छूने दो आसमान
----------सुमन शर्मा
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छूने दो आसमान ---
नीले चमकीले आसमान में, सुन्दर नगों की भाँती सितारे , यहाँ -वहाँ अभी भी , छिटके हुए थे। मुर्गे की बाँग, सुबह होने का सन्देश ज़रूर दे रही थी।
यशोदा का परिवार, अपने घर के कच्चे आँगन में ,खुले आकाश के नीचे, गहरी नींद में सो रहा था। गली में लगे पीपल के पेड़ पर कोयल भी,प्रभात की लाली का स्वागत करने के लिए , कूकने लगी थी। घर के आँगन में तोते का पिंजरा था ,तोता भी पंख फड़फड़ा कर , अपनी सीमित सी सीमाओं में फुदकने लगा था ।
पिछले दिन की थकान,अभी उतरी नहीं थी, कि यशोदा के लिए एक नए दिन की शुरुवात हो गई।
उसने हाथ आगे बढ़ा कर, पास की चारपाई पर सो रही, 'पूजा' को हिलाया और बोली ,'पूजा ओ पूजा उठ सवेरा हो गया है।'
पूजा ने करवट बदल ली और सिर तक चादर ढकते हुए बोली , "अभी तो अँधेरा है, माँ !थोड़ी देर और सोने दो ना। '
"नहीं बेटा, हम सोये रहे, तो हमारे घर के सदस्यों की पूरी की पूरी दिनचर्या ही बिगड़ जाएगी।" तेरे बाबूजी का सात बजे रेलवे फ़ाटक पर पहुँचना बहुत ज़रूरी है। फाटक का सिग्नल नहीं दिया तो रेलवे दुर्घटना हो जाएगी। तेरे चाचा समय पर नौकरी पर नहीं पहुंचे, तो सेठ नौकरी से निकाल देगा। '
पूजा, झुंझलाकर उठ जाती है। वह यशोदा की ओर हाथ बढ़ा कर कहती है,' लाओ ,दो मुझे दूध की डोलची और पैसे।
वह रोज की भाँति दूध लेने चल देती है। यशोदा , तब तक रसोई घर में चौका चूल्हा तैयार करने लगती है।
पूजा दूध लेकर घर लौट आती है और बाहर जाकर पीपल के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठ जाती है। गॉंव की गलियों से निकल कर छोटी -छोटी पगडंडियों से ,मुख्य सड़क की और जाती हुई ,स्कूल के बच्चों की टोलियाँ। बस पूजा तो अपलक उन्हें देखती रह जाती थी।
सड़क के दूसरे किनारे पर बना, स्कूल सात बजे लग जाता है। इसके बाद पूजा की हम उम्र का कोई बच्चा गली में नहीं दीखता था। पूजा अपने दो साल के भाई "हरि' को गोद नें लटकाए यहाँ -वहाँ घूमती फिरती थी। माँ को ढेर सा घर का काम करना होता था। पूजा को खीज आती थी, जरा गोदी से नीचे उतारो और हरि रोने लगता था।
हरि सो जाता तो माँ पूजा को घर के काम में हाथ बंटाने को बुला लेती।
दोपहर को एक बजे वह फिर चबूतरे पर जा बैठती। स्कूल से वापिस आते छात्रों की टोलियों को वह देखती। हँसते खिलखिलाते आपस बतियाते बच्चे।
उसके घर आँगन में ,पिंजरे में बंद तोते और पूजा में कितनी समानता थी। तोता भी, आकाश में उड़ते पक्षियों को देखकर , केवल अपने पंख फड़फड़ा कर रह जाता था और पूजा भी, बस खुली आँखों से स्कूल जाने का सपना ही देखती रहती थी।
एक बार माँ-बाबूजी के सामने उसने स्कूल जाने की इच्छा प्रकट की थी। दोनों ने उसे समझा बुझा दिया, कि लडकियों का स्कूल जाना व्यर्थ है ,उन्हें तो घर का चौका -चूल्हा सम्भालना पड़ता है ,भला पढ़ने लिखने में समय व्यर्थ करने से क्या लाभ।
