भारत माँ का वीर सपूत : आदित्य विक्रम पेठिया
कविता त्यागी
इतिहास के पन्नों पर अंकित 5 दिसंबर 1971 की वह अविस्मरणीय सुबह फ्लाइट-लेफ्टिनेंट आदित्य विक्रम पेठिया के जीवन में बहुत कुछ विशेष लेकर आयी थी - एक ओर शत्रु राष्ट्र की धरती पर अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए शौर्य प्रदर्शन और हृदय में संचित वीरता के भाव को साकार करने का अवसर था, तो दूसरी ओर शत्रु देश के सैनिकों के हाथों में पड़कर अकल्पनीय-अकथनीय शारीरिक-मानसिक यातनाएँ । अपनी शारीरिक-बौद्धिक क्षमताओं का उपयोग करते हुए देश के लिए कुछ कर गुजरने का वह क्षण आज भी सभी देशवासियों के साथ स्वयं आदित्य विक्रम पेठिया को भी आह्लादित और गौरवान्वित कर देता है, साथ ही 1971 में पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा दी गयी यातनाओं का स्मरण करके आज भी स्वयं उनके तथा सुनने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं
नवंबर 1971 में जब पाकिस्तान के रुढ़िवादी तथा अपरिवर्तनवादी राजनीतिज्ञों द्वारा उकसाए हुए लोग लाहौर तथा पाकिस्तान के अन्य शहरों में क्रश इंडिया (भारत को कुचल दो ) का नारा देते हुए मार्च निकाल रहे थे, भारत ने उसी समय पाकिस्तान पर अपनी विजय सुनिश्चित करने के लिए रणनीति तैयार कर ली थी, किंतु पाकिस्तान को इसकी भनक तक नहीं लगने दी थी । तेईस नवम्बर को जब पाकिस्तानी राष्ट्रपति याह्या खान ने पूरे पाकिस्तान में आपातकाल की घोषणा कर दी और अपने लोगों को युद्ध के लिए तैयार रहने का आह्वान कर दिया, तब पाकिस्तान की आक्रामक गतिविधि की प्रतिक्रियास्वरुप भारत ने पाकिस्तान की ओर से आक्रमण होने की शांतिपूर्वक प्रतीक्षा करते हुए अपनी पश्चिमी सीमाओं पर वृहत स्तर पर सशस्त्र सैन्य शक्ति एकत्र करनी आरम्भ कर दी थी । युद्ध का आरंभ 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान द्वारा भारतीय वायु सेना के ग्यारह स्टेशनों पर रिक्ति पूर्व हवाई आक्रमण से हुआ ।
भारत-पाकिस्तान के बीच हो रहे सैन्य संघर्ष के परिणामस्वरुप विजयश्री का वरण करने हेतु भारत के कोने-कोने से बुलाए गए सेना के अधिकारियों में से एक थे, फ्लाइट-लेफ्टिनेंट आदित्य विक्रम पेठिया, जिन्हें 5 दिसंबर 1971 को पश्चिमी सैक्टर की सुरक्षा का दायित्व-भार सौंपा गया था । विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त सूचना के आधार पर फ्लाइट-लेफ्टिनेंट आदित्य विक्रम पेठिया को पाकिस्तान के क्रिस्टियन मंडी के इर्द-गिर्द टोह लेने तथा दुश्मन के आर्मर वेहीकल्स को नष्ट करने के लिए लीडर के रूप में नियुक्त किया गया था ।
पाँच दिसंबर की सुबह-सुबह उस समय तक उषा का प्रकाश फैलना आरंभ भी नहीं हुआ था, जिस समय फ्लाइट-लेफ्टिनेंट आदित्य विक्रम पेठिया के फाइटर बॉम्बर स्क्वॉड्रन, मिस्टीयर IVa ( जिसे मोबाइल आर्मरी के नाम से भी जाना जाता है ) ने उड़ान भरी थी । वातावरण में चारों और अंधकार फैला था । कहीं कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था । किंतु, उनके हृदय में स्थित अपनी मातृभूमि के प्रति श्रद्धा और राष्ट्र-रक्षा का उत्साह उनको कर्तव्य-पथ पर निरंतर लक्ष्य की ओर आगे बढ़ा रहा था । अंधकारपूर्ण वातावरण में भी विजयश्री की आशा और विश्वास का प्रकाश उनके मार्ग को आलोकित कर रहा था ।
