Sant Ji Banaam 512 books and stories free download online pdf in Hindi

संत जी बनाम 512

संत जी बनाम 512

मन्नू और शन्नो जब गाड़ी में बैठने के लिए घर से बाहर निकले , उस समय उनकी आँखों में पानी बरस रहा था । उनकी ताई शान्ति अभी तक मुख्य द्वार के बाहर बैठी हुई तड़प-तड़पकर रो रही थी । मन्नू और शन्नो ने ताई की ओर एक बार घृणा की दृष्टि से देखा और फिर मुँह फेरकर गाड़ी में जा बैठे । ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उन्हें उनके ताऊ को हत्यारा प्रमाणित करने वाले प्रमाणों पर विश्वास हो चला था । अब उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य अपनी मां की आत्मा की शांति के लिए उसके हत्यारों को मृत्युदंड दिलाना बन गया था । इस लक्ष्य के प्रति अपने संकल्प को और अधिक दृढ़ बनाने के लिए मन्नु ने घोषणा की कि "जब तक मैं अपनी माँ के हत्यारे को मृत्युदंड नहीं दिला देता , तब तक बिस्तर पर नहीं सोऊँगा !" उसके निर्णय की सराहना करते हुए नाना ने उससे कहा -

"शाबाश बेटा , उर्मिला के हत्यारे को दंड दिलाने का प्रण लेकर तूने जिस साहस और उत्साह का परिचय दिया है , उसे देखकर मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया है ! परंतु , बेटा न्याय भीख में नहीं मिलता , रुपया खर्च करके खरीदना पड़ता है !" यह कहकर संत जी मौन हो गए और मन्नू के उत्तर की प्रतीक्षा में उसकी ओर निर्निमेष देखने लगे । मन्नु उनके शब्दों का आंशिक अर्थ ही समझ सका था , इसलिए वह प्रश्नात्मक दृष्टि से उनकी ओर देखने लगा । संत जी उसकी दृष्टि का आशय समझ कर पुनः बोलें -

"न्याय पाने के लिए मोटा पैसा चाहिए, जो तुम्हारे पास नहीं है ! पैतृक संपत्ति बेचकर तुम्हें पर्याप्त पैसा मिल सकता है !" संत जी सरल संयत शब्दों में सुझाव देकर तत्क्षण वहाँ से उठकर चले गये । उनके शब्द-जाल में फँसा हुआ मन्नु वहीं अकेला बैठा रह गया । कुछ घंटों के पश्चात् जब नाना का मन्नू से पुनः सामना हुआ , तब भी उनके होठों पर वही प्रश्न था -

"तो , क्या सोचा तुमने ?"

"नाना जी ! मैं अपनी माँ के हत्यारे के गले में फाँसी का फंदा देखना चाहता हूँ ! उसके लिए मुझे जो भी करना पड़ेगा , मैं सब कुछ करने के लिए तैयार हूँ ।" मन्नू ने वही उत्तर दिया जो संत जी चाहते थे । उसके उत्तर से संतुष्ट होकर नाना ने उसका उत्साहवर्द्धन भी किया , ताकि रामसहाय और उसके परिवार के प्रति मन्नु-शन्नो के हृदय में उपजी हुई कड़वाहट सुरक्षित रह सके ।

अगले कुछ दिनों में सन्त जी ने उसकी सारी पैतृक संपत्ति को बेचने के लिए ग्राहक ढूँढना आरंभ कर दिया । उनकी तलाश शीघ्र ही पूरी हो गयी और उन्होंने गाँव के कुछ लोगों को साथ लेकर उसकी संपूर्ण पैतृक संपत्ति बेच डाली । सारी पैतृक संपत्ति बेचने के पश्चात् मन्नू का चित्त शांत था , क्योंकि उसको विश्वास था कि उस संपत्ति के मूल्य पर ही वह अपनी माँ के हत्यारे को दंड दिला सकता है ।

दूसरी ओर , यद्यपि राम सहाय प्रत्यक्षतः यही कहता था कि उसने उर्मिला की हत्या नहीं की , इसलिए उसे कुछ नहीं होगा । परंतु , अपने बचाव हेतु वकीलों का व्यव-भार वहन करने के लिए उसे भी अपनी पैतृक संपत्ति का कुछ अंश बेचना पड़ा ।

