दिन तक मंदिर के तहखाने में रख कर इसके साथ बेरहमी से दुष्कर्म किया और फिर इसको मार कर बाहर फेंक दिया, इस पूरी घटना के हमारे पास पाँच गवाह भी हैं।”

इब्राहिम अपने चारों जिहादियों के साथ थाने में बैठे हुए कह रहे थे, “हाँ! हमने देखा है, इस पंडित ने लड़की को अगवा किया था और यही इसको मंदिर के तहखाने में ले गया था, इसके साथ इसका भाई और दोनों भतीजे भी थे।”

पंडित महेश दत्त और उनके भाई भतीजे इस अपराध को कबूल करने से मना कर रहे थे तभी पुलिस का बड़ा अधिकारी वहाँ आ गया और बोला, “हमे पता है कि तुम बेकसूर हो लेकिन फिर भी तुम्हें यह सब कबूल करना ही पड़ेगा। देखो उधर सामने, तुम्हारे घर की सभी औरतों को नंगा करके उल्टा लटकाया हुआ है, अभी मीडिया वाले यहाँ पहुँचने वाले हैं अगर तुमने जरा भी होशियारी दिखाई तो जिहादी तुम्हारी औरतों और बच्चियों की इज्जत तार तार कर देंगे उसके बाद तुम्हें इनके क्षत विक्षत शरीर भी नहीं मिलेंगे। अभी तुम अगर हमारी बात मान लोगे तो हो सकता है हम तुम सब को छोड़ दें।”

थोड़ी ही देर में वहाँ मीडिया की भीड़ लग गयी, पूरी दुनिया में यह बात आग की तरह फैल गयी, लोग हिंदुओं और मंदिरों को गालियां देने लगे यहाँ तक कि हिन्दू भी टी वी पर आ आ कर कहने लगे कि हमें हिन्दू होने पर शर्म आ रही है।

इस्लाम और उसके पूरे परिवार को रातो रात गायब कर दिया गया, शायद वे सब भी जन्नत पहुंचा दिये गए।

एक खोजी पत्रकार ने जब इस घटना की तहकीकात की तो पाया कि मंदिर में कोई तहखाना ही नहीं है और ना ही कोई ऐसा कमरा जिसमे सात दिन तक बच्ची को रखकर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया जा सके, उसने पाया कि यह सब एक षड्यंत्र था जो हिन्दू धर्म व मंदिरों को बदनाम करना चाहते थे।

उस पत्रकार की खोज से सच्चाई तो पता लगी लेकिन क्या हिंदुओं का खोया हुआ सम्मान उस घटना की सच्चाई जानने के बाद वापस मिल सकता था? पंडोली गाँव के सभी हिन्दू गाँव से पलायन कर गए, पूरे गाँव में फ़ैली हिंदुओं की जायदाद पर मुसलमानों का कब्जा हो चुका था। यही तो योजन थी उस इमाम इब्राहिम की, जिसे उसने जिहाद का नाम दिया जबकि यह एक बहुत बड़ा अपराध था। वास्तव में वे लोग जिहादी थे ही नहीं, वे तो अपराधी थे इस्लाम के नन्ही सी बेटी के और हिंदुओं के।