जिस समय आदित्य विक्रम पेठिया का विमान क्रिस्टियन मंडी पहुँचा, उस समय रेल की पटरियाँ धुँधली-सी दिखाई देने लगी थी । अपने कर्तव्य के अनुरूप आदित्य विक्रम पेठिया की सैनिक-दृष्टि टोह ले ही रही थी कि तभी उन्होंने देखा, एक ट्रेन पन्द्रह टैंक लेकर भावलनगर की ओर जा रही है । हथियारों से लदी हुई ट्रेन देखते ही आदित्य विक्रम पेठिया के सैनिक हृदय में संचित राष्ट्र रक्षा का उत्साह मूर्त रूपाकार ग्रहण करने लगा । संभवतः अब तक शत्रु सेना को भी आदित्य विक्रम पेठिया के फाइटर बॉम्बर स्क्वॉड्रन, मिस्टीयर IVa के विषय में जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए शत्रु सेना ने भारतीय लडाकू विमान, मिस्टीयर पर एंटी एयरक्राफ्ट गन द्वारा जमीन से प्रहार आरम्भ कर दिये थे ।
सामान्य व्यक्ति के रोंगटे खड़े कर देने वाली परिस्थिति उत्पन्न हो चुकी थी । एक ओर स्वयं के ऊपर शत्रु सेना द्वारा हो रहे जमीनी हैवी फायर थे और आँखों के समक्ष शत्रु सेना की हथियारों से लदी हुई ट्रेन थी, तो दूसरी ओर अपने राष्ट्र की रक्षा या आत्मरक्षा का महत्तम गम्भीर प्रश्न था । भारत माँ के वीर सपूत आदित्य विक्रम पेठिया ने जब अपने मातृभूमि के प्रति शत्रु देश की हैवानियत को देखा, तो उनके चित्त में आत्मरक्षा का विषय गौण होकर देश-भक्ति और देश-रक्षा का भाव हिलोरे लेने लगा। परिणामस्वरुप एंटी एयरक्राफ्ट गन से जमीनी हैवी फायर होने के बावजूद उन्होंने अपने प्राणों की चिंता न करते हुए हथियारों से लदी हुई शत्रु की दो रेलगाड़ियाँ ध्वस्त कर दी ।
भारी मात्रा में गोला-बारूद और हथियारों की मारक क्षमता से युक्त फाइटर-बॉम्बर स्क्वॉड्रन, मिस्टीयर (MK41), से आदित्य विक्रम पेठिया जी अपना कर्तव्य निर्वाह करते हुए, शत्रु राष्ट्र की आर्मर वेहिकल्स के रूप में दो रेल रेलगाड़ियों को ध्वस्त कर चुके थे, किंतु एंटी एयरक्राफ्ट से अब भी निरन्तर भारी घातक प्रहार हो रहे थे । आदित्य विक्रम पेठिया ने अपनी वीरता का परिचय देते हुए उनके प्रहार के प्रत्युत्तरस्वरूप उन पर आक्रमण किया, किंतु दुर्योग से उसी समय इनके लड़ाकू विमान मिस्टीयर IVa में एक धमाका हुआ । आदित्य विक्रम पेठिया ने अनुभव किया कि शत्रु के प्रहार से विमान क्षतिग्रस्त हो गया है । देखते ही देखते पूरा विमान धुएँ से भर गया । इधर-उधर कुछ भी दिखाई देना असंभव हो गया । विमान की दशा को देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता था कि कुछ ही क्षणों में विमान भस्म हो सकता है ।
इस विषम परिस्थिति में फ्लाइट-लेफ्टिनेंट आदित्य विक्रम पेठिया के समक्ष दो ही विकल्प थे - एक, शत्रु सेना के हाथों में पड़कर नारकीय यातनाएँ भोगने के बजाय विमान के साथ ही स्वयं भी जलकर भस्म हो जाएँ । दूसरा विकल्प था - पैराशूट इजेक्ट करके विमान से बाहर कूदकर शत्रु सेना के साथ तथा आने वाले विषम परिस्थितियों के साथ संघर्ष करें । आदित्य विक्रम पेठिया की दृष्टि में पहला विकल्प वीरों के लिए शोभायमान नहीं हो सकता था । विषम परिस्थितियों और कठिनाइयों से संघर्ष किए बिना प्राणोत्सर्ग करना कायरता है ; जीवन से पलायन है । अतः उन्होंने दूसरा विकल्प चुना और पैराशूट इजेक्ट कर विमान से छलाँग लगा दी । आदित्य विक्रम पेठिया भली-भाँति जानते थे कि शत्रु देश की भूमि पर उतरने के पश्चात् उनका स्वागत जानलेवा पीड़ादायक प्रहारों-प्रताड़नाओं से होगा, किन्तु भारत माँ के इस वीर सपूत के हृदय में भय के लिए कब अवकाश था!
