किसान की बेटी Ved Prakash Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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किसान की बेटी

किसान की बेटी

बनवारी अपने माता-पिता की अकेली संतान होने के कारण बड़े लाड़-प्यार मे पला बढ़ा, घर में किसी भी तरह की कोई कमी नहीं थी, पिता के पास पैंसठ बीघा जमीन और वह भी राजवाहे के किनारे, सिंचाई की भी कोई समस्या नहीं, पिता एक दो नौकरों के साथ पूरी मेहनत से फसल उगाते, फसल भी भरपूर होती, दो-दो गाय दूध देने वाली, इस तरह बनवारी का बचपन पूरी सम्पन्नता में बीता।

बचपन गया, जवानी आई, सम्पन्न,अच्छे घर की सुंदर, सुशील कन्या दुर्गावती से बनवारी की शादी भी हो गयी और शीघ ही बनवारी के यहाँ एक पुत्री ने जन्म लिया। पुत्री के जन्म पर बनवारी के पिता खुश नहीं थे, माँ तो थी नहीं बस एक विधवा बुआ साथ में रहती थी, वही घर संभालती थी। बुआ को बनवारी के यहाँ बेटी के पैदा होने की खुशी नहीं हुई और उसने बड़े ही अनमने मन से जच्चा-बच्चा की देखभाल की।

एक दिन पिता को जाड़े के साथ बहुत तेज बुखार आया, वैद्य जी की दवा भी दिलवाई , कई काढ़े भी बनाकर पिलाये, लेकिन बुखार नहीं उतरा और चार दिन में ही असमय काल के गाल में समा गए।

भाई की मृत्यु का दुख बहन सहन नहीं कर पाई और शीघ्र ही खाट पकड़ ली। बनवारी की पत्नी दुर्गावती एक संस्कारी परिवार से थी, उसने बुआ की भरपूर सेवा की लेकिन साल के भीतर ही बुआ जी भी स्वर्ग सिधार गईं।

बेटी गोमती एक वर्ष की हो गयी, लेकिन बनवारी उसको कभी भी प्यार भरी नजर से नहीं देखता था उसको लगता था कि एक तो लड़के की जगह लड़की पैदा हो गयी और पैदा होते ही मेरे पिता व बुआ दोनों को खा गयी। गोमती के कारण ही बनवारी अपनी पत्नी दुर्गावती से भी ज्यादा बात नहीं करता था।

कभी काम किया नहीं, लाड़-प्यार में पला बनवारी अपनी खेती की भी देखभाल नहीं करता था और धीरे-धीरे खेती चौपट होने लगी। खेती को चौपट होते देख बनवारी का साला अपने ट्रैक्टर से बनवारी के खेतों में गेहूं बो गया, खाद की कुछ बोरियाँ रख गया और बताया कि यह खाद गेहूं की फसल में डाल कर फसल को पानी देना होगा।

गेहूं उगे भी, और अच्छे उगे और जमीन के ऊपर बड़े होकर लहलहाने लगे लेकिन बनवारी ने न तो उनमें खाद डाला और न ही पानी दिया। पानी के बिना गेहूं की पूरी फसल सूख गयी।

बनवारी ने जमीन पर बैंक से कर्ज भी ले लिया लेकिन उसकी एक भी किस्त नहीं दे सका, देता भी कहाँ से जब एक भी फसल पैदा नहीं हुई। बनवारी का साला अपनी बहन और भांजी के लिए गेहूं भेज देता था एवं गाय के लिए भूसा भी भेज देता था।

बनवारी की फसल सूख गई तो बनवारी ने जिलाधिकारी से गुहार लगाई एवं मुआवजे की मांग की। जिलाधिकारी के मना करने पर बनवारी वहीं अनशन पर बैठ गया।

उधर बैंक का ब्याज बढ़-बढ़ कर बैंक कर्ज से कई गुना हो गया तो बैंक ने बनवारी की जमीन की कुर्की के आदेश निकलवा दिये। बनवारी के निकम्मेपन से अच्छा खाता-पीता परिवार बर्बाद हो रहा था और बनवारी के पास अनशन करने के दो मुद्दे हो गए थे, ‘एक तो मुझे मेरी फसल बर्बाद होने का मुआवजा दिया जाए और दूसरे मेरा बैंक का कर्ज माफ किया जाए।’

अनशन पर बैठे बनवारी की खबर एक स्थानीय पत्रिका में फोटो सहित छपी जिस पर एक स्थानीय नेता की नजर पड़ गयी और उसने मौके को भुनाने की तैयारी शुरू कर दी।

नेता जी अपने कुछ समर्थकों को साथ लेकर बनवारी से मिलने आए एवं उसके पक्ष में नारेबाजी की, समाचार पत्रों और दूरदर्शन पर समाचार आया तो जिलाधीश महोदय घबरा गए। जिलाधीश ने स्थानीय नेता को अपने कार्यालय में बुलाया और उससे सौदेबाजी कर ली एवं बनवारी को नाममात्र का मुआवजे देकर व बैंक का कर्ज चुकाने की समय सीमा बढ़ाकर एक संधि पत्र पर बनवारी के हस्ताक्षर करवा लिए।

इस तरह के वातावरण में पलटी-बढ़ती बेटी गोमती बड़ी हो गई, माँ को उसकी शादी की चिंता सताने लगी, लेकिन गोमती को तो बस अपने घर व माता-पिता की ही चिंता थी। गोमती अपने मामा की सहायता से थोड़ा पढ़-लिख गयी थी अतः उसने बैंक से कर्ज उतारने की समय सीमा कम से कम एक वर्ष बढ़वा ली।

गोमती ने अपने मामा की सहायता से ही अपनी पचास बीघा जमीन में गन्ना बो दिया और बाकी जमीन गेहूं व घास के लिए रख ली।