छुट्टियों में आभा की मौसी शहर से आईं थी ,उनकी दोनों बेटियाँ ,स्कूल जाती हैं। आभा मौसी ने जब पूजा को स्कूल भेजने की वकालत , पूजा के बाबूजी से की थी, तो बाबूजी कैसे बिगड़े थे। आभा मौसी जब अपने घर लौट गई थी तो, अम्मा के साथ बाबूजी की कितनी लम्बी, बहस छिड़ गई थी। कितनी खरीखोटी सुनाई थी ,बाबूजी ने अम्मा को , 'तेरी बहिन क्या यहॉँ मेरी बेटी को बिगाड़ने आती है ? वह स्कूल चली जाएगी, तो हरि की देख भाल कौन करेगा , घर का काम कौन सँभालेगा ? वर्दी और क़िताबों के लिए पैसे कंहाँ से आयेंगे। ' माँ ने जब दबी ज़बान में कहा था, कि और बच्चे भी तो स्कूल जाते हैं। तब बाबूजी कितना लाल -पीला हो गए थे। "मुझ से ज़बान लड़ाती है। लड़की को इसलिए पढाना चाहती है कि , वह मर्दों के बराबर खड़ी होकर उनके मुंह लगे । खबरदार ! इस घर में जो किसी ने पढ़ने का नाम लिया। "
एक शाम पूजा की माँ अपने छोटे बेटे को सुलाते सुलाते खुद भी गहरी नींद में सो गई। पूजा ने दबे पाँव घर का दरवाज़ा खोला और पड़ोस में अपनी हमउम्र इंदु के पास पहुँच गई।
उसके चेहरे पर असीम जिज्ञासा के भाव दिख रहे थे ,वह इंदु के समक्ष ऐसे खड़ी हो गई, मानो कोई साहूकार से, रुपया उधार मांगने आया हो।
इंदु ने पूजा से पूछा, "क्या बात है पूजा तेरा चेहरा ऐसा क्यों उतरा है ?" पूजा ने ,दयनीय सूरत बनाते हुए इंदु से कहा, "तनिक अपने बस्ते में से किताबें निकाल कर तो दिखाओ, कैसी होती हैं ?" इंदु के चेहरे पर कुछ ऐसे भाव आ गए , मानो उसके पास कुबेर का धन हो। वह इतराती हुए बोली , "अभी लाती हूँ, लेकिन ध्यान से देखना कहीं फट न जाएँ।"
इंदु एक- एक पुस्तक पूजा के सामने रखती रही. पूजा जो भी किताब हाथ में लेती उसके पृष्ठ उलट पलट कर देखती और ठगी सी रह जाती।
वह किताबों के रंगीन संसार में खोई हुई थी ,कि यशोदा उसे ढूंढ़ती हुई आ गई। यशोदा ने उसके गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा जड़ दिया। वह पूजा को फटकारते हुए बोली ,जल्दी घर चल ,तेरे बाबूजी को पता चल गया, तो मेरी चमड़ी उधेड़ देंगे।
पूजा अपनी आधी अधूरी इच्छा को मन में दबाये माँ के साथ घर चली गई। क़िताबों का जादू उसके दिमाग में छा चुका था। वह माँ के काम में हाथ बटाने लगी , उसने डरते- डरते माँ से फिर सवाल कर लिया , "माँ बाबूजी मुझे स्कूल क्यों नहीं जाने देते। "
यशोदा ने बेलन हाथ में उठा कर कहा ,"अभी तेरी ठुकाई करती हूँ ,बहुत जबान चलने लगी है तेरी। "
तभी सरकारी सर्वेक्षण करती हुई, एक टीम वहां पहुँच गई। वह न केवल ऐसे बच्चों की लिस्ट बना रही थी, जो स्कूल नहीं जाते, अपितु उनके स्कूल न जाने का कारण भी लिख रही थी।
यशोदा ने उन्हें दरवाजे से भीतर नहीं घुसने दिया और कह दिया कल सुबह जब पूजा के बाबूजी घर पर हों तब आना।
शाम को पूजा के बाबूजी जब दफ्तर से घर आए,यशोदा ने उन्हें सारी बात बताई। बाबूजी ने नाक फूला कर कहा ,"आने दो कल उन्हें, मैं उनकी अच्छी खबर लूँगा। ये हमारा घर का मामला है ,सरकार कौन होती है, इसमे टाँग अड़ाने वाली।"