छह वर्ष तक न्याय की आशा लिए दोनों पक्ष न्यायालय में आमने-सामने खड़े होकर घृणा का विष-वमन करते रहे । दोनों पक्षों ने जोरदार पैरवी की और पैतृक संपत्ति बेच-बेचकर पानी की तरह पैसा बहाया । न्यायालय का अंतिम निर्णय आने के क्षण तक राम सहाय के परिवार को पूरा विश्वास था कि ईश्वर के घर देर है , अंधेर नहीं ! वह इतना निष्ठुर नहीं हो सकता कि किसी अन्य के द्वारा किए गए जघन्य अपराध का दंड किसी निर्दोष को दिला दे ।!" किंतु तीन वर्ष पश्चात् रामसहाय का यह विश्वास उस समय ध्वस्त हो गया , जब न्यायालय ने उर्मिला की हत्या के अपराध में रामसहाय तथा उसके दो अन्य साथियों संजू पंडित तथा मनोज पंडित को आजीवन कारावास का दंड सुनाया गया ।

कोर्ट का निर्णय आते ही संत जी के घर दिवाली मनाई गयी । मन्नू और शन्नो को इस बात का संतोष था कि उनकी माँ के हत्यारों को दंड मिल चुका है । किंतु , ना जाने क्यों ? उनका चित्त आज अत्यधिक अशांत था । उनकी मनोव्यथा निरंतर बढ़ती जा रही थी । आज माँ का अभाव उन दोनों को कुछ अधिक खल रहा था । उधर , पति को आजीवन कारावास का दंड मिलने का समाचार पाते ही रामसहाय की पत्नी न्यायालय परिसर में ही अचेत होकर गिर पड़ी । चेतना लौटने पर भी बार-बार उसके मुख से यही वाक्य निसृत हो रहेओ थे कि अपने पति पर उसको पूरा विश्वास है , उसका पति अपने छोटे भाई की विधवा पत्नी की हत्या नहीं कर सकता ! किंतु वह समाज को इस बात का विश्वास कैसे दिलाएगी कि उसका पति हत्यारा नहीं है , जबकि कोर्ट ने उसको हत्यारा सिद्ध कर दिया है । राम सहाय के बेटे मुकुल ने आत्मविश्वास के साथ अपने माता-पिता को आश्वस्त किया -

"पापा , मैं जानता हूँ , आप किसी की हत्या नहीं कर सकते ! चाची जी की तो कदापि नहीं ! आप शन्नो दीदी और मन्नू को इतना अधिक स्नेह करते हो , जितना चाची जी करती थी । किसी भी परिस्थिति में नहीं कर सकते करके उन्हें आना नहीं बना सकते आप कोर्ट के निर्णय की चिंता ना करें ! मैंने वकील से बात कर ली है , हम कोर्ट के इस निर्णय के विरुद्ध हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे , वहाँ हमें न्याय अवश्य मिलेगा !" उसके शब्दों का उसकी माँ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा । उनकी चिंता यथावत् बनी रही । उनकी आँखें मूक वाणी में कह रही थी -

"अब कुछ नहीं हो सकता ! तुम मुझे झूठा आश्वासन दे रहे हो ?" लेकिन पुलिस-कस्टड़ी में कोर्ट से बाहर आते हुए पिता ने धैर्य और साहस के साथ मुस्कुराकर उसके कंधे को थपथपाते हुए कहा -

"ईश्वर के घर देर है , अंधेर नहीं ! सबके सामने सच्चाई लाने के लिए हम अपनी अंतिम साँस तक संघर्ष करते रहेंगे !"