एक किसान की बेटी ने अपनी मेहनत से उगाई गन्ने की फसल बेच कर सात लाख रुपए कमाए, जिसमे पाँच लाख रुपए बैंक का कर्ज चुका कर अपनी जमीन की कुर्की को बचा लिया एवं दो लाख रुपए अपनी माँ को लाकर दे दिये।

इस बार गेहूं की फसल को खाद व पानी समय से मिल गया तो गेहूं भी भरपूर पैदा हुआ। गोमती के घर में दादा के समय दो गायें होती थीं अतः गोमती ने दो गाय भी खरीद लीं, दोनों ही भरपूर दूध देती थी, घर में वही पुरानी सम्पन्नता लौट आई।

दुर्गावती को गोमती के ब्याह की बड़ी चिंता रहती थी, अतः उसने अपने भाई से कोई अच्छा लड़का ढूंढने को कहा। जब यह बात गोमती को पता चली तो गोमती बोली, “मामा! मैं शादी उसी लड़के से कर लूँगी जिससे आप कहोगे, लेकिन मैं अपनी माँ, अपनी जमीन और अपने पिता को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगी, इसीलिए ऐसा लड़का तलाश करना जो मेरे साथ यहाँ मेरे घर में रह सके, मेहनती हो और मेरे साथ मेरी खेती में हाथ बंटा सके अन्यथा मेरे चले जाने के बाद मेरे पिता फिर से इस उपजाऊ जमीन को बंजर बना देंगे और झण्डा लेकर चल देंगे नारे लगाते हुए ‘हमे मुआवजा दो हमारा कर्ज माफ करो।’”

गाँव का ही एक लड़का गोमती से बहुत प्यार करता था, अक्सर खेतों में उसकी सहायता भी करता रहता था। एक बार गोमती की फसल को जंगली सूअरों का झुंड बर्बाद कर रहा था जिससे गोमती की पूरी फसल को उस लड़के ने अपनी जान पर खेल कर बचाया था। विनय के खेत भी गोमती के खेतों के पास ही थे, विनय ही रात में जब नहर का पानी अपने खेतों में चलाता तो गोमती के खेतों में भी पानी भर देता। नील गाय और सूअरों के झुंड के झुंड रात में आकर फसलों को उजाड़ रहे थे ऐसे में विनय ही कुछ और लोगों को साथ लेकर मशाल जलाकर जंगली जानवरों को भगाता और सबकी फसल व खेत बचाता।

लेकिन गोमती ने उसे कभी भी ऐसे नजरिए से देखा नहीं था जबकि एक बार खेत में काम करते हुए विनय को साँप ने काट लिया, पता लगने पर सभी लोग अपने अपने खेत का काम छोड़ कर आ तो गए परंतु विनय के चारों ओर घेरा बना कर खड़े हो गए, गोमती को भी जब पता चला तो वह भी अपने खेत से दौड़कर विनय के पास गयी, विनय बेहोश पड़ा था, उसके पैर में साँप के काटने का निशान था, गोमती ने बिना देर किए विनय के पैर से साँप का जहर चूसना शुरू कर दिया, जहर निकलने से विनय को तो होश आ गया लेकिन गोमती बेहोश हो गयी, जिसे तुरंत ही वैद्य जी के पास ले जाया गया, वैद्य जी के इलाज़ से गोमती और विनय दोनों स्वस्थ हो गए।

इन बातों को जान कर मामा समझ गए कि गोमती के लिए विनय से उपयुक्त वर और कोई नहीं हो सकता लेकिन बनवारी को

यह मंजूर नहीं था क्योंकि विनय की माँ उसकी जाति व धर्म की नहीं थी।

मामा ने बनवारी को कुछ ऐसे समझाया, “बनवारी! ऐसा ही एक मौका तुम्हारी बहन गुड्डी के लिए भी आया था जब उस राजपत्रित अधिकारी को तुम्हारे पिता ने यह कहकर नकार दिया था कि लड़का चाहे काना हो पर जाति कानी नहीं होनी चाहिए, उसके बाद जिस खानदानी घर में गुड्डी को ब्याह दिया था वहाँ क्या गुड्डी कभी सुख भोग पायी? वह बेचारी तो दुख भोगते हुए टी बी की मरीज बन कर स्वर्ग सिधार गयी और तुमने देखा! उस राजपत्रित अधिकारी की शादी उसी समय तुम्हारे गाँव के मुखिया ने अपनी इकलौती पुत्री से कर दी जो स्वयं भी राज कर रही है और उसका एक बेटा आई. ए.एस. बन गया, बेटी डॉक्टर है। वहीं पर गुड्डी के बच्चे ना पढ़ सके और ना ही अच्छा जीवन जी पा रहे हैं।”

बनवारी को अपने साले की बात समझ आ गयी और वह गोमती की शादी विनय से करवाने को राजी हो गया।

जिले में उस वर्ष का कृषि पंडित चुनने कि प्रक्रिया चल रही थी चुने गए जिसमे गोमती का नाम सर्वोपरि था, गोमती को कृषि पंडित की उपाधि प्रदान करने के लिए चुन लिया गया एवं उपाधि प्रदान करने के लिए जिलाधीश महोदय ने एक कार्यक्रम रखा जिसमे पूरे जिले के किसान सम्मिलित हुए। सभी लोगों के सामने जिलाधीश ने अपने भाषण में कहा, “आज गोमती ने सभी किसानों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है, इसने अपनी लगन, मेहनत व सूझबूझ से अपनी जमीन में कम लागत लगाकर ज्यादा से ज्यादा फसल पैदा की है, वास्तव में गोमती कृषि पंडित है, किसान की बेटी है।”