रात को अचानक हरि रोने लगा, उसके पेट में बहुत ज़ोर का दर्द हो रहा था। यशोदा एक सप्ताह पहले उसके लिए डिस्पेंसरी से पेट दर्द की दवाई लाई थी, जिसका ढककन हरा था । वह अलमारी में से हरे ढक्क्न वाली शीशी उठा लाई और उसने दो बड़े चम्मच भरकर हरि को पिला दी। मगर यह क्या ? हरि की तो हालत और ख़राब हो गई। वह बेहोश हो गया उसके हाथ पैर अकड़ गए। यशोदा ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। सारा घर जाग गया।
पूजा के चाचा डॉक्टर के घर भागे ,ज़ोर ज़ोर से डॉक्टर के घर का दरवाजा खटखटाने लगे। डॉक्टर की पत्नी बाहर आई और बोली ,"डॉक्टर साहिब तो शहर मीटिंग में गए है। "
पूजा के चाचा दौड़े- दौड़े घर वापिस आए और यशोदा से वह शीशी माँगी, जो दवाई उसने हरि को पिलाई थी। उस शीशी को देख कर पूजा के चाचा ने अपना सर पकड़ लिया। वह चिल्लाया , "भाभी आपने तो हरि को कीट नाशक पिला दिया।बस हरा ढक्क्न देखा और दे दी दवा। अरे दवा का नाम तो पढ़ लिया होता।" ये सुनते ही यशोदा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। वह बोली, " भाई !मुझे कहाँ पढ़ना आता है। "
पूजा के चाचा ने जल्दी- जल्दी उस शीशी के साथ सलग्न कागज़ पढ़ा, जिसमें आवश्यक निर्देश दिए थे और एक इंजेक्शन का नाम भी लिखा था, जो इस कीटनाशक के असर को काम कर सकता था। वह तीर की तर्ज पर घर से बाहर निकला।
उसने केमिस्ट की दूकान चला रहे, देविंदर को नींद से जगाया ,उसकी दूकान खुलवाकर इंजेक्शन लिया और नर्स बिमला के घर जाकर दरवाजा पीट- पीट कर सारा किस्सा सुनाया। बिमला इंजेक्शन लगाने को तैयार हो गई।
कुछ ही देर में हरि को होश आ गया। पूरे परिवार ने चैन की सांस ली।
सुबह सरकारी टीम ने घर का दरवाजा खटखटाया। पूजा के बाबूजी ने दरवाज़ा खोला। पूजा तो डर कर खटिया के पीछे छिप गई। उसे लगा अब बाबूजी इस टीम को खरी खोटी सुनाएँगे। मगर ये क्या ? बाबूजी ने तो उन्हें बैठने के लिए कुर्सियां दी। माँ को कहा, सब के लिए छाछ लेकर आओ। इसके बाद जो हुआ उस पर तो पूजा को भी विशवास नहीं हो रहा था।
बाबूजी जी ने पूजा को खटिया के पीछे से हाथ पकड़कर बाहर निकला और उस टीम से बोले , 'ये हमारी बेटी पूजा है, 'झटपट इसका नाम स्कूल में दाखिला लेने के इच्छुक बच्चों की लिस्ट में , दर्ज़ कर लो और हमारे हरि के लिए आँगन वाड़ी का एक फॉर्म भर दो। यशोदा इसे आँगनवाड़ी में छोड़ कर, घर का काम आराम से कर लेगी।
इस पर टीम के एक सदस्य ने हँसते हुए कहा , "आप को तो सब जानकारी है, फिर अब तक आपने इस सुविधा का लाभ क्यों नहीं उठाया ?"
पूजा के बाबूजी बोले ,"बस ये समझ लीजिए आँख पर पट्टी चढ़ी थी, अब उत्तर गई।
टीम उनके घर से हंसी ख़ुशी विदा हुई। पूजा अपने बाबूजी के पास आकर बोली , "बाबूजी मेरी एक बात और मान लो न । " उसके बाबूजी बोले ,"हाँ बोल बिटिया आज हम बहुत खुश हैं।" पूजा बोली , मिठ्ठू को आज़ाद कर दो ,उसे भी छू लेने दो आसमान। "
बाबूजी ने पूजा के सर पर प्यार से हाथ फेरा और तोते का पिंजरा खोल दिया। पिंजरा खुलते ही मिठ्ठू दूर आकाश की और उड़ गया। पूजा भीगी पलकों से आसमान निहारती रही।
सुमन शर्मा
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