बेटे को धैर्य और साहस की प्रेरणा देकर राम सहाय पुलिसकर्मियों के साथ पुलिस की जीप में बैठ गया । उनकी पत्नी अपने पति को जाते हुए निराश दृष्टि से निर्निमेष तब तक देखती रही , जब तक वह आँखों से ओझल नहीं हो गये । न्यायालय के निर्णय की चिंता में मुकुल पिछली रात सो नहीं पाया था , इसलिए घर लौटते ही वह गहरी नींद के आगोश में समा गया । जब उसकी नींद टूटी , वह माँ के कमरे में गया । कमरा अंदर से बंद था । उसने सोचा , संभवतः पिछली रात जागते रहने के कारण माँ भी गहरी नींद में सो रही होगी । उसने माँ को ऊँचे स्वर में पुकारा , परंतु अंदर से किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई । अनिष्ट की आशंका से मुकुल का हृदय बैठने लगा । वह और अधिक ऊँचे स्वर में चिल्लाने लगा -

"माँ ! माँ ! दरवाजा खोलो , माँ !" लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली । अब तक मुकुल का स्वर सुनकर घर के बाहर पड़ोसियों की भीड़ जुट गयी थी । अनिष्ट की आशंका से आहत मुकुल ने पड़ोसियों की सहायता से तत्क्षण कमरे का दरवाजा तोड़ दिया और शीघ्रतापूर्वक माँ के बिस्तर की ओर दौड़ा । माँ बिस्तर पर नहीं थी । बिस्तर खाली देखकर मुकुल ने दृष्टि इधर-उधर , ऊपर-नीचे दौड़ायी , तो सिर के ऊपर छत की ओर देखते ही निस्तेज हो गया । उसकी माँ की कृष काया पंखे से लटक कर झूल रही थी । माँ की मृत देह को देखकर मुकुल ने बस इतना ही कहा -

"माँ , तुझे अपने बेटे पर भरोसा नहीं था क्या ? मैंने आपको वचन दिया था माँ , पापा को निर्दोष सिद्ध करके जल्दी ही घर ले आऊँगा !" मुकुल ने माँ की मृत्यु का समाचार पिता तक पहुँचाया , तो उनके मुख से केवल यह शब्द निकले -

"वह इस अपमान को सहन नहीं कर सकी और मौत को गले लगा लिया !"

राम सहाय ने जेल प्रशासन से प्रार्थना की कि उसको पत्नी का अंतिम संस्कार करने की अनुमति प्रदान की जाए जेल प्रशासन ने सहज ही उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली । जेल प्रशासन की अनुमति लेकर पुलिस की हिरासत में जब रामसहाय अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार करने के लिए गाँव में पहुँचे , उन्होंने अनुभव किया कि गाँव वालों के हृदय में उनके प्रति अब पहले जैसा सम्मान और विश्वास नहीं रह गया है । पत्नी को अग्नि देते समय उनकी पीड़ा इन शब्दों का आश्रय लेकर अभिव्यक्त हुई -

"यह तो होना ही था । मैं जानता था , तू इस अपमान को सहन नहीं कर सकेगी और मौत को गले लगा लेगी ! पत्नी को अग्नि देकर राम सहाय बेटे की पीठ थपथपाते हुए बोले -

"मेरा बेटा बहुत हिम्मत वाला है ! वह कभी नहीं हारेगा , भले ही उसकी माँ हार जाए या पिता हार जाए !"

अंतिम संस्कार के पश्चात् राम सहाय पुनः जेल में चले गए । श्मशान स्थल से लौटकर मुकुल बस एक ही बात सोचता रहा कि आठ वर्ष पहले जिस घर में दिन-रात चहल-पहल रहती थी , आज वह उस घर में अकेला है । पूरी रात उसे नींद नहीं आयी। रात-भर भी उसी विषय पर विचार करता रहा । प्रातः उठकर वह समाचार-पत्र पढ़ने के लिए गाँव के पंचायतघर पर जा बैठा । समाचार-पत्र का शहर की सूचना वाला पृष्ठ हाथ में आते ही उसकी दृष्टि एक शीर्षक पंक्ति 'छोटे भाई की पत्नी के हत्यारे कैदी नंबर 512 ने की आत्महत्या' पर पड़ गयी । इस शीर्षक को पढ़ने के पश्चात् मुकुल के मनःमस्तिष्क में बार-बार एक ही विचार ; एक ही प्रश्न स्वयं उत्तर बनकर कौंध रहा था -

"तो पापा भी हार गए थे ! इसीलिए उन्होंने जेल जाने से पहले मुझसे कहा था - "मेरा बेटा बहुत हिम्मत वाला है ! उसका भी नहीं हारेगा , भले ही उसकी माँ और...! !" पिता द्वारा कहे गये अंतिम शब्दों के विषय में सोचते-सोचते मुकुल स्वगत संभाषण करने लगा -

"पापा ! आपका बेटा बहुत हिम्मत वाला है । यह कभी नहीं हारेगा ! कभी नहीं हारेगा ! कभी नहीं !"

