ज्योतिषियों का धुप्पल-राग
बरसात आते ही जैसे डामरवाली सड़क के नीचे दबकर बैठा भ्रष्टाचार रूपी सर्प बाहर आ जाता है, जैसे मेंढक टकटराने लगते हैं, जैसे आकाश में बिजली कड़कड़ाने लगती है, ठीक उसी तरह चुनाव आते ही बहुत-से निष्क्रिय लोग 'भयानक टाइप' से सक्रिय हो जाते हैं। ऐसी ही आत्माओं में, ज्योतिषियों की आत्माएं भी शरीक रहती हैं। उधर चुनाव की घोषणा हुई नहीं कि इधर ज्योतिष महाराज की कुंडलिनी जागृत हो जाती है। वे रह-रहकर दरवज्जे की ओर निहारते हैं कि अब आया कोई बटुक, आ टपका कोई जजमान, जो आकर पूछेगा कि 'तो महाराज, मेरी कुंडली में जीत का योग है कि नहीं।' बस इतना सुनते ही ज्योतिष महाराज फेंकना शुरू कर देंगे। मंगल में केतु है, राहू के साथ शनि है, बुध के साथ गुरु बैठा है... इसी तरह की अजीबोगरीब आंकड़ों की जुगलबंदी।
चुनाव के समय कुकुरमुत्ते की तरह उग आने वाले अनेक ज्योतिषी दूकान सजाकर बैठ जाते हैं। किसको टिकट मिलेगी और कौन हारेगा-जीतेगा का धुप्पल-राग अलाप-अलाप करक अपने साल भर खाने का बंदोबस्त कर लेते हैं। लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का, पंडितों की, ज्योतिषियों की निकल पड़ती है। चमचमाती कारों में सवार डरे-सहमे लोग पधारते हैं, और जनता पर भरोसा करने की बजाय ज्योतिषियों पर विश्वास करके रणनीति बनाते हैं। किसे पलटाना है, पता चलता है कि जिसने विजय यज्ञ करवाया वही धंस गया। जनता ने चूना लगा दिया। महारानेता ज्योतिषियों के पास जाता है, चंदा मांगने सेठों के पास जाता है, लेकिन जनता के पास ऐन वोटिंग के आसपास पहुंचता है। इसलिए कई बार ऐसे लोगों का रामनाम सत्य हो जाता है।
ऐसे ही ज्योतिषाचार्य स्वामी त्रिखंडानंद का दरबार सजा है। वे ध्यान करने की नौटंकी कर रहे हैं और उनके 'पैड' चमचे हाथ जोड़े बैठे हैं। नेता बरसातीलाल टपकते हैं। त्रिखंडानंद के चरणों पर लेट जाते हैं। नेता के चमचे भी नेता का अनुगमन करते हैं। ''
कहो वत्स! कैसे आना हुआ!'' त्रिखंडानंद पूछते हैं।''
आप तो जानते हैं स्वामी जी कि मैं चुनाव लड़ हूँ । हाथ देखकर बताइए कि जीत का योग है कि नहीं ?'' त्रिखंडानंद हाथ देखते हैं और फरमाते हैं- ''जजमान, मुझे तो लगता है इस बार तुम जीत सकते हो ।''
त्रिखंडानंद की बात सुनकर बरसातीलाल जोर से चीख पड़ते हैं- ''अरे-अरे महाराज, ये कैसी भविष्यवाणी फेंक रहे हो आप! जीत सकते हो का क्या मतबल? आप ये कहना चाहते हैं कि मैं हार भी सकता हूँ ? आप तो डरा रहे है महाराज, बचा लो।मरण मात्र का प्रयोग करो, कोई यज्ञ करो महाराज!''
लेकिन वत्स, तुमने तो खुद कहा था कि महाराज हाथ देखकर बताओ कि जीत का योग है कि नहीं और अब बता रहा हूं तो घबरा रहे हो ?''
आपकी बात सौ फीसदी सच है महाराज, मुझे शत्रुओं ने संकेत दिया था कि इस बार मेरी दुर्गति हो सकती है, मुझे टिकट मिलने के बाद पार्टी के कुछ लोगों की छाती पर सांप लोट रहा है। इसलिएमुझे धकियाना चाहते हैं।''
लेकिन चिंता मत करो बच्चा, विधान सभा हार गए तो क्या, तुम्हे लोकसभा की टिकट मिल सकती है.'' त्रिखंडाचार्य ने दांव खेला ''
अब देखो, उनकी बात सही निकली। लोकसभा की टिकट मिलने की भविष्यवाणी आप भी करने लगे। महाराज, मुझे प्रदेश में ही रहना है। यहाँ खाने-पीने के अच्छे अवसर हैं. कुछ भी करो। मैं आपका पुराना सेवक हूँ । जो चाहोगे, इच्छा पूरी कर दूंगा।''
बरसातीलाल की धाराप्रवाह बातें सुनकर त्रिखंडानंद मुसकराए- ''बटुक, चिंता मत करो। अब यहां बैठे-बैठे हृदय परिवर्तन यज्ञ करेंगे और देख लेना, जनता की मति भ्रष्ट हो जाएगी। और तुवो तुम्हारा ही बटन दबा देगी । तुम कहो तो पार्टी में तुम्हारे किसी शत्रु के लिए कोई यज्ञ करूं?''
बरसातीलाल सोचने लगे। फिर बोले- ''महाराज, लटकनलाल मुझे निबटने में लगा है। ऐसा कुछ करो कि वो हार जाये, उसके लाखों रुपए बर्बाद हों तो मजा आ जाए।''
त्रिखंडानंद ने आंखें मूंद ली। गोया देख रहे हों कैसे बर्बाद करेंगे लटकनलाल को। फिर बोले- ''हूंऽ... तुम पर हार की गाज गिरने वाली थी, उसे अब मैं लटकनलाल पर लटका देता हूं। एक यज्ञ करना पड़ेगा।''
जैसी आज्ञा महाराज, आपने मेरी महंती बरकरार रखी। मैं यज्ञ का बंदोबस्त करता हूं।'' बरसातीलाल खुश हो कर लौट जाते हैं.
जिस तरह शराबी के होठों से शराब नहीं छूटती, ठीक उसी तरह नेताओं से ज्योतिषी नहीं छूटते, तंत्र-मंत्र नहीं छूटता और हर यह छोटी-सी कलम चुनाव आते ही पाखंड का खादी वस्त्र धारण करने वाले चेहरे के भीतर के चेहरे को उजागर करने के लिए कागद कारे करने में भिड़ जाती है।