जिस समय आदित्य विक्रम पेठिया पाकिस्तान की भूमि पर उतरे, शत्रु देश के असंख्य सैनिक शिकारी कुत्तों की भाँति उन पर टूट पड़े । उनकी मार से आदित्य विक्रम पेठिया का अंग प्रत्यंग छलनी हो गया । हड्डियाँ टूटकर टुकड़े-टुकड़े हो गयी । यहाँ तक कि आदित्य विक्रम पेठिया की पसलियाँ भी टूटकर चूर-चूर हो गयी । किंतु, जिस पाकिस्तान के बंजर हृदय में भूलवश सीमा पार करने वाले मछुआरों के प्रति संवेदना की शीतल छाँव कभी नहीं उत्पन्न हुई, अपने राष्ट्र के प्रति निष्ठावान उस शूरवीर के प्रति शत्रु देश के सैनिकों के हृदय में सहानुभूति की आशा कैसे की जा सकती थी, जो शत्रु के घर में घुसकर प्रहार करने का साहस रखता हो ।
राष्ट्र के प्रति अटल निष्ठा के स्वामी आदित्य विक्रम पेठिया को शारीरिक-मानसिक प्रताड़ना देते हुए बंदी बनाकर रावलपिंडी के बंदीगृह में पहुँचा दिया गया । बंदीगृह में भी इन्हें अनेक प्रकार की असह्यय यातनाएँ दी गयी । उन्हें जो भी मिलता - हॉकी स्टिक, रायफल की बट, जूते की नोक, आदि से आदित्य विक्रम पेठिया की निर्मलतापूर्वक इतनी पिटाई की जाती थी कि असह्य पीड़ा सहते-सहते मस्तिष्क अनुभूति शून्य हो जाता था । तब यातना देने वाले की शारीरिक क्रियाओं को आँखें तो देखती थी, परन्तु वेदना-कुंद मस्तिष्क में पीड़ा का एहसास नहीं होता था । ऐसी स्थिति में शत्रु-पक्ष के सैनिक यातना देने के नये-नये तरीके अपनाते थे, यथा - अनेक बार जलती हुई सिगरेट को शरीर के कोमल अंगो पर दागते थे ; सिर को उल्टा करके पानी में डुबाए रखते थे,जब तक कि साँस घुटकर बेचैनी न होने लगे । शारीरिक यातनाओं से उनके मुंह से झाग आने लगा किन्तु किसी ने ध्यान नहीं दिया ।
सत्रह दिसम्बर को बंदीगृह में पहली बार आदित्य विक्रम पेठिया की दो लोगों से भेंट हुई । तत्पश्चात् पच्चीस दिसम्बर को ये लोग बारह की संख्या में एकत्र हो गये । जब उन्होंने यह देखा कि आदित्य विक्रम पेठिया के मुँह से खून आ रहा है, तो जेल अधिकारियों से उन्होंने कहा कि आदित्य विक्रम प्रिया को अस्पताल में भेजा जाए और इनका यथोचित आवश्यक उपचार कराया जाए । पहले तो आदित्य विक्रम पेठिया के स्वास्थ्य पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया था, किन्तु उनके साथियों के आग्रह के पश्चात् आदित्य विक्रम पेठिया को उपचारार्थ अस्पताल में भेज दिया गया । वहाँ पर चिकित्सकों ने परीक्षण करने के पश्चात् यह घोषणा कर दी कि आदित्य विक्रम पेठिया तपेदिक ( टी.बी.) रोग से ग्रस्त है ।
तपेदिक की घोषणा होते ही आदित्य विक्रम को सबसे अलग कर दिया गया । अब वह किसी के साथ उठ-बैठ नहीं सकते थे । उनका खाना-पीना-सोना सब कुछ अलग कर दिया गया था, किन्तु औषधि के नाम पर अभी उन्हें कुछ उपलब्ध नहीं कराया गया था । रोग का कुछ उपचार न होने पर साथियों ने पुनः दबाव बनाया कि यदि इन्हें तपेदिक है, तो इनका उपचार कराइए ; दवाई दीजिए ! तब लगभग दो महीने बाद इन्हें अस्पताल में भेजा गया । अब तक उनके मुँह से खून आना कम हो गया था । इस बार चिकित्सकों ने परीक्षण करने के बाद बताया - "हो सकता है, इन्हें तपेदिक ना हो ।" परन्तु उपचार के नाम पर औषधि आदि अभी भी उपलब्ध नहीं करायी गयी थी ।