उधर माँ की मृत्यु के पश्चात् जब मन्नु और शन्नो नाना-मामा के घर आये , तो घर का सारा कार्यभार शन्नो के कंधों पर आ पड़ा था और पशुओं की देखभाल करने का काम मन्नू के कंधों पर । उह दिन घर के एक-एक सदस्य को नाश्ता कराने के पश्चात् शन्नो जब चाय का कप लेकर बैठी, उसकी दृष्टि भी समाचार पत्र के उसे शीर्षक पर पड़ी , जिसमें फोटो के साथ लिखा था - 'कैदी नंबर 512 ने की आत्महत्या' । चाय का कप अलग रखकर शन्नो ने उस समाचार को आरंभ से अन्त तक जल्दी-जल्दी कई बार पढ़ पढ़ डाला । तब तक पशुओं के चारे-पानी का सारा कार्य संपन्न करके मन्नू भी वहाँ पर आ गया था । शन्नो ने आँखों से संकेत करके मन्नू को वह समाचार दिखाया , तो मन्नू ने भी वह समाचार जल्दी-जल्दी आद्यंत पढ़ डाला । समाचार पढ़कर मन्नू ने शन्नो की आँखों में देखा , दोनों की आँखें कह रही थी कि अपने ताऊ की जीवनांत से उन्हें लेशमात्र भी प्रसन्नता नहीं हुई है । कुछ क्षणों तक आँखों की मूक भाषा में दोनों भाई-बहन अपने भावों का आदान-प्रदान करते रहे । तभी नानी ने शब्दों को पुकारा , तो यथाशीघ्र वह रसोईघर में चली गयी और मन्नू मर्दानी बैठक की ओर , जो घर के बाहरी हिस्से में बनी हुई थी ।

अपने ताऊ जी द्वारा आत्महत्या करने का समाचार पढ़कर मन्नू का चित्त बहुत उदास हो गया था । वह अपनी व्यथा को किसी के साथ साझा करना चाहता था , लेकिन किसके साथ करे ? नानाजी के साथ कुछ देर बातें करके शायद चित्त कुछ शांत हो जाए , मन्नू यह सोचते हुए धीमी गति से बैठक की ओर चला जा रहा था । बैठक में ठहाके का स्वर सुनकर अचानक उसके कदम वहीं रुक गए और वह दीवार से सटकर खड़ा हो गया और खिड़की से झाँकते हुए अंदर की बातें सुनने का प्रयास करने वाला लगा । मन्नू ने देखा , संत जी अपने दोनों बेटों के साथ शराब पीते हुए उसके परिवार के विषय में बातें कर रहे थे कि कैसे षड्यंत्र रचकर उन्होंने उर्मिला की हत्या का आरोप राम सहाय पर लगा दिया और एक तीर से दो शिकार करने का मुहावरा अपने पक्ष में सिद्ध कर लिया । उनकी बातें सुनकर मन्नू को चक्कर आने लगा । वह दीवार का सहारा लेकर धरती पर बैठ गया उसके कानों में अब भी नाना-मामा के शब्दों के साथ ठहाकों का स्वर गूँज रहा था -

"एक ही बार में सब का सफाया हो गया और हम पर किसी को शक भी नहीं हुआ ! यही होती है नीति , कूटनीति और राजनीति हा-हा-हा !" मन्नू को दीवार का अवलंब लेकर धरती पर बैठे हुए देखकर नानी दौड़कर आयी और उसके अस्वस्थ होने की सूचना यथाशीघ्र बैठक में बैठे हुए लोगों को दी । तब तक मन्नू ने स्वयं को संभाल लिया था । उसने स्वयं सहाय होते हुए कहा -

"पता नहीं क्यों ? चक्कर सा गया था ! चोट लगने के डर से दीवार का सहारा लेकर बैठ गया था , अब ठीक हूँ मैं !" यह कहता हुआ मन्नू बैठक के अंदर आकर चारपाई पर लेट गया । लगभग एक घंटा पश्चात् वह किसी को कुछ बताए बिना वहाँ से उठकर चला गया । शीघ्र वापिस नहीं लौटने पर मन्नू की खोज आरंभ हुई । इधर-उधर हर जगह देखा , कहीं मन्नू नहीं मिला । शन्नो जानती थी , अवश्य ही मन्नू अपने पैतृक गाँव में गया होगा । किंतु , उसने किसी से कुछ नहीं कहा । संत जी का भी यही अनुमान था , इससे मन्नू की नानी को उसकी चिंता सता रही थी । उनकी चिंता को दूर करते हुए संत जी ने स्पष्ट कहा -

"अपने ताऊ की अर्थी को कंधा देने के लिए गया होगा ! मैं तो तभी समझ गया था , जब उसको सुबह चक्कर आ रहे थे ! नाना के शब्द सुनकर शन्नो के हृदय में अंजाना-सा भय उत्पन्न हो गया था , पर वह शांत खड़ी रही और सामान्य दिखने का प्रयास करने लगी ।

जिस समय मन्नू अपने पैतृक गाँव में पहुँचा , राम सहाय के दाह-संस्कार की तैयारियाँ चल रही थी । अपने माता-पिता की अकाल मृत्यु पर मुकुल की आँखों से आँसू की एक भी बूँद नहीं टपकी थी , किंतु मनु को देखते ही मुकुल की आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी । उसने दौड़कर मन्नू को बाहों में भरकर कहा -

"मन्नू ! पापा ने चाची की हत्या नहीं की थी ! उन्हें तो पता भी नहीं , किसने ? क्यों ? उनकी ...!"

"मुझे पता है ! सब कुछ पता है मुझे !" मन्नू ने मुकुल का वाक्य बीच में काटते हुए कहा ।

"क्या ?" मुकुल ने अपनी बाहों की पकड़ ढीली करके आश्चर्य से उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा ।

"हाँ , भैया ! मुझे सब कुछ पता है ! पहले कुछ नहीं पता था , पर अब ...! पहले ताऊ जी का अंतिम संस्कार कर लें , उसके बाद हम मिलकर उन हत्यारों को सजा दिलाएँगे , जिन्होंने हमारे घर को बर्बाद किया है !"

राम सहाय का अंतिम संस्कार संपन्न करने के पश्चात् मन्नू ने मुकुल को संत जी और उनके बेटों के बीच होने वाली सारी बातें बताई , जो उसने बैठक के बाहर खड़े होकर सुनी थी । मन्नू की बातें सुनकर क्रोध से मुकुल की आँखें लाल हो गयी ; साँसें तेज चलने लगी । उसने मन्नू से कहा -

"मन्नू ! सन्त जी केवल तेरी माँका हत्यारा नहीं है , मेरे माता-पिता का भी हत्यारा है ! इन छह सालों में हम कोर्ट-कचहरी की बहुत-सी बातें सीख चुके हैं ! हमारे परिवार के तीन लोगों की हत्याओं का मास्टरमाइंड संत जी अब बच नहीं सकेगा ! चल , मेरे साथ !" मन्नू को अपने साथ लेकर मुकुल गाँव के पंचायतघर पहुँचा और गाँव के प्रमुख लोगों को वहाँ पर एकत्र किया । मन्नू ने एक बार पुनः वे सारी बातें उनके समक्ष दोहरायी , जो मुकुल को बतायी थी । मन्नू की बातें सुनकर प्रधान सहित गाँव के सभी प्रमुख लोगों ने मुकुल और मन्नू का समर्थन करते हुए एक स्वर में कहा -

फॉर्मूला इस गाँव के बहुत ही राम सहाय को फँसाने वाले उर्मिला के हत्यारे को हम सब मिलकर कानून से भी दंडित कराएँगे उस समाज-बिरादरी से भी !"

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