इस समयांतराल में इनके चार साथियों ने जेल से भागने का असफल प्रयास भी किया, जिनमें हरि सिंह जी झाला और तीन अन्य थे । चूँकि आदित्य विक्रम पेठिया शारीरिक रूप से अत्यंत दुर्बल हो चुके थे, उनके मुँह से निरन्तर खून आ रहा था, संभवता इसलिए उन्होंने जेल से भागने के प्रयासों में सक्रिय भागीदारी नहीं निभाई थी । किन्तु, बंदीगृह से उनके निकलने की योजनाओं में इनकी पर्याप्त भूमिका थी । जिस रात बंदीगृह से निकलने की योजना थी, उस दिन आदित्य विक्रम जी के साथ उन्होंने अपनी योजना को अंतिम रूप दिया था । निर्जन सुनसान बीहड़ जंगल के किस भाग से गुजरते हुए जाना है ? यह निश्चित हो चुका था, किन्तु, आदित्य विक्रम पेठिया ने जेल से भागने वालों के अतिरिक्त किसी भी साथी से रास्ते की जानकारी साझा नहीं करना सुनिश्चित कर दिया था । आदित्य विक्रम पेठिया जी का कहना था कि मार्ग की जानकारी ना होने पर असह्य यातनाओं से किसी का मुँह खुलने की और संबंधित अवरोध उत्पन्न होने की संभावना ही समाप्त हो जाती है । प्रतिदिन खाने के लिए मिलने वाले भोजन से थोड़ा-थोड़ा बचाकर, यथार्थ शब्दों में कहें, तो भोजन का कुछ अंश चुराकर मार्ग के भोजन की व्यवस्था वे पहले से ही कर चुके थे । सूखी रोटी आदि के रूप में यह ऐसा भोजन था, जिसे अत्यधिक भूख लगने पर पानी में भिगोकर पेट भरा जा सकता था जिससे आवश्यक ऊर्जा मिल सकती थी ।
जेल से भागने की पूरी योजना बन चुकी थी, जिनमें हरि सिंह जी झाला तथा तीन अन्य थे । रात होते-होते सबको उनके कमरे में बंद कर दिया गया । उस रात आदित्य विक्रम पेठिया रात-भर अपने कमरे में सो नहीं पाए । पूरी रात उनके कान हरि सिंह झाला सहित तीन अन्य, जो सभी एक ही कमरे में थे, के कमरे की ओर लगे रहे । प्रत्येक क्षण उन्हें ऐसा प्रतीत होता था, कि अब गोली चलेगी, अब गोली चलेगी ! किन्तु, उस रात अत्यधिक घनघोर बारिश हुई और एक ही कमीज़ होने के कारण हरि सिंह जी झाला तथा उनके तीन अन्य साथियों ने उस रात जेल से निकलने का अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया । जेल से निकलने के लिए उन्होंने जिस खिड़की को खिसका-खिसकाकर उसके नियत स्थान से हटा दिया था, अगले दिन जेल के गार्ड ने उसको देख लिया और कील ठोंककर उसको यथास्थान स्थापित कर दिया । इस प्रकार जेल से निकलने की प्रथम योजना कार्यरूप में परिणित होने से पहले ही असफल हो गयी ।
दूसरा प्रयास जो हरि सिंह जी झाला और एक अन्य का संयुक्त प्रयास था, आदित्य विक्रम पेठिया के भारत लौटने के पश्चात किया गया था । इस बार उनका विचार था कि भारत की ओर भागने पर पकड़े जाने की अधिक संभावना है । अतः जेल से बाहर आकर वे पेशावर की ओर जाने वाली एक यात्री-बस में बैठ गये । उनकी योजना थी, अफगानिस्तान के रास्ते से होकर भारत में प्रवेश कर सकेगे । किन्तु, दुर्भाग्यवश वे दोनों पेशावर में पकड़े गए और इस बार भी भारत लौटने के अपने प्रयास में विफल हो गये ।
शत्रु देश में यातनाएँ भोगते हुए इसी प्रकार समय बीतता रहा । सात मई को आदित्य विक्रम पेठिया को बताया गया कि उन्हें हिंदुस्तान भेजा जा रहा है । 8 मई को जिस दिन उन्हें हिंदुस्तान आना था, सुबह-सुबह बताया गया कि अनुमोदन नहीं होने के कारण उन्हें हिंदुस्तान नहीं भेजा जा रहा है । यद्यपि अब तक उनके मुँह से खून आना कम हो गया था तथापि स्वदेश वापिस नहीं भेजे जाने पर इनके साथियों ने हंगामा कर दिया कि यदि भारत नहीं भेजा जा रहा है, तो इनका आवश्यक उपचार कराया जाए । अंततः आदित्य विक्रम पेठिया को 8 मई 1972 को ही 5 माह 10 दिन 8 घंटे की नारकीय यातनाओं से मुक्ति मिल गयी और इन्हें रावलपिंडी से भारत भेज दिया गया ।
भारत में आने पर योग्य डॉक्टर्स की टीम द्वारा उनका परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि उनकी पसलियाँ टूटी है । चोट के कारण बाँए फेफड़े का ऊपरी भाग क्षतिग्रस्त हो चुका है तथा कॉलर-बोन भी टूटा हुआ है । यद्यपि अस्पताल में तीन महीने तक चिकित्सकों की देखरेख के पश्चात् आदित्य विक्रम पेठिया के स्वास्थ्य में पर्याप्त सुधार हुआ और तत्पश्चात वे दिल्ली आ गए तथापि एक बार टूट चुकी हड्डियाँ-पसलियाँ पुनः उसी अवस्था में आ जाएँ, जिस अवस्था में टूटने से पहले थी, यह असंभव है।
लगभग एक वर्ष पश्चात् आदित्य विक्रम पेठिया अपने मूल निवास स्थान मध्य प्रदेश लौट आये । अपने अब तक के जीवन-काल में उनको समाज के साथ सीधा संबंध स्थापित करने का अवसर ही नहीं मिला था । घर लौटकर उन्होंने समाज के बीच रहकर समाज के साथ निकट संपर्क रखते हुए समाज का यथार्थ रूप देखा और अनुभव किया कि जिस प्रकार शरीर के छोटे-छोटे रोगों का समय पर उपचार न करने पर विकराल रूप धारण कर लेते हैं और शरीर को दुर्बल बना देते हैं, ठीक उसी प्रकार हमारा देश केवल बाहरी सीमाओं की ओर से ही असुरक्षित नहीं है, बल्कि यातायात व्यवस्था (रॉन्ग साइड चलना, दो लेन की सड़क पर चार लेन वाहन चलाना, अनुचित स्थान पर गाड़ी पार्क करना आदि ) तथा भ्रष्टाचार (किसी भी कार्य का रिश्वत के बिना संपन्न ना हो पाना आदि) जैसे छोटे-छोटे रोग देश को आंतरिक दृष्टि से दुर्बल बना रहे हैं, जिनका उपचार अत्यंत आवश्यक है । आदित्य विक्रम पेठिया जी के विचार से समाज में आंतरिक व्यवस्था बनाने के लिए सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों को नियुक्त किया जा सकता है, जिसके सकारात्मक परिणाम आने की पूरी-पूरी संभावना की जा सकती हैं । इसके साथ ही उनका विचार है कि देश के प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम दो वर्ष सेना में रहकर देश की सेवा करना अनिवार्य किया जाए, ताकि वह अनुशासित जीवन जीना सीख सके और अनुशासन का महत्व समझ सके ।
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